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चाबहार बंदरगाह के श्रीगणेश के बाद, चैन से नहीं सो पाएगा पड़ोसी पाकिस्तान

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 09 दिसम्बर, 2017 12:24 PM
  • 09 दिसम्बर, 2017 12:24 PM
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चाबहार बंदरगाह की शुरूआत से ईरान और भारत के रिश्ते में मजबूती आएगी. कहा जा सकता है कि ये मोदी द्वारा लिया गया वो बड़ा फैसला है जिससे सबसे ज्यादा परेशानी पाकिस्तान को हो रही है और उसकी रातों की नींद उड़ गयी है.

चाबहार बंदरगाह का श्रीगणेश भारत-ईरान संबंधों के लिए अहम घटना है. इससे पड़ोसी पाकिस्तान की नींद उड़ गई है. ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने बीते रविवार को चाबहार पोर्ट के पहले चरण का उद्घाटन किया. यह एक अनुपम अवसर था भारत के लिए पाकिस्तान को ईरान से और दूर फेंकने का. यूं भी पाकिस्तान-ईरान में संबंध बेहद तनावपूर्ण चल रहे थे. पर पहले बात कर लें चाबहार बंदरगाह की. इसके जरिए भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक ट्रांजिट रूट की शुरुआत हो गई है. यह पाकिस्तान- चीन के सहयोग से बन रहे ग्वादर पोर्ट के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में आकर खड़ी हो गई है.

चाबहार बंदरगाह के इस पहले चरण को शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के तौर पर भी जाना जाता है. चाबहार बंदरगाह के विस्तार से इस बंदरगाह की क्षमता तीन गुना बढ़ जाएगी. इस 34 करोड़ डॉलर की परियोजना के निर्माण में भारत की अहम राजनीतिक- कूटनीतिक और वित्तीय भूमिका भी रही. इससे पाकिस्तान और चीन की बेचैनी वाजिब ही है.

चाबहार बंदरगाह के शुरू होने से सबसे ज्यादा बेचैन पाकिस्तान है

मील का पत्थर

दरअसल यह परियोजना दोनों देशों के संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित होगी. भारत ने पिछले साल इस बदंरगाह और इससे जुड़ी रेल एवं सड़क परियोजनाओं के लिए 50 करोड़ डॉलर की सहायता के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी. भारत के लिए यह चाबहार इसलिए खास है क्योंकि इससे भारत के लिए पश्चिमी एशिया से जुड़ने का सीधा रास्ता उपलब्ध कराएगा और इसमें पाकिस्तान का दूर दूर तक कोई दखल नहीं होगा. चाबहार के खुलने से भारत, ईरान और अफगानिस्तान और पूरे मध्य एशिया के बीच व्यापार को बड़ा सहारा मिलेगा. पिछले महीने भारत ने अफगानिस्तान को गेहूं से भरा पहला जहाज इसी बंदरगाह के रास्ते भेजा.

चाबहार बंदरगाह का श्रीगणेश भारत-ईरान संबंधों के लिए अहम घटना है. इससे पड़ोसी पाकिस्तान की नींद उड़ गई है. ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने बीते रविवार को चाबहार पोर्ट के पहले चरण का उद्घाटन किया. यह एक अनुपम अवसर था भारत के लिए पाकिस्तान को ईरान से और दूर फेंकने का. यूं भी पाकिस्तान-ईरान में संबंध बेहद तनावपूर्ण चल रहे थे. पर पहले बात कर लें चाबहार बंदरगाह की. इसके जरिए भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक ट्रांजिट रूट की शुरुआत हो गई है. यह पाकिस्तान- चीन के सहयोग से बन रहे ग्वादर पोर्ट के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में आकर खड़ी हो गई है.

चाबहार बंदरगाह के इस पहले चरण को शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के तौर पर भी जाना जाता है. चाबहार बंदरगाह के विस्तार से इस बंदरगाह की क्षमता तीन गुना बढ़ जाएगी. इस 34 करोड़ डॉलर की परियोजना के निर्माण में भारत की अहम राजनीतिक- कूटनीतिक और वित्तीय भूमिका भी रही. इससे पाकिस्तान और चीन की बेचैनी वाजिब ही है.

चाबहार बंदरगाह के शुरू होने से सबसे ज्यादा बेचैन पाकिस्तान है

मील का पत्थर

दरअसल यह परियोजना दोनों देशों के संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित होगी. भारत ने पिछले साल इस बदंरगाह और इससे जुड़ी रेल एवं सड़क परियोजनाओं के लिए 50 करोड़ डॉलर की सहायता के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी. भारत के लिए यह चाबहार इसलिए खास है क्योंकि इससे भारत के लिए पश्चिमी एशिया से जुड़ने का सीधा रास्ता उपलब्ध कराएगा और इसमें पाकिस्तान का दूर दूर तक कोई दखल नहीं होगा. चाबहार के खुलने से भारत, ईरान और अफगानिस्तान और पूरे मध्य एशिया के बीच व्यापार को बड़ा सहारा मिलेगा. पिछले महीने भारत ने अफगानिस्तान को गेहूं से भरा पहला जहाज इसी बंदरगाह के रास्ते भेजा.

मोदी सरकार से ईरान की दोस्ती दोनों ही देशों के लिए एक सुखद पहल है

ईरान में मोदी

दरअसल चाबहार के माध्यम से अब ईरान से अपने संबंधों पर विशेष फोकस देने लगा है. वैसे भी भारत के लिए ईरान एक बहुत महत्वपूर्ण देश है. ईरान न केवल तेल का बड़ा व्यापारिक केन्द्र है, बल्कि पूरे-एशिया, रूस तथा पूर्वी यूरोप में आने-जाने का एक अहम मार्ग भी है. भारत इन सब तथ्यों से भली भाँति अवगत रहा है. लेकिन, ढुलमुल और कमज़ोर विदेश नीति की वजह से पिछले दशकों में इस दिशा में कोई सार्थक पहल न हो पायी. विगत वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ईरान गए थे. मोदी की ईरान यात्रा से दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय संपर्क एवं ढाँचागत विकास, ऊर्जा साझेदारी द्विपक्षीय कारोबार के क्षेत्र में विशिष्ट सहयोग को गति मिली है.

भारत ऊर्जा से लबरेज ईरान के साथ अपने संबंधों में नई इबारत लिखने का मन बना चुका है. वर्तमान में भारत मुख्य रूप से कच्चे तेल को सऊदी अरब और नाइजीरिया से आयात करता है. मोदी की यात्रा से ईरान को यह संदेश मिला कि भारत उसके साथ आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूती देना चाहता है. बाक़ियों को भी मोदी जी ने संदेश दे दिया कि हमारे पास भी विकल्प खुले हैं.

आपको याद होगा कि भारत और अमेरिका के बीच 2008 में हुए असैन्य परमाणु करार के बाद ईरान के साथ बहुत सारी परियोजनाओं को हमारी तत्कालीन सरकार ने या तो रद्द कर दिया गया था या फिर कई योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. यह भी सच है कि भारत और ईरान के बीच कई प्रकार के मतभेद और गलतफमियां भी रही हैं. हालांकि मोदी की यात्रा के बाद पुराने गिले-शिकवे काफ़ी हद तक दूर हो चुके हैं.

ईरान से अपने संबंधों को मजबूती देकर मोदी ने एक बड़ा फैसला लिया है

ईरान पर लगे प्रतिबंध के कारण भारतीय कम्पनियों ने ईरान में निवेश करने से परहेज करना चालू कर दिया था. लेकिन, प्रतिबन्ध हटने के बाद अब भारतीय कंपनियां वहां पर निवेश करने लगी हैं. चाबहार बंदरगाह परियोजना इस बात की गवाही है। ईरान हर कठिन मौके पर भारत के साथ रहा है. अब भारत को ईरान के साथ अपने संबंध को लेकर बहुत समझदारी से कदम उठाने होंगे. भारत किसी भी हालत में ईरान की अनदेखी नहीं कर सकता.

अब पाक का क्या होगा?

चाबहार बंदरगाह से शुरू होने से पाकिस्तान का रग- रग जरूर दुखी होगा. लेकिन, वह कर कुछ नहीं सकता ! पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने कुछ समय पहले ईरान की यात्रा की थी. वह कहने को तो एक सामान्य यात्रा थी बाजवा की. लेकिन, ऐसा था नहीं. दरअसल,  ईरान-पाकिस्तान के संबंधों में लगातार तल्खी आ रही है. पिछले साल जिस दिन भारतीय सेना ने आजाद कश्मीर में आतंकी शिविरों को बर्बाद किया था, उसी दिन ईरान ने भी पाकिस्तान पर हमला किया था. अब यह एक सामान्य संयोग तो था नहीं! वैसे, हो भी सकता है! याद होगा कि ईरान ने 28-29 सितंबर, 2016 की रात को पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर मोर्टार से गोले दागे थे.

मोदी सरकार के इस फैसले से पाकिस्तानी हुकूमत की नींद उड़ गयी है

पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर की सीमा है. ईरान ने 1965 में भारत के साथ जंग में पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था. ईरानी नेवी भी साथ दे रही थी पाक नेवी का. लेकिन, तब कॉग्रेसी हुकूमत थी. अब स्थितियों बहुत बदल चुकी हैं. एटमी गुंडे यानी पाकिस्तान से उसके सभी पड़ोसी देश इसलिए नाराज हैं, क्योंकि वह खुलेआम हर जगह आतंकवाद फैलाता है. कहा तो यह जाता है कि सउदी अरब की मदद से. ईरान इसलिए भी पाकिस्तान से नाराज है, क्योंकि, दोनों देशों की सीमा पर तैनात ईरान के दस सुरक्षाकर्मियों को पिछले साल आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था.

ये मानकर चलिए कि ईरान-पाकिस्तान के बीच संबंध आनेवाले दिनों में तो कभी सामान्य नहीं होंगे. कारण यह भी है कि पाकिस्तान पक्का चमचा है, ईरान के घोषित शत्रु सऊदी अरब का। ईरान-पाकिस्तान में इसलिए भी तनातनी रही है, क्योंकि ईरान शिया है, जबकि पाक अपने में एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम देश है. पाकिस्तान की सऊदी अरब से नजदीकियां कभी भी ईरान को रास नहीं आई हैं. लेकिन, पाकिस्तान तो पक्का बेशर्म मुल्क है, इसलिए वह सऊदी से नाता नहीं तोड़ता भी नहीं न ही मंशा रखता है. इसकी कुछ ठोस वजहें भी हैं.

पहली, तो यह कि सऊदी में लाखों की तादाद में पाकिस्तान के मजदूर नौकरी करते हैं. अगर ये वापस पाकिस्तान भेज दिए जाएं तो पाकिस्तान में हाहाकार मच जाएगा. दूसरा, पाकिस्तान को सऊदी से कच्चा लेत आराम से मिल जाता है. उसे कच्चा तेल वैसे तो ईरान, नाइजरिया या और किसी और देश से भी मिल सकता है, पर उसके नागरिकों को नौकरीऔर कोई देश नहीं दे सकता. इसलिए पाकिस्तान उसके साथ चिपका ही रहता है.

अवसर भारत के लिए

पाकिस्तान- ईरान के कटु संबंध अभी भारत के लिए अवसर भी है, ईरान से अपने संबंधों को मजबूती देने का. मोदी की यात्रा से पहले तेल और गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और फिर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी ईरान गए थे. ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रूहानी के निमंत्रण पर हुई यात्रा में मोदी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अल खुमैनी से भी मिले थे. खुमैनी आमतौर पर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष से मिलते तक नहीं है. लेकिन वे मोदी से गर्मजोशी से मिले. तो मानकर ही चलिए कि ईरान भी भारत को अहमियत देता है. ईरान को यह भी पता है कि भारत में शिया मुसलमानों के साथ भेदभाव या कत्लेआम नहीं होता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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