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बुरहान वानी पर दुख है तो कश्‍मीरी पंडितों के पलायन पर क्यों नहीं?

    • वीरू सोनकर
    • Updated: 11 जुलाई, 2016 06:31 PM
  • 11 जुलाई, 2016 06:31 PM
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आतंकवादी बनने के जितने भी कारण इस बुरहान वानी जैसों के पास मौजूद है उससे भी कहीं अधिक आतंकवादी बनने के कारण कश्मीरी पंडितो के पास हैं.

"19 जनवरी 1990"

क्या देश में यह तारीख किसी को याद है? क्या कोई इसे याद करना भी चाहता है? कोई भी बुद्धिजीवी? कोई भी वामपंथी? कोई भी कन्हैया-या उमर खालिद टाइप जोकर तक यह तारीख नहीं याद करता!

उस दिन भी सब चुप थे, ठीक आज की ही तरह, और पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने हजारो पंडितो को अपना घर जमीन न छोड़ कर भागने के एवज में जान से मार दिया था...हजारो हिन्दू औरतो से बलात्कार हुआ, सैकड़ो ने आत्महत्या कर ली थी. वहीं 7 लाख से भी ज्यादा कश्मीरी पंडित रातो रात अपना घर, जमीन, व्यापार समेत सब कुछ छोड़ कर भागने को मजबूर हुए थे. यह सब किसी मुगलकालीन राक्षस औरंगजेब के शासन में नहीं हो रहा था. यह सब दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत के मोर मुकुट कश्मीर में खुले आम हुआ, हिजबुल ने हर हिन्दू के घर पर बाकायदा नोटिस चिपकाया कि वे या तो कश्मीर छोड़ दें नहीं तो इस्लाम कबूल कर शरीयत के सभी नियमो का पालन करना शुरू कर दें.

19 जनवरी 1990 को याद करने का आज बस एक मकसद है कि यह याद दिलाया जाये कि आतंकवादी बनने के जितने भी कारण इस बुरहान वानी जैसों के पास मौजूद है उससे भी कहीं अधिक आतंकवादी बनने का कारण इन कश्मीरी पंडितो के पास है पर वो आतंकवादी नहीं बने!

जबरन इस्लाम कबूलने से बचने के लिए लाखों हिंदुओं का पलायन

वह आतंकवादी क्यों नहीं बने सोचियेगा! चीजे साफ़ होती जाएँगी.. इस तारीख को याद रखियेगा क्योंकि उस दिन भी पूरा देश चुप था, हिन्दू परिवार वहाँ मारे जा रहे थे और देश के बुद्धिजीवी मौन थे. वह आज भी मौन है और अगर बोल भी रहे हैं तो बुरहान वानी के पक्ष में बोल रहे है.

यदि यह लोग व्यवस्था से परेशान है तो...

"19 जनवरी 1990"

क्या देश में यह तारीख किसी को याद है? क्या कोई इसे याद करना भी चाहता है? कोई भी बुद्धिजीवी? कोई भी वामपंथी? कोई भी कन्हैया-या उमर खालिद टाइप जोकर तक यह तारीख नहीं याद करता!

उस दिन भी सब चुप थे, ठीक आज की ही तरह, और पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने हजारो पंडितो को अपना घर जमीन न छोड़ कर भागने के एवज में जान से मार दिया था...हजारो हिन्दू औरतो से बलात्कार हुआ, सैकड़ो ने आत्महत्या कर ली थी. वहीं 7 लाख से भी ज्यादा कश्मीरी पंडित रातो रात अपना घर, जमीन, व्यापार समेत सब कुछ छोड़ कर भागने को मजबूर हुए थे. यह सब किसी मुगलकालीन राक्षस औरंगजेब के शासन में नहीं हो रहा था. यह सब दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत के मोर मुकुट कश्मीर में खुले आम हुआ, हिजबुल ने हर हिन्दू के घर पर बाकायदा नोटिस चिपकाया कि वे या तो कश्मीर छोड़ दें नहीं तो इस्लाम कबूल कर शरीयत के सभी नियमो का पालन करना शुरू कर दें.

19 जनवरी 1990 को याद करने का आज बस एक मकसद है कि यह याद दिलाया जाये कि आतंकवादी बनने के जितने भी कारण इस बुरहान वानी जैसों के पास मौजूद है उससे भी कहीं अधिक आतंकवादी बनने का कारण इन कश्मीरी पंडितो के पास है पर वो आतंकवादी नहीं बने!

जबरन इस्लाम कबूलने से बचने के लिए लाखों हिंदुओं का पलायन

वह आतंकवादी क्यों नहीं बने सोचियेगा! चीजे साफ़ होती जाएँगी.. इस तारीख को याद रखियेगा क्योंकि उस दिन भी पूरा देश चुप था, हिन्दू परिवार वहाँ मारे जा रहे थे और देश के बुद्धिजीवी मौन थे. वह आज भी मौन है और अगर बोल भी रहे हैं तो बुरहान वानी के पक्ष में बोल रहे है.

यदि यह लोग व्यवस्था से परेशान है तो व्यवस्था से लड़ें, यदि रोजगार न मिलने से परेशान हैं तो लड़े, यदि कश्मीर में बिजली पानी शिक्षा नहीं है तो सड़को पर जाम लगा दीजिये और सचिवालय पर मौन धरना दीजिये पूरा भारत आपके साथ है कश्मीर से लेकर दिल्ली तक!

लेकिन आप यदि पाकिस्तानी एजेंसी ISI की 5000 महीने वाली सेलरी पर पत्थर-बाजी का गैंग ऑपरेट कर रहे है, यदि आप उन अलगाववादियों के उकसाने पर आतंकवादी बनते हैं, जिन्हें करोडो रुपए भारत को अस्थिर करने के लिए मिलते है, यदि आप हमारे सुरक्षा बलो का क़त्ल कर रहे हैं, यदि आप कश्मीरी पंडितो से उनका घर जमीन और व्यापार छीन कर उन्हें क़त्ल कर रहे है वह भी इस धमकी के साथ कि यहाँ रहना है तो इस्लाम कबूल करो. तो फिर हम आपसे अंतिम बात के तौर पर कहना चाहते है कि हमारे पास भारत की सेना है!

बुरहान वानी पर चली गोली आखिरी नहीं थी, शुरुआत आपने की थी यह बात हमेशा याद रहे!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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