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...क्‍योंकि शराब जरूरी है

    • राकेश चंद्र
    • Updated: 10 अप्रिल, 2017 04:37 PM
  • 10 अप्रिल, 2017 04:37 PM
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नया तर्क दिया जा रहा है कि नेशनल हाईवे और हाईवे पर शराब की दुकानें बंद कर देने के बाद इनके मालिकों की हालत खराब है. और लाइसेंस होने के बाद भी अब दुकान खोलने के लिए नई जगह नहीं मिल पा रही है.

भारत में हर साल सड़कों पर डेढ़ लाख लोगों की मौत होती है. इसी को सन्दर्भ लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे पर शराब की दुकानों को बंद करने या 500 मीटर दूर रखने का आदेश दिया था. पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा था कि राष्ट्रीय राजमार्गों और स्टेट हाईवे से 500 मीटर तक शराब की दुकानें नहीं होंगी. कोर्ट ने बाद में अपने फैसले में सुधार करते हुए इस दूरी को कम करते हुए 220 मीटर कर दिया था लेकिन शर्त जोड़ी थी कि 20 हजार से ज्यादा आबादी वाले इलाकों में पुराना आदेश लागू रहेगा. लेकिन राज्य सरकारों ने तो शायद सोच ही लिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की बजाय उसका पोस्ट मोर्टेम करके ही दम लेंगे. तभी तो चंडीगढ़, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, राजस्थान सहित अन्य राज्यों ने हजारों किलोमीटर सड़कों का दर्जा बदलकर स्थानीय, नगरपालिका या जिला स्तरीय कर दिया है. पश्चिम बंगाल सरकार भी राज्य से गुजरने वाले 275 मिलोमीटर हाईवे को नगर निकाय स्तरीय सड़क में तब्दील करने की तैयारी में हैं.

सवाल यह है कि क्या आम लोगों से जुड़े मुद्दों के निराकरण का ठेका सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ने ही ले रखा है. उन जनप्रतिनिधिओं-नौकरशाही की कोई जिम्मेवारी नहीं बनती हैं? जिन्हें जनता ने अपने सिर-आखों पर बिठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने तो केवल 500 मीटर दूर रहने की बात की थी. ये तो नहीं कहा था की बंद कर दो. यदि गुजरात और बिहार में शराब नहीं बिक रही है तो क्या वह जीवन ख़त्म हो गया है, क्या उन राज्यों को वित्तीय घाटा नहीं हो रहा है. मुद्दा सिर्फ ना नुकुर, का है. एक चुनी हुई सरकार की प्राथमिकता लोगों की जान बचाना है या ज्यादा से ज्यादा धन कामना.

नया तर्क दिया जा रहा है कि नेशनल हाईवे और हाईवे पर शराब की दुकानें बंद कर देने के बाद...

भारत में हर साल सड़कों पर डेढ़ लाख लोगों की मौत होती है. इसी को सन्दर्भ लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे पर शराब की दुकानों को बंद करने या 500 मीटर दूर रखने का आदेश दिया था. पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा था कि राष्ट्रीय राजमार्गों और स्टेट हाईवे से 500 मीटर तक शराब की दुकानें नहीं होंगी. कोर्ट ने बाद में अपने फैसले में सुधार करते हुए इस दूरी को कम करते हुए 220 मीटर कर दिया था लेकिन शर्त जोड़ी थी कि 20 हजार से ज्यादा आबादी वाले इलाकों में पुराना आदेश लागू रहेगा. लेकिन राज्य सरकारों ने तो शायद सोच ही लिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की बजाय उसका पोस्ट मोर्टेम करके ही दम लेंगे. तभी तो चंडीगढ़, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, राजस्थान सहित अन्य राज्यों ने हजारों किलोमीटर सड़कों का दर्जा बदलकर स्थानीय, नगरपालिका या जिला स्तरीय कर दिया है. पश्चिम बंगाल सरकार भी राज्य से गुजरने वाले 275 मिलोमीटर हाईवे को नगर निकाय स्तरीय सड़क में तब्दील करने की तैयारी में हैं.

सवाल यह है कि क्या आम लोगों से जुड़े मुद्दों के निराकरण का ठेका सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ने ही ले रखा है. उन जनप्रतिनिधिओं-नौकरशाही की कोई जिम्मेवारी नहीं बनती हैं? जिन्हें जनता ने अपने सिर-आखों पर बिठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने तो केवल 500 मीटर दूर रहने की बात की थी. ये तो नहीं कहा था की बंद कर दो. यदि गुजरात और बिहार में शराब नहीं बिक रही है तो क्या वह जीवन ख़त्म हो गया है, क्या उन राज्यों को वित्तीय घाटा नहीं हो रहा है. मुद्दा सिर्फ ना नुकुर, का है. एक चुनी हुई सरकार की प्राथमिकता लोगों की जान बचाना है या ज्यादा से ज्यादा धन कामना.

नया तर्क दिया जा रहा है कि नेशनल हाईवे और हाईवे पर शराब की दुकानें बंद कर देने के बाद इनके मालिकों की हालत खराब है. और लाइसेंस होने के बाद भी अब दुकान खोलने के लिए नई जगह नहीं मिलने पा रही है. नए स्थान पर कहीं पर अस्पताल बना हुआ है तो कहीं पर मंदिर तो कहीं पर लोग दुकानें नहीं खुलने दे रहे हैं. तो क्या सरकार को एक टाइम बाउंड योजना पर नहीं सोचना चाहिए था. अरे भाई नक़्ल से नहीं अक्ल से काम लो.

अब बात करते हैं क्यों शराब जरुरी है राज्यों के लिए....

किस राज्य को कितनी होती है शराब की बिक्री से आय

शराब से आय----       राज्य---

* 14,083 करोड़ रुपए--- उत्तर प्रदेश

* 2,000 करोड़ रुपये--- उत्तराखंड

* 18,000 करोड़ रुपए--- महाराष्ट्र

* 29,672 करोड़ रुपए--- तमिलनाडु

* 15,332 करोड़ रुपए--- कर्नाटक

* 19,703 करोड़ रुपए--- हरियाणा

* 12,739 करोड़ रुपए--- आंध्र प्रदेश

* 12,144 करोड़ रुपए--- तेलंगाना

* 7,926 करोड़ रुपए--- मध्य प्रदेश

* 5,585 करोड़ रुपए--- राजस्थान

* 5,000 करोड़ रुपए--- पंजाब

तो सत्ता भोग कर रहे जन प्रतिनिधयों को जनता से क्या लेना देना है. इनके लिए तो शराब ही राष्ट्रधर्म बन गया है और वह भी रोड पर. 500 मीटर की दूरी कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन पीने वाले को तो पीने का बहाना चाहिये. वो तो कहीं भी अड्डा ढूंढ ही लेता है, नेताओं को इसकी जरुरत नहीं थी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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