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क्‍या मोदी के मुखौटों पर बैन लगने वाला है !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 07 अगस्त, 2017 10:05 PM
  • 07 अगस्त, 2017 10:05 PM
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एशिया की सबसे बड़ी समाचार एजेंसियों में शुमार प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ जो स्मृति ईरानी ने किया. वो इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि, इस सरकार में तब तक मीडिया अच्छी है जब तक वो सरकार की तारीफ करे.

आंखों में पट्टी बांधे, मैं अब तक यही मानता चला आया हूं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. एक ऐसा देश जिसमें विधायिका, कार्यपालिका, न्‍यायपालिका को बेहद जरूरी मानते हुए उसे लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभों के रूप में देखा जाता है. साथ ही इसमें चौथे स्‍तंभ के रूप में मीडिया को भी जोड़ा गया है. इन चारों स्तंभों में अगर हम लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानी मीडिया काम करने के अंदाज पर गौर करें तो मिलता है कि मीडिया यहां समसामयिक मुद्दों के विषयों पर लोगों को जागरुक करने तथा उनकी राय बनाने में बेहद जरूरी निभाता है.

पीटीआई की एक हरकत से स्मृति इतनी खफा हो गयीं कि उसे माफ़ी माननी पड़ीआज जो हालात हैं उनपर यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की गाड़ी डांवाडोल है और इसके सभी पहियों पर जंग की मोटी परत लग चुकी है. जिससे गाड़ी के चलने में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है.

ये बातें हमने क्यों और किस सन्दर्भ में कहीं इसके लिए आपको एक खबर समझनी होगी. खबर है कि एशिया की सबसे बड़ी समाचार एजेंसियों में शुमार प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) को केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने जम कर लताड़ा है. इस लताड़ से घबराई पीटीआई ने आनन-फानन में माफी मांग, मामले पर मिट्टी डालने का काम किया है.

वो ट्वीट जिसकी वजह से मुसीबत में फंसा पीटीआई, और उसे बाद में हटाना पड़ा.हुआ ये कि पीटीआई ने एक खबर चलाई कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से मांग की है कि प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था को और दुरुस्त करने के लिए उन्हें अलग से फंड दिया जाए. इस खबर के साथ पीटीआई ने एक फोटो भी पोस्ट की....

आंखों में पट्टी बांधे, मैं अब तक यही मानता चला आया हूं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. एक ऐसा देश जिसमें विधायिका, कार्यपालिका, न्‍यायपालिका को बेहद जरूरी मानते हुए उसे लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभों के रूप में देखा जाता है. साथ ही इसमें चौथे स्‍तंभ के रूप में मीडिया को भी जोड़ा गया है. इन चारों स्तंभों में अगर हम लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानी मीडिया काम करने के अंदाज पर गौर करें तो मिलता है कि मीडिया यहां समसामयिक मुद्दों के विषयों पर लोगों को जागरुक करने तथा उनकी राय बनाने में बेहद जरूरी निभाता है.

पीटीआई की एक हरकत से स्मृति इतनी खफा हो गयीं कि उसे माफ़ी माननी पड़ीआज जो हालात हैं उनपर यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की गाड़ी डांवाडोल है और इसके सभी पहियों पर जंग की मोटी परत लग चुकी है. जिससे गाड़ी के चलने में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है.

ये बातें हमने क्यों और किस सन्दर्भ में कहीं इसके लिए आपको एक खबर समझनी होगी. खबर है कि एशिया की सबसे बड़ी समाचार एजेंसियों में शुमार प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) को केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने जम कर लताड़ा है. इस लताड़ से घबराई पीटीआई ने आनन-फानन में माफी मांग, मामले पर मिट्टी डालने का काम किया है.

वो ट्वीट जिसकी वजह से मुसीबत में फंसा पीटीआई, और उसे बाद में हटाना पड़ा.हुआ ये कि पीटीआई ने एक खबर चलाई कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से मांग की है कि प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था को और दुरुस्त करने के लिए उन्हें अलग से फंड दिया जाए. इस खबर के साथ पीटीआई ने एक फोटो भी पोस्ट की. फोटो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार का मुखौटा पहने दो युवक एक दूसरे को राखी बांध रहे हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की इस फोटो को देखकर स्मृति ईरानी भड़क गईं. स्मृति ईरानी ने इस खबर को रिट्वीट करते हुए पीटीआई से पूछा कि 'क्या चुने गए प्रमुखों को इसी तरह से प्रोजेक्ट किया जाता है, क्या ये आपका ऑफिशियल स्टैंड है?'

इस ट्वीट पर पीटीआई ने सफाई जारी की कि 'उन्‍होंने तो बीजेपी और जेडीयू समर्थकों की तस्‍वीर को ट्वीट किया है, जो कि इन नेताओं के मुखौटे पहनकर फ्रेंडशिप डे सेलिब्रेट कर रहे थे.'

पीटीआई की इस सफाई का स्मृति ईरानी पर क्या असर हुआ, यह ट्विटर पर तो नजर नहीं आया, लेकिन तीन मिनट बाद ही पीटीआई ने 'भावनाएं आहत करने पर क्षमा मांगते हुए 'विवादास्पद' तस्वीर वाला ट्वीट डीलीट कर दिया'.

मामले की गंभीरता समझ पीटीआई भी माफ़ी मांगने से पीछे नहीं हटा

एक पाठक के तौर पर हो सकता है ये आपको एक साधारण सा मामला लगे. आप शायद ये भी कह दें कि हम भी इसे बेवजह तूल देने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन यह जान लीजिए कि यह कोई छोटा मामला नहीं है. याद कीजिए, वह दौर जब 2014 के चुनाव से पहले मोदी के मुखौटों की देश में बाढ़ आ गई थी. उसके बाद यह ट्रेंड चल पड़ा. अलग-अलग राज्‍यों में बीजेपी ने खुद ऐसे मुखौटे तैयार करवाकर रैलियों में बंटवाए. वे फोटो अखबारों में खूब छपे. बीजेपी को तब वे फोटो अपनी लहर बनाते दिखे. तब कोई आपत्ति नहीं थी.

लेकिन अब है. जो कि सरासर गलत है. न्‍यूज एजेंसी पीटीआई के फोटोग्राफर ने मोदी-नीतीश समर्थकों का फोटो ही तो जारी किया था, जो अपने नेताओं का मुखौटा पहने हुए थे. ऐसा यह एजेंसी हमेशा से करती रही है. कभी भी किसी बीजेपी नेता ने इस पर आपत्ति नहीं की. स्‍वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नहीं.

पिछले साल यानी 2016 के पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असनसोल रैली में मोदी-मुखौटा पहने इन महिलाओं की तस्‍वीर भी पीटीआई ने ही जारी की थी.

तो अब अचानक क्‍या बदल गया ? पीटीआई एक स्‍वायत्‍त समाचार एजेंसी है. जिसे देश के लगभग सभी बड़े मीडिया समूहों के प्रतिनिधित्‍व वाला बोर्ड संचालित करता है. मोदी और नीतीश्‍ा के मुखौटा पहने समर्थकों के फोटो में भी कुछ नया नहीं है. तो सवाल यह उठता है कि स्‍मृति इरानी की आपत्ति किस बात पर है? और नेताओं के मुखौटे वाली तस्‍वीरें आखिर आपत्तिजनक कब से हो गईं ? क्‍या अब नेताओं के मुखौटे बैन हो जाएंगे ? या उनकी सिर्फ तस्‍वीरें ही आपत्तिजनक रहेंगी ? मुखौटे वाली तस्‍वीरों पर स्‍मृति इरानी की आपत्ति अल्‍पकालिक है या स्‍थायी ? यद‍ि बीजेपी या उसके नेताओं की लोकप्रियता में कोई गिरावट आती है तो क्‍या इस आपत्ति पर से प्रतिबंध हट जाएगा ?

स्‍मृति इरानी ने अपने ट्वीट में चुने हुए प्रतिनिधियों की गरिमा को लेकर चिंता व्‍यक्‍त की है. लेकिन क्‍या इसका ठीकरा सिर्फ पीटीआई जैसी समाचार एजेंसी पर ही है, जिसने तो बीजेपी और जेडीयू कार्यकर्ताओं का फोटो ही जारी किया. स्मृति जी को बिल्कुल भी नहीं भूलना चाहिए वो वक्त, जब खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी अलग-अलग रैलियों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी या फिर सोनिया गांधी के लिए अनेकों उपमाएं दीं. तब वे भी चुने हुए जनप्र‍तिनिधि थे.

चूंकि बात ट्विटर पर शुरू हुई थी, अतः जब हमने ट्विटर का रुख किया तो वहां भी स्थिति खासी दिलचस्प थी. इस घटना को लेकर लोगों के बीच मिश्रित राय है. कुछ स्‍मृति इरानी की अापत्ति को जायज मान रहे हैं तो वहीं कुछ ऐसे हैं जिनका मानना है कि स्मृति का इस तरह पीटीआई को हड़काना मीडिया के सामान्‍य कामकाज में दखलंदाजी है.

मामला चल ही रहा था कि इसपर लोगों ने भी अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी

पीटीआई के इस तरह माफी मांगने से लोग खासे खफा हैं निखिल अग्रवाल का कहना है कि पीटीआई द्वारा दिखाई गयी इस फोटो में ऐसा कुछ भी नहीं था जो किसी को नुकसान पहुंचाए और न ही इस फोटो में फोटोशॉप का इस्तेमाल किया गया था. इस तस्वीर को भाजपा और जदयू कार्यकर्ता तो इस्तेमाल कर सकते हैं, मगर मीडिया नहीं.

ट्विटर यूजर ने यहां तक कह दिया कि पत्रकार को डरना नहीं चाहिएकिशोर पांडे ने मामले की गंभीरता समझते हुए बहुत बड़ी बात कही है. किशोर ट्वीट करते हुए लिखते हैं कि,'पत्रकार डर गया तो समझो मर गया'.

इस मुद्दे पर लोगों की अपने मन मुताबिक राय हैयूजरनेम प्रवीण कुमार नाम से ट्विटर पर सक्रिय युवक ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों पर मोर्चा खोलते हुए कहा है कि, ये लोग विपक्ष की अश्लील तस्वीरें पोस्ट करते हैं. अब कोई अगर प्रधानमंत्री की तस्वीर पोस्ट कर दे तो इसे स्वीकार न किया जाएगा. इस पूरे मामले पर प्रवीण ने एक खास अंदाज में व्यंग्य किया है.

अंत में हम इतना ही कहते हुए अपनी बात खत्म करना चाहेंगे कि, एक देश के नागरिक के तौर पर हमें अपने सूचना और प्रसारण मंत्री से ये आशा है कि वो हमारे द्वारा चुने गये जन प्रतिनिधियों के प्रति भविष्य में भी ऐसे ही सचेत रहेंगी. हम उनसे यही उम्मीद रखते हैं कि यदि कल किसी ने राहुल गांधी या अखिलेश की फोटो उठाकर कुछ कहा या कुछ किया, तो स्मृति उसपर भी इतनी ही तीव्रता से प्रतिक्रिया देंगी.

यदि स्मृति ने सबका ख्याल रखा तो ये एक बहुत अच्छी बात है मगर यदि वो केवल अपनी ही पार्टी और अपनी ही पार्टी के जन प्रतिनिधियों के प्रति संजीदा हैं तो फिर वाकई समस्या और स्थिति दोनों ही बेहद गंभीर है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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