• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

भारत में राजनीतिक पार्टियों का आंतरिक चुनाव लोकतंत्र का भद्दा मज़ाक!

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 22 नवम्बर, 2017 05:44 PM
  • 22 नवम्बर, 2017 05:44 PM
offline
कुछ मामूली औपचारिकताओं के बाद राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष बन जाएंगे और इससे एक बार फिर ये साफ हो जाएगा कि पार्टियां अपने लोकप्रिय नेताओं के दम पर चलती हैं.

भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने राहुल गांधी को नेतृत्व सौंपने की अटकलों पर विराम लगा दिया. कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी समिति ने राहुल गांधी को अगला अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया. यानि राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय हो गया. जैसा कि हाल के दशकों में कांग्रेस में होता आया है, इस बार भी चुनाव की औपचारिकता ही निभाई जाएगी.

हमारे देश में पार्टियों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का भद्दा मजाक होता आया है. चाहे वो राष्ट्रीय हो या फिर क्षेत्रवादी पार्टियां. अगर कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ दें तो कांग्रेस पार्टी हो, राजद हो, सपा हो या फिर दक्षिण भारत की पार्टियां हों, किसी में भी आंतरिक लोकतंत्र नजर नहीं आता है. ये पार्टियां अपने स्वयं के पार्टी के संविधान का पालन नहीं करती हैं और उनके उम्मीदवारों को एक पूरी तरह से अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाता है. सभी पार्टियां एक व्यक्ति विशेष के इर्द - गिर्द ही रहती हैं. सारा का सारा फैसला आलाकमान के द्वारा ही लिया जाता है. यानि वन-मैन-शो.  हाल के दिनों में भाजपा में भी यही देखने को मिल रहा है.

राहुल का कांग्रेस का अध्यक्ष बनना तय है अब सिर्फ औपचारिकता ही बाक़ी है

प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों का हाल

कांग्रेस : बात देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की. सबसे पहले आलाकमान का चलन कांग्रेस ने शुरू किया जहां हर चीज आलाकमान के इशारे से तय हुआ करती है. ये भी देखा गया कि चाहे प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो या प्रदेश कमेटी का गठन, विधायक दल के नेता का चुनाव हो या फिर उम्मीदवारों का चयन हो, हर चीज आलाकमान तय करेगा.

हाँ, कांग्रेस में आलाकमान का मतलब होता है नेहरू परिवार. जब से हमारे देश को आजादी मिली तब से मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल...

भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने राहुल गांधी को नेतृत्व सौंपने की अटकलों पर विराम लगा दिया. कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी समिति ने राहुल गांधी को अगला अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया. यानि राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय हो गया. जैसा कि हाल के दशकों में कांग्रेस में होता आया है, इस बार भी चुनाव की औपचारिकता ही निभाई जाएगी.

हमारे देश में पार्टियों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का भद्दा मजाक होता आया है. चाहे वो राष्ट्रीय हो या फिर क्षेत्रवादी पार्टियां. अगर कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ दें तो कांग्रेस पार्टी हो, राजद हो, सपा हो या फिर दक्षिण भारत की पार्टियां हों, किसी में भी आंतरिक लोकतंत्र नजर नहीं आता है. ये पार्टियां अपने स्वयं के पार्टी के संविधान का पालन नहीं करती हैं और उनके उम्मीदवारों को एक पूरी तरह से अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाता है. सभी पार्टियां एक व्यक्ति विशेष के इर्द - गिर्द ही रहती हैं. सारा का सारा फैसला आलाकमान के द्वारा ही लिया जाता है. यानि वन-मैन-शो.  हाल के दिनों में भाजपा में भी यही देखने को मिल रहा है.

राहुल का कांग्रेस का अध्यक्ष बनना तय है अब सिर्फ औपचारिकता ही बाक़ी है

प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों का हाल

कांग्रेस : बात देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की. सबसे पहले आलाकमान का चलन कांग्रेस ने शुरू किया जहां हर चीज आलाकमान के इशारे से तय हुआ करती है. ये भी देखा गया कि चाहे प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो या प्रदेश कमेटी का गठन, विधायक दल के नेता का चुनाव हो या फिर उम्मीदवारों का चयन हो, हर चीज आलाकमान तय करेगा.

हाँ, कांग्रेस में आलाकमान का मतलब होता है नेहरू परिवार. जब से हमारे देश को आजादी मिली तब से मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी  करीब 19  सालों से कांग्रेस अध्यक्ष रहे. बात अगर सोनिया गांधी की हो तो इस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का आलम यह है कि कोई भी नेता उनके फैसले पर सवालिया निशान नहीं लगा सकता. ऐसे में कांग्रेस के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की बात करना शायद बेमानी ही होगी. और अब बारी राहुल गांधी की है.

भाजपा : अब बात सत्तारूढ़ भाजपा की. भाजपा का हाल कांग्रेस से थोड़ा अच्छा है. हालांकि भाजपा में संपूर्ण लोकतंत्र है ऐसा नहीं कहा जा सकता. जब भाजपा की स्थापना 1980 में हुई थी तब काफी हद तक इसके अंदर लोकतंत्र था लेकिन हाल के दिनों में यानि अमित शाह और नरेंद्र मोदी के राज में आलाकमान का चलन देखने को मिल रहा है. भाजपा में कांग्रेस के मुकाबले परिवारवाद को बढ़ावा देने की परम्परा कम है लेकिन आलाकमान की संस्कृति फलने - फूलने लगी है.

आज पार्टियों की पहचान कुछ विशेष नेताओं के कारण होती है

लेफ्ट पार्टियां :  लेफ्ट पार्टियों में कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले लोकतंत्र ज़्यादा है. इन पार्टियों में सेंट्रल कमेटी की बैठक में नीतिगत फैसले होते हैं तथा पार्टी के वरिष्ठ नेता भी इस कमेटी के फैसले को सम्मान के साथ मानते हैं. लेफ्ट पार्टियों में सीपीआई(एम्) ही मुख्य पार्टी है. लेकिन कुछ वर्षों में ऐसा देखने को मिला जैसे प्रकाश करात और सीताराम येचुरी से आगे पार्टी में कुछ नहीं है

क्षेत्रीय पार्टियां : जब बात क्षेत्रीय पार्टियों की होती है, तो वहां आंतरिक लोकतंत्र नाम की कोई चीज कभी नहीं रही. जब से क्षेत्र, भाषा या धर्म के आधार पर पार्टियों का अभ्युदय शुरू हुआ, तभी से यह समस्या जारी है. चाहे बात जम्मू कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस की हो, बिहार में राजद की हो, उत्तर प्रदेश में सपा की हो, ओडिशा में बीजद की हो, तमिलनाडु में डी.एम.के. या  ए.आई.ए.डी.एम.के. हो, पंजाब में अकाली दल  हो या फिर महाराष्ट्र में शिव सेना हो, इन पार्टियों में इनके शीर्ष नेताओं के किसी भी फैसले के खिलाफ आवाज नहीं उठाई जा सकती है. इन पार्टियों में ऐसा ही होता है जैसे राजतंत्र में राजा अपना उत्ताराधिाकारी चुनता था और उसे सत्ता सौंपता था.

संवैधानिक मजबूरी

ये सारी पार्टियां, चाहे वो राष्ट्रीय हो या क्षेत्रीय अपना नेता किसे बनाना है सबको मालूम होता है. बस महज़ औपचारिकता पूरा करने के लिए नेता चुनने की प्रक्रिया और तारीखों का ऐलान करते हैं. ताकि निर्वाचन आयोग को ये रिपोर्ट दे सकें और उन्हें अवगत कराएं कि नेताओं का चुनाव, पार्टी के संविधान के अनुरूप ही हुआ है. इन सब के बावजूद देश में लोकतंत्र का सशक्तिकरण हुआ है. लेकिन सवाल फिर भी है. अगर  पार्टियों के भीतर इस तरह की राजशाही, तानाशाही या आलाकमान की संस्कृति चलेगी तो देश के लोकतंत्र पर खतरा  इसी तरह मंडराता रहेगा.

ये भी पढ़ें -

इन चुनौतियों से सामना कैसे कर पाएंगे राहुल गांधी?

क्यों मुस्लिम गुजरात में बीजेपी के सपोर्ट में हैं..

लगे हाथ 2019 के लिए भी वोट मांग ले रहे हैं योगी आदित्यनाथ

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲