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आतंकियों को मिटाने के लिए भारत को इजराइल बन जाने की जरूरत

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 24 जनवरी, 2016 03:38 PM
  • 24 जनवरी, 2016 03:38 PM
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यह बात हैरान करती है कि ज्यादातर मोस्ट वॉन्टेड आतंकियों के बारे में पर्याप्त सूचना मौजूद होने के बावजूद भारत ने इनमें से एक खिलाफ भी मोसाद या अमेरिका द्वारा ओसामा को मारने जैसे कोई ऑपरेशन नहीं चलाया.

5 सितंबर 1972 को पूरी दुनिया 8 आतंकियों के दुस्साहसिक कदम से थर्रा उठी थी. फिलीस्तीन और लेबनान के आठ आंतकियों ने वेस्ट जर्मनी में हो रहे म्यूनिख ओलिंपिक खेलों के दौरान 11 इजराइली एथलीटों को बंधक बनाया और बाद में सबकी हत्या कर दी. बंधकों को छुड़ाने की कोशिश में वेस्ट जर्मनी द्वारा की गई कार्रवाई में 5 आतंकी मारे गए. लेकिन इसके बाद बाकी बचे तीन आतंकियों, जिनमें इस साजिश का मास्टरमाइंड भी शामिल था, को मोसाद ने सिर्फ एक महीने के अंदर ही ऑपरेशन 'रैथ ऑफ गॉड' चलाकर न सिर्फ खोजा बल्कि मार भी गिराया.

अब हाल ही में पठानकोट में आतंकी हमले का शिकार हुए भारत की तस्वीर देखिए. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इस आतंकी घटना की साजिश रचने वाले जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मौलाना मसूद अजहर का नाम उजागर किया और उसे पाकिस्तान को उपलब्ध करवाया, इस उम्मीद में कि वहां उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. पाकिस्तान ने इस साजिशकर्ता की गिरफ्तारी का नाटक किया लेकिन असल में वह कभी गिरफ्तार हुआ ही नहीं. भारत एक बार फिर खुद को चोट पहुंचाने वाले के बारे में जानकर भी कुछ नहीं कर पाया. आतंक के खिलाफ लड़ाई और आतंकियों के खात्मे में इजराइल और भारत के रवैये में इन उदाहरणों से साफ फर्क समझा जा सकता है.

दुश्मनों को मिटाने में सबसे आगे मोसादः

दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचकर अपने दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने के मामले में मोसाद का कोई मुकाबला नहीं है. 1949 में अपने गठन के बाद से ही यह खतरनाक और तेजतर्रार एजेंसी खुफिया सूचनाओं को जुटाने, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने और दुश्मनों के खात्मे के लिए गुप्त ऑपरेशन चलाने के मामले में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई, रूस की केजीबी और ब्रिटेन की MI5 से भी काफी आगे है.

पिछले कई दशकों के दौरान समय-समय पर मोसाद अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए ऐसे ऑपरेशन चलाता रहा है. इजराइल को अक्सर निशाना बनाने की कोशिश करने वाले फिलीस्तीनी आतंकी संगठन हमास और लेबनानी आतंकी संगठन हिजबुल्ला के प्रमुख आतंकियों को मोसाद ने...

5 सितंबर 1972 को पूरी दुनिया 8 आतंकियों के दुस्साहसिक कदम से थर्रा उठी थी. फिलीस्तीन और लेबनान के आठ आंतकियों ने वेस्ट जर्मनी में हो रहे म्यूनिख ओलिंपिक खेलों के दौरान 11 इजराइली एथलीटों को बंधक बनाया और बाद में सबकी हत्या कर दी. बंधकों को छुड़ाने की कोशिश में वेस्ट जर्मनी द्वारा की गई कार्रवाई में 5 आतंकी मारे गए. लेकिन इसके बाद बाकी बचे तीन आतंकियों, जिनमें इस साजिश का मास्टरमाइंड भी शामिल था, को मोसाद ने सिर्फ एक महीने के अंदर ही ऑपरेशन 'रैथ ऑफ गॉड' चलाकर न सिर्फ खोजा बल्कि मार भी गिराया.

अब हाल ही में पठानकोट में आतंकी हमले का शिकार हुए भारत की तस्वीर देखिए. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इस आतंकी घटना की साजिश रचने वाले जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मौलाना मसूद अजहर का नाम उजागर किया और उसे पाकिस्तान को उपलब्ध करवाया, इस उम्मीद में कि वहां उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. पाकिस्तान ने इस साजिशकर्ता की गिरफ्तारी का नाटक किया लेकिन असल में वह कभी गिरफ्तार हुआ ही नहीं. भारत एक बार फिर खुद को चोट पहुंचाने वाले के बारे में जानकर भी कुछ नहीं कर पाया. आतंक के खिलाफ लड़ाई और आतंकियों के खात्मे में इजराइल और भारत के रवैये में इन उदाहरणों से साफ फर्क समझा जा सकता है.

दुश्मनों को मिटाने में सबसे आगे मोसादः

दुनिया के किसी भी कोने में पहुंचकर अपने दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने के मामले में मोसाद का कोई मुकाबला नहीं है. 1949 में अपने गठन के बाद से ही यह खतरनाक और तेजतर्रार एजेंसी खुफिया सूचनाओं को जुटाने, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने और दुश्मनों के खात्मे के लिए गुप्त ऑपरेशन चलाने के मामले में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई, रूस की केजीबी और ब्रिटेन की MI5 से भी काफी आगे है.

पिछले कई दशकों के दौरान समय-समय पर मोसाद अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए ऐसे ऑपरेशन चलाता रहा है. इजराइल को अक्सर निशाना बनाने की कोशिश करने वाले फिलीस्तीनी आतंकी संगठन हमास और लेबनानी आतंकी संगठन हिजबुल्ला के प्रमुख आतंकियों को मोसाद ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचकर मौत के घाट उतारा है. हाल के वर्षों में मोसाद ने 2004 में हमास के प्रमुख नेता एज्ज अल-दीन शेख खलील को सीरिया की राजधानी दमिश्क में मारा, 2008 में हिजबुल्ला के प्रमुख नेता इमाद मुघनियाह को दमिश्क में मौत के घाट उतारा, 2008 में सीरिया न्यूक्लियर प्रोग्राम के प्रमुख मोहम्मद सुलेमान को तारतुस में मारा और 2010 में दुबई में हमास के प्रमुख नेता महमूद-अल-मबहू को मौत की नींद सुला दिया. यानी इजराइल का दुश्मन दुनिया में कहीं भी छिपकर बैठा हो मोसाद उसे उसके अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेता है.

1976 में एक इजराइली लोगों से भरे एक यात्री विमान को फिलीस्तीनी आतंकियों द्वारा हाईजैक करके युगांडा ले जाया गया. इनकी मांग इजरायली जेलों में बंद फिलीस्तीनी आतंकियों को रिहा करने की थी. मोसाद से मिली खुफिया जानकारियों के दम पर इजरायली कमांडोज ने जो रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया वह हैरान कर देने वाला था. इजरायली कमांडोज युगांडा पहुंचे और न सिर्फ सभी आतंकियों को मार गिराया बल्कि आतंकियों का समर्थन करने वाले युगांडा सेना के 45 सैनिकों को भी मौत की नींद सुला दिया और 100 से ज्यादा बंधकों को रिहा करा लिया. इतना ही नहीं इजरायली कमांडोज ने युगांडा के करीब 30 फाइटर प्लेनों को भी तबाह कर दिया था. अब जरा इसकी तुलना 1999 में एयर इंडिया के विमान को आतंकियों द्वारा हाईजैक करने पर खतरनाक आतंकी मसूद अजहर को रिहा करने के भारत के कदम से कीजिए, भारत आपको मीलों पीछे खड़ा नजर आएगा.

भारत को इजराइल से सीखने की जरूरतः

भारत ने कई वर्ष पहले पाकिस्तान को उन 50 मोस्ट वॉन्टेड आतंकियों की लिस्ट सौंपी थी जो भारत के खिलाफ आतंकी घटनाओं में शामिल रहे हैं और अब पाकिस्तान में छिपकर बैठे हैं. लेकिन भारत द्वारा बार-बार इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग किए जाने के बावजूद भी पाकिस्तान ने कभी इनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया. यहीं आकर भारत और उसकी खुफिया एजेंसियां चूक जाती हैं. इन मोस्ट वॉन्टेड आतंकियों में से ज्यादातर के बारे में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के पास पर्याप्त सूचना मौजूद है लेकिन जाने क्यों कभी भी उसने इनमें से एक खिलाफ भी मोसाद या अमेरिका द्वारा ओसामा को मारने जैसे कोई ऑपरेशन नहीं चलाया.

ये बात हैरान करती है कि इजराइल से कई गुना ज्यादा बड़ा देश आज तक किसी भी आतंकी को उसके ठिकाने की जानकारी होने के बाद भी मार नहीं पाया. फिर चाहे वह 2008 के मुंबई हमलों का मास्टर माइंड हाफिज सईद हो या 2001 में संसद हमले और पठानकोट हमले की साजिश रचने वाले मौलाना मसूद अजहर, ये सभी पाकिस्तान में खुले आम घूमते रहे हैं लेकिन भारत ने कभी भी अपने इन दुश्मनों के खिलाफ मोसाद बन जाने का साहसिक कदम नहीं उठाया. अब वर्षों से पाकिस्तान में छिपे बैठे अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की गिरफ्तारी के लिए भारत ने इंटरपोल से मदद मांगी है, खुद ही सोचिए भारत की जगह इजराइल ऐसी स्थिति में क्या करता, जाहिर तौर पर वह मदद नहीं मांगता बल्कि इन आंतकियों को मार गिराता.

भारत ने अगर अपने दुश्मनों को खुद ही मारना नहीं सीखा तो आने वाले समय में भी उसे आतंकी हमलों का दर्द झेलना होगा और वह सिर्फ मोस्ट वॉन्टेड लोगों की लिस्ट ही सौंपता रह जाएगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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