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नास्तिकों की बढ़ती आबादी से तो नहीं भड़क गए धर्म वाले ?

    • सरोज कुमार
    • Updated: 17 अक्टूबर, 2016 08:09 PM
  • 17 अक्टूबर, 2016 08:09 PM
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मतगणना के मुताबिक देश में नास्तिकों की संख्या में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है. यानी धर्म से बढ़ती दूरी की भावना तेज है. ऐसे में धर्म के ठेकेदार परेशान ही होंंगे...

14 अक्तूबर को वृंदावन में कुछ नास्तिक अपना सम्मेलन कर रहे थे. लेकिन आस्तिकों को यह रास नहीं आया. फिर क्या था, खबरों के मुताबिक मुख्य तौर पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे हिंदू धर्म के ठेकेदारों और स्थानीय हिंदू धर्माचार्यों ने आयोजन स्थल पर उग्र प्रदर्शन कर डाला और नास्तिकों के मेल-मिलाप में जबरदस्त व्यवधान डाला.

आयोजक बालेन्दु स्वामी को सम्मेलन रद्द करने की घोषणा करनी पड़ी. यही नहीं मुसलमान धर्माचार्य भी नास्तिकों के खिलाफ झंडा बुलंद किए हुए थे. मथुरा के शाही जामा मस्जिद के इमाम ने कहा कि आयोजक 'पब्लिसिटी' के लिए यह सब करते हैं और आस्थावानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है.

इसे भी पढ़ें: ऐसे भी होते हैं धर्म और आस्था से जुड़े फैसले

उन आयोजकों की 'पब्लिसिटी' का पता नहीं लेकिन सवाल उठता है कि क्या नास्तिकों को अपना मेल-मिलाप करने या भावनाओं का इजहार करने का क्या कोई अधिकार नहीं है?  या फिर आस्तिक या धर्म के ठेकेदार नास्तिकों या इस तरह के विचार वालों से इतना डरे हुए क्यों हैं? क्या भारत की जनगणना के आंकड़ों में हम इसकी कुछ झलक देख सकते हैं? आइए इसके कुछ आंकड़े देखते हैं.

 कैसे चलेगी आस्था की दुकान जब यूं बढ़ जाएंगे नास्तिक?

भारत की जनगणना 2011 के मुताबिक देश की आबादी में 2001 जनगणना के मुकाबले करीब 17.7 फीसदी की वृद्धि हुई है. इसमें हिंदुओं में 16.8 फीसदी, मुसलमानों में 24.6 फीसदी, ईसाईयों में 15.5 फीसदी, सिखों...

14 अक्तूबर को वृंदावन में कुछ नास्तिक अपना सम्मेलन कर रहे थे. लेकिन आस्तिकों को यह रास नहीं आया. फिर क्या था, खबरों के मुताबिक मुख्य तौर पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे हिंदू धर्म के ठेकेदारों और स्थानीय हिंदू धर्माचार्यों ने आयोजन स्थल पर उग्र प्रदर्शन कर डाला और नास्तिकों के मेल-मिलाप में जबरदस्त व्यवधान डाला.

आयोजक बालेन्दु स्वामी को सम्मेलन रद्द करने की घोषणा करनी पड़ी. यही नहीं मुसलमान धर्माचार्य भी नास्तिकों के खिलाफ झंडा बुलंद किए हुए थे. मथुरा के शाही जामा मस्जिद के इमाम ने कहा कि आयोजक 'पब्लिसिटी' के लिए यह सब करते हैं और आस्थावानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार नहीं है.

इसे भी पढ़ें: ऐसे भी होते हैं धर्म और आस्था से जुड़े फैसले

उन आयोजकों की 'पब्लिसिटी' का पता नहीं लेकिन सवाल उठता है कि क्या नास्तिकों को अपना मेल-मिलाप करने या भावनाओं का इजहार करने का क्या कोई अधिकार नहीं है?  या फिर आस्तिक या धर्म के ठेकेदार नास्तिकों या इस तरह के विचार वालों से इतना डरे हुए क्यों हैं? क्या भारत की जनगणना के आंकड़ों में हम इसकी कुछ झलक देख सकते हैं? आइए इसके कुछ आंकड़े देखते हैं.

 कैसे चलेगी आस्था की दुकान जब यूं बढ़ जाएंगे नास्तिक?

भारत की जनगणना 2011 के मुताबिक देश की आबादी में 2001 जनगणना के मुकाबले करीब 17.7 फीसदी की वृद्धि हुई है. इसमें हिंदुओं में 16.8 फीसदी, मुसलमानों में 24.6 फीसदी, ईसाईयों में 15.5 फीसदी, सिखों में 8.4 फीसदी, बौद्धों में 6.1 फीसदी और जैनों में 5.4 फीसदी की वृद्धि हुई है.

वहीं अन्य धार्मिक मत या अन्य मत मानने वालों (इसमें नास्तिक भी शामिल हैं) की संख्या में करीब 19 फीसदी की वृद्धि हुई है. यह दूसरा सबसे तेजी से बढ़ता तबका है. जाहिर है, ठेकेदारों को कुछ चिंता तो होगी ही!

हाल ही में इस सेक्शन में इस बार नास्तिकों (atheist) की संख्या भी जारी की गई है जो महज 33,304 (कुल आबादी की महज 0.0027 फीसदी) है. अब भले ही ये देश की कुल आबादी में बेहद कम हैं लेकिन क्या इन्हें इनकी भावनाएं व्यक्त करने का कोई अधिकार नहीं है? और असल में धार्मिक ठेकेदारों के लिए चिंता की सबसे बड़ी वजह तो एक और आंकड़ा है.

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दरअसल मतगणना में धर्म का उल्लेख न करने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक तरीके से करीब चार गुना (करीब 300 फीसदी) की जबरदस्त वृद्धि हुई है. भले ही ये देश की कुल आबादी के महज 0.23 फीसदी हैं, 2001 में इनकी संख्या 7,27,588 थी जो 2011 में बढ़कर 28,67,303 हो गई है.

अब इस तबके में ऐसी तीव्र वृद्धि की वजह लोगों में धर्म से बढ़ती दूरी की भावना हो या फिर कुछ और धार्मिक ठेकेदारों के लिए यह चिंता की बात तो है ही. आखिर अपने धर्म का उल्लेख न करने वालों की इतनी तीव्र वृद्धि भला क्यों हो रही है!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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