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कांग्रेस का 100 लोकसभा सीटों तक पहुंचना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है

    • मिन्हाज मर्चेन्ट
    • Updated: 14 मई, 2019 04:04 PM
  • 14 मई, 2019 03:53 PM
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एक गणित सुझाया जा रहा है कि यदि कांग्रेस 100 लोकसभा सीटें जीतती है, तो भाजपा को 200 सीटों तक नीचे रखा जा सकता है, और इससे नरेंद्र मोदी अपना दूसरा कार्यकाल शुरू नहीं कर पाएंगे. कह सकते हैं कि ये थ्‍योरी कोरी लफ्फाजी है.

जैसे कि 2019 के लोकसभा चुनाव का मैराथन अपने आखिरी दौर में है, दो परस्पर विरोधी अंतर्धाराएं हमारे सामने हैं- पहली एक शांत मोदी लहर जो भाजपा को अपने दम पर 250 से अधिक सीटों पर जीत दिला सकती है. जिससे एनडीए अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर सके. जबकि दूसरे में एनडीए के खिलाफ वो अंडरकरेंट है जिसमें किसानों और दलितों में गुस्सा है. शहरी मध्यवर्ग में मोहभंग है और महिलाओं और पहली बार के मतदाताओं के बीच भी स्थिति कुछ अच्छी नहीं है. इससे भाजपा 200 सीटों से नीचे आ सकती है जिससे एनडीए की सत्ता बरकरार रहने की संभावना खत्म हो जाएगी.

23 मई को हम ये जान जाएंगे कि स्थिति क्या रहती है और कौन सा अधूरापन रहता है. पर कुछ और बात करने से पहले हमारे लिए चुनावी गणित को समझना जरूरी है.

क्या कांग्रेस महत्वपूर्ण 100 सीटों के निशान को तोड़ सकती है? इस चुनाव में अपने प्राथमिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यह न्यूनतम संख्या है और इसी से वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद पर दूसरे कार्यकाल से वंचित कर सकने में सक्षम होगी. एक सिद्धांत है कि यदि कांग्रेस 100 लोकसभा सीटें जीतती है, तो भाजपा को 200 सीटों तक नीचे रखा जा सकता है, प्रभावी रूप से इसे भाजपा को अपना दूसरा कार्यकाल लाने में दिक्कत होगी. तर्क ये है कि संसद में दोनों राष्ट्रीय दलों ने सामूहिक रूप से 300 सीटें जीती हैं.

सिद्धांत और इसके पीछे के तर्क, निश्चित रूप से, कोरी लफ्फाजी हैं.

इस समय कांग्रेस का महत्वपूर्ण लक्ष्य नरेंद्र मोदी की सत्ता को उखाड़ फेंकना है

आंकड़े झूठ नहीं बोलते हैं और वे निम्नलिखित बातों को हमारे सामने लाते हैं:

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने (282) और कांग्रेस ने (44) सीटें जीतीं. इनका कुल योग 326 था.

2009 में, उन्होंने सामूहिक रूप से 322 सीटें...

जैसे कि 2019 के लोकसभा चुनाव का मैराथन अपने आखिरी दौर में है, दो परस्पर विरोधी अंतर्धाराएं हमारे सामने हैं- पहली एक शांत मोदी लहर जो भाजपा को अपने दम पर 250 से अधिक सीटों पर जीत दिला सकती है. जिससे एनडीए अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर सके. जबकि दूसरे में एनडीए के खिलाफ वो अंडरकरेंट है जिसमें किसानों और दलितों में गुस्सा है. शहरी मध्यवर्ग में मोहभंग है और महिलाओं और पहली बार के मतदाताओं के बीच भी स्थिति कुछ अच्छी नहीं है. इससे भाजपा 200 सीटों से नीचे आ सकती है जिससे एनडीए की सत्ता बरकरार रहने की संभावना खत्म हो जाएगी.

23 मई को हम ये जान जाएंगे कि स्थिति क्या रहती है और कौन सा अधूरापन रहता है. पर कुछ और बात करने से पहले हमारे लिए चुनावी गणित को समझना जरूरी है.

क्या कांग्रेस महत्वपूर्ण 100 सीटों के निशान को तोड़ सकती है? इस चुनाव में अपने प्राथमिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यह न्यूनतम संख्या है और इसी से वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद पर दूसरे कार्यकाल से वंचित कर सकने में सक्षम होगी. एक सिद्धांत है कि यदि कांग्रेस 100 लोकसभा सीटें जीतती है, तो भाजपा को 200 सीटों तक नीचे रखा जा सकता है, प्रभावी रूप से इसे भाजपा को अपना दूसरा कार्यकाल लाने में दिक्कत होगी. तर्क ये है कि संसद में दोनों राष्ट्रीय दलों ने सामूहिक रूप से 300 सीटें जीती हैं.

सिद्धांत और इसके पीछे के तर्क, निश्चित रूप से, कोरी लफ्फाजी हैं.

इस समय कांग्रेस का महत्वपूर्ण लक्ष्य नरेंद्र मोदी की सत्ता को उखाड़ फेंकना है

आंकड़े झूठ नहीं बोलते हैं और वे निम्नलिखित बातों को हमारे सामने लाते हैं:

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने (282) और कांग्रेस ने (44) सीटें जीतीं. इनका कुल योग 326 था.

2009 में, उन्होंने सामूहिक रूप से 322 सीटें (क्रमशः 116 और 206) जीतीं.

लेकिन भले ही कांग्रेस 100 लोकसभा सीटें जीतकर भाजपा को 200 सीटों से नीचे रख ले, मगर बड़ा सवाल ये है कि उस मुकाम को हासिल करने के लिए कांग्रेस की चुनावी राह क्या है?

पार्टी की संभावनाओं पर राज्यवार विचार किया जाए तो...

वर्तमन में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, झारखंड, पंजाब और महाराष्ट्र वो आठ राज्य हैं जहां कांग्रेस के पास पांच से अधिक सीटें जीतने का एक वास्तविक मौका है. भारत का चुनावी नक्शा खोजें - कोई नौवां राज्य नहीं है जहां कांग्रेस पांच से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर सकती है. इसलिए हमारा फोकस पहले इन आठ राज्यों पर होगा.

दो परिदृश्यों पर विचार करें: एक, वर्तमान अनुमानों के आधार पर, इन आठ राज्यों में कांग्रेस अधिकतम सीटें वास्तविक रूप से जीत सकती है, और दूसरा ये कि, वो संभावित संख्या जो इस प्रकार अब तक संपन्न हुए मतदान के छह चरणों की जमीनी रिपोर्टों के आधार पर कांग्रेस जीतेगी.

कांग्रेस के लिए कुछ इस तरह के तरह के नतीजे का अनुमान है.

एक तर्कसंगत दृष्टिकोण इन दो प्रमुख परिदृश्यों के मध्य बिंदु पर ले जाएगा क्योंकि इन आठ प्रमुख राज्यों में कांग्रेस की संभावना: 89 + 63/2 = 76 सीटें है.

अब, आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के एक दूसरे सेट की ओर रुख करते हैं, जहां कांग्रेस 100 सीटों के लक्ष्य के आंकड़े के करीब आने के लिए अपनी संख्या को बढ़ा सकती है. ये राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश हरियाणा (3), हिमाचल प्रदेश (1), जम्मू और कश्मीर (1), गुजरात (2), उत्तराखंड (1), दिल्ली (0), गोवा (1) हैं और पुदुचेरी (1) हैं.

ये आठ राज्य / केंद्र शासित प्रदेश सामूहिक रूप से 10 सीटें दे सकते हैं, जिसमें हरियाणा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, यहां कांग्रेस की भाजपा और AAP-JJP गठबंधन के साथ त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल रही है. इस माध्यमिक श्रेणी के अन्य राज्यों में से कोई भी विषम सीटों या दो से अधिक की संभावना नहीं रखेगा.

इन आठ राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस का कुल योग 10 सीटें ही रहेगा.16 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में इस टैली का कुल विश्लेषण  76 + 10 = 86 सीटें ही किया गया.

शेष 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बारे में क्या?

छह सबसे बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और बिहार कांग्रेस के लिए परेशानी का कारण बनते नजर आ रहे हैं. और यहां कांग्रेस कमजोर दिख रही हैं. वहीं पूर्वोत्तर के सात राज्य और शेष छह केंद्र शासित प्रदेशों में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. तमिलनाडु एक बाहरी क्षेत्र है और कांग्रेस यहां से चंद सीटें लेने के लिए DMK की रहमदिली का सहारा ले सकती है.

मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हुए विपक्ष

दिलचस्प बात ये है कि इन 20 तृतीयक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में संभवतः 10 से कम सीटें होंगी.

कांग्रेस की फाइनल टैली 86 + 10 = 96 सीटें हैं.

मध्यप्रदेश और राजस्थान की 40% से अधिक सीटों और छत्तीसगढ़ की लगभग 80% सीटों पर कांग्रेस की जीत के बाद भी 100 सीटों के निर्णायक आंकड़े अभी कांग्रेस सके लिए टेढ़ी खीर हैं.

तो, आखिर हमारे सामने क्या है, 90 सीटों वाली कांग्रेस?

लगभग 130 सीटों वाला यूपीए ( जिसमें DMK प्रमुख योगदान देने वाला है) और चुनाव के बाद के महागठबंधन में लगभग 100 सीटों (जिसमें सपा, बसपा, वामदल,टीडीपी  और टीएमसी का मुख्य योगदान है) का अनुमान है.

क्या ये मोर्चा एक स्थिर गठबंधन सरकार बना सकते हैं?

कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए (130) और महागठबंधन (100) की कुल 230 सीटों पर पूर्ण बहुमत से काफी कम सीटें हैं.

भाजपा का क्या?  जिसे सरकार बनाने के लिए कम से कम 230 सीटें चाहिए जिसमें 40 सीटें पांच प्रमुख एनडीए सहयोगियों (जेडीयू, शिवसेना, एलजेपी, अकालियों और AIADMK) से आने वाली हैं.

NDA की कुल संभावित सीटें : 270 सीटें

इस प्रकार हमारे पास एक संभावित परिदृश्य है जहां एनडीए की 270 सीटें और यूपीए के नेतृत्व वाले महागठबंधन की 230 सीटें हो सकती हैं. शेष 45 सीटों में से तीन में न्यूट्रल पार्टियों में शामिल जगमोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी, के चंद्रशेखर राव की टीआरएस और नवीन पटनायक की बीजेडी होगी. इन लोगों में ये सामर्थ्य है कि ये इस चुनावी महासमर को दिलचस्प बना सकते हैं  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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