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इस बार का ब्रिक्स सम्मलेन भारत के लिए महत्वपूर्ण क्यों हैं?

    • आलोक रंजन
    • Updated: 15 अक्टूबर, 2016 05:32 PM
  • 15 अक्टूबर, 2016 05:32 PM
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सार्क सम्मेलन से भारत के हटने के फैसले का जिस तरह से सदस्य देशों ने समर्थन किया, उससे पाकिस्तान की किरकिरी हुई है. लेकिन अब भी उसके रुख में कोई खास बदलाव नहीं है. ऐसे में भारत के पास ब्रिक्स के जरिए अच्छा मौका है कि पाकिस्तान को अंतर्राष्टीय मंच पर घेर सके...

गोवा में हो रहे ब्रिक्स सम्मलेन पर सबकी नजरें लगी हुई हैं. ये सम्मलेन ऐसे समय में हो रहा हैं जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं. उरी हमले और उसके बाद भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की करवाई करना वर्तमान में न केवल दोनों देशो के बीच कड़वाहट का कारण हैं, बल्कि विश्व के अन्य देश भी जोर शोर से पाक प्रायोजित आतंकवाद पर लगाम लगाने की बात कर रहे हैं.

इसी पृष्टभूमि में सम्मलेन हो रहा हैं और ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण सदस्य चीन ही केवल पाकिस्तान को सपोर्ट कर रहा हैं. ये सम्मलेन इसलिए भी भारत के लिए खास हैं क्योंकि उसके लिए बहुत ही अच्छा मौका हैं जब वो पाकिस्तान की कारगुजारियो को विश्व के सामने ला सकता हैं. ये फोरम उसे उपयुक्त मौका दे रहा हैं कि भारत आतंकवाद के पैरोकारों को बेनकाब कर सके.

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका यानी ब्रिक्स देशों का सम्मेलन महत्वपूर्ण सिर्फ इसलिए नहीं हैं कि ये भारत में हो रहा हैं. महत्वपूर्ण इस सन्दर्भ में भी हैं कि चीन, भारत को आतंकवाद के मुद्दे पर सपोर्ट करता हैं की नहीं. वो भारत की चिंताओं को समझने के लिए तैयार होता है या नहीं. सबको पता हैं की इस सम्मेलन में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद सबसे बड़ा मसला हैं और भारत इसको जोर शोर से उठाएगा. भारत चाहेगा कि सभी ब्रिक्स मेंबर इस मामले में उसका समर्थन करे.

 ब्रिक्स में होगी पाकिस्ता की घेराबंदी?

फिलहाल चीन ही पाकिस्तान का समर्थन करने में लगा हुआ है. उसने सयुंक्त राष्ट्र संघ में दूसरी बार पाकिस्तान में संरक्षित आतंकी सरगना मसूद अजहर पर पाबंदी नहीं लगने दी. स्पष्ट हैं कि चीन अपने फायदे के लिए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का समर्थन करने में लगा हुआ...

गोवा में हो रहे ब्रिक्स सम्मलेन पर सबकी नजरें लगी हुई हैं. ये सम्मलेन ऐसे समय में हो रहा हैं जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं. उरी हमले और उसके बाद भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की करवाई करना वर्तमान में न केवल दोनों देशो के बीच कड़वाहट का कारण हैं, बल्कि विश्व के अन्य देश भी जोर शोर से पाक प्रायोजित आतंकवाद पर लगाम लगाने की बात कर रहे हैं.

इसी पृष्टभूमि में सम्मलेन हो रहा हैं और ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण सदस्य चीन ही केवल पाकिस्तान को सपोर्ट कर रहा हैं. ये सम्मलेन इसलिए भी भारत के लिए खास हैं क्योंकि उसके लिए बहुत ही अच्छा मौका हैं जब वो पाकिस्तान की कारगुजारियो को विश्व के सामने ला सकता हैं. ये फोरम उसे उपयुक्त मौका दे रहा हैं कि भारत आतंकवाद के पैरोकारों को बेनकाब कर सके.

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका यानी ब्रिक्स देशों का सम्मेलन महत्वपूर्ण सिर्फ इसलिए नहीं हैं कि ये भारत में हो रहा हैं. महत्वपूर्ण इस सन्दर्भ में भी हैं कि चीन, भारत को आतंकवाद के मुद्दे पर सपोर्ट करता हैं की नहीं. वो भारत की चिंताओं को समझने के लिए तैयार होता है या नहीं. सबको पता हैं की इस सम्मेलन में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद सबसे बड़ा मसला हैं और भारत इसको जोर शोर से उठाएगा. भारत चाहेगा कि सभी ब्रिक्स मेंबर इस मामले में उसका समर्थन करे.

 ब्रिक्स में होगी पाकिस्ता की घेराबंदी?

फिलहाल चीन ही पाकिस्तान का समर्थन करने में लगा हुआ है. उसने सयुंक्त राष्ट्र संघ में दूसरी बार पाकिस्तान में संरक्षित आतंकी सरगना मसूद अजहर पर पाबंदी नहीं लगने दी. स्पष्ट हैं कि चीन अपने फायदे के लिए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का समर्थन करने में लगा हुआ है.

यह भी पढ़ें- ब्रिक्स से पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने की जरूरत...

चीन केवल आतंकवाद के मुद्दे में ही भारत के साथ नहीं हैं बल्कि वो परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता पर अड़ंगा लगाने की कोशिश कर रहा हैं. चीन की मनमानी भारत के लिए चिंता का विषय हैं और भारत इस मंच का इस्तेमाल अपने पक्ष रखने के लिए कर सकता हैं. ये सही हैं की ब्रिक्स मूलत: एक आर्थिक संगठन है, लेकिन ऐसे संगठन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उभरी राजनीतिक, सामरिक और कूटनीतिक समस्याओं की अनदेखी भी नहीं कर सकते है.

हाल के दिनों में जिस तरह से भारत में एक हवा बह रही हैं कि चीन के सामानों का बहिष्कार करो क्योकि वो आतंकवाद को समर्थन दे रहा हैं, जाहिर है ये चीन को रास नहीं आ रहा है. चीन के साथ एक समस्या व्यापार असंतुलन की भी है. भारत इस असंतुलन को तभी दूर कर सकता है जब चीन पॉजिटिव रिस्पांस दे.

ब्रिक्स के गोवा सम्मलेन में सभी मेम्बरो में सभी मसलों जिसमे आर्थिक मामले भी सम्मिलित है, मगर इसमें तभी सहमति बन सकती है जब चीन केवल अपने हितो का ही ध्यान न रखे बल्कि जिस उद्देश्य से ब्रिक्स की स्थापना हुई है..वो साकार हो सके.

अगर चीन अपने रवैया में बदलाव नहीं लाता है तो ब्रिक्स की सफलता पर भी सवाल उठ सकते हैं. आज के परिदृश्य में ब्राजील और रूस की इकॉनमी सुस्त चल रही है और चीन की इकॉनमी की रफ़्तार भी धीमी हो रही है. ऐसे में इस संगठन की सफलता को लेकर कई समीक्षकों ने संदेह जाहिर किया है. करीब साढ़े सात फ़ीसदी विकास दर के साथ केवल भारत ही ब्रिक्स में उम्मीद की किरण बना हुआ है. ब्रिक्स को बचाने की जिम्मेदारी सभी सदस्य देशों पर है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका भारत, चीन और रूस की है.

 चीन से मतभेद पर बनेगी बात?

उरी में आतंकी हमले के बाद इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन से भारत के हटने के फैसले का जिस तरह से अन्य देशों ने समर्थन दिया है, उससे पाकिस्तान की किरकिरी हुई है. पाकिस्तान अपने रुख में कोई बदलाव नहीं ला रहा है. भारत के पास इससे अच्छा मौका नहीं है की वो ब्रिक्स के जरिये पाकिस्तान को अंतर्राष्टीय मंच पर घेर सके और उसे विश्व में अलग थलग करने का अपना प्रयास जारी रखे.

यह भी पढ़ें- आखिर कब तक चेलगा ये झूठमूठ का 'हिंदी चीनी भाई भाई'

ब्रिक्स सम्मेलन की शुरुआत 2011 में हुई थी. इससे पहले ब्रिक्स को सिर्फ ब्रिक के तौर पर जानते थे क्योंकि साउथ अफ्रीका इसमें सम्मिलित नहीं था. ब्रिक्स का मकसद आर्थिक और ग्लोबल मोर्चे पर पश्चिमी देशों के अधिपत्य को चुनौती देना है. ब्रिक्स विश्व के पांच मुख्य उभरते हुए देशों के इकॉनमी को साथ लाने और बढ़ाने का महत्वपूर्ण मंच है. ये विश्व के 43 फीसदी जनसंख्या को समाहित किये हुए है. ये विश्व की करीब 17 फीसदी व्यापार को संचालित करती है और जो विश्व की 30 प्रतिशत जीडीपी को समेटे हुए है.

ब्रिक्स के सदस्य दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश हैं. तक़रीबन विश्व के सभी मुख्य देश आज आतंकवाद से कुछ न कुछ रूप से प्रभावित है. पिछले कुछ वर्षों में ब्रिक्स की महत्ता बढ़ी है. ब्रिक्स के सभी देश जी-20 समूह के भी सदस्य हैं और ऐसे में अगर भारत आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने में कामयाब होता है तो उसके के लिए ये बहुत बड़ी डिप्लोमेटिक विक्ट्री होगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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