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दो समीकरण और 5 मुद्दे इशारा करते हैं कि यूपी में भाजपा ही जीतेगी !

    • भूपेन्द्र यादव
    • Updated: 23 जनवरी, 2017 05:00 PM
  • 23 जनवरी, 2017 05:00 PM
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उत्तर प्रदेश में सियासी उठापटक जारी है और इस समय वोटरों के पास एक मात्र विकल्प बनकर भाजपा का ही रास्ता है! आखिर ऐसा क्यों? चलिए जानते हैं.

उत्तर प्रदेश में चुनावी मुकाबले का बिगुल बज चुका है. भारतीय जनता पार्टी इस लड़ाई के केंद्र में है. भाजपा के सामने मुकाबले में दो पक्ष हैं- एक तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन है, तो दूसरी तरफ बसपा है. जहाँ तक सपा और कांग्रेस के गठबंधन की बात है तो सपा का कहना था कि वो पांच साल तक के अपने विकास कार्यों को लेकर चुनाव में उतरेगी, लेकिन चुनाव आते ही उसे अपनी हार और असफलता का आभास हो गया. यही वजह है कि पांच साल तक यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने और विकास करने का दावा करने वाले अखिलेश यादव ने कांग्रेस और राहुल गाँधी को 105 सीटें देकर समझौता किया है.

खैर, ये समाजवादी पार्टी का निजी मामला है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि सामाजिक न्याय, गरीब कल्याण तथा समाज के पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ाने में कांग्रेस पिछले सत्तर सालों में नाकाम रही है. कांग्रेस ने सत्तर सालों में सिर्फ ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगाया, लेकिन गरीबी हटाने में नाकाम रही. जबकि भारतीय जनता पार्टी ने गरीब कल्याण की योजनाओं का जमीन पर भी उतारा है. इसलिए अब ये मुकाबला भाजपा और कांग्रेस-सपा की मूल विचारधारा के बीच होने वाला है. जहाँ तक बहुजन समाज पार्टी की बात है, तो बहुजन समाज पार्टी ने अपने पिछले कार्यकाल में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के कीर्तिमान गढ़े, उसके कारण प्रदेश की जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया. वो अपना अस्तित्व बचाने का प्रयत्न तो कर सकती है, सपा का विकल्प भी हो सकती है, लेकिन उत्तर प्रदेश में सुशासन का पर्याय नहीं बन सकती.

 आखिर क्यों भाजपा ही एक विकल्प है

प्रश्न यह है कि उत्तर प्रदेश का चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा? इस सम्बन्ध में यहाँ...

उत्तर प्रदेश में चुनावी मुकाबले का बिगुल बज चुका है. भारतीय जनता पार्टी इस लड़ाई के केंद्र में है. भाजपा के सामने मुकाबले में दो पक्ष हैं- एक तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन है, तो दूसरी तरफ बसपा है. जहाँ तक सपा और कांग्रेस के गठबंधन की बात है तो सपा का कहना था कि वो पांच साल तक के अपने विकास कार्यों को लेकर चुनाव में उतरेगी, लेकिन चुनाव आते ही उसे अपनी हार और असफलता का आभास हो गया. यही वजह है कि पांच साल तक यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने और विकास करने का दावा करने वाले अखिलेश यादव ने कांग्रेस और राहुल गाँधी को 105 सीटें देकर समझौता किया है.

खैर, ये समाजवादी पार्टी का निजी मामला है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि सामाजिक न्याय, गरीब कल्याण तथा समाज के पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ाने में कांग्रेस पिछले सत्तर सालों में नाकाम रही है. कांग्रेस ने सत्तर सालों में सिर्फ ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगाया, लेकिन गरीबी हटाने में नाकाम रही. जबकि भारतीय जनता पार्टी ने गरीब कल्याण की योजनाओं का जमीन पर भी उतारा है. इसलिए अब ये मुकाबला भाजपा और कांग्रेस-सपा की मूल विचारधारा के बीच होने वाला है. जहाँ तक बहुजन समाज पार्टी की बात है, तो बहुजन समाज पार्टी ने अपने पिछले कार्यकाल में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के कीर्तिमान गढ़े, उसके कारण प्रदेश की जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया. वो अपना अस्तित्व बचाने का प्रयत्न तो कर सकती है, सपा का विकल्प भी हो सकती है, लेकिन उत्तर प्रदेश में सुशासन का पर्याय नहीं बन सकती.

 आखिर क्यों भाजपा ही एक विकल्प है

प्रश्न यह है कि उत्तर प्रदेश का चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा? इस सम्बन्ध में यहाँ कुछ मुद्दे उल्लेखनीय हैं -

1. उत्तर प्रदेश का चुनाव इस मुद्दे पर लड़ा जाएगा कि पूरे देश में आज कृषि का जितना विकास हुआ है, उसमें उत्तर प्रदेश के कृषि विकास में पिछड़ापन का क्यों है?

2. मुद्दा यह भी होगा कि कभी देश को सर्वोच्च शिक्षण संस्थान देने वाला उत्तर प्रदेश आज शिक्षा के मामले में बेहद पिछड़ा हुआ क्यों है?

3. उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह भी मुद्दा होना चाहिए कि मनरेगा के लिए केंद्र से दी जाने वाली राशि का महज़ चालीस प्रतिशत हिस्सा ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस्तेमाल क्यों हो पाता है, शेष राशि क्यों नहीं इस्तेमाल हो पाती?

4. जनता के हितों के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव इस विषय पर भी लड़ा जाना चाहिए कि कुटीर उद्योग, साड़ी और बर्तन आदि के खुदरा कारोबारी एवं कामगार प्रदेश में अपना व्यापार बढ़ा क्यों नहीं पा रहे हैं?

5. इस चुनाव का मुद्दा यह भी होना चाहिए कि देश का प्रमुख प्रदेश होने के नाते उत्तर प्रदेश, कैसे देश की सांस्कृतिक प्रेरणा का केंद्र बने?

ये भी पढ़ें- सपा-कांग्रेस गठबंधन की काट के लिए बीजेपी और बसपा में हो सकता है गुप्त समझौता !

उत्तर प्रदेश में वृन्दावन, मथुरा, मिर्ज़ापुर, काशी, प्रयाग, अयोध्या जैसे सभी स्थानों का विकास हो और ये भारत की जीवन-दायिनी शक्ति के रूप में सक्रिय रह सकें. आज मुद्दा यह भी होना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में समाज के सभी वर्गों को लेकर हम ‘सबका साथ, सबका विकास’ की संकल्पना को केंद्र सरकार के साथ मिलकर कैसे फलीभूत करें. निश्चित रूप से इन सब विषयों को उठाने और इनको पूर्ण करने की उम्मीद जगाने के विकल्प स्वरूप अगर कोई दल दिखता है, तो वो सिर्फ भारतीय जनता पार्टी है. भाजपा आज उत्तर प्रदेश में एक उम्मीद बनकर परिवर्तन के एकमात्र विकल्प के रूप में जनता के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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