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लोकसभा चुनाव में गठबंधन को लेकर सबकी नजरें बिहार पर क्यों हैं

    • सुजीत कुमार झा
    • Updated: 04 सितम्बर, 2018 06:16 PM
  • 04 सितम्बर, 2018 06:16 PM
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जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं रामविलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा के विचारों और व्यवहारों में परिवर्तन साफ तौर पर देखा जा सकता है. इनके बयान व्यवहार और गतिविधियों पर दोनों गठबंधनों की नजर है.

लोकसभा चुनाव के देखते हुए सबकी नजर बिहार पर लगी हैं. क्योंकि बिहार ही एक ऐसा राज्य है जहां गठबंधनों का स्वरूप अभी तक पूरी तरह साफ नही है. यहां गठबंधनों का स्वरूप क्या होगा, इसको तय करेंगे केन्द्र में रह रहे दो केन्द्रीय मंत्री- एक रामविलास पासवान और दूसरे उपेन्द्र कुशवाहा. दोनों अभी हैं तो एनडीए में लेकिन महागठबंधन इन्हें लपकने के लिए तैयार बैठी है. जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं इनके विचारों और व्यवहारों में परिवर्तन साफ तौर पर देखा जा सकता है. इनके बयान व्यवहार और गतिविधियों पर दोनों गठबंधनों की नजर है. रामविलास पासवान को तो वैसे भी मौसम वैज्ञानिक कहा जाता रहा है.

एनडीए में बिहार की 40 सीटों को लेकर हाल ही में एक फार्मूला सामने आया था. हांलाकि इसे बीजेपी समेत एनडीए के सभी घटक दलों ने ये कहते हुए खारिज कर दिया कि ये कोई औपचारिक फार्मूला नहीं है. इस फार्मूले में रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी को 2 सीटें तथा उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 1 सीट पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा कम दी गई थी. इसको लेकर उपेन्द्र कुशवाहा ने कड़ा बयान दिया था और कहा था कि एनडीए में कुछ लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते हैं कि नरेन्द्र मोदी फिर से 2019 में प्रधानमंत्री बनें. साफ है कि वो इस फार्मूले से सहमत बिल्कुल भी नहीं हैं. पासवान भी एससी-एसटी एक्ट को लेकर अपनी राय जाहिर कर चुके हैं.

राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दोनों महत्वपूर्ण कड़ी हैं

वैसे एनडीए में ये परिस्थिति जनता दल यू को एडजस्ट करने की वजह से हूई है. 2014 से पहले जनता दल यू बिहार में बीजेपी के बडे भाई के रूप में 25 सीटों पर चुनाव लडती थी और बीजेपी 15 सीटों पर है, लेकिन 2014 के बाद बीजेपी मजबूत तो हूई साथ-साथ उसके घटक दल भी मजबूती से...

लोकसभा चुनाव के देखते हुए सबकी नजर बिहार पर लगी हैं. क्योंकि बिहार ही एक ऐसा राज्य है जहां गठबंधनों का स्वरूप अभी तक पूरी तरह साफ नही है. यहां गठबंधनों का स्वरूप क्या होगा, इसको तय करेंगे केन्द्र में रह रहे दो केन्द्रीय मंत्री- एक रामविलास पासवान और दूसरे उपेन्द्र कुशवाहा. दोनों अभी हैं तो एनडीए में लेकिन महागठबंधन इन्हें लपकने के लिए तैयार बैठी है. जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं इनके विचारों और व्यवहारों में परिवर्तन साफ तौर पर देखा जा सकता है. इनके बयान व्यवहार और गतिविधियों पर दोनों गठबंधनों की नजर है. रामविलास पासवान को तो वैसे भी मौसम वैज्ञानिक कहा जाता रहा है.

एनडीए में बिहार की 40 सीटों को लेकर हाल ही में एक फार्मूला सामने आया था. हांलाकि इसे बीजेपी समेत एनडीए के सभी घटक दलों ने ये कहते हुए खारिज कर दिया कि ये कोई औपचारिक फार्मूला नहीं है. इस फार्मूले में रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी को 2 सीटें तथा उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 1 सीट पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा कम दी गई थी. इसको लेकर उपेन्द्र कुशवाहा ने कड़ा बयान दिया था और कहा था कि एनडीए में कुछ लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते हैं कि नरेन्द्र मोदी फिर से 2019 में प्रधानमंत्री बनें. साफ है कि वो इस फार्मूले से सहमत बिल्कुल भी नहीं हैं. पासवान भी एससी-एसटी एक्ट को लेकर अपनी राय जाहिर कर चुके हैं.

राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा दोनों महत्वपूर्ण कड़ी हैं

वैसे एनडीए में ये परिस्थिति जनता दल यू को एडजस्ट करने की वजह से हूई है. 2014 से पहले जनता दल यू बिहार में बीजेपी के बडे भाई के रूप में 25 सीटों पर चुनाव लडती थी और बीजेपी 15 सीटों पर है, लेकिन 2014 के बाद बीजेपी मजबूत तो हूई साथ-साथ उसके घटक दल भी मजबूती से उसके साथ खड़े दिखे. सफलता भी अच्छी मिली. जबकि जनता दल यू अकेले चुनाव लड़कर सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई. अब सवाल ये है कि जनता दल यू जब एनडीए में फिर से आ गई है तो उसे कितनी सीटें दी जाएं जिससे वो सम्मानजनक स्थिति में रहे.

इसी उधेड़बुन में एनडीए की सभी पार्टियां जुटी हैं. जनता दल यू को एडजस्ट करने के लिए बीजेपी भी अपनी सीट कम करने के साथ साथ अपने घटक दलों से भी सीट कम करने को कह सकती है. ऐसे में रामविलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा को अपनी पार्टी को संभालने की मुश्किल हो सकती है. क्योंकि बदलते वक्त के साथ कई नए उम्मीदवार भी उनके साथ जुडे हैं जो चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोक रहे हैं. सभी पार्टियां अपना विस्तार चाहती हैं ऐसे में परिस्थिति के अनुसार अगर विस्तार के बजाए आकार छोटा करना पड़े तो मुश्किलें तो आएंगी.

दूसरी तरफ महगठबंधन के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं दिखती है. विपक्ष में होने के कारण वो हर हाल में चुनाव जीतना चाहते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े थे जिसमें आरजेडी 27 सीटों पर और कांग्रेस 12 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. एक सीट एनसीपी के लिए छोडी गई थी. इनमें आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2 तथा एनसीपी 1 सीट पर जीती थी. अब महागठबंधन के साथ पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और शरद यादव की पार्टी भी जुड गई हैं. जाहिर है इन्हें भी एडजस्ट करना है. हालांकि यह महागठबंधन के लिए कोई बडी बात नही है. लेकिन महागठबंधन को इंतजार है रामविलास पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा का. और यही वजह है कि सीटों के तालमेल को लेकर कोई बातचीत अभी नहीं चल रही है. महागठबंधन चाहेगा कि ये पार्टियां एनडीए के सीट एडजस्टमेंट से नाराज होकर हमारे पास आए ताकि मजबूती से एनडीए का मुकाबला किया जा सके.

वैसे इतिहास भी रहा है जब 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान केन्द्र की यूपीए सरकार में मंत्री रहे आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ने बिहार में कांग्रेस को केवल चार सीटें देकर उसे दरकिनार कर दिया था. उसके बाद केन्द्र में यूपीए की सरकार तो बनी लेकिन ये दोनों मंत्री नहीं बन सके. हांलाकि उस लोकसभा में रामविलास पासवान चुनाव भी हार गए थे. उस चुनाव में जनता दल यू और बीजेपी गठबंधन ने जबरदस्त सफलता पाई थी. लेकिन अब परिस्थियां विभिन्न हैं केन्द्र और राज्य दोनों में एनडीए की सरकार है. बिहार में महंगाई और अपराध के बढ़ते आंकडे की वजह से एनडीए को काफी मेहनत करनी पडेगी. ऐसे में ये दोनों पार्टियां इसका आकलन करने में लगी हैं कि किस गठबंधन के साथ जाने में उन्हें फायदा होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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