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कैराना उपचुनाव: कौन होगा संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार?

    • बिजय कुमार
    • Updated: 25 मार्च, 2018 01:46 PM
  • 25 मार्च, 2018 01:46 PM
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कयास लगाए जा रहे हैं कि यहां भी समाजवादी पार्टी और बीएसपी सहित कई और दलों का एक संयुक्त उम्मीदवार हो सकता है. बीएसपी उपचुनावों में शिरकत नहीं करती इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि वो अपना उम्मीदवार नहीं लाएगी.

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की बड़ी जीत में अहम् भूमिका रही संयुक्त विपक्ष और उसमें भी खासकर बहुजन समाज पार्टी की. समाजवादी पार्टी को समर्थन देकर मायावती ने सभी को चौंका दिया था. वैसे बीजेपी के नेताओं ने इस हार के पीछे अतिआत्मविश्वास और कम वोटिंग को वजह बताया था लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ आने को लेकर उनके लगातार हमलों ने ये जता दिया था कि उनके लिए भी इन दोनों का साथ आना काफी मुश्किल पैदा कर सकता है. तभी से बीजेपी इस समझौते को लेकर दोनों ही दलों पर हमलावर रुख अपनाये हुए है. यही वजह है कि बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को ना जितने देने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी और अब इसे हथियार बनाकर वो बीएसपी सुप्रीमो मायावती को ये जता रही है कि जिस तरह से उन्होंने अपनी पार्टी का वोट सपा को ट्रांसफर कर दिया ठीक वैसे ही सपा उनके उम्मीदवार के पक्ष में वोट जुटाने में कामयाब नहीं रही.

कौन होगा संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार?

वैसे देखा जाये तो लोकसभा उपचुनाव और राज्यसभा के चुनाव की हम तुलना नहीं कर सकते क्योंकि दोनों में ही कई भिन्नताएं हैं और बात समाजवादी पार्टी के राज्यसभा चुनाव में समर्थन की करें तो नरेश अग्रवाल के जाने के बाद उनके बेटे का वोट तो बीजेपी को जाना ही था इसमें समाजवादी पार्टी क्या कर सकती थी साथ ही खुद बीएसपी के एक विधायक अनिल सिंह ने भी बीजेपी के पक्ष में वोट किया. कह सकते हैं कि बीएसपी के उम्मीदवार की हार से फ़िलहाल इस समझौते पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन हो सकता है कि जल्द होने वाला कैराना लोकसभा का चुनाव उत्तर प्रदेश में संयुक्त विपक्ष की एकता की परीक्षा ले.

आइये पहले समझ लेते हैं कैराना लोकसभा सीट के गणित को और जानते हैं किसके पाले में रही...

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की बड़ी जीत में अहम् भूमिका रही संयुक्त विपक्ष और उसमें भी खासकर बहुजन समाज पार्टी की. समाजवादी पार्टी को समर्थन देकर मायावती ने सभी को चौंका दिया था. वैसे बीजेपी के नेताओं ने इस हार के पीछे अतिआत्मविश्वास और कम वोटिंग को वजह बताया था लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ आने को लेकर उनके लगातार हमलों ने ये जता दिया था कि उनके लिए भी इन दोनों का साथ आना काफी मुश्किल पैदा कर सकता है. तभी से बीजेपी इस समझौते को लेकर दोनों ही दलों पर हमलावर रुख अपनाये हुए है. यही वजह है कि बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को ना जितने देने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी और अब इसे हथियार बनाकर वो बीएसपी सुप्रीमो मायावती को ये जता रही है कि जिस तरह से उन्होंने अपनी पार्टी का वोट सपा को ट्रांसफर कर दिया ठीक वैसे ही सपा उनके उम्मीदवार के पक्ष में वोट जुटाने में कामयाब नहीं रही.

कौन होगा संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार?

वैसे देखा जाये तो लोकसभा उपचुनाव और राज्यसभा के चुनाव की हम तुलना नहीं कर सकते क्योंकि दोनों में ही कई भिन्नताएं हैं और बात समाजवादी पार्टी के राज्यसभा चुनाव में समर्थन की करें तो नरेश अग्रवाल के जाने के बाद उनके बेटे का वोट तो बीजेपी को जाना ही था इसमें समाजवादी पार्टी क्या कर सकती थी साथ ही खुद बीएसपी के एक विधायक अनिल सिंह ने भी बीजेपी के पक्ष में वोट किया. कह सकते हैं कि बीएसपी के उम्मीदवार की हार से फ़िलहाल इस समझौते पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन हो सकता है कि जल्द होने वाला कैराना लोकसभा का चुनाव उत्तर प्रदेश में संयुक्त विपक्ष की एकता की परीक्षा ले.

आइये पहले समझ लेते हैं कैराना लोकसभा सीट के गणित को और जानते हैं किसके पाले में रही है ये सीट. बात करें यहां से साल 2014 लोकसभा चुनाव में जीते प्रत्याशी की तो बीजेपी के हुकुम सिंह ने समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन को 2 लाख 36 हजार आठ सौ अठ्ठाईस मतों से मात दी थी. हुकुम सिंह को 565909 वोट मिले थे जबकि नाहिद हसन को 329081 वोट मिले थे. बहुजन समाज पार्टी को 160414 और आरएलडी के प्रत्याशी को 42706 वोट मिले थे. इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभा की सीटें हैं जिसमें से 2017 विधान सभा के चुनाव में कैराना से समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन ने बीजेपी की मृगांका सिंह को हराया था. गंगोह से बीजेपी के प्रदीप कुमार ने कांग्रेस के नौमन मसूद को शिकस्त दी थी. थाना भवन सीट से बीजेपी के सुरेश कुमार बीएसपी के अब्दुल वारिस खान को हराने में कामयाब रहे थे जबकि शामली से बीजेपी के तेजेन्द्र निर्वाल ने कांग्रेस के पंकज कुमार मालिक को हराया था. वहीं नकुर सीट से बीजेपी के धरम सिंह सैनी ने कांग्रेस के इमरान मसूद को हराया था.

बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट बीजेपी के लिए काफी अहम् है क्योंकि विधानसभा चुनाव से पहले कैराना पलयान का मुद्दा बीजेपी ने काफी जोर-शोर से उठाया था और अखिलेश सरकार पर जम कर हमले किये थे. यह सीट बीजेपी के वरिष्ठ नेता हुकम सिंह के निधन से रिक्त हुई है. इस सीट पर अगले महीने चुनाव हो सकते हैं. कैराना लोकसभा सीट पर बीजेपी 1998 और 2014 में जीतने में सफल रही थी. देखा जाये तो ये सीट ज्यादातर समाजवादी पार्टी और दूसरे दलों के पास रही है. ऐसे में इस सीट को बचाये रखने के लिए बीजेपी पूरा जोर लगा देगी और ऐसा माना जा रहा है कि सिम्पैथी वोटों को ध्यान में रखकर वो हुकम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बना सकती है. लेकिन पिछले साल विधानसभा चुनाव में उन्हें समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन ने हराया था और उसी दौरान हुकुम सिंह के भतीजे ने मृगांका सिंह को टिकट देने को लेकर बगावत भी की थी.

अब बात करें विपक्ष की तो पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस साथ-साथ चुनाव लड़े थे. लेकिन इस बार गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार उतरा था. वैसे कांग्रेस भी ये चाहती है कि बीजेपी कि हार हो, चाहे वो हराये या कोई और. कयास लगाए जा रहे हैं कि यहां भी समाजवादी पार्टी और बीएसपी सहित कई और दलों का एक संयुक्त उम्मीदवार हो सकता है. बीएसपी उपचुनावों में शिरकत नहीं करती इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि वो अपना उम्मीदवार नहीं लाएगी. इस क्षेत्र में राष्ट्रीय लोकदल अपना प्रभाव दिखाना चाहेगी ऐसे में ये माना जा रहा है कि पार्टी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को संयुक्त विपक्ष का कैराना से उम्मीदवार बनाये जाने कि मांग कर सकती है.

फूलपुर और गोरखपुर के बाद अगर कैराना में भी विपक्ष जीतने में सफल रहता है तो वो ये संदेश देने में कामयाब हो जायेगा कि बीजेपी साल भर के भीतर ही ढलान की ओर अग्रसर है साथ ही अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने में भी सफल हो जाएगी जिससे की साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वो बढे मनोबल के साथ उतर सकेगी. इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार ही यहां से चुनाव मैदान में होगा और वो अगर जयंत चौधरी हों तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. क्योंकि वैसे भी लोकसभा चुनाव में महज एक साल का समय है और ऐसे बीजेपी को हराना ही विपक्ष की एक मात्र ख्वाहिश है. वैसे तो ये सभी को पता है कि प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जब साथ आएंगे तो किसी और के लिए सीट बंटवारे में गुंजाइश नहीं होगी लेकिन मौजूदा वक्त में वो एक सन्देश देना चाहती हैं इसलिए कैराना में भी उम्मीद है की संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार होगा और इस बार शायद कांग्रेस भी साथ हो.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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