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कौन कहता है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हैं?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 06 जून, 2016 05:38 PM
  • 06 जून, 2016 05:38 PM
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राहुल गांधी को 'लेटर हेड और स्टांप' सौंपने को लेकर जयराम रमेश का मानना है कि ये बिलकुल माकूल वक्त है. इसके लिए वो उस दौर का हवाला देते हैं जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ली थी.

हर बात के दो पक्ष होते हैं, राहुल गांधी के मामले में भी ऐसा ही है. राहुल को लेकर दो राय है, पार्टी के अंदर भी और बाहर भी. पार्टी के अंदर दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश जैसे नेता जहां खुल कर उनके पक्ष में हैं तो कैप्टन अमरिंदर सिंह और शीला दीक्षित जैसे लोगों ने अब मनमोहन सिंह की तरह तकरीबन खामोशी का रास्ता अख्तियार कर लिया है.

यूपीए के दो सहयोगियों के भी ऐसे ही अलग अलग बयान आए हैं. एक हैं शरद पवार और दूसरे - उमर अब्दुल्ला.

बाहरी सोच

कुछ दिन पहले जब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री पद के साथ किस्मत कनेक्शन होने की बात कही तो कांग्रेसी नेताओं के कान खड़े हो गये. कांग्रेस नेताओं ने नीतीश को नकार तो दिया लेकिन जो कुछ भी कहा उसमें काफी संभले हुए दिखे. तभी यूपीए के सहयोगी शरद पवार से भी राय पूछी गयी. एक इंटरव्यू में शरद पवार ने राहुल गांधी को भी उसी तरह संभल कर खारिज किया जैसे कांग्रेस नेताओं ने नीतीश के बारे में बयान दिया था. दूसरी तरफ पवार ने प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार की पुरजोर वकालत की.

राहुल गांधी को लेकर उमर अब्दुल्ला ने भी ट्वीट किया, "क्या कांग्रेस राहुल का पद जल्द बढ़ाए जाने की कहानियां बना-बनाकर थकी नहीं है? ये कहानियां पढ़ते-पढ़ते अब कई साल हो गए. अब बस ये काम कर डालिए और उन्हें खुद के बूते आगे बढ़ने दीजिए."

इसे भी पढ़ें: फिर तो नसीबवाला बनते बनते रह जाएंगे राहुल गांधी

अब उमर अब्दुल्ला ने राहुल को मैदान में उतारने के लिए सलाह दी है या फिर चुनौती, ये तो वही जानें. वैसे उमर अब्दुल्ला के कहने का मतलब तो यही लगता है कि राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप देनी चाहिए ताकि हर अच्छे बुरे का क्रेडिट और तोहमत उन्हें औपचारिक तौर पर मिल सके. अगर वाकई राहुल गांधी खुद को साबित कर पाये, फिर तो बल्ले बल्ले वरना सर्जरी का...

हर बात के दो पक्ष होते हैं, राहुल गांधी के मामले में भी ऐसा ही है. राहुल को लेकर दो राय है, पार्टी के अंदर भी और बाहर भी. पार्टी के अंदर दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश जैसे नेता जहां खुल कर उनके पक्ष में हैं तो कैप्टन अमरिंदर सिंह और शीला दीक्षित जैसे लोगों ने अब मनमोहन सिंह की तरह तकरीबन खामोशी का रास्ता अख्तियार कर लिया है.

यूपीए के दो सहयोगियों के भी ऐसे ही अलग अलग बयान आए हैं. एक हैं शरद पवार और दूसरे - उमर अब्दुल्ला.

बाहरी सोच

कुछ दिन पहले जब नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री पद के साथ किस्मत कनेक्शन होने की बात कही तो कांग्रेसी नेताओं के कान खड़े हो गये. कांग्रेस नेताओं ने नीतीश को नकार तो दिया लेकिन जो कुछ भी कहा उसमें काफी संभले हुए दिखे. तभी यूपीए के सहयोगी शरद पवार से भी राय पूछी गयी. एक इंटरव्यू में शरद पवार ने राहुल गांधी को भी उसी तरह संभल कर खारिज किया जैसे कांग्रेस नेताओं ने नीतीश के बारे में बयान दिया था. दूसरी तरफ पवार ने प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार की पुरजोर वकालत की.

राहुल गांधी को लेकर उमर अब्दुल्ला ने भी ट्वीट किया, "क्या कांग्रेस राहुल का पद जल्द बढ़ाए जाने की कहानियां बना-बनाकर थकी नहीं है? ये कहानियां पढ़ते-पढ़ते अब कई साल हो गए. अब बस ये काम कर डालिए और उन्हें खुद के बूते आगे बढ़ने दीजिए."

इसे भी पढ़ें: फिर तो नसीबवाला बनते बनते रह जाएंगे राहुल गांधी

अब उमर अब्दुल्ला ने राहुल को मैदान में उतारने के लिए सलाह दी है या फिर चुनौती, ये तो वही जानें. वैसे उमर अब्दुल्ला के कहने का मतलब तो यही लगता है कि राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप देनी चाहिए ताकि हर अच्छे बुरे का क्रेडिट और तोहमत उन्हें औपचारिक तौर पर मिल सके. अगर वाकई राहुल गांधी खुद को साबित कर पाये, फिर तो बल्ले बल्ले वरना सर्जरी का ऑप्शन तो आगे भी बना ही रहेगा.

अब कांग्रेस के अंदर से भी राहुल को लेकर ऐसे ही सुझाव आ रहे हैं.

अंदरूनी सोच

कांग्रेस नेता जयराम रमेश कहते हैं, "राहुल गांधी तो एक तरह से अध्यक्ष हैं ही..."

यानी हाल फिलहाल जो भी हुआ है उसकी पूरी जिम्मेदारी राहुल गांधी की ही बनती है. लेकिन सवाल ये है कि ये जिम्मेदारी कब से शुरू हुई मानी जाएगी?

2014 के लोक सभा चुनावों के पहले से या उसके बाद? बिहार चुनाव के वक्त, या हाल के पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों से?

साथ में जयराम रमेश का जोर इस बात पर भी है, "...लेकिन औपचारिक रूप से ये काम संभाल लेना चाहिए."

अब जयराम रमेश की मानें तो कांग्रेस में इधर बीच जो भी ऊंच-नीच हुआ है उसकी जिम्मेदारी राहुल गांधी की ही बनती है. वैसे भी लोक सभा चुनाव के नतीजों के बाद सोनिया गांधी के साथ और ताजा मामले में ट्वीट कर राहुल गांधी ने एक तरीके से हार की जिम्मेदारी अपने ऊपर ही ली थी.

हालांकि, जयराम रमेश इसके लिए राहुल को नहीं बल्कि कांग्रेस की 'कम्युनिकेशन स्ट्रैटेजी' को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं - और जोर इस बात पर है कि कांग्रेस को 'ज्यादा जोरशोर' से काम करना चाहिए.

अगर राहुल के हाथ कमान है तो बताने में क्या दिक्कत है?

राहुल गांधी को 'लेटर हेड और स्टांप' सौंपने को लेकर जयराम रमेश का मानना है कि ये बिलकुल माकूल वक्त है. इसके लिए वो उस दौर का हवाला देते हैं जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ली थी.

सोनिया 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं. ये वो दौर था जब कांग्रेस की सिर्फ दो राज्यों मध्य प्रदेश और ओडिशा में सरकारें थीं, लेकिन तब लोक सभा में उसके 140 सांसद रहे. फिलहाल कांग्रेस का छह राज्यों में शासन है लेकिन लोक सभा में उसकी संख्या अभी सिर्फ 45 हो गयी है. हां, राज्य सभा में उसका पूरा दबदबा है. इतना कि कांग्रेस की मर्जी के बगैर मोदी सरकार पत्ता भी नहीं हिला सकती. अब कोई तकनीकी रास्ता अख्तियार करने की बात और है. सर्जरी की सलाह देने वाले दिग्विजय सिंह से जब पूछा जाता है - राहुल के पास वो कौन से लीडरशिप स्किल देख रहे हैं?

दिग्विजय कहते हैं, "अध्यक्ष बनने पर उनमें पार्टी को आगे ले जाने की क्षमता और अनुभव है. वो राजनीति की बारीकियां समझते हैं और देश को अच्छी तरह जानते हैं."

साथ ही साथ, दिग्विजय सिंह को ये भी लगता है कि कांग्रेस को अब नये आइडिया की जरूरत है?

इसे भी पढ़ें: कांग्रेस के घर वापसी का आइडिया अच्छा तो है लेकिन झगड़े की जड़ भी है

दिग्विजय सिंह पकड़े तो सही हैं, लेकिन वो आइडिया देगा कौन? कई साल तक तो माना जाता रहा कि राहुल गांधी को सबसे ज्यादा दिग्विजय सिंह ही आइडिया देते रहे, खासकर उत्तर प्रदेश के मामलों में. अब वहां भी भाड़े के आइडिया ही सामने आ रहे हैं.

"राहुल गांधी या प्रियंका वाड्रा को सीएम उम्मीदवार बनाया जाए."

और ये आइडिया भी मुहं के बल ही गिर जानी है. अभी तक तो ऐसा ही लगता है. क्या पता आगे चल कर आइडिया आए कि यही आइडिया ठीक है.

राहुल गांधी की ओर से तो अब तक एक ही जोरदार आइडिया आया है, तरक्की का एक ही रास्ता है - एस्केप वेलॉसिटी.

आइडिया तो धांसू है, लेकिन नतीजा आजमाने पर ही सामने आएगा - आइडिया को लेकर भी और राहुल गांधी को लेकर भी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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