• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

आधुनिक युग के शिखंडी और भीष्म पितामह कौन हैं

    • रीता गुप्ता
    • Updated: 21 नवम्बर, 2016 08:47 PM
  • 21 नवम्बर, 2016 08:47 PM
offline
मैं छत्तीसगढ़ के वनीय क्षेत्र में रहती हूं. पहले दिन से आज तक, सारे काम यथावत चल रहें हैं. बैंक भी गई, नोट भी बदले पर इतने आराम से कि शिकायतों का एक शब्द भी अविश्वसनीय लगता है.

खबर तो कई दिनों से आ ही रही थी कि दो हजार के नए नोट आने वालें हैं साथ ही बीस, पचास और सौ रूपयों की सिक्कों की भी बातें हो रहीं थी. वाट्सएप और फेसबुक पर खूब फोटो भी शेयर हो रहे थे. लोगों ने इन बातों को भी वैसे ही लिया जैसे कालांतर में जन-धन योजना को. एक-डेढ़ वर्ष पहले जब प्रधानमंत्री हर तरीके से चिल्ला रहे थे कि बैंक में खाता खुलवा लीजिये. तब भी लोग सिर्फ मुफ्त मलाई चाटने की ही कल्पना कर रहे थे. फिर भी बड़े पैमाने पर, चाहे किसी लालच में ही, खाते खुले. फिर आया काले धन को डिक्लेयर करने का आग्रह, बहुत लोगों ने किया भी. कुछ बड़ा सा आंकडा उसका भी है, पर ऐसे कई लोग अभी भी थे जो इसे गीदड़ भभकी समझ रहे थे. ये वही लोग हैं जो अपनी कमाई को सरकार से छिपाते रहे हैं और नोटों के बिस्तर पर सोते रहे हैं.

 प्रधानमंत्री तो पहले से बैंक में खाता खुलवाने पर जोर दे रहे थे

भाई नोट की गर्मी बहुत होती है. याद है पंचतंत्र की वह कहानी जिसमे एक चूहा, खूंटी पर टंगे कोट तक उछल जाता है जब तक कि उसके जेब में पैसे थे. जैसे ही किसी ने जेब से पैसे निकाले चूहे की उछाल कम हो गयी.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी और मौत - आम आदमी तेरी क्या बिसात

टैक्स बचा अपनी अघोषित कमाई के मद में चूर समाज के विभिन्न पदों पर ये पदासीन खुद को भगवान समझने लगे थे, क्योंकि पैसे को ही ये खुदा समझते हैं. देश तो बहुत आम सी चीज है, भाई. नियम-कानून ठेंगे...

खबर तो कई दिनों से आ ही रही थी कि दो हजार के नए नोट आने वालें हैं साथ ही बीस, पचास और सौ रूपयों की सिक्कों की भी बातें हो रहीं थी. वाट्सएप और फेसबुक पर खूब फोटो भी शेयर हो रहे थे. लोगों ने इन बातों को भी वैसे ही लिया जैसे कालांतर में जन-धन योजना को. एक-डेढ़ वर्ष पहले जब प्रधानमंत्री हर तरीके से चिल्ला रहे थे कि बैंक में खाता खुलवा लीजिये. तब भी लोग सिर्फ मुफ्त मलाई चाटने की ही कल्पना कर रहे थे. फिर भी बड़े पैमाने पर, चाहे किसी लालच में ही, खाते खुले. फिर आया काले धन को डिक्लेयर करने का आग्रह, बहुत लोगों ने किया भी. कुछ बड़ा सा आंकडा उसका भी है, पर ऐसे कई लोग अभी भी थे जो इसे गीदड़ भभकी समझ रहे थे. ये वही लोग हैं जो अपनी कमाई को सरकार से छिपाते रहे हैं और नोटों के बिस्तर पर सोते रहे हैं.

 प्रधानमंत्री तो पहले से बैंक में खाता खुलवाने पर जोर दे रहे थे

भाई नोट की गर्मी बहुत होती है. याद है पंचतंत्र की वह कहानी जिसमे एक चूहा, खूंटी पर टंगे कोट तक उछल जाता है जब तक कि उसके जेब में पैसे थे. जैसे ही किसी ने जेब से पैसे निकाले चूहे की उछाल कम हो गयी.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी और मौत - आम आदमी तेरी क्या बिसात

टैक्स बचा अपनी अघोषित कमाई के मद में चूर समाज के विभिन्न पदों पर ये पदासीन खुद को भगवान समझने लगे थे, क्योंकि पैसे को ही ये खुदा समझते हैं. देश तो बहुत आम सी चीज है, भाई. नियम-कानून ठेंगे पर.

अब जब इनकी काली कमाई पर सर्जिकल स्ट्राइक हो चुकी है तो अपनी सभी ज्ञानेन्द्रियों से भरसक कोसेंगें ही. आप चाहें तो भारत के नक्शे पर चिन्हित कर सकते हैं कि कहां-कहां काली कमाई के चोर धन दबाये बैठे हैं. वहीं से ज्यादा आवाजें और शोरगुल सुनाई दे रहा है. एयर कंडीशन टीवी स्टूडियो में आकर लोग ग्रामीण क्षेत्रों की तकलीफों की बातें कर रहे हैं.

मैं रहतीं हूं, देश के सबसे अनदरुनी भाग, छत्तीसगढ़ के वनीय क्षेत्र में. पहले दिन से आज तक, सारे काम यथावत चल रहें हैं. इस बीच बैंक भी गई नोट भी बदले पर इतने आराम से कि शिकायतों का एक शब्द भी अविश्वसनीय लगता है. अरे ग्रामीण हमेशा की तरह परेशान हैं अपनी गरीबी से, न कि सरकार की नोट बंदी से. आजादी के इतने सालों में सम्पूर्ण देश में मोबाइल टावरों, डिश टीवी के साथ साथ पोस्ट ऑफिस और बैंकों का भी सघन जाल बना हुआ है. जनसंख्या के आधार पर इनकी उपस्तिथि है और उनमें पैसों की उपलब्धता भी.

ये भी पढ़ें- तो क्या भाजपा के सहयोगी भी काले धन के संगरक्षक है?

अब क्या आदरणीय बहन जी, केजरीवाल और दूसरे नेता सीधे सीधे ये बोलें कि भाई जी आपकी नोट बंदी से ठीक वहीं का घाव फूटा है जिसे ना दिखाया जा सकता है ना छुपाया. महाभारत युद्ध के दौरान जैसे अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में भीष्म-पितामह पर तीर चलाया था. उसी तरह विपक्ष के नेताओं और काला बाजारियों ने ग्रामीण क्षेत्र, बूढ़े और बीमार लोगों और शादी के घर जैसे बहानों का शिखंडी खड़ा कर लिया है और आरोपों के तीर छोड़े जा रहे हैं.

पर इस बार तो बहुमत की सरकार है, हमने ही उन्हें चुना है तो उनके फैसलों और निर्णयों की जवाबदेही से हम भाग नहीं सकते हैं. महाभारत में तो भीष्म पितामह ने धनुष रख घुटना टेक दिए थे पर आज इस महाभारत में हम पितामह को धनुष नहीं त्यागने देंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲