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डेरा के सपोर्ट के बाद आप-कांग्रेस के बीच कहां फिट हो रहा सत्ताधारी गठबंधन

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 03 फरवरी, 2017 07:58 PM
  • 03 फरवरी, 2017 07:58 PM
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आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सभी पुराने समीकरण बदल दिये हैं. डेरा सच्चा सौदा ने सत्ताधारी गठबंधन को सपोर्ट किया है. तो क्या इसके बाद हवाएं रुख बदलेंगी या बदलाव की ही बयार बहती रहेगी?

लोक सभा चुनाव में जो महत्व यूपी को हासिल है, पंजाब की कुर्सी पर बैठने के लिए तकरीबन वैसी ही अहमियत मालवा इलाके की है. पंजाब के 11 जिलों में फैले मालवा क्षेत्र में सूबे की 117 में से 69 सीटें आती हैं. मौजूदा सीएम प्रकाश सिंह बादल और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इसी इलाके से आते हैं.

आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सभी पुराने समीकरण बदल दिये हैं. डेरा सच्चा सौदा ने सत्ताधारी गठबंधन को सपोर्ट किया है. तो क्या इसके बाद हवाएं रुख बदलेंगी या बदलाव की ही बयार बहती रहेगी?

डेरा का सपोर्ट कितना असरदार

डेरा सच्चा सौदा का चक्कर लगाने वाले नेताओं की गिनती मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर है कि हर प्रमुख नाम ने हाजिरी जरूर लगायी. अव्वल तो पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल कांग्रेस के लिए डेरा के सपोर्ट की बात करती रहीं, लेकिन अमित शाह के दौरे ने डेरा प्रमुख का मन बदल दिया. वैसे बीजेपी के तकरीबन आधे उम्मीदवार तो डेरा में पहले ही उपस्थिति दर्ज करा चुके थे. फिर डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम इंसान की ओर से शिरोमणि अकाली-बीजेपी गठबंधन के सपोर्ट की घोषणा की गई. हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी डेरा सच्चा सौदा ने बीजेपी को ही समर्थन दिया था.

डेरा ने एक तरीके से सपोर्ट बीजेपी को किया है, लेकिन गठबंधन में होने के कारण निश्चित रूप से इसका फायदा अकाली दल को मिलना तय है. मालवा में डेरा के लाखों अनुयायी हैं और मालवा इलाके में इसका समर्थन सारे संभावित समीकरण बदल सकता है. बीजेपी यहां की तीन सीटों फजिल्का, फिरोजपुर और अबोहर से चुनाव लड़ रही है.

हैट्रिक तो लगा दो...

2012 के चुनाव में डेरा ने कांग्रेस का सपोर्ट किया था. चुनाव में जीत को अकाली-बीजेपी गठबंधन की हुई लेकिन कांग्रेस ने 31 सीटें जीत कर गठबंधन को कड़ी टक्कर दी...

लोक सभा चुनाव में जो महत्व यूपी को हासिल है, पंजाब की कुर्सी पर बैठने के लिए तकरीबन वैसी ही अहमियत मालवा इलाके की है. पंजाब के 11 जिलों में फैले मालवा क्षेत्र में सूबे की 117 में से 69 सीटें आती हैं. मौजूदा सीएम प्रकाश सिंह बादल और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इसी इलाके से आते हैं.

आम आदमी पार्टी की एंट्री ने सभी पुराने समीकरण बदल दिये हैं. डेरा सच्चा सौदा ने सत्ताधारी गठबंधन को सपोर्ट किया है. तो क्या इसके बाद हवाएं रुख बदलेंगी या बदलाव की ही बयार बहती रहेगी?

डेरा का सपोर्ट कितना असरदार

डेरा सच्चा सौदा का चक्कर लगाने वाले नेताओं की गिनती मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर है कि हर प्रमुख नाम ने हाजिरी जरूर लगायी. अव्वल तो पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल कांग्रेस के लिए डेरा के सपोर्ट की बात करती रहीं, लेकिन अमित शाह के दौरे ने डेरा प्रमुख का मन बदल दिया. वैसे बीजेपी के तकरीबन आधे उम्मीदवार तो डेरा में पहले ही उपस्थिति दर्ज करा चुके थे. फिर डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम इंसान की ओर से शिरोमणि अकाली-बीजेपी गठबंधन के सपोर्ट की घोषणा की गई. हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी डेरा सच्चा सौदा ने बीजेपी को ही समर्थन दिया था.

डेरा ने एक तरीके से सपोर्ट बीजेपी को किया है, लेकिन गठबंधन में होने के कारण निश्चित रूप से इसका फायदा अकाली दल को मिलना तय है. मालवा में डेरा के लाखों अनुयायी हैं और मालवा इलाके में इसका समर्थन सारे संभावित समीकरण बदल सकता है. बीजेपी यहां की तीन सीटों फजिल्का, फिरोजपुर और अबोहर से चुनाव लड़ रही है.

हैट्रिक तो लगा दो...

2012 के चुनाव में डेरा ने कांग्रेस का सपोर्ट किया था. चुनाव में जीत को अकाली-बीजेपी गठबंधन की हुई लेकिन कांग्रेस ने 31 सीटें जीत कर गठबंधन को कड़ी टक्कर दी जिसके हिस्से में महज 34 सीटें ही आ पायीं. 2007 में भी गठबंधन को कांग्रेस के मुकाबले आधी सीटें ही मिल पायी थीं.

नोएडा फिल्म सिटी में एक पंजाब के एक ड्राइवर से एक चायवाला पूछता है, "अरे सरदार जी पंजाब में किसे जिता रहे हो?" "बादल तो नहीं... कांग्रेस भी हो सकती है!"

फिर चायवाला केजरीवाल के बारे में सवाल करता है. जवाब मिलता है, "केजरीवाल भी हो सके हैं..." इतना कहते ड्राइवर इनोवा गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है - वो मुस्कुराते हुए चायवाले की ओर देखता है और इंजिन स्टार्ट कर आगे बढ़ जाता है. बदलाव की ये बयार तो पूरे पंजाब से आ रही है - शायद, लोग कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं.

'कुछ नवा ट्राय करांगे...'

आम आदमी पार्टी ने घर घर जाकर लोगों से संपर्क किया है - और उन्हें अपनी बात उसी अंदाज में समझायी है जिस तरीके से दिल्लीवासियों को बताया था. अपने चुनाव निशान झाडू के साथ उन्होंने मजदूरों, गरीब किसानों और दलितों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है. खुद केजरीवाल ने भी भगवंत मान, संजय सिंह और दूसरे आप नेताओं के साथ मालवा में खासा वक्त बिताया है - और उसके बाद ही उन्होंने दूसरे इलाकों का रुख किया है.

ये आखिरी पारी है...

अकाली-बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवारों के मुकाबले आप ने नये चेहरों को मौका दिया है. उनमें ज्यादातर ऐसे हैं जिन पर कोई गंभीर आरोप नहीं हैं और उनसे किसी को ये शिकायत भी नहीं कि इलाके के लिए कुछ नहीं किया.

हालांकि, विरोधी केजरीवाल पर उग्रवादी विचारधारा को बढ़ावा देने और उनसे मदद लेने का इल्जाम लगाते रहे हैं. बठिंडा विस्फोट को लेकर उनके निशाने पर केजरीवाल ही हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी केजरीवाल को कुछ इसी अंदाज में टारगेट किया, "जिन शक्तियों ने तीन दशक पहले पंजाब को बर्बाद किया था, जिनके कारण यहां हिंसा हुई थी, वही शक्तियां दोबारा खड़े होने की कोशिश कर रही हैं."

हालांकि, बठिंडा विस्फोट के मामले में केजरीवाल ने सुखबीर बादल को ही घसीट लिया था, "पंजाब में शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए सुखबीर बादल को फौरन गिरफ्तार कर लेना चाहिए और बठिंडा विस्फोट में उनकी भूमिका की जांच करनी चाहिए."

जेल जरूर भेजेंगे...

अभी इंडियन एक्सप्रेस को दिये एक इंटरव्यू में पूर्व पुलिस अधिकारी केपीएस गिल ने कहा है कि आप पंजाब में उग्रवाद को बढ़ावा दे रही है. गिल ने इसे बेहद गंभीर बात बतायी है.

बिजनेस स्टैंडर्ड ने पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से करीब 114 किलोमीटर दूर लुधियाना जिले के झंडे गांव में कुछ लोगों के बीच तीखी बहस की एक झलक पेश की है. रिपोर्ट में एक पूर्व सैनिक बलबीर सिंह कहते हैं, "हम बदलाव के लिए वोट देना चाहते हैं. एक नई पार्टी और नई विचारधारा को आजमाना चाहते हैं. लोग अकाली दल और कांग्रेस के 70 साल के शासन से उकता गए हैं और पांच साल के लिए आप को मौका देना चाहते हैं." एक स्लोगन अक्सर लोगों से सुनने को मिलता है - 'कुछ नवा ट्राय करांगे...'

जिस तरह 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गाहे-बगाहे 'बाप बेटे की सरकार' का जिक्र किया करते थे, आम आदमी पार्टी ने पंजाब के लिए स्लोगन दिया है - 'न बाप की न बेटे की सरकार बनेगी आपकी'.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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