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जब चुनावी कोहरे के कारण पंजाब मेल बनारस होकर गई

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 फरवरी, 2016 08:25 PM
  • 22 फरवरी, 2016 08:25 PM
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बनारस में मोदी के साथ साथ केजरीवाल के भी कार्यक्रम रखने की एक ही वजह है - दलित वोट. दलित वोट यूपी और पंजाब दोनों ही राज्यों में बेहद अहम हैं.

नहीं, जाट आंदोलन कोई वजह नहीं है. ये तो चुनावी कोहरा है जिसके चलते पंजाब मेल ने नया रूट पकड़ा - और बनारस स्टेशन पर उसका लंबा स्टॉपेज रखा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दिल्ली से निकले तो अलग अलग लेकिन बनारस में उनकी मौजूदगी का तय वक्त एक ही रहा.

ऐसा इसलिए क्योंकि रविदास जयंती पर वोटों की बहती गंगा में हर कोई हाथ धो लेना चाहता था.

यूं ही नहीं बदला रूट

दिल्ली के बाद केजरीवाल पंजाब की तैयारी में जुटे हैं. मुक्तसर के माघी मेले से केजरीवाल ने अपने मुहिम की शुरुआत भी कर दी थी. यूपी के प्रभारी रहे संजय सिंह ही अब पंजाब का काम भी संभाल रहे हैं - और इसके लिए लंबे असरे से डेरा डाले हुए हैं.

बनारस में मोदी के साथ साथ केजरीवाल के भी कार्यक्रम रखने की एक ही वजह है - दलित वोट. दलित वोट यूपी और पंजाब दोनों ही राज्यों में बेहद अहम हैं. आखिर इन्हीं वोटों के बूते ही तो मायावती फिर से सत्ता में आने की कोशिश में हैं.

यूपी में दलित वोट करीब 21 फीसदी हैं, जबकि पंजाब में ये 32 फीसदी से ज्यादा है.

यूपी में पंजाब कनेक्शन

बनारस में संत रैदास मंदिर उनके जन्मस्थल पर बना हुआ है और इस मंदिर की जिम्मेदारी पंजाब के संत रविदास जन्मस्थान पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट, जालंधर के पास है.

इस मंदिर से पंजाब के दलितों का खास नाता है - और हर साल हजारों अनुयायी यहां मत्था टेकने पहु्ंचते हैं.

मोदी से सवाल

दलित संगठनों का आरोप है कि मोदी उनके वोट खातिर ये सब कर रहे हैं. इन संगठनों ने मोदी के बनारस पहुंचने से पहले 20 सवाल पूछे.

1. क्या मोदी इसके पहले कभी किसी रविदास मंदिर गए?

2. क्या वाराणसी में लोकसभा चुनाव का नामांकन भरते समय उन्होंने गुरु रविदास को याद किया?

3. क्या उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कभी गुरु रविदास का नाम लिया?

4. जब मोदी...

नहीं, जाट आंदोलन कोई वजह नहीं है. ये तो चुनावी कोहरा है जिसके चलते पंजाब मेल ने नया रूट पकड़ा - और बनारस स्टेशन पर उसका लंबा स्टॉपेज रखा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दिल्ली से निकले तो अलग अलग लेकिन बनारस में उनकी मौजूदगी का तय वक्त एक ही रहा.

ऐसा इसलिए क्योंकि रविदास जयंती पर वोटों की बहती गंगा में हर कोई हाथ धो लेना चाहता था.

यूं ही नहीं बदला रूट

दिल्ली के बाद केजरीवाल पंजाब की तैयारी में जुटे हैं. मुक्तसर के माघी मेले से केजरीवाल ने अपने मुहिम की शुरुआत भी कर दी थी. यूपी के प्रभारी रहे संजय सिंह ही अब पंजाब का काम भी संभाल रहे हैं - और इसके लिए लंबे असरे से डेरा डाले हुए हैं.

बनारस में मोदी के साथ साथ केजरीवाल के भी कार्यक्रम रखने की एक ही वजह है - दलित वोट. दलित वोट यूपी और पंजाब दोनों ही राज्यों में बेहद अहम हैं. आखिर इन्हीं वोटों के बूते ही तो मायावती फिर से सत्ता में आने की कोशिश में हैं.

यूपी में दलित वोट करीब 21 फीसदी हैं, जबकि पंजाब में ये 32 फीसदी से ज्यादा है.

यूपी में पंजाब कनेक्शन

बनारस में संत रैदास मंदिर उनके जन्मस्थल पर बना हुआ है और इस मंदिर की जिम्मेदारी पंजाब के संत रविदास जन्मस्थान पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट, जालंधर के पास है.

इस मंदिर से पंजाब के दलितों का खास नाता है - और हर साल हजारों अनुयायी यहां मत्था टेकने पहु्ंचते हैं.

मोदी से सवाल

दलित संगठनों का आरोप है कि मोदी उनके वोट खातिर ये सब कर रहे हैं. इन संगठनों ने मोदी के बनारस पहुंचने से पहले 20 सवाल पूछे.

1. क्या मोदी इसके पहले कभी किसी रविदास मंदिर गए?

2. क्या वाराणसी में लोकसभा चुनाव का नामांकन भरते समय उन्होंने गुरु रविदास को याद किया?

3. क्या उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कभी गुरु रविदास का नाम लिया?

4. जब मोदी अस्सी घाट में झाडू लगाने आए थे तो क्या उन्होंने बगल के रविदास पार्क में गुरु रविदास की मूर्ति पर मत्था टेका?

5. जब वह दशाश्वमेध घाट में आरती देखने गए थे तो क्या उन्होंने गुरु रविदास को याद किया?

6. क्या रोहित वेमुला सहित देशभर में हो रहे उत्पीड़न, दमन और शोषण पर रोक लगाने हेतु उन्होंने कोई सख्त कदम उठाया?

7. दलितों की हत्याओं पर कुत्ता कहकर अपमानित करनेवाले मंत्रियों-बीजेपी नेताओं पर कोई कार्रवाई की?

केजरीवाल के लिए पंजाब ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन बीजेपी के लिए तो पंजाब और यूपी दोनों ही बराबर की अहमियत वाले हैं. यही वजह है कि मोदी का बनारस में रविदास जयंती पर कार्यक्रम रखा गया. वैसे केजरीवाल ही नहीं समाजवादी पार्टी ने भी जोर शोर से रविदास जयंती मनायी - और मायावती के तो रविदास हैं ही.

[साभार : सभी फोटो, अपनी काशी]

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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