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गुलाम नबी को तो 'हीलिंग टच' चाहिए, पर बाकी देश को क्या चाहिए?

    • अभिरंजन कुमार
    • Updated: 20 जुलाई, 2016 02:55 PM
  • 20 जुलाई, 2016 02:55 PM
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गुलाम नबी को हीलिंग टच चाहिए, उन लोगों के लिए, जो जान से प्यारे हमारे कश्मीर में अक्सर पाकिस्तान और ISIS के झंडे लहराते हैं

कश्मीर में गुलाम नबी आज़ाद हीलिंग टच की बात कर रहे थे. 70 साल से वहां हीलिंग टच ही हो रहा था. अगर किसी की फीलिंग में ही प्रॉब्लम हो, तो कब तक हीलिंग करें?

हीलिंग करते-करते तो दो-दो पाकिस्तान बन गए. हमारा आधा कश्मीर फंसा हुआ है. बचे हुए आधे कश्मीर की भी समूची डेमोग्राफी बिगड़ चुकी है. हिन्दुओं की अच्छी-ख़ासी संख्या वाला इलाका एक हिन्दू-रहित इलाके में तब्दील हो चुका है. फिर से रिपोर्ट आई है कि 600 पंडित घाटी छोड़ने पर मजबूर हुए हैं.

बाकी भारत में तो हम सभी अल्पसंख्यकों की चिंता करते हैं, लेकिन कश्मीर में अल्पसंख्यकों की चिंता कौन करेगा? कम से कम गुलाम नबी तो नहीं करेंगे, क्योंकि बांग्लादेश और पाकिस्तान में जिन दो लोगों तस्लीमा नसरीन और तारिक फतेह ने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की पोल खोली, एक तरह से उन्हें तो उन्होंने काफ़िर ही घोषित कर दिया, वो भी देश की संसद में खड़े होकर.

बहरहाल, गुलाम नबी को हीलिंग टच चाहिए, उन लोगों के लिए, जो जान से प्यारे हमारे कश्मीर में अक्सर पाकिस्तान और ISIS के झंडे लहराते हैं, आतंकियों को पनाह देते हैं, रोड पर निकलकर गोलियां और पत्थर चलाते हैं. गुलाम नबी को हीलिंग टच चाहिए, उन लोगों के लिए, जो आए दिन हमारे सैनिकों का सिर कलम कर रहे हैं. उन सैनिकों का, जो हमारी ही किन्हीं मांओं के बेटे और बहनों के भाई हैं.

घाटी में तनाव के बाद कर्फ्यू

काश, गुलाम नबी ने उनके हीलिंग टच के बारे में भी सोचा होता. इसलिए अभी भारतीय सेना जो कर रही है, वह भी एक हीलिंग टच ही है, उन 120 करोड़ लोगों के लिए, पिछले 70 साल में कांग्रेस ने जिनकी फीलिंग बिगाड़ दी थी.

हालांकि मुझे संदेह है कि सरकार अभी...

कश्मीर में गुलाम नबी आज़ाद हीलिंग टच की बात कर रहे थे. 70 साल से वहां हीलिंग टच ही हो रहा था. अगर किसी की फीलिंग में ही प्रॉब्लम हो, तो कब तक हीलिंग करें?

हीलिंग करते-करते तो दो-दो पाकिस्तान बन गए. हमारा आधा कश्मीर फंसा हुआ है. बचे हुए आधे कश्मीर की भी समूची डेमोग्राफी बिगड़ चुकी है. हिन्दुओं की अच्छी-ख़ासी संख्या वाला इलाका एक हिन्दू-रहित इलाके में तब्दील हो चुका है. फिर से रिपोर्ट आई है कि 600 पंडित घाटी छोड़ने पर मजबूर हुए हैं.

बाकी भारत में तो हम सभी अल्पसंख्यकों की चिंता करते हैं, लेकिन कश्मीर में अल्पसंख्यकों की चिंता कौन करेगा? कम से कम गुलाम नबी तो नहीं करेंगे, क्योंकि बांग्लादेश और पाकिस्तान में जिन दो लोगों तस्लीमा नसरीन और तारिक फतेह ने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की पोल खोली, एक तरह से उन्हें तो उन्होंने काफ़िर ही घोषित कर दिया, वो भी देश की संसद में खड़े होकर.

बहरहाल, गुलाम नबी को हीलिंग टच चाहिए, उन लोगों के लिए, जो जान से प्यारे हमारे कश्मीर में अक्सर पाकिस्तान और ISIS के झंडे लहराते हैं, आतंकियों को पनाह देते हैं, रोड पर निकलकर गोलियां और पत्थर चलाते हैं. गुलाम नबी को हीलिंग टच चाहिए, उन लोगों के लिए, जो आए दिन हमारे सैनिकों का सिर कलम कर रहे हैं. उन सैनिकों का, जो हमारी ही किन्हीं मांओं के बेटे और बहनों के भाई हैं.

घाटी में तनाव के बाद कर्फ्यू

काश, गुलाम नबी ने उनके हीलिंग टच के बारे में भी सोचा होता. इसलिए अभी भारतीय सेना जो कर रही है, वह भी एक हीलिंग टच ही है, उन 120 करोड़ लोगों के लिए, पिछले 70 साल में कांग्रेस ने जिनकी फीलिंग बिगाड़ दी थी.

हालांकि मुझे संदेह है कि सरकार अभी डर-डर कर कार्रवाइयां कर रही है, जबकि उसे सेना को पूरी छूट देनी चाहिए. ऐसी कार्रवाइयों के बाद हीलिंग टच के आदी हो चुके सारे लोग कुछ दिन तो बौखलाहट दिखाते ही हैं, लेकिन अगली बार उन्हें पता होता है कि हरकतें ठीक नहीं की, तो क्या हो सकता है!

इसलिए इसमें परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है कि पाकिस्तान "काला दिवस" मना रहा है या कांग्रेस "हीलिंग शताब्दी" मना रही है. हां, बस एक बात का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए कि किसी बेगुनाह को नुकसान न पहुंचने पाए.

हमने घाटी में मीडिया के प्रवेश को रोकने और नेशनल मीडिया के लिए भी एक गाइडलाइन जारी करने की वकालत की थी. लेकिन सरकार ने सीमित कदम उठाते हुए घाटी में इंटरनेट सेवा तो रोकी, लेकिन नेशनल मीडिया को खुला छोड़ दिया. इसलिए अब भी वहां की रिपोर्टिंग में तथ्य कम, सनसनी ज्यादा है.

बहरहाल, हिंसा की यह स्थिति जल्द समाप्त होनी चाहिए. इसके लिए आज की कार्रवाई ऐसी हो, कि लोग कल फिर से हिंसा के बारे में न सोच सकें. अभी आप इतने स्पेस छोड़ दे रहे हैं कि वे अगले दिन फिर से पत्थर चलाने आ जा रहे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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