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पश्चिम बंगाल दौरे में मोदी-शाह को नये नये अनुभव क्यों हो रहे हैं?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 08 मार्च, 2021 05:55 PM
  • 08 मार्च, 2021 05:55 PM
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चुनावी रैलियों में मोदी-शाह (Modi and Shah) बता रहे हैं कि बंगाल (West Bengal Election 2021) में उनको नये नये अनुभव हो रहे हैं जो पहले कभी नहीं हुए - क्या ये महज लोगों से कनेक्ट होने की तरकीब है या फिर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के खिलाफ कोई खास रणनीति?

मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार एक मलाल भी शेयर किया था. प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा, 'मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया... मैं तमिल नहीं सीख पाया... ये एक सुंदर भाषा है.'

मान कर चलते हैं तमिलनाडु के लोगों को ये बात अच्छी लगी होगी, हालांकि, तमिलनाडु से कोई भी हिंदी को लेकर ऐसा कभी बोलना तो दूर लगता नहीं कि सोचता भी होगा. चुनाव सीजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तमिल भाषा नहीं सीख पाने का अफसोस तमिलनाडु में बीजेपी के लिए कितना फायदेमंद होगा, चुनाव नतीजे ही बताएंगे.

ये भी हो सकता है कि ये बात प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी के उत्तर-दक्षिण के फर्क की तुलना वाले बयान को लेकर कही हो. राहुल गांधी ने केरल में कहा था कि उत्तर भारत के लोगों के मुकाबले वे मुद्दों को बेहतर समझ पाते हैं. अच्छी हिंदी में भाषण देने वाले प्रधानमंत्री हो सकता है ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हों कि हिंदी की तरह ही तमिल से भी उन्हें प्यार है, लेकिन ये भी तय है कि दक्षिण के लोग ये मानने को तैयार नजर नहीं आते. अक्सर अंग्रेजी भाषा के अपने ज्ञान के लिए चर्चित रहने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर तो हिंदी को लेकर कई बार बयान भी दे चुके हैं.

2019 के आम चुनाव से पहले कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में आयोजित ममता बनर्जी की रैली में भी एमके स्टालिन ने तमिल में ही भाषण दिया था. लगता नहीं कि ममता बनर्जी तमिलनाडु जाने पर भी बांग्ला में ही भाषण देंगी. हिंदी न सही, लेकिन अंग्रेजी में ही भाषण देंगी.

कन्याकुमारी में अपने रोड शो में राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री मोदी के मन में तमिल के लोगों के प्रति सम्मान नहीं है. और बोले, 'हम मोदी और आरएसएस को तमिल संस्कृति का अपमान नहीं करने देंगे.'

ये तो हुई भाषा के जरिये लोगों से जुड़ने की बातें, लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव ((West Bengal Election 2021)) प्रचार के तहत कोलकाता रैली में भीड़ को देख कर प्रधानमंत्री मोदी ने जो बात कही, ठीक...

मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार एक मलाल भी शेयर किया था. प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा, 'मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया... मैं तमिल नहीं सीख पाया... ये एक सुंदर भाषा है.'

मान कर चलते हैं तमिलनाडु के लोगों को ये बात अच्छी लगी होगी, हालांकि, तमिलनाडु से कोई भी हिंदी को लेकर ऐसा कभी बोलना तो दूर लगता नहीं कि सोचता भी होगा. चुनाव सीजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तमिल भाषा नहीं सीख पाने का अफसोस तमिलनाडु में बीजेपी के लिए कितना फायदेमंद होगा, चुनाव नतीजे ही बताएंगे.

ये भी हो सकता है कि ये बात प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी के उत्तर-दक्षिण के फर्क की तुलना वाले बयान को लेकर कही हो. राहुल गांधी ने केरल में कहा था कि उत्तर भारत के लोगों के मुकाबले वे मुद्दों को बेहतर समझ पाते हैं. अच्छी हिंदी में भाषण देने वाले प्रधानमंत्री हो सकता है ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हों कि हिंदी की तरह ही तमिल से भी उन्हें प्यार है, लेकिन ये भी तय है कि दक्षिण के लोग ये मानने को तैयार नजर नहीं आते. अक्सर अंग्रेजी भाषा के अपने ज्ञान के लिए चर्चित रहने वाले कांग्रेस नेता शशि थरूर तो हिंदी को लेकर कई बार बयान भी दे चुके हैं.

2019 के आम चुनाव से पहले कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में आयोजित ममता बनर्जी की रैली में भी एमके स्टालिन ने तमिल में ही भाषण दिया था. लगता नहीं कि ममता बनर्जी तमिलनाडु जाने पर भी बांग्ला में ही भाषण देंगी. हिंदी न सही, लेकिन अंग्रेजी में ही भाषण देंगी.

कन्याकुमारी में अपने रोड शो में राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री मोदी के मन में तमिल के लोगों के प्रति सम्मान नहीं है. और बोले, 'हम मोदी और आरएसएस को तमिल संस्कृति का अपमान नहीं करने देंगे.'

ये तो हुई भाषा के जरिये लोगों से जुड़ने की बातें, लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव ((West Bengal Election 2021)) प्रचार के तहत कोलकाता रैली में भीड़ को देख कर प्रधानमंत्री मोदी ने जो बात कही, ठीक वैसे ही उद्गार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी एक रोड शो के दौरान व्यक्त किये थे - क्या ये महज लोगों से कनेक्ट होने को लेकर बीजेपी की खोजी हुई कोई तरकीब है या फिर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के खिलाफ बीजेपी नेतृत्व मोदी-शाह (Modi and Shah) की कोई खास रणनीति?

ऐसा तो कभी देखा ही नहीं

दिसंबर, 2020 में अमित शाह पश्चिम बंगाल के दो दिन के दौरे पर थे. पहला दिन तो धमाकेदार रहा ही, दूसरे दिन अमित शाह का बयान भी कम जोरदार नहीं था. 19 दिसंबर को मिदनापुर की रैली में अमित शाह ने मंच पर शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी ज्वाइन कराया था और अब वही नंदीग्राम में अपनी पुरानी नेता ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव मैदान में भी उतर चुके हैं.

अगले दिन 20 दिसंबर को अमित शाह ने बोलपुर में रोड शो किया और लोगों की भीड़ देख कर खासे उत्साहित नजर आये. बोले भी कि पश्चिम बंगाल के लोगों का उत्साह और उमंग देख कर लगता है कि बंगाल में इस बार परिवर्तन निश्चित है.

लेकिन रोड शो की भीड़ पर अमित शाह की जो टिप्पणी रही वो काफी अलग रही. अमित शाह ने कहा, 'भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष रहने के नाते मैंने कई सारे रोड शो देखे हैं... किये हैं और ढेर सारे रोड शो को आयोजित भी किया है, लेकिन मैं ये कहना चाहता हूं कि आज जैसा रोड शो मैंने जीवन में कभी नहीं देखा.'

अमित शाह ने रोड शो में आये लोगों से कहा कि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति उनके प्यार और विश्वास का सबूत है - और बोले, 'ये जनता का ममता दीदी के प्रति जो गुस्सा है उसको भी दिखाता है - मालूम पड़ता है कि बंगाल की जनता तय करके बैठी है कि कमल को वोट देना है.'

बीजेपी नेताओं को बाहरी बताने के ममता बनर्जी की चाल की काट मोदी-शाह ने तलाश लिया है.

अमित शाह की ही तरह ब्रिगेड परेड ग्राउंड की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार 'आशोल पोरिबोर्तन' का नारा दोहराया और एक कॉमन बात ये भी रही कि शुभेंदु अधिकारी की ही तरह रैली में एक्टर मिथुन चक्रवर्ती ने बीजेपी ज्वाइन किया. फर्क सिर्फ ये था कि शुभेंदु अधिकारी ने अमित शाह की मौजूदगी में बीजेपी ज्वाइन किया था और मिथुन चक्रवर्ती ने मोदीकी गैरमौजूदगी में. बाद में प्रधानमंत्री मोदी भी मंच पर पहुंच गये थे.

हैरानी की बात ये रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रैली में आयी भीड़ को देख कर वैसी ही बातें बोलीं, जैसी अमित शाह ने बोलपुर में रोड शो के दौरान कही थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले, 'इतने लंबे कार्यकाल में मैंने कभी इतने बड़े विशाल जनसमूह का दृश्य... कभी देखने को नहीं मिला... जब मैं हेलिकॉप्टर से देख रहा था तो मैदान में जगह नजर नहीं आ रही थी.'

बोलपुर के रोड शो को लेकर अमित शाह की बात थोड़ी देर के लिए मान भी लेते हैं तो प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में तो हमेशा ही भीड़ उमड़ती रही है. कुछ दिन पहले ही हुए मू़ड ऑफ द नेशन सर्वे में भी प्रधानमंत्री मोदी को देश में सबसे लोकप्रिय नेता पाया गया था - और जो दूसरे, तीसरे या चौथे नंबर पर भी थे वे काफी दूर पाये गये - फिर भी कोलकाता रैली को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी बात क्यों कही? ऐसी भीड़ तो प्रधानमंत्री की पिछली रैली में भी हुई थी.

क्या ये बाहरी का ठप्पा धोने की कवायद है

अब तक ममता बनर्जी मोदी शाह और बीजेपी नेताओं को बाहरी बताती रही हैं - और अपने हमले को धारदार बनाने के लिए खुद को बंगाल की बेटी बताने लगी हैं. अब तो ये तृणमूल कांग्रेस की चुनावी मुहिम का स्लोगन भी बन चुका है.

अब तक ममता बनर्जी दीदी ही कही जाती रही हैं - लेकिन बीजेपी नेता अब तृणमूल कांग्रेस नेता को बेटी या दीदी कौन कहे, बल्कि बुआ बताने में जुटी हुई है. बीजेपी नेता ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाते हुए ममता बनर्जी को भतीजे की बुआ कह कर संबोधित करते हैं. बीजेपी का आरोप रहा है कि अभिषेक बनर्जी, ममता बनर्जी के सत्ता में होने का फायदा उठाते हैं और यही समझा कर बीजेपी नेता ममता बनर्जी को लगातार टारगेट कर रहे हैं.

कोलकाता रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने भी ये मुद्दा उठाया, 'दीदी आज पश्चिम बंगाल के नौजवान... यहां के बेटे-बेटियां आपसे एक ही सवाल पूछ रहे हैं... आपको दीदी की भूमिका में चुना था, लेकिन आपने खुद को एक ही भतीजे की बुआ तक सीमित क्यों कर दिया? आपने एक ही भतीजे की बुआ होने के मोह को क्यों चुना? बंगाल के लाखों भतीजे-भतीजियों की आशाओं की बजाय आप अपने भतीजे का लालच पूरा करने में क्यों लग गईं? आप भी भाई-भतीजावाद के उन कांग्रेसी संस्कारों को छोड़ नहीं पाईं जिनके खिलाफ आपने बगावत की थी.'

भतीजे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर ममता बनर्जी को घेरने के साथ साथ, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह रोड शो और रैली में भीड़ का बखान कर रहे हैं तो क्या उसके पीछे ममता बनर्जी के बाहरी बोल कर हमले का काउंटर करने की रणनीति बनायी गयी है?

वैसे बीजेपी की तरफ से बाहरी वाली लड़ाई में शुभेंदु अधिकारी ने मोर्चा संभाल लिया है. शुभेंदु अधिकारी भी बदले में ममता बनर्जी को नंदीग्राम में ही बाहरी बताने लगे हैं - कहते हैं, मैं यहां का बेटा हूं. ये भी कहते हैं मैं ममता बनर्जी को हरा कर कोलकाता भेज दूंगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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