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पश्चिम बंगाल में जो हो रहा है उसके पीछे 'ऑपरेशन लोटस' का नया वैरिएंट है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 08 मई, 2021 08:18 PM
  • 08 मई, 2021 08:15 PM
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) बीजेपी को चुनाव में शिकस्त देकर फिर से CM की कुर्सी पर काबिज हो गयीं - लेकिन ये बात मोदी-शाह (Modi and Shah) को हजम हो तो कैसे, लिहाजा पूरी टीम अपने अलग शपथग्रहण के बाद ऑपरेशन लोटस (Operation Lotus) के नये मिशन में जुट गयी है!

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने न जाने किस मुहूर्त में बोले दिया कि 'खेला होबे' - और पश्चिम बंगाल में खेल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. ममता बनर्जी ने वैसे तो चुनावों में अरविंद केजरीवाल के हनुमान चालीसा पढ़ने की तरह चंडी पाठ किया था, लेकिन लगता है खेला होबे बोलते वक्त सरस्वती उनकी जबान पर बैठ गयी थीं.

ममता बनर्जी ने इस्तेमाल तो दो ही शब्द किये थे - खेला होबे, लेकिन उसका अर्थ और असर दोनों ही व्यापक रहा है. हो सकता है ममता बनर्जी ने अपनी रणनीतियों को इन दो लफ्जों के जरिये शेयर किया हो, लेकिन वो ये अंदाजा नहीं लगा पायीं कि खेल कभी एकतरफा नहीं होता. दोनों ही पक्ष खेलते हैं और तभी हार जीत का फैसला होता है. जीत और हार की बात छोड़ भी दें, तो ये तो होता ही है कि दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ नतीजे को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत झोंक देते हैं.

ममता बनर्जी को थोड़ी बहुत आशंका तो होगी ही कि क्रिया-प्रतिक्रिया वाले नियम की तरह तृणमूल कांग्रेस के खेल का जवाब बीजेपी भी उसी भाषा में या अपनी स्टाइल में देगी ही. तभी तो ममता बनर्जी आखिरी दौर की चुनावी रैलियों में कहती फिर रही थीं कि वो खुद तो चुनाव जीत ही जाएंगी, लेकिन लोगों को कम से कम 199 सीटें तृणमूल कांग्रेस की झोली में देनी होगी. ममता बनर्जी का कहना रहा कि ऐसा होने पर वो निर्बाध रूप से पूरे पांच साल काम करती रहेंगी.

ममता बनर्जी खुद तो नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी से हार गयीं, लेकिन लोगों ने 200 से ही ज्यादा नहीं बल्कि 2016 से भी दो सीटें ज्यादा ही टीएमसी की झोली में डाल दी - वैसे अभी दो विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं. दोनों सीटों पर कोविड 19 की वजह से उम्मीदवारों की मौत के चलते चुनाव आयोग ने मतदान स्थगित कर दिया था, लेकिन बाद में अनिश्चित काल के लिए टाल दिया.

असल में ममता बनर्जी को पहले से ही बीजेपी नेतृत्व मोदी-शाह (Modi and Shah) के इरादों को लेकर दहशत रही होगी - क्योंकि वो देख चुकी हैं कि कैसे कर्नाटक में पैदा हुए ऑपरेशन लोटस अलग अलग तरीकों से देश...

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने न जाने किस मुहूर्त में बोले दिया कि 'खेला होबे' - और पश्चिम बंगाल में खेल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. ममता बनर्जी ने वैसे तो चुनावों में अरविंद केजरीवाल के हनुमान चालीसा पढ़ने की तरह चंडी पाठ किया था, लेकिन लगता है खेला होबे बोलते वक्त सरस्वती उनकी जबान पर बैठ गयी थीं.

ममता बनर्जी ने इस्तेमाल तो दो ही शब्द किये थे - खेला होबे, लेकिन उसका अर्थ और असर दोनों ही व्यापक रहा है. हो सकता है ममता बनर्जी ने अपनी रणनीतियों को इन दो लफ्जों के जरिये शेयर किया हो, लेकिन वो ये अंदाजा नहीं लगा पायीं कि खेल कभी एकतरफा नहीं होता. दोनों ही पक्ष खेलते हैं और तभी हार जीत का फैसला होता है. जीत और हार की बात छोड़ भी दें, तो ये तो होता ही है कि दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ नतीजे को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत झोंक देते हैं.

ममता बनर्जी को थोड़ी बहुत आशंका तो होगी ही कि क्रिया-प्रतिक्रिया वाले नियम की तरह तृणमूल कांग्रेस के खेल का जवाब बीजेपी भी उसी भाषा में या अपनी स्टाइल में देगी ही. तभी तो ममता बनर्जी आखिरी दौर की चुनावी रैलियों में कहती फिर रही थीं कि वो खुद तो चुनाव जीत ही जाएंगी, लेकिन लोगों को कम से कम 199 सीटें तृणमूल कांग्रेस की झोली में देनी होगी. ममता बनर्जी का कहना रहा कि ऐसा होने पर वो निर्बाध रूप से पूरे पांच साल काम करती रहेंगी.

ममता बनर्जी खुद तो नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी से हार गयीं, लेकिन लोगों ने 200 से ही ज्यादा नहीं बल्कि 2016 से भी दो सीटें ज्यादा ही टीएमसी की झोली में डाल दी - वैसे अभी दो विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं. दोनों सीटों पर कोविड 19 की वजह से उम्मीदवारों की मौत के चलते चुनाव आयोग ने मतदान स्थगित कर दिया था, लेकिन बाद में अनिश्चित काल के लिए टाल दिया.

असल में ममता बनर्जी को पहले से ही बीजेपी नेतृत्व मोदी-शाह (Modi and Shah) के इरादों को लेकर दहशत रही होगी - क्योंकि वो देख चुकी हैं कि कैसे कर्नाटक में पैदा हुए ऑपरेशन लोटस अलग अलग तरीकों से देश में जहां कहीं भी गैर बीजेपी दलों की सरकारें हैं अपनी गिरफ्त में लेने की कोशिश करता रहा है. मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक ऑपरेशन लोटस (Operation Lotus) के कई वैरिएंट एक्टिव देखे गये हैं - और सही बात तो यही लगती है कि पश्चिम बंगाल में भी ऑपरेशन लोटस का ही एक नया वैरिएंट अब सक्रिय हो चुका है - रोज नये नये लक्षण दिखा रहा है.

ममता बनर्जी के खिलाफ माहौल बनाने लगा है - 1

कंगना रनौत ने ट्विटर पर - और एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है. कंगना रनौत ने जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास राष्ट्रपति शासन लगाने की डिमांड रखी, वहीं एनजीओ इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट की तरफ से सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की गयी है कि वो केंद्र सरकार को कहे कि धारा 356 का इस्तेमाल करते हुए पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जाये.

दिलचस्प बात ये है कि ममता बनर्जी के भारी बहुमत के साथ चुनाव जीतने के बाद और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही ऐसी बातें शुरू हो गयीं. ममता बनर्जी के शपथ लेते ही राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी बंगाल हिंसा को लेकर नसीहतें दी, लेकिन ममता बनर्जी ने मौके पर ही साफ कर दिया कि उनके शपथ लेने से पहले सूबे की सरकार चुनाव आयोग चला रहा था.

ममता बनर्जी के लिए पश्चिम बंगाल की कुर्सी पहले जैसी भी रही हो, लेकिन इस बार तो पक्का कांटों का ही ताज है - और उस पर भी बीजेपी की नजर टिकी हुई है!

कंगना रनौत ने अपना ट्विटर एकाउंट सस्पेंड होने से पहले वाली पोस्ट में बड़े ही जोरदार तरीके से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करते हुए लिखा - 'गुंडई खत्म करने के लिए हमें सुपर गुंडई की जरूरत है. मोदी जी अपना विराट रूप दिखायें - 2000 के शुरुआती दौर वाला.'

जब ट्विटर ने कंगना रनौत को बैन कर दिया तो फेसबुक पर वीडियो पोस्ट में सिसकते हुए से बोलीं कि वैसे तो वो मोदी सरकार की फैन हैं, लेकिन बंगाल पर उनके स्टैंड से काफी निराश हैं. कंगना रनौत ने बंगाल हिंसा की सही तस्वीर न दिखाने का आरोप लगाते हुए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पर देश के खिलाफ साजिश का भी आरोप लगाया.

और फिर लगे हाथ पूछ भी लिया, 'आज जब देश में राष्ट्रपति शासन की जरूरत है तो हम क्यों डर रहे हैं?' इस बीच मालूम हुआ है कि कंगन रनौत की भी कोविड 19 रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है और ये जानकारी एक्टर ने खुद इंस्टाग्राम पर साझा की है.

कंगना की भी वही लाइन लगती है, जो संघ के सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के बयान में नजर आती है. दत्तात्रेय होसबले आशंका जताते हैं कि मुमकिन है, समाज और भारत विरोधी ताकतें इस गंभीर परिस्थिति का फायदा उठाकर देश में नकारात्मकता और अविश्वास का वातावरण खड़ा कर सकती हैं, ऐसे में देश के लोगों को अपने सकारात्मक प्रयासों के साथ ऐसी शक्तियों की साजिशों के प्रति भी सजग रहना होगा. ध्यान रहे, दत्तात्रेय होसबले ने यूपी में ऑक्सीजन की कमी का शोर मचने पर भी ऐसी ही साजिशों की तरफ इशारा किया था.

तभी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार के साथ नये सिरे से लेटरबाजी शुरू कर दी. चिट्ठी के जरिये केंद्र ने राज्य सरकार से पूछा कि चुनावों के बाद हिंसा को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की गयी? केंद्रीय गृह सचिव की तरफ से पहले पत्र के दो दिन बाद पूछा गया, 'मैं याद दिलाना चाहूंगा कि 3 मई को चुनाव बाद हुई हिंसा को लेकर मेरे विस्तृत रिपोर्ट तलब किये जाने के बावजूद मेरे कहने के बावजूद ऐसा नहीं किया गया. इस दूसरे पत्र के बाद भी ऐसा ही होता है तो इसे गंभीरता से लिया जाएगा.'

ये सब चल ही रहा था कि गृह मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेट्री के नेतृत्व में बंगाल हिंसा की जांच के लिए चार सदस्यों की एक टीम कोलकाता पहुंच गयी. जांच टीम ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ साथ हिंसा प्रभावित दक्षिण 24 परगना और उत्तर 24 परगना जिलों का दौरा कर स्थानीय लोगों और पीड़ित परिवारों से मुलाकात की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बंगाल हिंसा को लेकर राज्यपाल जगदीप धनखड़ से बात की और हालात पर अपनी चिंता से अवगत कराया. ये जानकारी खुद राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ही ट्विटर पर शेयर की.

वैसे कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी पश्चिम बंगाल के गृह सचिव से चुनाव के बाद हुई हिंसा पर रिपोर्ट तलब की है. हाई कोर्ट ने पूछा है कि चुनाव नतीजे आने के बाद किन जगहों पर हिंसा हुई - और हिंसा को रोकने के लिए क्या कदम उठाये गये? रिपोर्ट के आधार पर ही हाई कोर्ट तय करेगा कि बंगाल हिंसा की जांच SIT से करायी जा सकती है या नहीं?

ममता बनर्जी के खिलाफ माहौल बनाने लगा है - 2

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव खत्म हो जाने के बाद भी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा कमान संभाले हुए हैं - और पूरी टीम उनके साथ मोर्चे पर डटी हुई है. बीजेपी के आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय को पश्चिम बंगाल चुनाव में सह प्रभारी बनाया गया था. मध्य प्रदेश से आने वाले बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय बहुत पहले ही पश्चिम बंगाल के प्रभारी बना दिये गये थे.

पश्चिम बंगाल के लोगों ने ममता बनर्जी को भारी बहुमत जरूर दिया है, लेकिन लोकतंत्र को मजबूत बनाये रखने के मकसद से बीजेपी जैसा ताकतवर विपक्ष भी दिया है - और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शपथग्रहण के साथ साथ बीजेपी विधायकों को पार्टी दफ्तर में शपथ दिलाकर जेपी नड्डा ने पार्टी का इरादा काफी हद तक जाहिर भी कर दिया है.

पश्चिम बंगाल हिंसा को लेकर हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर ढेरों तस्वीरें और वीडियो डाले गये हैं. एक वीडियो शेयर करते हुए लोग दावा कर रहे हैं, महिला के साथ बलात्कार हुआ है, लेकिन फिर खबर आती है कि महिला ने खुद इस बात से इनकार किया है.

सोशल मीडिया पर ही एक बीजेपी कार्यकर्ता को टीएमसी कार्यकर्ताओं के पीट पीट कर मार डालने का दावा किया गया है. ये घटना नादिया जिले के गंगनापुर की बतायी जा रही है - लेकिन इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम ने पता लगाया है कि जो वीडियो है वो फेक है. मालूम हुआ है कि 2017 के ब्राजील के वीडियो को पश्चिम बंगाल हिंसा का बता कर माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है.

ठीक वैसे ही, 5 मई को पश्चिम बंगाल बीजेपी ने अपने फेसबुक पेज और ट्विटर एक वीडियो शेयर किया - और दावा किया गया कि माणिक मोइत्रा नाम के शख्स को सीतलकुची में मार डाला गया.

खास बात ये रही कि बीजेपी ने माणिक मोइत्रा की हत्या वाला जो वीडियो शेयर किया उसमें इंडिया टुडे के पत्रकार अभ्रो बनर्जी की तस्वीर लगा दी. ये वीडियो वायरल होते ही अभ्रो बनर्जी को जानने वाले लोग दनादन फोन करना शुरू कर दिये. सीतलकुची से 1300 किलोमीटर दूर दिल्ली में मौजूद अभ्रो बनर्जी को ट्वीट कर बताना पड़ा कि वो पूरी तरह फिट हैं और लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.

फिर भी बीजेपी अपने आरोपों पर कायम है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है, पार्टी की महिला सदस्यों पर हमले कर घरों में तोड़फोड़ की गयी है - और दुकानें लूट ली गयी हैं जिसके पीछे टीएमसी कार्यकर्ताओं के हाथ होने के इल्जाम लगाये गये हैं.

हालांकि, पश्चिम बंगाल पुलिस ने हिंसा को लेकर फेक न्यूज फैलाने और सोशल मीडिया पर फोटो और वीडियो वायरल करने के आरोप में दो FIR दर्ज की है. पुलिस की तरफ से हेल्पलाइन नंबर और ई-मेल आईडी भी जारी की गयी है जहां लोग फर्जी खबरों को लेकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.

बंगाल हिंसा पर शिवसेना के विचार भी सामना के संपादकीय के जरिये आ चुके हैं. सामना के संपादकीय में में लिखा है, 'देश में कोरोना वायरस से लोगों की जान जा रही है, लेकिन यहां दंगों की राजनीति हो रही है - और देश को बदनाम किया जा रहा है.'

सामना में शिवसेना का कहना है, पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा में मारे गये 17 लोगों में ले 9 बीजेपी से जुड़े लोग थे, बाकी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता थे - मतलब ये है कि दोनों पक्ष इसमें शामिल हैं.

ममता बनर्जी ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ साथ एनसीपी नेता शरद पवार से भी चुनावों में मदद मांगी थी. हो सकता है, महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात के चलते संभव न हुआ हो, लेकिन देखने में तो यही आया कि दोनों ही चुनावों में प्रत्यक्ष तौर पर दूर से ही सपोर्ट करते रहे. वैसे भी बीजेपी के नजरिये से देखें तो ममता बनर्जी भी उसी मोड़ पर नजर आती हैं जहां उद्धव ठाकरे करीब डेढ़ साल के खड़े हैं - अपनी सरकार पर जो खतरा उद्धव ठाकरे पहले से ही महसूस कर रहे हैं, ममता बनर्जी को तो मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही एहसास होने लगा है.

शिवसेना मुखपत्र में भी उसी की झलक मिलती है - 'पश्चिम बंगाल में वास्तव में क्या हो रहा है और इसके पीछे किसके अदृश्य हाथ हैं? ये चीजें साफ होनी चाहिये... जबसे राज्य में बीजेपी की हार हुई है हिंसा की खबरें आ रही हैं... ऐसा कहा जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से मारपीट की - लेकिन ये सब दुष्प्रचार है.'

बीजेपी में ऑपरेशन लोटस के जन्मदाता बीएस येदियुरप्पा ने बीच के कुछ असफल परीक्षणों के बाद आखिरकार जुलाई, 2019 में नये सिरे से तैयारी की और सफलतापूर्वक खुद ऑर्बिट में फिर से स्थापित कर लिया - तमाम विरोधों के बावजूद वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं.

2020 के लॉकडाउन से पहले ऑपरेशन लोटस का ही एक नमूना मध्य प्रदेश में देखने को मिला और एक ही झटके में कमलनाथ सरकार पूरी तरह चपेट में आ गयी, लेकिन उसके बाद ऑपरेशन लोटस की एक और लहर राजस्थान में भी महसूस की गयी जो कम तीव्रता के होने के कारण बेअसर रहा.

जैसा कि शिवसेना ने संपादकीय में संकेत दिया है, खुद ममता बनर्जी उसे चुनाव नतीजे आने से पहले से ही महसूस कर रही हैं. अब तक ममता बनर्जी के साथ एक ही अच्छी बात हुई है कि तृणमूल कांग्रेस की सीटें इतनी आ गयी हैं कि ऑपरेशन लोटस के परंपरागत स्वरूप से कोई खास खतरा नहीं लगता.

फिर भी ममता बनर्जी को नहीं भूलना चाहिये कि कई चीजों के एक से एक खतरनाक नये नये वैरिएंट आ रहे हैं - और पश्चिम बंगाल में भी ऐसे ही किसी नये वैरिएंट का असर नजर आने लगा है.

जल्दी ही इसका असर राजस्थान और महाराष्ट्र में भी देखने को मिल सकता है - मजे की बात ये है कि नये वैरिएंट से भी बचाव के लिए एहतियाती उपाय ही हैं, वरना बीमारी न सिर्फ लाइलाज हो जाती है, बल्कि जानलेवा भी साबित होती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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