तमिलनाडु में हो रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे भले ही 19 मई को आएंगे लेकिन सत्ता में आने के दावेदार राज्य के दोनों प्रमुख दल एम करुणानिधि की डीएमके और वर्तमान मुख्यमंत्री जयललिता की एआईएडीएमके अपने-अपने जीत के दावे कर रहे हैं. तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास खासकर 1984 से लेकर हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन करने का रहा है और इन 32 वर्षों के दौरान ये दोनों पार्टियां ही बारी-बारी राज्य की सत्ता पर काबिज होती रही हैं.
ये दोनों दल चुनाव पूर्व के वादों से जनता को अपनी ओर लुभाने के लिए जाने जाते रहे हैं. खासकर अपने चुनावी घोषणापत्रों में ये दोनों दल इस कदर 'फ्री गिफ्ट्स' देने की घोषणाएं करते रहे हैं कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट को भी इसके लिए फटकार लगानी पड़ी थी. कोर्ट ने इस उपहार संस्कृति की आलोचना करते हए कहा था कि इससे वोटर्स की निष्पक्षता प्रभावित होती है. तमिलनाडु के वोटर्स के मन में क्या चलता है इसका नजारा हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो से चलता है, जिसमें एक ही महिला को एआईएडीएमके और डीमके दोनों पार्टियों के लिए प्रचार करते हुए दिखाया गया है.
देखें: डीएमके और एआईएडीएमके के लिए प्रचार कर रही एक ही महिला
दरअसल ये ऐड तमिलनाडु के वोटर्स के मन की बात को दर्शाता है जिन्हें डीएमके और एआईएडीएमकेअपनी लुभावनी योजनाओं और घोषणाओं से लुभाती आई हैं. मुफ्त उपहार की योजना की शुरुआत सबसे पहले डीएमके ने 1996 के चुनावों में बीपीएल कार्ड धारकों को कलर टीवी देने का वादा करके की थी. इन घोषणाओं के बल पर डीएमके वह चुनाव जीत भी गई थी. लेकिन इसने तमिलनाडु में सरकारी खर्च को मुफ्त उपहार बांटकर लुटाने की जो संस्कृति शुरू की वह अब भी जारी है.
मुफ्त उपहार बांटने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मद्देनजर इस के अपने चुनावी घोषणापत्र में इन पार्टियों ने मुफ्त उपहारों को देने की घोषणाओं में कोताही बरती है. लेकिन बड़ी चालाकी से फिर भी कई घोषणाएं कर ही डाली. मसलन एक ओर जहां करुणानिधि की पार्टी डीएमके...
तमिलनाडु में हो रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे भले ही 19 मई को आएंगे लेकिन सत्ता में आने के दावेदार राज्य के दोनों प्रमुख दल एम करुणानिधि की डीएमके और वर्तमान मुख्यमंत्री जयललिता की एआईएडीएमके अपने-अपने जीत के दावे कर रहे हैं. तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास खासकर 1984 से लेकर हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन करने का रहा है और इन 32 वर्षों के दौरान ये दोनों पार्टियां ही बारी-बारी राज्य की सत्ता पर काबिज होती रही हैं.
ये दोनों दल चुनाव पूर्व के वादों से जनता को अपनी ओर लुभाने के लिए जाने जाते रहे हैं. खासकर अपने चुनावी घोषणापत्रों में ये दोनों दल इस कदर 'फ्री गिफ्ट्स' देने की घोषणाएं करते रहे हैं कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट को भी इसके लिए फटकार लगानी पड़ी थी. कोर्ट ने इस उपहार संस्कृति की आलोचना करते हए कहा था कि इससे वोटर्स की निष्पक्षता प्रभावित होती है. तमिलनाडु के वोटर्स के मन में क्या चलता है इसका नजारा हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो से चलता है, जिसमें एक ही महिला को एआईएडीएमके और डीमके दोनों पार्टियों के लिए प्रचार करते हुए दिखाया गया है.
देखें: डीएमके और एआईएडीएमके के लिए प्रचार कर रही एक ही महिला
दरअसल ये ऐड तमिलनाडु के वोटर्स के मन की बात को दर्शाता है जिन्हें डीएमके और एआईएडीएमकेअपनी लुभावनी योजनाओं और घोषणाओं से लुभाती आई हैं. मुफ्त उपहार की योजना की शुरुआत सबसे पहले डीएमके ने 1996 के चुनावों में बीपीएल कार्ड धारकों को कलर टीवी देने का वादा करके की थी. इन घोषणाओं के बल पर डीएमके वह चुनाव जीत भी गई थी. लेकिन इसने तमिलनाडु में सरकारी खर्च को मुफ्त उपहार बांटकर लुटाने की जो संस्कृति शुरू की वह अब भी जारी है.
मुफ्त उपहार बांटने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मद्देनजर इस के अपने चुनावी घोषणापत्र में इन पार्टियों ने मुफ्त उपहारों को देने की घोषणाओं में कोताही बरती है. लेकिन बड़ी चालाकी से फिर भी कई घोषणाएं कर ही डाली. मसलन एक ओर जहां करुणानिधि की पार्टी डीएमके ने जहां गरीब किसानों को मुफ्त स्मार्टफोन देने, छात्रों को फ्री इंटरनेट देने, 7 रुपये प्रति लीटर की कीमत में दूध उपलब्ध कराने, कम आय वालों के लिए हर महीने 20 किलो मुफ्त चावल और पक्के घर के निर्माण में 3 लाख रुपये की सब्सिडी देने जैसे वादे किए हैं.
तो वहीं जयललिता की एआईएडीएमके ने फ्री मोबाइल फोन देने, राज्य संचालित केबल टीवी अरासू केबल सब्सक्राइबर्स को मुफ्त सेट-टॉप बॉक्स देने, छात्रों को वाई-फाई सुविधा के साथ मुफ्त लैपटॉप देने और सार्वजनिक जगहों पर इंटरनेट की सुविधा देने के अलावा महिलाओं को स्कूटी और मोपेट की खरीद पर 50 फीसदी सब्सिडी देने जैसी घोषणाएं की हैं.
इन लोक-लुभावनी योजनाओं का फायदा इन चुनावों में किसको मिलेगा, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन मुफ्त उपहारों की ऐसा घोषणाओँ के आगे अगर तमिलनाडु का वोटर डीएमके और एआईएडीमके में से किसी एक के चुनाव को लेकर असमंजस में पड़ जाए तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए!
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