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UP Civic Poll 2017 results : यूपी की अग्नि-परीक्षा में 4 शीर्ष नेताओं का ये है रिपोर्ट कार्ड

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 01 दिसम्बर, 2017 10:12 PM
  • 01 दिसम्बर, 2017 10:12 PM
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यूपी नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम आ गए हैं. जीत और हार के पैमाने पर तो पार्टियों की स्थिति साफ है. लेकिन असली आंकलन उन नेताओं का होना है जिन्‍होंने इस अग्नि-परीक्षा में हिस्‍सा लिया.

यूपी निकाय चुनाव को योगी आदित्‍यनाथ की अग्नि-परीक्षा के तौर पर प्रचारित किया जा रहा था. अब इन इन चुनावों के नतीजे आ गए हैं. सीधे-सीधे बात करें तो भाजपा ने बाजी मारी है. लेकिन गौर से देखें तो इस चुनावी मुकाबले में उतरी चारों प्रमुख पा‍र्टियों- भाजपा, बसपा, सपा और कांग्रेस - ने कुछ न कुछ मैसेज न सिर्फ राज्‍य के मतदाताओं, बल्कि देश भर को दिया. इन पार्टियों के प्रदर्शन के लिए इनके कर्णधार नेताओं के कामकाज और उनके प्रदर्शन का लेखा-जोखा निकाला जाए तो दिलचस्‍प बातें सामने आती हैं. कौन अव्‍वल है और कौन सबसे विफल, इसका आंकलन जल्‍दबाजी में नहीं होना चाहिए. तो आइए, इन चारों प्रमुख नेताओं के प्रदर्शन के आधार पर आंकलन करते हैं कि चुनाव लड़ने की अप्रोच के मामले में कौन अव्‍वल आया...

यूपी नगरीय निकाय चुनाव कई मायनों में चौकाने वाले हैं

1. योगी आदित्यनाथ : अव्‍वल लेकिन पार्टी भरोसे...

उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए निकाय चुनाव में भाजपा को मिली जीत के बाद समर्थकों का एक वर्ग ऐसा है जो इसे मोदी लहर से जोड़ रहा है. ऐसे लोगों का ये मानना है कि लोग मोदी की नीतियों को पसंद कर रहे हैं और यही कारण हैं जहां-जहां चुनाव हो रहे हैं वहां भाजपा कमल खिला रही है. पार्टी को मिल रही बम्पर जीत पर एक समर्थक का मत कुछ भी हो सकता है. मगर जब इस जीत को भाजपा के ही सांचे में ढाल कर देखें तो मिलता है कि भाजपा इसलिए जीत रही है क्योंकि उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ, जीतना चाहते हैं और जीतने के लिए ही वो गंभीरता से मैदान में आये थे.

इन चुनावों में योगी आदित्यनाथ...

यूपी निकाय चुनाव को योगी आदित्‍यनाथ की अग्नि-परीक्षा के तौर पर प्रचारित किया जा रहा था. अब इन इन चुनावों के नतीजे आ गए हैं. सीधे-सीधे बात करें तो भाजपा ने बाजी मारी है. लेकिन गौर से देखें तो इस चुनावी मुकाबले में उतरी चारों प्रमुख पा‍र्टियों- भाजपा, बसपा, सपा और कांग्रेस - ने कुछ न कुछ मैसेज न सिर्फ राज्‍य के मतदाताओं, बल्कि देश भर को दिया. इन पार्टियों के प्रदर्शन के लिए इनके कर्णधार नेताओं के कामकाज और उनके प्रदर्शन का लेखा-जोखा निकाला जाए तो दिलचस्‍प बातें सामने आती हैं. कौन अव्‍वल है और कौन सबसे विफल, इसका आंकलन जल्‍दबाजी में नहीं होना चाहिए. तो आइए, इन चारों प्रमुख नेताओं के प्रदर्शन के आधार पर आंकलन करते हैं कि चुनाव लड़ने की अप्रोच के मामले में कौन अव्‍वल आया...

यूपी नगरीय निकाय चुनाव कई मायनों में चौकाने वाले हैं

1. योगी आदित्यनाथ : अव्‍वल लेकिन पार्टी भरोसे...

उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए निकाय चुनाव में भाजपा को मिली जीत के बाद समर्थकों का एक वर्ग ऐसा है जो इसे मोदी लहर से जोड़ रहा है. ऐसे लोगों का ये मानना है कि लोग मोदी की नीतियों को पसंद कर रहे हैं और यही कारण हैं जहां-जहां चुनाव हो रहे हैं वहां भाजपा कमल खिला रही है. पार्टी को मिल रही बम्पर जीत पर एक समर्थक का मत कुछ भी हो सकता है. मगर जब इस जीत को भाजपा के ही सांचे में ढाल कर देखें तो मिलता है कि भाजपा इसलिए जीत रही है क्योंकि उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ, जीतना चाहते हैं और जीतने के लिए ही वो गंभीरता से मैदान में आये थे.

इन चुनावों में योगी आदित्यनाथ की मेहनत साफ नजर आ रही है

कहा जा सकता है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में योगी आदित्यनाथ और पार्टी दोनों की डिक्शनरी में हार जैसा कोई शब्द नहीं है. साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक उनकी बातें सुनी जा रही हैं. उनके सुझावों को महत्त्व दिया जा रहा है. उनके सुझावों पर अमल हो रहा है. कहा जा सकता है कि इस परीक्षा में टॉप करने वाली बीजेपी और योगी इसलिए टॉप पर है कि वो उन नीतियों पर काम कर रहे हैं जिसको कांग्रेस समेत बसपा और सपा ने कभी तवज्जो ही नहीं दी.

बीते कुछ वर्षों में अगर पार्टी की पालिसी पर गौर करें तो मिल रहा है कि, पार्टी में बूथ स्तर के कार्यकर्ता से लेकर संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक. सब हार को लेकर बेहद गंभीर हैं और यहां अब केवल गोल मेज पर बैठ कर हार के कारणों पर चर्चा ही नहीं हो रही बल्कि "प्रॉब्लम एरिया" पर काम भी किया जा रहा है.

भले ही इस जीत को देखकर आप कह दें कि ये जीत मोदी लहर है मगर ऐसा बिल्कुल नहीं है. भाजपा निकाय चुनाव में इसलिए नंबर वन पर रही क्योंकि उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ का उद्देश्य परीक्षा में पास होना नहीं बल्कि टॉप करना था. और उन्होंने इस दिशा में काम अपनी सोच के अनुसार किया और आज नतीजा हमारे सामने हैं.

इन निकाय चुनावों में मायावती ने एक नए सिरे से शुरुआत की है

2. मायावती : अपनी कमजोरी पर चुपके से काम किया...

उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव और आये हुए नतीजों को देखकर ये कहना गलत न होगा कि लोकसभा से लेकर विधानसभा तक ठंडे बसते में पड़ी मायावती और उनकी पार्टी बसपा के लिए ये चुनाव एक बड़ा कम बैक है. ये मायावती के लिए एक ऐसा कमबैक साबित होगा जो भविष्य में उन्हें आगे की लड़ाई लड़ने के लिए कई मुद्दों पर बल देता रहेगा. अलीगढ़ और मेरठ की मेयर की कुर्सी पर गौर करने पर खुद-ब-खुद नजर मायावती और पार्टी के "हार्ड वर्क" पर चली जाती है. साथ ही ये भी स्पष्ट हो जाता है कि ये जीत मायावती को तुक्के में नहीं मिली बल्कि इसे उन्होंने कमाया है.

उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव का रिपोर्ट कार्ड दिखा रहा है कि मायावती नंबर दो की अहम पोजीशन पर हैं और सिर्फ इस बात के लिए उन्हें पूरा अधिकार है कि वो जश्न मनाएं. हो सकता है कि इसे पढ़कर आप विचलित हों और ये सोचें कि जब पार्टी नंबर दो की पोजीशन पर है तो फिर मायावती को उत्सव के रंग में क्यों रंग जाना चाहिए?

आप का सोचना सही है. मगर एक ऐसे वक़्त में जब लोकसभा से लेकर विधानसभा तक सभी प्रमुख मोर्चों से मायावती नदारद और एकदम खामोश हैं. उस वक़्त एक ऐसी पार्टी जिसके कार्यकर्ता इस निकाय चुनाव के वक़्त तक ठंडे मालूम दे रहे थे इन नतीजों के बाद बता रहे हैं कि, उन्होंने काम बड़ी ही खूबसूरती से बिना किसी शोर शराबे के किया और वहां आ गए जहां आने के बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो. अलीगढ़ और मेरठ की सीटों पर मिली बसपा की जीत से ये बात साफ हो जाती है कि पार्टी जमीन पर आकर और लोगों को साथ लेकर काम कर रही है.

बसपा अलीगढ़ और मेरठ में क्यों जीती अगर इस प्रश्न पर गौर करें तो मिलता है कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं और यहां मुस्लिम मत दाताओं की एक बड़ी संख्या वास करती है. हो सकता है बहनजी के कहने पर कार्यकर्ताओं द्वारा लोगों को भाजपा का वो सांप्रदायिक चेहरा दिखाया गया हो जिसके चलते आज मुख्यमंत्री आदित्यनाथ तरह-तरह की आलोचना का शिकार हो रहे हैं. कहा जा सकता है कि मायावती ने इस चुनाव में ये साबित कर दिया है कि यदि कोई उसकी ताकत को कमतर आंक रहा है तो ये उसकी ये बड़ी भूल है.

राहुल गांधी इस चुनाव से दूरी बनाते हुए नजर आए

3. राहुल गांधी : न पहले चुनाव लड़ना आता था, न अब आता है...

किसी जमाने में उत्तर प्रदेश में मतदाताओं विशेषकर मुस्लिम मतदाताओं के बीच लोकप्रिय रही कांग्रेस आज उत्तर प्रदेश में अपने सबसे खराब दौर में है. राहुल गांधी गुजरात में व्यस्त हैं और उनके गढ़ अमेठी में बीजेपी को मिली सफलता ने खुद-ब-खुद इस बात की तरफ इशारा कर दिया है कि पार्टी और राहुल गांधी में अब जीत का दम नहीं बचा है. वो किसी भी चुनावी रण में सिर्फ सांकेतिक तौर पर उतरते हैं.

ध्यान रहे कि सूबे में सिरे से खारिज कांग्रेस और राहुल गांधी अपना खोया हुआ जनाधार तो हासिल करना चाहते हैं मगर उसे कोई मजबूत नेतृत्व नहीं मिल रहा. बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े स्तर तक के नेता इसी बात को लेकर परेशान हैं कि पार्टी में उनकी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है. यदि लोग कांग्रेस को थोड़ा बहुत समर्थन कर भी रहे हैं तो उसका कारण बस इतना है कि अभी भी कांग्रेस और राहुल गांधी अपनी सेक्युलर विचारधारा के चलते डोल रहे हैं. यही चीज दोनों के ही लिए उम्मीद की आखिरी किरण हैं. उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए इस निकाय चुनाव में राहुल गांधी की पोजीशन थर्ड है.

ये चुनाव खोई साख बचाने के लिहाज से अखिलेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण था

4. अखिलेश यादव : सबसे ज्‍यादा उम्‍मीद थी, सबसे नाकाम निकले...

उत्तर प्रदेश का निकाय चुनाव अखिलेश और समाजवादी पार्टी के लिए बेहद खास था. ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब सूबे की जनता ने अखिलेश और उनकी समाजवादी पार्टी को यूपी जैसे महत्वपूर्ण सूबे की सियासत से अलग किया था. राजनीतिक पंडितों का मत है कि ये चुनाव अखिलेश और समाजवादी पार्टी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था. मगर अफ़सोस, अखिलेश अपने खेमे से बाहर ही नहीं निकले. अखिलेश घर में रहे और इसका खामियाजा पूरी पार्टी को उठाना पड़ा और निकाय चुनाव में भी उनकी समाजवादी पार्टी को प्रदेश की जनता ने उसकी असल औकात दिखा दी और उनकी पार्टी कुछ विशेष नहीं कर पाई.

अखिलेश को ध्यान में रखकर बस यही कहा जा सकता है कि प्रदेश की जनता ये आशा कर रही थी कि अखिलेश अपनी गलतियों से सबक लेकर इस चुनाव में कुछ बड़ा करेंगे मगर जिस "कैजुअल एटीट्यूड" का परिचय उन्होंने ये दिया है वो ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें अपने दम पर पार्टी चलाने में अभी लम्बा वक़्त लगेगा और ये वक़्त कितना लम्बा होगा ये आने वाला वक़्त बताएगा. बहरहाल इस चुनाव में कभी आगे बैठने वाले अखिलेश बुरी तरह फेल हुए हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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