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बर्क की 'मुहब्बत' में कहीं हाजी रिजवान के जरिये अपनी परंपरागत सीट न खो दें अखिलेश यादव!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 जनवरी, 2022 10:22 PM
  • 22 जनवरी, 2022 10:22 PM
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यूपी चुनाव में भले ही वक़्त हो लेकिन अखिलेश पर मुसीबतों के बादल घिरने शुरू हो गए हैं. सपा ने मुरादाबाद की कुंदरकी सीट से मौजूदा विधायक का टिकट काटा है और सपा सांसद डॉ शफीकुर्रहमान बर्क के पोते को टिकट दिया है. कुंदरकी सपा की परंपरागत सीट है और अगर ये सीट अखिलेश के हाथ से जाती है तो इसका उन्हें बड़ा नुकसान होगा.

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को अब बस कुछ समय शेष है. रैलियों, प्रचार, आरोप प्रत्यारोपों और प्रेस कांफ्रेंस के बाद बचे जरूरी काम दलों द्वारा बिना किसी देरी के जल्द से जल्द निपटाए जा रहे हैं. दल कोई भी हो ऐसा ही एक पेंचीदा काम उम्मीदवारों को टिकट देना है. कई बार देखने को मिला है कि किसी एक सीट पर एक ही पार्टी के दो या दो से ज्यादा उम्मीदवार मेहनत करते हैं. भले ही एक सीट पर एक ही दल के नेताओं की आपसी नूरा कुश्ती से फायदा जनता का हो लेकिन जहां ये दूसरे नेता के लिए बुरी होती है वहीं इससे पार्टी की छवि भी धूमिल होती है और उसपर सवालिया निशान लगते हैं. ऐसी स्थिति में तनाव और गतिरोध किस लेवल का होता है और कैसे ये पार्टी को मुसीबत में डालता है गर जो इस बात का अवलोकन करना हो तो हम यूपी के मुरादाबाद का रुख कर सकते हैं और कुंदरकी सीट का अवलोकन कर सकते हैं जिसने समाजवादी पार्टी और पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव को मुसीबत में डाल दिया है.

असल में हुआ कुछ यूं है कि अभी बीते दिनों ही अखिलेश यादव ने संभल से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान बर्क का टिकट पक्का किया है. ये बात मुरादाबाद में कुंदरकी के मौजूदा सपा विधायक हाजी रिजवान कुरैशी को बुरी लग गयी है. और उनके तेवर बागी हो गए हैं. टिकट कटने से बौखलाए हाजी रिज़वान कुरैशी मीडिया से मुखातिब हुए हैं और अखिलेश यादव पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि अखिलेश यादव संभल सांसद डॉ शफीकुर्रहमान बर्क की लंबी दाढ़ी और बड़ी टोपी से डर गए हैं.

बर्क प्रेम के कारण मुसीबत में पड़ सकते हैं अखिलेश यादव पार्टी विधायक हाजी रिजवान ने बगावत का ऐलान कर दिया है

मामले में दिलचस्प जिस तरह पार्टी ने कुरैशी की जगह बर्क के पोते को टिकट दिया उसने न केवल तमाम तरह के सवाल खड़े किए. बल्कि समाजवादी...

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को अब बस कुछ समय शेष है. रैलियों, प्रचार, आरोप प्रत्यारोपों और प्रेस कांफ्रेंस के बाद बचे जरूरी काम दलों द्वारा बिना किसी देरी के जल्द से जल्द निपटाए जा रहे हैं. दल कोई भी हो ऐसा ही एक पेंचीदा काम उम्मीदवारों को टिकट देना है. कई बार देखने को मिला है कि किसी एक सीट पर एक ही पार्टी के दो या दो से ज्यादा उम्मीदवार मेहनत करते हैं. भले ही एक सीट पर एक ही दल के नेताओं की आपसी नूरा कुश्ती से फायदा जनता का हो लेकिन जहां ये दूसरे नेता के लिए बुरी होती है वहीं इससे पार्टी की छवि भी धूमिल होती है और उसपर सवालिया निशान लगते हैं. ऐसी स्थिति में तनाव और गतिरोध किस लेवल का होता है और कैसे ये पार्टी को मुसीबत में डालता है गर जो इस बात का अवलोकन करना हो तो हम यूपी के मुरादाबाद का रुख कर सकते हैं और कुंदरकी सीट का अवलोकन कर सकते हैं जिसने समाजवादी पार्टी और पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव को मुसीबत में डाल दिया है.

असल में हुआ कुछ यूं है कि अभी बीते दिनों ही अखिलेश यादव ने संभल से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान बर्क का टिकट पक्का किया है. ये बात मुरादाबाद में कुंदरकी के मौजूदा सपा विधायक हाजी रिजवान कुरैशी को बुरी लग गयी है. और उनके तेवर बागी हो गए हैं. टिकट कटने से बौखलाए हाजी रिज़वान कुरैशी मीडिया से मुखातिब हुए हैं और अखिलेश यादव पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि अखिलेश यादव संभल सांसद डॉ शफीकुर्रहमान बर्क की लंबी दाढ़ी और बड़ी टोपी से डर गए हैं.

बर्क प्रेम के कारण मुसीबत में पड़ सकते हैं अखिलेश यादव पार्टी विधायक हाजी रिजवान ने बगावत का ऐलान कर दिया है

मामले में दिलचस्प जिस तरह पार्टी ने कुरैशी की जगह बर्क के पोते को टिकट दिया उसने न केवल तमाम तरह के सवाल खड़े किए. बल्कि समाजवादी पार्टी का चाल चरित्र और चेहरा भी जनता को दिखा दिया है. अपने साथ हुई नाइंसाफी पर हाजी रिजवान बौखलाए हैं और अखिलेश की तरफ इशारा करते हुए कहा है कि उन्होंने इस बात को कहा है कि उन्हें (डॉ बर्क को) सब तोप समझ रहे हैं. उनकी दाढ़ी बहुत बड़ी है और उनकी टोपी भी बहुत बड़ी है. टोपी और दाढ़ी पूरे हिंदुस्तान को हिलाए फिर रही है.

जैसी बातें सपा विधायक की थीं साफ है कि वो पार्टी के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं. हाजी रिजवान ने कहा है कि कुंदरकी सीट से चुनाव तो 100% लड़ेंगे. पार्टी कौन सी होगी इसकी घोषणा भी जल्द से जल्द हो जाएगी. बाकी जैसे हालात हैं माना यही जा रहा है कि हाजी रिज़वान सपा को छोड़ बसपा का दामन थाम सकते हैं.

सपा के अंदर टिकट किस हद तक सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के गले की हड्डी बने हैं इसका खुलासा हाजी रिजवान के उस बयान से भी कर सकते हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क ने अपने पोते को टिकट नहीं मिलने की सूरत में सपा से इस्तीफे की बात की थी, जिससे अखिलेश यादव डर गए और उनके पोते जियाउर्रहमान को टिकट दे दिया.

वहीं उन्होंने ये भी कहा कि 95 साल की उम्र होने के बावजूद डॉक्टर बर्क को लोकसभा का टिकट भी डर के कारण दिया वहीं अब पोते को विधानसभा का टिकट देने की वजह इस्तीफा है. बताते चलें कि हाजी रिजवान कुंदरकी सीट से तीन बार के विधायक हैं. पुराने सपाई रह चुके हाजी रिजवान पहले 2002 फिर 2012 और 2017 में कुंदरकी सीट से विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं.

अपनी परंपरागत सीट पर टिकट गंवाने वाले हाजी रिजवान का टिकट क्यों कटा वजह उनका लचर रवैया है. बताया जा रहा है कि विधायक होने का गुमान उनपर कुछ इस हद तक हावी था कि वो इलाके में न तो निकलते थे न ही जनता की समस्या का निवारण करते थे. वहीं बात सांसद बर्क के पोते की हो तो हालिया दिनों में जैसा उनका रवैया रहा उन्होंने इलाके में घूम घूमकर लोगों से मुलाकात की और आम लोगों को जो परेशानियां थीं अपने स्तर पर उनका निवारण भी किया.

बात अगर कुंदरकी विधानसभा सीट की हो तो ऐसा नहीं है कि बर्क के पोते को यहां तुक्के से टिकट मिला है. इस टिकट के पीछे एक राजनीतिक गणित रही जिसका पालन हुआऔर बर्क के पोते ने टिकट अपने नाम किया. बताते चलें किकुंदरकी 55 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली सीट है. क्षेत्र तुर्क बाहुल्य है और बर्क के पोते की जीत यहां से इसलिए भी सुनिश्चित है क्योंकि शफीकुर्रहमान बर्कखुद तुर्क समुदाय से आते हैं और उनका शुमार इस कम्युनिटी के बड़े नेताओं में होता है.

बहरहाल बात चूंकि कुंदरकी सीट और इस सीट से मौजूदा विधायक हाजी रिजवान का टिकट कटने के संदर्भ में हुई है तो यदि हाजी रिजवान बसपा में आ जाते हैं तो इसलिए भी अखिलेश यादव को परेशानी होगी क्योंकि हाजी रिजवान 15 सालों से यहां राज कर रहे हैं. सीट भले ही तुर्क बाहुल्य हो मगर सीट पर जलवा उन्हीं का कायम है और ये बात हम नहीं आंकड़े कह रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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