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उन्नाव केस बता रहा है - यूपी पुलिस के लिए 'एनकाउंटर' और 'गैंगरेप' में फर्क नहीं

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 11 मई, 2018 04:19 PM
  • 11 मई, 2018 04:19 PM
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एनकाउंटर को लेकर हाल फिलहाल चर्चा में रही यूपी पुलिस क्या आसानी से मैनेज हो सकती है? पुलिस की केस डायरी में नाम चाहे किसी वांटेड अपराधी का हो या रसूख वाले रेप के आरोपी का, पुलिस उसे बचाने या फंसाने में कोई भेदभाव नहीं करती?

उन्नाव गैंगरेप केस की सीबीआई जांच में कोई नयी चीज सामने नहीं आई है. बल्कि, आरोपों में जो बातें सुनी जा रही थीं, वही साबित हो रही हैं. बिलकुल वही आरोप जिसे पुलिस के आला अधिकारी सबूत लायक नहीं समझ रहे थे - और बलात्कार के आरोपी सत्ताधारी बीजेपी के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का नाम बगैर 'माननीय' लगाये सरेआम नहीं ले पा रहे थे.

सीबीआई जांच से ये भी मालूम होता है कि उन्नाव के पोस्टमॉर्टम हाउस में उस अफसर का गुस्सा कितना वाजिब था. अफसर थाने के पुलिसवालों से इसलिए नाराज हो रहा था क्योंकि सेंगर परिवार को बचाने और पीड़ित के पिता को मरने देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गयी.

क्या थाने की पुलिस इतनी आसानी से मैनेज हो जाती है? राजनीतिक रसूख वाला बलात्कार का आरोपी हो या फिर हत्या और वसूली के दर्जनों केस में वांटेड अपराधी, पुलिस सबको समान भाव से बचाती है - यहां तक कि एनकाउंटर की हालत में भी.

ऐसे मैनेज होती है यूपी पुलिस

16 फरवरी को दोपहर बाद यूपी पुलिस ने एक ट्वीट कर बताया एनकाउंटर से अपराधी किस तरह दहशत में हैं. अपनी बात को सही ठहराने के लिए पुलिस ने अखबारों की क्लिपिंग भी शेयर की थी.

ये तो पहली नजर में ही मजाक लगता है पुलिस को जिस अपराधी की शिद्दत से तलाश है उसे सड़क पर दया और माफी मार्च निकालने की छूट दे देती है. पुलिस की फितरत में ये शायद ही कभी फिट हो पाये. देखने को तो यही मिलता है कि सरेंडर से ऐन पहले घात लगाकर पुलिस वाले आरोपी को धर लेते हैं. मीडिया में वकील और पुलिस के बीच गुत्थमगुत्थी की खबरें और तस्वीरें आपने देखी ही होगी.

पुलिस के बारे में एक धारणा सच के काफी करीब लगती है - वो अपराधी को भी बचाना चाहे तो कोई कसर बाकी नहीं रखती और बेगुनाह को भी मार डालने में उसे गुरेज नहीं होती. फर्जी एनकाउंटर में पुलिसवालों को मिलने वाली सजा से भी इसे समझा जा...

उन्नाव गैंगरेप केस की सीबीआई जांच में कोई नयी चीज सामने नहीं आई है. बल्कि, आरोपों में जो बातें सुनी जा रही थीं, वही साबित हो रही हैं. बिलकुल वही आरोप जिसे पुलिस के आला अधिकारी सबूत लायक नहीं समझ रहे थे - और बलात्कार के आरोपी सत्ताधारी बीजेपी के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का नाम बगैर 'माननीय' लगाये सरेआम नहीं ले पा रहे थे.

सीबीआई जांच से ये भी मालूम होता है कि उन्नाव के पोस्टमॉर्टम हाउस में उस अफसर का गुस्सा कितना वाजिब था. अफसर थाने के पुलिसवालों से इसलिए नाराज हो रहा था क्योंकि सेंगर परिवार को बचाने और पीड़ित के पिता को मरने देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गयी.

क्या थाने की पुलिस इतनी आसानी से मैनेज हो जाती है? राजनीतिक रसूख वाला बलात्कार का आरोपी हो या फिर हत्या और वसूली के दर्जनों केस में वांटेड अपराधी, पुलिस सबको समान भाव से बचाती है - यहां तक कि एनकाउंटर की हालत में भी.

ऐसे मैनेज होती है यूपी पुलिस

16 फरवरी को दोपहर बाद यूपी पुलिस ने एक ट्वीट कर बताया एनकाउंटर से अपराधी किस तरह दहशत में हैं. अपनी बात को सही ठहराने के लिए पुलिस ने अखबारों की क्लिपिंग भी शेयर की थी.

ये तो पहली नजर में ही मजाक लगता है पुलिस को जिस अपराधी की शिद्दत से तलाश है उसे सड़क पर दया और माफी मार्च निकालने की छूट दे देती है. पुलिस की फितरत में ये शायद ही कभी फिट हो पाये. देखने को तो यही मिलता है कि सरेंडर से ऐन पहले घात लगाकर पुलिस वाले आरोपी को धर लेते हैं. मीडिया में वकील और पुलिस के बीच गुत्थमगुत्थी की खबरें और तस्वीरें आपने देखी ही होगी.

पुलिस के बारे में एक धारणा सच के काफी करीब लगती है - वो अपराधी को भी बचाना चाहे तो कोई कसर बाकी नहीं रखती और बेगुनाह को भी मार डालने में उसे गुरेज नहीं होती. फर्जी एनकाउंटर में पुलिसवालों को मिलने वाली सजा से भी इसे समझा जा सकता है. हालांकि, फर्जी एनकाउंटर केस में जितने आरोप लगते हैं सजा कम ही मामलों में मिल पाती है.

यूपी पुलिस कैसे एनकाउंटर करती है इस पर एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ था. इसमें झांसी जिले के एक थानेदार और ब्लॉक प्रमुख रह चुके हिस्ट्रीशीटर लेखराज की बातचीत थी. ऑडियो क्लिप के सही होने की पुष्टि भले न हो, लेकिन पुलिस की ऑफ-रिकॉर्ड चर्चाओं के काफी करीब है. थानेदार की बातों सुनकर मालूम होता है कि जिस अपराधी के खिलाफ 60-70 मामले हैं, पुलिस उसे भी चाहे तो बचा लेती है.

थानेदार इस अपराधी को एनकाउंटर के लिए फिट केस बताता है और उसी वक्त बचने का रास्ता भी सुझा देता है - बीजेपी के दो नेताओं को मैनेज कर लो. मतलब साफ है, बीजेपी नेता मैनेज हो गये तो एनकाउंटर नहीं होगा, वरना - 'पट-पट-पट.'

सीबीआई को मिले सेंगर के खिलाफ सबूत

जब बीजेपी नेता अपराधियों से मैनेज हो जाते हैं और उनसे पुलिस मैनेज हो जाती है फिर तो भगवान ही बेड़ा पार लगाये. जो नेता अपराधियों के लिए पुलिस को मैनेज कर सकता है - वो भला अपने ने लिए क्या नहीं कर सकता.

थानेदार अपराधी को ये भी बता देता है कि उसका तो काम उसी दिन तमाम हो गया होता, अगर पुलिस तय करके और हथियार लेकर गयी होती. उन्नाव रेप केस की सीबीआई जांच में भी यही मालूम हुआ है कि सेंगर परिवार पर आंच न आये इसके लिए स्थानीय पुलिस ने अपनी ओर से प्रयासों में कोई कमी न रखी.

सीबीआई ने जुटाये आरोपों के सबूत

उन्नाव गैंगरेप केस में सीबीआई ने बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर के खिलाफ आरोपों की पुष्टि कर ली है, हालांकि ये जानकारी मीडिया में सूत्रों के हवाले से आई है. एक बयान जारी कर सीबीआई कहा है कि जांच अभी चल रही है और केस से जुड़े अपडेट या सबूत मिलने की बात या किसी नतीजे पर पहुंचने की बात मीडिया से शेयर नहीं की गयी है.

आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक 16 अप्रैल को सीबीआई की स्पेशल जुडीशियल मजिस्ट्रेट सपना त्रिपाठी के समक्ष पीड़ित का बयान दर्ज किया गया था. ये बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज हुआ जिसे प्रॉसीक्यूशन अदालत में बतौर सबूत पेश करता है. ऐसे में बयान से पलटने पर झूठी गवाही देने का केस भी चल सकता है.

बताते हैं कि बयान पीड़ित ने सारी बातें दोहरायी हैं कि 4 जून, 2017 को बीजेपी विधायक सेंगर के पास उसे ले जाया गया. विधायक के पास ले जाने वाली शशि नाम की महिला उस दौरान दरवाजे पर पहरा देती रही.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया गया है कि पुलिस ने मेडिकल जांच में भी देरी की और पीड़ित के कपड़े और दूसरे सबूत फरेंसिक लैब नहीं भेजे. बातचीत में अधिकारी ने बताया, 'ये सबकुछ जानबूझकर और आरोपियों की मिलीभगत से किया गया.'

पुलिस डाल डाल और वे पात पात

फर्जी वेबसाइट बनाकर स्वामी रामदेव के पतंजलि की एजेंसी दिलाने के नाम पर ठगने वालों के कारनामे तो आपने खबरों में देखे ही होंगे. ये भी जान लें के किस तरह बीजेपी नेता और सीबीआई अफसर बन कर दो ठग बीजेपी विधायक सेंगर की जिला परिषद सदस्य पत्नी से संपर्क किये.

सेंगर की पत्नी संगीता

सेंगर की पत्नी संगीता की शिकायत पर पुलिस ने ऐसे दो युवकों को गिरफ्तार किया है जो मामला रफा दफा करने को लेकर एक करोड़ रुपये मांग रहे थे. पुलिस की पूछताछ में पता चला है कि दोनों में से एक ने पहले बीजेपी नेता बन कर फोन किया लेकिन नाम नहीं बताया. बाद में दोनों ने खुद को सीबीआई अफसर बताया और कहा कि एक करोड़ रुपये देने पर सेंगर को क्लीन चिट दिला सकते हैं.

पुलिस और अपराधियों के रिश्ते को लेकर एक जुमला खूब चलता है - 'तू डाल-डाल मैं पात-पात'. अपराध को अंजाम देने वाले भी हमेशा शिकार की फिराक में होते हैं और उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि दूसरी तरफ कौन है. ये बात पेशेवर अपराधियों पर भी लागू होती है और उन पर भी जो नया नया हाथ आजमाने निकल पड़ते हैं. दोनों युवक बेरोजगार थे - मौका और पोटेंशियल देखकर दोनों ने सेंगर परिवार से पैसे ऐंठने की कोशिश की, लेकिन पकड़ में आ गये.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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