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ब्रिटेन कभी भारत पर करता था राज, अब खुद बदहाल, 300 साल में सबसे बड़ा झटका!

    • अशोक भाटिया
    • Updated: 04 फरवरी, 2023 05:33 PM
  • 04 फरवरी, 2023 05:33 PM
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हर बीतते दिन के साथ ब्रिटेन की हालत बद से बदतर हो रही है. तो वहीं ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में 300 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है. आधिकारिक आंकड़ों में सामने आया कि विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक ब्रिटेन पर महामारी का बड़ा असर हुआ. जिसके चलते देश की जीडीपी अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं ज्यादा बदहाल हुई है.

यह विधाता का ही खेल कहा जा सकता है कि कभी जिस देश ने भारत पर लंबे समय तक राज किया. आज उस देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है. हम बात कर रहे हैं ब्रिटेन की. हालांकि, अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने बाद जहां सात दशकों में ही भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती इकोनॉमी बनकर उभर रहा है, तो वहीं ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में 300 साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की जा रही है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन ने पिछले 2 वर्षो से उत्पादन में सबसे बड़ी गिरावट देखी, जबकि यूके समेत पूरी दुनिया में कोरोना महामारी का प्रकोप जारी था. आधिकारिक आंकड़ों में सामने आया कि विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक ब्रिटेन पर महामारी का बड़ा असर हुआ. जिसके चलते देश की जीडीपी अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं ज्यादा बदहाल नजर आई. ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स ने आंकड़े जारी करते हुए कहा कि साल 2020 में ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद में 11 फीसदी की बड़ी गिरावट आई. यह आंकड़ा ONS द्वारा जताए गए पूर्वानुमानों की तुलना में बहुत ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1709 के बाद से देश की जीडीपी में यह सबसे बड़ी गिरावट रही.

ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में 300 साल की सबसे बड़ी गिरावट ने वहां आम से लेकर खास तक सबकी कमर तोड़ कर रख दी है

अब इसके उससे कहीं ज्यादा गंभीर होने का अंदेशा जताया जा रहा है, जैसा पहले सोचा गया था. इस बारे में मार्केट एनालिसिस करने वाली एजेंसियां अपने अनुमानों को अब नए सिरे से पेश कर रही हैं. इस सिलसिले में सबसे ताजा अनुमान अमेरिकी इन्वेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्श ने सामने रखा है.गोल्डमैन सैक्श ने ब्रिटेन की आर्थिक संभावना का अनुमान गिरा दिया है. इसमें कहा गया है कि अगले वर्ष ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था एक फीसदी सिकुड़ेगी. इसके पहले ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में 0.4 फीसदी गिरावट का अनुमान इस बैंक ने लगाया था.

अब यह साफ है कि ब्रिटेन की लिज ट्रस सरकार की आर्थिक नीतियां देश को बहुत भारी पड़ रही थी . ट्रस ने सत्ता संभालते ही कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का एलान किया था. उसके साथ निजी आय कर में भी छूट देने की घोषणा हुई थी. लेकिन ट्रस सरकार ने यह नहीं बताया कि इन कटौतियों से सरकारी खजाने को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कैसे की जाएगी. इससे ब्रिटेन का बॉन्ड बाजार ढहने के करीब पहुंच गया.

उससे फैली अफरा-तफरी के बीच ट्रस ने यू-टर्न लेते हुए तमाम रियायतों को वापस ले लिया. उन्होंने अफरा-तफरी का दोष अपने वित्त मंत्री क्वासी क्वार्तेंग पर मढ़ते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया था . लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि उससे ट्रस सरकार में बाजार का भरोसा और घटा . गोल्डमैन सैक्श की रिपोर्ट में भी ये बात झलकी है. उसने कहा है कि ब्रिटेन की आर्थिक वृद्धि दर ज्यादा कमजोर हो गई है, देश की वित्तीय स्थिति बिगड़ गई है और अब कॉरपोरेट टैक्स में अगले अप्रैल से प्रस्तावित 25 फीसदी की वृद्धि ने ऐसी स्थिति बना दी है, जिसमें ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के प्रति नजरिया नकारात्मक हो गया है.

ड्यूश बैंक और बार्कलेज बैंक ने अनुमान लगाया है कि ब्रिटिश सेंट्रल बैंक- बैंक ऑफ इंग्लैंड नवंबर में होने वाली अपनी अगली बैठक में ब्याज दर में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी करेगा. इससे आर्थिक विकास की संभावना और कमजोर होगी. गोल्डमैन सैक्श का अनुमान है कि ब्रिटेन में ब्याज दर 4.75 फीसदी तक पहुंच जाएंगी.मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म डिलॉइट ने एक बिजनेस सर्वे रिपोर्ट जारी की है, जिसमें ज्यादातर कंपनी अधिकारियों ने कहा कि ऊंची ब्याज दरों के बीच देश का मंदी से निकलना ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है.

आज देश में कर्ज लेना 2010 से भी ज्यादा महंगा हो गया है. इसलिए कंपनियां निवेश बढ़ाने की स्थिति में नहीं हैं. डिलॉइट के सर्वे में यह भी सामने आया कि ब्रिटेन की ज्यादातर कंपनियों का अनुमान है कि अगले एक साल में उनकी कमाई घटेगी. इसकी वजह लागत खर्च में हुई बढ़ोतरी है.डिलॉइट के मुख्य अर्थशास्त्री इयन स्टीवर्ट ने ब्रिटिश अखबार द गार्जियन से बातचीत में कहा कि लागत में बढ़ोतरी और ब्याज दर ऊंची होने की वजह से कंपनियों को अपनी निवेश नीति में बदलाव लाना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा- 12 साल तक आसान शर्तों पर कर्ज मिलने का चला दौर अब खत्म हो रहा है, इसकी वजह से कंपनियों लागत और ऋण दोनों के बारे में नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ रही है. आज जो ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है उसके कारण ब्रिटेन में वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर लगभग 5 लाख शिक्षक, विश्वविद्यालय के कर्मचारी, रेलवे कर्मचारी और सिविल सेवक हड़ताल पर चले गए हैं. पूरे देश में परिस्थितियों ने हाल के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं.

इस हड़ताल को दशक की सबसे बड़ी हड़ताल कहा गया है. लंदन में हजारों लोग जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं. इनका कहना है कि मौजूदा वेतन जीवन-यापन करने की लागत के हिसाब से पर्याप्त नहीं है. महंगाई आसमान को छू रही है. जिन लोगों को पिछले वर्ष 5 प्रतिशत से कम की वेतन वृद्धि का फायदा मिला था, उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत से ऊपर चढ़ गई है.

प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार पर देश में वेतन पर अधिक उदार प्रस्ताव बनाकर सार्वजनिक क्षेत्र के श्रमिकों के साथ विवादों को हल करने का दबाव बढ़ रहा है. भले ही सरकार हड़​तालियों से बातचीत कर रही है, लेकिन महंगाई नियंत्रित होने तक वेतन वृद्धि मुश्किल दिखाई देती है. गौरतलब है कि ब्रिटेन में पिछले साल हुए चुनाव में ​​ऋषि सुनक हार कर जीतने वाले बाजीगर साबित हुए थे. प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करके उन्होंने देश को आर्थिक संकट से निकालने का संकल्प लिया था लेकिन नया साल शुरू होते ही उनके सामने चुनौतियां ही चुनौतियां खड़ी हो गईं.

अब जब कि देश की अर्थव्यवस्था संकट में है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इस साल मंदी के संकेत दिए हैं. इससे देश को उबारना सुनक सरकार के लिए बड़ा टास्क होगा. पिछले कुछ वर्षों से ब्रिटेन आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है. 6 वर्षों में 5 प्रधानमंत्री बने हैं. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्रियों बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस के कार्यकाल में कीमतें आसमान को छूने लगी. जीवन यापन का खर्च बढ़ता गया.

प्रधानमंत्री लिज ट्रस की आर्थिक नीतियां विफल रहीं. लिज ट्रस के टैक्स कटौती के फैसले से न सिर्फ पाउंड बल्कि बांड मार्किट प्रभावित हुई और ब्याज दरों में बढ़ौतरी होती गई.अब वहां हालात यह है कि शिक्षकों के हड़ताल पर जाने से 23 हजार स्कूलों में शै​क्षणिक गतिविधियां ठप्प हैं. 85 प्रतिशत स्कूल पूरी तरह या आंशिक रूप से बंद हैं जिससे चाइल्ड केयर को लेकर कामकाजी माता-पिता प्रभावित हो रहे हैं. बस चालकों के साथ ट्रेन चालकों की हड़ताल से हालात और खराब हो गए हैं.

विश्लेषकों के मुताबिक 2022 में प्राइवेट सैक्टर के कर्मियों की औसत वेतन वृद्धि दर 6.9 फीसदी रही जबकि पब्लिक सैक्टर में यह सिर्फ 2.7 फीसदी रही. इसलिए हड़ताल पर जाने वालों में सबसे बड़ी संख्या पब्लिक सैक्टर के कर्मचारियों की है. कहा जाता है कि बुलंदी पर पहुंचना मुश्किल होता है लेकिन बुलंदी पर कायम रहना भी उतना ही मुश्किल होता है. बीते महीने यानी दिसंबर 2022 में उनकी सरकार को विभिन्न वर्ग के सरकारी कर्मियों का विरोध झेलना पड़ा था. ऐसे में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए इस साल अपनी लोकप्रियता बरकरार रखने की भी चुनौती है.

प्रधान मंत्री बनने के पूर्व ऋषि सुनक ब्रिटेन में बोरिस जॉनसन की सरकार में वित्त मंत्री रहे हैं. बतौर वित्तमंत्री उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐसे कदम उठाए, जिससे लोगों के दिल में उन्होंने जगह बनाई. कोविड के दौरान सुनक ने कर्मचारियों और व्यवसायियों का समर्थन किया और उनके लिए आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था. इस क्रांतिकारी फैसले से वो देश-दुनिया में चर्चा का विषय बन गए थे. कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्यों के बीच भी वह चर्चा का केंद्र बने. इस पैकेज में में जॉब रिटेंशन प्रोग्राम भी शामिल था.

कथित तौर पर सुनक के इस कदम से ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पर लगाम लगाने में मदद मिली. कोरोना की शुरुआत में होटल इंडस्ट्री के लिए चल रही ईट आउट टू हेल्प आउट स्क्रीम के लिए सुनक ने 15 हजार करोड़ रुपये जारी किए थे. वहीं, कोरोना के चलते चरमराई टूरिज्म इंडस्ट्री के लिए भी उन्होंने 10 हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिया था. आईएफएस रिपोर्ट आखिर में यही कहती है जो किसी भी ब्रिटिश नीति निर्माता के लिए सबसे अधिक चिंताजनक है.आईएफएस के मुताबिक,'ब्रिटेन की आर्थिक नीति एक ओर खुद फैलाई गई मंदी के खतरे और दूसरी ओर महंगाई को डी-एंकरिंग करने के जोखिम के बीच एक मुश्किल लेन-देन के नुकसान पहुंचाने वाले रास्ते पर चल रही है.'

डी-एंकरिंग का मतलब है कि कम वक्त में कीमतों के बढ़ने के झटके लंबी अवधि की उम्मीदों को बदल सकते हैं.सीधे शब्दों में कहें, तो एक तरफ खुदरा महंगाई दर दोहरे अंकों में होने से जीवन यापन का संकट है. दूसरी ओर रुकी हुए आर्थिक विकास की समस्या है, जो बदले में कम राजस्व और उच्च ऋण की तरफ ले जाती है. परेशानी यह है कि सरकार महंगाई को काबू करने के लिए खर्च पर अंकुश लगाती है.

यह कदम आर्थिक विकास की गति को और कम करता है.ब्याज दरों को कम रखने और सरकारी खर्च को बढ़ा कर विकास को बढ़ावा देने की किसी भी कोशिश से महंगाई वाले हालात और बिगड़ते हैं. इससे लोगों की खरीदने की ताकत कम होती है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ऋषि सनक इस तरह के हालातों में किस नीतिगत प्रतिक्रिया का चुनाव करते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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