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नेताओं के खिलाफ सवर्णों का गुस्सा एक नया संकेत देता है

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2018 07:07 PM
  • 11 अक्टूबर, 2018 07:07 PM
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सवर्णों की नाराजगी सभी पार्टियों के नेताओं को सताने लगी है क्योंकि जहां भी ये जा रहे हैं वहां इनके गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है. इनके ऊपर स्याही, अंडे और चूडि़यां फेंकी जा रही हैं, तो कभी काले झंडे से इनका स्वागत किया जा रहा है.

जातीय समीकरण को साधने के लिए संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र सरकार ने एससी-एसटी उत्पीड़न रोकथाम कानून में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था. शायद सरकार को भरोसा था कि इससे पिछड़े और दलित समूहों का समर्थन मिलेगा. लेकिन उम्मीद के मुताबिक सफलता तो दूर की बात, इसने सवर्ण जातियों में नाराज़गी ज़रूर बढ़ा दी, जो भाजपा का कोर वोट हुआ करता था. वैसे भी सवर्णों की आबादी करीब 25 से 30 फीसदी है.

सवर्णों का गुस्सा बीजेपी को भारी पड़ सकता है

अब सवर्णों ने सोशल मीडिया को हथियार बनाकर नोटा यानी किसी को नहीं चुनने के विकल्प का अभियान चला दिया जिसका असर व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है. चूंकी अब पांच राज्यों में विधानसभा और ठीक इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में सवर्णों की नाराजगी सभी पार्टियों के नेताओं को सताने लगी है क्योंकि जहां भी ये जा रहे हैं वहां इनके गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है. इनके ऊपर स्याही, अंडे और चूडि़यां फेंकी जा रही हैं, तो कभी काले झंडे से इनका स्वागत किया जा रहा है.

जानते हैं किन-किन नेताओं को सवर्णों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है-

स्मृति ईरानी: सवर्णों ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को बिहार के गोपालगंज में काले झंडे दिखाए जब वो भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यक्रम युवा संकल्प सम्मेलन में भाग लेने पहुंची थीं. यहां तक कि शहर में लगे उनके पोस्टरों पर कालिख भी पोत दी थी.

स्मृति ईरानी के पोस्टर पर कालिख पाती गईरामकृपाल यादव: सवर्णों द्वारा केन्द्रीय...

जातीय समीकरण को साधने के लिए संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र सरकार ने एससी-एसटी उत्पीड़न रोकथाम कानून में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था. शायद सरकार को भरोसा था कि इससे पिछड़े और दलित समूहों का समर्थन मिलेगा. लेकिन उम्मीद के मुताबिक सफलता तो दूर की बात, इसने सवर्ण जातियों में नाराज़गी ज़रूर बढ़ा दी, जो भाजपा का कोर वोट हुआ करता था. वैसे भी सवर्णों की आबादी करीब 25 से 30 फीसदी है.

सवर्णों का गुस्सा बीजेपी को भारी पड़ सकता है

अब सवर्णों ने सोशल मीडिया को हथियार बनाकर नोटा यानी किसी को नहीं चुनने के विकल्प का अभियान चला दिया जिसका असर व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है. चूंकी अब पांच राज्यों में विधानसभा और ठीक इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में सवर्णों की नाराजगी सभी पार्टियों के नेताओं को सताने लगी है क्योंकि जहां भी ये जा रहे हैं वहां इनके गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है. इनके ऊपर स्याही, अंडे और चूडि़यां फेंकी जा रही हैं, तो कभी काले झंडे से इनका स्वागत किया जा रहा है.

जानते हैं किन-किन नेताओं को सवर्णों के गुस्से का शिकार होना पड़ा है-

स्मृति ईरानी: सवर्णों ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को बिहार के गोपालगंज में काले झंडे दिखाए जब वो भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यक्रम युवा संकल्प सम्मेलन में भाग लेने पहुंची थीं. यहां तक कि शहर में लगे उनके पोस्टरों पर कालिख भी पोत दी थी.

स्मृति ईरानी के पोस्टर पर कालिख पाती गईरामकृपाल यादव: सवर्णों द्वारा केन्द्रीय मंत्री रामकृपाल यादव को बिहार के मुजफ्फरपुर में उनकी गाड़ी रोककर उस पर स्याही फेंक दी थी.

मनोज तिवारी: भोजपुरी अभिनेता से नेता बने भाजपा सांसद मनोज तिवारी को बिहार के भभुआ में उस समय सवर्णों के विरोध का सामना करना पड़ा जब वो भारतीय जनता युवा मोर्चा के युवा शंखनाद कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने पहुंचे थे. सवर्णों ने भाजपा के खिलाफ नारेबाजी करते हुए मनोज तिवारी को काले झंडे दिखाए तथा उन पर चूडि़यां फेंकीं.

अश्विनी कुमार चौबे: केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री व बक्सर के सांसद अश्विनी कुमार चौबे को भागलपुर में सवर्णों ने उनसे धक्का मुक्की करते हुए उन्हें काला कपड़ा दिखाया था. वो दिल्ली जाने के लिए राजधानी एक्सप्रेस पकड़ने नवगछिया पहुंचे थे तब उन्हें सवर्णों का गुस्सा झेलना पड़ा था.

सुशील कुमार मोदी: बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को सीतामढ़ी में सवर्णों ने उनकी कार पर स्याही फेंकी और काला झंडा दिखाया. वो भारतीय जनता युवा मोर्चा का शंखनाद सम्मेलन में भाग लेने के लिए सीतामढ़ी पहुंचे थे.

मुजफ्फरपुर में केन्द्रीय मंत्री रामकृपाल यादव की गाड़ी पर स्याही फेंकी गई

लेकिन सवाल ये है कि आखिर स्वर्ण जातियां क्या करें? आखिर उनके पास विकल्प क्या बचा है? क्या वो नोटा के विकल्प पर कायम रह सकते हैं? अगर हां तो इससे फायदा किस पार्टी को होना है? तमाम चुनावी सर्वे में ये बात साफ निकल कर आ रही है कि नरेंद्र मोदी से लोगों का मोहभंग नहीं हुआ है और ऐसे में अंततः ये सवर्ण जातियां भाजपा के लिए ही वोट कर सकती हैं.

लेकिन फिलहाल सवर्ण जातियों का गुस्सा तो इन नेताओं को झेलना ही पड़ रहा है और कम से कम पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जो परिणाम आएंगे उनसे ये बात निकल कर आ सकती है कि सवर्णों का क्या रूख रहा है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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