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कैबिनेट विस्तार के जरिये मोदी या भाजपा ने कौन सा सियासी गणित साधा है, जानिए...

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 10 जुलाई, 2021 04:54 PM
  • 10 जुलाई, 2021 04:54 PM
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तमाम तरह के कयासों के बीच अभी बीते दिन ही पीएम मोदी द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल ने उन अटकलों को खारिज कर दिया जो इस निर्णय की घोषणा से पहले चल रहे थे.आइये जानें वो पांच राजनीतिक संदेश कौन से हैं जो इस मंत्रिपरिषद के विस्तार से दिए गए हैं.

बीते दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंत्रिपरिषद में फेरबदल ने उन अटकलों को खारिज कर दिया जो इस निर्णय की घोषणा से पहले चल रही थीं. कुछ लोगों के हटाए जाने या कहें कि निकासों ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को चौंका दिया और भाजपा नेताओं और एनडीए में सहयोगियों दोनों को कुछ मजबूत राजनीतिक संदेश भेजे. जानकार सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट के फेरबदल में आरएसएस की छाप है, जिसने हटाए गए मंत्रियों पर निश्चित प्रतिक्रिया प्रदान की, और प्रमुख राज्यों और भाजपा के सहयोगियों के संबंध में एक चतुर राजनीतिक गणना की.

मंत्रिपरिषद विस्तार का जो फैसला पीएम मोदी ने लिया उसने उनके विरोधियों को कई बड़े सन्देश दिए हैं

यहां देखिए मंत्रिपरिषद के विस्तार से उभरने वाले पांच राजनीतिक संदेश:

बोर्ड पर सहयोगी लेकिन...

जब पीएम मोदी ने 2019 में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया, तो उनकी सरकार में चार भाजपा सहयोगियों: शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल, लोक जनशक्ति पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के मंत्री थे.

पिछले दो वर्षों में, दो सहयोगी - 2019 में शिवसेना और 2020 में शिरोमणि अकाली दल - गठबंधन से अलग हुए. लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का 2020 में निधन हुआ जिससे मोदी सरकार के पास सहयोगी दलों में से केवल एक मंत्री बचा.

इस बीच, भाजपा और मोदी सरकार को 'सहयोगियों के साथ सम्मान का व्यवहार नहीं करने' की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. केंद्र सरकार द्वारा मंत्रिपरिषद के विस्तार में चार सहयोगियों को भागीदार बनाना इस आलोचना को संबोधित करता नजर आता है.

लोक जनशक्ति पार्टी को अपना एक विभाग वापस मिल गया. अपना दल (सोनेलाल) और जनता दल-यूनाइटेड ने नए मंत्रिपरिषद में शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल की जगह ली.

जनता...

बीते दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंत्रिपरिषद में फेरबदल ने उन अटकलों को खारिज कर दिया जो इस निर्णय की घोषणा से पहले चल रही थीं. कुछ लोगों के हटाए जाने या कहें कि निकासों ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को चौंका दिया और भाजपा नेताओं और एनडीए में सहयोगियों दोनों को कुछ मजबूत राजनीतिक संदेश भेजे. जानकार सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट के फेरबदल में आरएसएस की छाप है, जिसने हटाए गए मंत्रियों पर निश्चित प्रतिक्रिया प्रदान की, और प्रमुख राज्यों और भाजपा के सहयोगियों के संबंध में एक चतुर राजनीतिक गणना की.

मंत्रिपरिषद विस्तार का जो फैसला पीएम मोदी ने लिया उसने उनके विरोधियों को कई बड़े सन्देश दिए हैं

यहां देखिए मंत्रिपरिषद के विस्तार से उभरने वाले पांच राजनीतिक संदेश:

बोर्ड पर सहयोगी लेकिन...

जब पीएम मोदी ने 2019 में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया, तो उनकी सरकार में चार भाजपा सहयोगियों: शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल, लोक जनशक्ति पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के मंत्री थे.

पिछले दो वर्षों में, दो सहयोगी - 2019 में शिवसेना और 2020 में शिरोमणि अकाली दल - गठबंधन से अलग हुए. लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का 2020 में निधन हुआ जिससे मोदी सरकार के पास सहयोगी दलों में से केवल एक मंत्री बचा.

इस बीच, भाजपा और मोदी सरकार को 'सहयोगियों के साथ सम्मान का व्यवहार नहीं करने' की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. केंद्र सरकार द्वारा मंत्रिपरिषद के विस्तार में चार सहयोगियों को भागीदार बनाना इस आलोचना को संबोधित करता नजर आता है.

लोक जनशक्ति पार्टी को अपना एक विभाग वापस मिल गया. अपना दल (सोनेलाल) और जनता दल-यूनाइटेड ने नए मंत्रिपरिषद में शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल की जगह ली.

जनता दल-यूनाइटेड इसमें शामिल नहीं हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि इसके नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो कभी पीएम मोदी के प्रतिद्वंद्वी थे, ने केंद्र में अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की.

पीएम मोदी ने स्पष्ट रूप से उसी नियम का पालन करने पर जोर दिया जैसा कि अन्य भाजपा सहयोगियों पर लागू होता है: एक सहयोगी, एक बर्थ. कैबिनेट विस्तार से पहले की रिपोर्टों ने दावा किया था कि जनता दल-यूनाइटेड को चार पद मिल सकते हैं जिससे ये जाहिर हो रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर नीतीश कुमार अपना दबदबा कायम करने में कामयाब हुए पर अब जबकि विस्तार हुआ पीएम मोदी अपनी पुरानी बात पर कायम रहे और जो शर्त थी उसे बनाए रखा.

डिलीवरी को मिला इनाम 

कैबिनेट विस्तार ने भाजपा कैडर को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया: पार्टी के लिए परिणाम देने वाले को पुरस्कृत किया जाएगा. चरम छोर से दो उदाहरण इसे बहुत स्पष्ट करते हैं: प्रतिमा भौमिक और ज्योतिरादित्य सिंधिया.

प्रतिमा भौमिक त्रिपुरा की "दीदी" हैं. वह त्रिपुरा में भाजपा के शुरुआती सदस्यों में से एक हैं, जो 1991 में इससे जुड़ी थीं, जब पार्टी के पास केवल कुछ मुट्ठी भर सदस्य थे जिनके पास राजनीतिक सत्ता की कोई संभावना नहीं थी.

त्रिपुरा में उनके अथक पार्टी कार्य ने भाजपा को भरपूर लाभ दिया. वह अब सामाजिक न्याय और अधिकारिता के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया मार्च 2020 में ही भाजपा में शामिल हुए, मध्य प्रदेश में पार्टी के लिए परफॉर्म करने के 'वादे' के साथ, तब राज्य में कांग्रेस का शासन था. उन्होंने लगभग दो दर्जन वफादार विधायकों के एक समूह का नेतृत्व किया, जिन्होंने भाजपा में शामिल होने के लिए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया.

सिंधिया ने बाद में उपचुनावों में पर्याप्त परिणाम दिए और यह सुनिश्चित किया कि मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार अपने पूरे कार्यकाल में बनी रहे. वह अब  कैबिनेट रैंक के मंत्री हैं जिन्हें नागरिक उड्डयन की जिम्मेदारी दी गयी है. 

अवलंबियों के लिए केआरए सुप्रीम है 

अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में, पीएम मोदी ने अपने मंत्रिपरिषद की एक बैठक आयोजित की थी, जिसमें उन्हें 'छपास' (मीडिया स्थान पाने का लालच) से सावधान रहने की सलाह दी गई थी और उन्हें अपने संबंधित विभागों की प्रमुख जिम्मेदारी / परिणाम क्षेत्रों (केआरए) पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया था. 

आंतरिक गतिशीलता के जानकार लोगों का कहना है कि यहीं से आरएसएस की भूमिका सामने आई. जो प्रत्येक मंत्रालय और राजनीतिक महत्व के मंत्री पर प्रतिक्रिया देता है.

इससे पता चलता है कि क्यों पीएम मोदी ने शिक्षा, आईटी और सामाजिक न्याय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में बदलाव किया. इन मंत्रालयों से कैबिनेट और राज्य दोनों रैंक के मंत्रियों को हटा दिया गया था. स्वास्थ्य मंत्रालय एक और मामला है.

रविशंकर प्रसाद और हर्षवर्धन ने उन मंत्रालयों का नेतृत्व किया, जिनकी हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर कोविड -19 प्रबंधन पर तीखी आलोचना हुई थी. दोनों ही नेताओं का मंत्रिपरिषद से उनका बाहर निकलना चौंकाने वाला इसलिए भी था क्योंकि उन्हें पहले कोर टीम का हिस्सा माना जाता था. सूत्रों का कहना है कि आरएसएस विभिन्न मंत्रालयों को संभालने के लिए प्रकाश जावड़ेकर से खुश नहीं था, जिन्हें उन्होंने वर्षों तक हेड किया.

दूसरी ओर, संतोष गंगवार ने कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के प्रवास के कारण पैदा हुए संकट के चलते अपना पद खो दिया. ध्यान रहे गंगवार के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी और कहा था, “श्रम मंत्रालय (जिसका नेतृत्व गंगवार ने किया था) का उदासीन रवैया अक्षम्य था.'

योगी, बीएस येदियुरप्पा को मजबूत किया

उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. सत्तारूढ़ भाजपा ने हाल ही में पार्टी के भीतर कुछ गड़गड़ा देखी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर परोक्ष हमले किए गए.

आरएसएस नेताओं, शीर्ष भाजपा नेतृत्व और योगी आदित्यनाथ और उत्तर प्रदेश भाजपा नेताओं के बीच लगातार होती बैठकों ने यह स्पष्ट कर दिया कि 2022 के विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बदलेगा.

अब सात मंत्री जिसमें अपना दल (सोनेलाल) की अनुप्रिया पटेल भी शामिल हैं, उत्तर प्रदेश से लाए गए हैं. जाति समीकरण उत्तर प्रदेश में हर चुनाव में महत्वपूर्ण रहा है जिसका इस बार भी पूरा ध्यान रखा गया है. तीन मंत्री - अनुप्रिया पटेल, पंकज चौधरी और बीएल वर्मा - अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं, जिसका उत्तर प्रदेश की आबादी का 50 प्रतिशत होने का अनुमान है. तीन अन्य - कौशल किशोर, भानु प्रताप सिंह वर्मा और एसपीएस बघेल - अनुसूचित जाति वर्ग से हैं, जिसकी उत्तर प्रदेश में 20 प्रतिशत से अधिक आबादी शामिल है. उत्तर प्रदेश से नवनियुक्त केंद्रीय मंत्रियों में अजय कुमार एकमात्र ब्राह्मण चेहरा हैं. ब्राह्मण उत्तर प्रदेश की आबादी का लगभग 10 प्रतिशत हैं.

केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में यह जाति अंकगणित योगी आदित्यनाथ के पक्ष में काम करता है क्योंकि वह लगभग सात महीनों में फिर से चुनाव चाहते हैं. अब, उत्तर प्रदेश में 15 केंद्रीय मंत्री हैं.

इसी तरह, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की स्थिति कैबिनेट विस्तार के बाद मजबूत हुई है. शामिल किए गए मंत्रियों में से चार कर्नाटक से हैं, जिन्होंने सदानंद गौड़ा को हटा दिया था.

येदियुरप्पा को हाल ही में कर्नाटक बीजेपी के भीतर कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिससे अटकलें तेज हो गईं कि उन्हें उनके पद से हटाया जा सकता है. आखिरकार, वह भाजपा के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो 75 साल से ऊपर हैं, जोकि पार्टी में अनौपचारिक सेवानिवृत्ति की उम्र भी है.

नए लोग जो कैबिनेट में शामिल हुए हैं वे प्रभावशाली वोक्कालिगा, लिंगायत (येदियुरप्पा के समान) और दलित समुदायों से हैं. राजीव चंद्रशेखर एक तकनीकी उद्यमी हैं.

शिवसेना के लिए दरवाजे बंद

और अंत में, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना के पूर्व नेता नारायण राणे के नयी कैबिनेट में शामिल होने से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ पार्टी के लिए एक संदेश है. संदेश यह है कि भाजपा 2023 में अगला महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने की सोच रही है. नारायण राणे महाराष्ट्र में एक प्रभावशाली नेता हैं जिनकी पहुंच सभी पार्टियों तक है. जैसे समीकरण महाराष्ट्र में स्थापित हुए हैं वह ठाकरे के कट्टर प्रतिद्वंदी भी बन गए हैं.

उनका शामिल होना चर्चा की पृष्ठभूमि में इसलिए भी आया था क्योंकि माना जा रहा था कि महा विकास अघाड़ी सहयोगियों यानी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की नहीं बन रही है. पीएम ने कैबिनेट में फेरबदल के साथ इस चर्चा को भी विराम दे दिया और सबको चुप करा दिया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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