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जेटली जी उनका क्या होगा जिन्हें कंपनी पीएफ नहीं देती

    • करुणेश कैथल
    • Updated: 29 फरवरी, 2016 06:01 PM
  • 29 फरवरी, 2016 06:01 PM
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डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे सपनों को दिखाने वाली मोदी सरकार के इस बजट से लोगों को काफी अपेक्षाएं थीं जिसपर आज एक बार फिर से मिट्टी डालने का काम वित्तमंत्री जी ने कर दिया है.

आज देश के वित्तमंत्री अरूण जेटली ने 2016-17 के लिए बजट पेश कर दिया है. उन्होंने काफी कुछ नया दिखाने की कोशिश की जो लोगों को नहीं दिख पा रहा है. खैर इससे पहले भी हर साल और अन्य पार्टियों के शासनकाल में भी जिस तरह की बजटें पेश की गई हैं कुछ नया नहीं दिख पाया. कहीं कुछ घटाई जाती है तो कहीं कुछ बढ़ा दी जाती है. गरीबों को छोड़ ही दीजिए, कुल मिलाकर आम इंसान या यूं कहें कि मध्यम वर्गीय परिवारों को, या नौकरीपेशा लोगों को कभी कोई खासा फायदा नहीं मिल पाता है बल्कि उल्टे हर साल उनके ऊपर एक नया बोझ डाल ही दिया जाता है.

डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे सपनों को दिखाने वाली मोदी सरकार के इस बजट से लोगों को काफी अपेक्षाएं थीं जिसपर आज एक बार फिर से मिट्टी डालने का काम वित्तमंत्री जी ने कर दिया है. कुछ चीजें महंगी की गई हैं तो कहीं पर छूट भी बढ़ी है, फिर से कुछ चीजों पर टैक्स घटा है तो कुछ चीजों पर टैक्स बढ़ा दिया गया है. सब कुछ आम जैसी ही रही, खास कुछ भी नहीं दिखा.

एक खास बात है जो हम नौकरीपेशा लोगों को नजर आती हैं वह है किराये के मकान पर एचआरए में छूट की सीमा 24 हजार से बढ़ाकर 60 हजार कर दी गई है. दूसरा, यह कि पहली बार 50 लाख रुपये तक का मकान खरीदने पर 50 हजार रुपये की टैक्स में छूट मिलेगी. लेकिन तीसरा और सबसे अहम यह है कि नौकरी करने वाले नए कर्मचारियों को सरकार पहले तीन साल तक ईपीएफ का हिस्सा देगी.

जेटली जी इनके बारे में कब और कौन बात करेगा

वित्तमंत्री जी ने छोटे-मोटे उद्योगों और कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों को कैसे फायदा मिलेगा इसके बारे में कुछ नहीं बताया. ऐसी बहुत सारी कंपनियां हैं जहां का मैनपावर 20-40 लोगों का होता है और ऐसे जगहों पर कर्मचारियों को बगैर किसी सुविधा के केवल एक तय राशि का हर महीने कैश में भुगतान कर दिया जाता है. ऐसे कर्मचारियों को न तो पीएफ की सुविधा मिलती है, न तो कंपनी की तरफ से मेडिकल सुविधा होती है, न तो किसी तरह की छुट्टियां दी जाती हैं, यहां तक की इन कंपनियों में...

आज देश के वित्तमंत्री अरूण जेटली ने 2016-17 के लिए बजट पेश कर दिया है. उन्होंने काफी कुछ नया दिखाने की कोशिश की जो लोगों को नहीं दिख पा रहा है. खैर इससे पहले भी हर साल और अन्य पार्टियों के शासनकाल में भी जिस तरह की बजटें पेश की गई हैं कुछ नया नहीं दिख पाया. कहीं कुछ घटाई जाती है तो कहीं कुछ बढ़ा दी जाती है. गरीबों को छोड़ ही दीजिए, कुल मिलाकर आम इंसान या यूं कहें कि मध्यम वर्गीय परिवारों को, या नौकरीपेशा लोगों को कभी कोई खासा फायदा नहीं मिल पाता है बल्कि उल्टे हर साल उनके ऊपर एक नया बोझ डाल ही दिया जाता है.

डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे सपनों को दिखाने वाली मोदी सरकार के इस बजट से लोगों को काफी अपेक्षाएं थीं जिसपर आज एक बार फिर से मिट्टी डालने का काम वित्तमंत्री जी ने कर दिया है. कुछ चीजें महंगी की गई हैं तो कहीं पर छूट भी बढ़ी है, फिर से कुछ चीजों पर टैक्स घटा है तो कुछ चीजों पर टैक्स बढ़ा दिया गया है. सब कुछ आम जैसी ही रही, खास कुछ भी नहीं दिखा.

एक खास बात है जो हम नौकरीपेशा लोगों को नजर आती हैं वह है किराये के मकान पर एचआरए में छूट की सीमा 24 हजार से बढ़ाकर 60 हजार कर दी गई है. दूसरा, यह कि पहली बार 50 लाख रुपये तक का मकान खरीदने पर 50 हजार रुपये की टैक्स में छूट मिलेगी. लेकिन तीसरा और सबसे अहम यह है कि नौकरी करने वाले नए कर्मचारियों को सरकार पहले तीन साल तक ईपीएफ का हिस्सा देगी.

जेटली जी इनके बारे में कब और कौन बात करेगा

वित्तमंत्री जी ने छोटे-मोटे उद्योगों और कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों को कैसे फायदा मिलेगा इसके बारे में कुछ नहीं बताया. ऐसी बहुत सारी कंपनियां हैं जहां का मैनपावर 20-40 लोगों का होता है और ऐसे जगहों पर कर्मचारियों को बगैर किसी सुविधा के केवल एक तय राशि का हर महीने कैश में भुगतान कर दिया जाता है. ऐसे कर्मचारियों को न तो पीएफ की सुविधा मिलती है, न तो कंपनी की तरफ से मेडिकल सुविधा होती है, न तो किसी तरह की छुट्टियां दी जाती हैं, यहां तक की इन कंपनियों में कर्मचारी किसी तरह के आपातकाल अवस्था में एक दिन की छुट्टी भी ले ले तो उसकी सैलरी तक काट ली जाती है.

आखिर जेटली जी के पीएफ योजना का लाभ ऐसे कर्मचारियों को कैसे मिलेगा. क्या ऐसे लोग नौकरीपेशा कर्मचारियों की श्रेणी में नहीं आते जिनके भविष्य का न तो काई ठौर है न ही ठिकाना. जब बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों को हानि का हवाला देकर कभी भी नौकरी से निकाल सकती हैं तो इन कर्मचारियों की क्या हालत होगी आप समझ सकते हैं.

सरकार को अगर जनता में अपने प्रति विश्वास जगाना है तो इस तरह की छिपी बातों पर भी ध्यान देना होगा. क्योंकि एक बड़ी संख्या छोटे उद्योगों-कंपनियों का इस देश में है. जहां कहा जा सकता है कि कर्मचारियों के साथ केवल शोषण ही होता है. ऐसे में सरकारें इन पर ध्यान नहीं देंगी तो आखिर कहां जाएं ये लोग. मजबूरी यह और भी है कि ऐसे लोग कंपनियों के खिलाफ कहीं विरोध दर्ज नहीं करा सकते. नौकरी से हटा दिए जाने का खतरा हमेशा बना रहता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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