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उद्धव ठाकरे के मोदी-शाह के खिलाफ अचानक तेज हुए तेवर किस बात का इशारा हैं?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 27 नवम्बर, 2020 09:20 PM
  • 27 नवम्बर, 2020 09:20 PM
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने सामना को दिये इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) को बात बात पर टारगेट किया है - और ऐसा लगता है जैसे अर्नब गोस्वामी जैसे और भी एक्शन प्लान तैयार हैं.

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को राजनीतिक विरासत में शिवसेना तो मिली ही, साथ में शानदार बोनस भी मिला - सामना. शिवसेना की स्थापना के साथ साथ बाल ठाकरे ने मराठी में सामना की भी शुरुआत की और अब तो वो हिंदी में भी है.

शिवसेना और सामना दोनों ही अपने अपन हिसाब से शानदार आइडिया हैं, लेकिन ये समझना ज्यादा मुश्किल होता है कि दोनों में बेहतरीन कौन है. दूसरे राजनीतिक दलों के मुखपत्रों से तुलना करें तो संघ और बीजेपी का पांचजन्य थोड़ा बहुत समझ में आता है, वरना बाकियों का तो नाम भी बहुतों को नहीं मालूम होगा. शायद उन राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को भी. सामना का एडिटोरियल शिवसेना की पॉलिटिकल लाइन होती है - और शिवसैनिक भले ही उपद्रव का रास्ता छोड़ चुके हों, लेकिन सामना के तेवर वैसे ही बरकरार हैं. मुख्यमंत्री बनने से पहले तक उद्धव ठाकरे ही सामना के संपादक हुआ करते थे, लेकिन बाद में जैसे लालू यादव ने राबड़ी देवी को कुर्सी सौंप दी थी, रश्मि ठाकरे के हिस्से में सामना के संपादक की कुर्सी आ गयी. संजय राउत पहले भी कार्यकारी संपादक रहे और अब भी हैं, हां, अब वो शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता जरूर हो गये हैं.

सामना में आक्रामक संपादकीय की परंपरा तो बरकरार है ही, एक नयी शुरुआत हुई है - शिवसेना नेता के साथ साथ दूसरे दलों के नेताओं के भी इंटरव्यू लेने की. शुरुआत तो एनसीपी नेता शरद पवार से हुई थी और मालूम हुआ कि अगली बारी महाराष्ट्र में बीजेपी और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की जिसके लिए छिपते छिपाते संजय राउत ने मुंबई के एक होटल में मुलाकात भी की थी. अपडेट ये है कि जब तक देवेंद्र फडणवीस टाइम नहीं देते, संजय राउत ने उद्धव ठाकरे का ही दोबारा इंटरव्यू कर लिया है - वैसे भी उद्धव ठाकरे के पास 'मन की बात' का एक मात्र जरिया सामना ही तो है. मन...

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को राजनीतिक विरासत में शिवसेना तो मिली ही, साथ में शानदार बोनस भी मिला - सामना. शिवसेना की स्थापना के साथ साथ बाल ठाकरे ने मराठी में सामना की भी शुरुआत की और अब तो वो हिंदी में भी है.

शिवसेना और सामना दोनों ही अपने अपन हिसाब से शानदार आइडिया हैं, लेकिन ये समझना ज्यादा मुश्किल होता है कि दोनों में बेहतरीन कौन है. दूसरे राजनीतिक दलों के मुखपत्रों से तुलना करें तो संघ और बीजेपी का पांचजन्य थोड़ा बहुत समझ में आता है, वरना बाकियों का तो नाम भी बहुतों को नहीं मालूम होगा. शायद उन राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को भी. सामना का एडिटोरियल शिवसेना की पॉलिटिकल लाइन होती है - और शिवसैनिक भले ही उपद्रव का रास्ता छोड़ चुके हों, लेकिन सामना के तेवर वैसे ही बरकरार हैं. मुख्यमंत्री बनने से पहले तक उद्धव ठाकरे ही सामना के संपादक हुआ करते थे, लेकिन बाद में जैसे लालू यादव ने राबड़ी देवी को कुर्सी सौंप दी थी, रश्मि ठाकरे के हिस्से में सामना के संपादक की कुर्सी आ गयी. संजय राउत पहले भी कार्यकारी संपादक रहे और अब भी हैं, हां, अब वो शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता जरूर हो गये हैं.

सामना में आक्रामक संपादकीय की परंपरा तो बरकरार है ही, एक नयी शुरुआत हुई है - शिवसेना नेता के साथ साथ दूसरे दलों के नेताओं के भी इंटरव्यू लेने की. शुरुआत तो एनसीपी नेता शरद पवार से हुई थी और मालूम हुआ कि अगली बारी महाराष्ट्र में बीजेपी और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की जिसके लिए छिपते छिपाते संजय राउत ने मुंबई के एक होटल में मुलाकात भी की थी. अपडेट ये है कि जब तक देवेंद्र फडणवीस टाइम नहीं देते, संजय राउत ने उद्धव ठाकरे का ही दोबारा इंटरव्यू कर लिया है - वैसे भी उद्धव ठाकरे के पास 'मन की बात' का एक मात्र जरिया सामना ही तो है. मन की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का मशहूर रेडियो कार्यक्रम है जिसमें वो देशवासियों से संवाद करते हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे ये काम सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ही करते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी तो अपने कार्यक्रम में अक्सर लोगों के नाम भी लिया करते हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे ऐसा कभी नहीं करते. नाम लिये बगैर जब किसी को निशाना बनाया जाता है तो भाव इतने प्रबल होते हैं कि शब्द मद्धम पड़न लगते हैं और उनके होने न या न होने का कोई फर्क समझ नहीं आता.

उद्धव ठाकरे के ज्यादातर हमलों में भाव पक्ष यूं ही प्रबल होते शब्दों की जरूरत नहीं रह जाती है - साफ साफ समझ में आता है कि जो भी भाव व्यक्त कर रहे हैं, उसमें संबोधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के लिए ही होता है.

उद्धव ठाकरे तो मोदी-शाह को मुंहतोड़ जवाब देने की चेतावनी देने लगे!

संजय राउत ने सामना में उद्धव ठाकरे का जो ताजातरीन इंटरव्यू लिया है, बिलकुल ऐसा ही है. तमाम बातों के बीच उद्धव ठाकरे ने बगैर नाम लिये ही एक बात कही है - 'मैं शांत हूं, संयमी हूं लेकिन इसका मतलब - मैं नामर्द नहीं हूं'!

अब सहज तौर पर ये सवाल उठता है कि आखिर उद्धव ठाकरे अचानक मोदी-शाह को अपनी मर्दानगी क्यों दिखाने लगे हैं? कहीं बिहार चुनाव के नतीजों में कोई छिपा मैसज तो नहीं मिला है, या - पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के साथ खड़े होने का जंग-ए-ऐलान है?

एक के बदले दस बदले की धमकी!

उद्धव ठाकरे ने जैसे सामना के पिछले इंटरव्यू में मोदी-शाह को अपनी 'तिपहिया' सरकार गिराने के लिए चैलेंज किया था, नये साक्षात्कार में भी वैसी ही बातों पर जोर है, लेकिन कई बातें जवाबी हमले जैसी लगती हैं.

पहले और दूसरे इंटरव्यू के बीच में दो महत्वपूर्ण घटनाएं भी हुई हैं. एक एक्टर कंगना रनौत एपिसोड और दूसरी घटना है - टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मुंबई पुलिस का एक्शन. कंगना रनौत और अर्नब गोस्वामी अलग अलग फील्ड से जरूर हैं लेकिन कई बातें कॉमन भी नजर आती हैं. शिवसेना और बीजेपी की राजनैतिक लड़ाई में दोनों ही एक तरफ हो जाते हैं - और दोनों ही इस जंग में मोहरे भी बन जाते हैं.

कंगना रनौत के तू-तड़ाक वाले विस्फोटक वीडियो मैसेज के बाद उद्धव ठाकरे ने संयम की बात की थी, 'राजनीति पर जवाब देने के लिए मुझे मुख्यमंत्री का मुखौटा उतारना होगा. मैं नहीं बोल रहा इसका ये मतलब नहीं कि मेरे पास जवाब नहीं है.'

लेकिन जवाब दिया शिवसेना की दशहरा रैली के मौके पर, बीजेपी और मोदी-शाह को एक साथ लपेटते हुए, 'आप बिहार में मुफ्त वैक्सीन देने की बात कर रहे हैं - क्या बाकी का देश पाकिस्तान या बांग्लादेश है? जो इस तरह की बात कर रहे हैं उन्हें शर्म आनी चाहिए... आप केंद्र की सत्ता में हैं.' दरअसल, बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव के मैनिफेस्टो में चुनाव जीतने पर फ्री कोरोना वैक्सीन देने की बात कही थी और उद्धव ठाकरने ने उसके साथ ही अपने हमले में कंगना रनौत के मुंबई को PoK बताये जाने की बातें भी पिरो दी थी.

वैसे अब तो कंगना रनौत के दफ्तर का एक हिस्सा गिराये जाने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला भी आ गया है और उससे कंगना रनौत काफी खुश भी हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाली हिल इलाके में कंगना रनौत के बंगले का हिस्सा तोड़ने के बीएमसी के आदेश को रद्द कर दिया है. अदालत ने माना है कि बीएमसी का एक्शन दुर्भावना से प्रेरित और एक्टर को नुकसान पहुंचाने के मकसद से की गई थी. दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने साथ ही कहा कि वो नागरिकों के खिलाफ सरकारी संस्थाओं के ताकत इस्तेमाल करने को भी सही नहीं समझते.

सुप्रीम कोर्ट की भी टिप्पणी अर्नब गोस्वामी के केस में ऐसी ही रही. भले ही अर्नब गोस्वामी को मुंबई पुलिस ने एक आर्किटेक्ट को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा था, लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत ने उसमें अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला माना. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी तो महाराष्ट्र के मामले में थी, लेकिन लगा जैसे अदालत की उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की सरकारों को भी मैसेज देने की कोशिश हो.

उद्धव ठाकरे अपने लेटेस्ट इंटरव्यू में कहते हैं, 'महाराष्ट्र ने मरी हुई मां का दूध नहीं पिया है... बाघ की संतान हैं... कोई भी महाराष्ट्र के आड़े आएगा या फिर दबाने की कोशिश करेगा तो क्या होगा, इतिहास में उदाहरण है. आपके पास प्रतिशोध चक्र है, हमारे पास सुदर्शन चक्र है. हम पीछे लगा सकते हैं.'

उद्धव ठाकरे का ये बयान अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मुंबई पुलिस के एक्शन और सुशांत सिंह राजपूत केस की तरफ सहज तौर पर ध्यान खींचता है. महाराष्ट्र में सीबीआई जांच को लेकर बीजेपी और शिवसेना में टकराव रहा है. केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ने जब बिहार के रास्ते सुशांत सिंह केस में नीतीश सरकार की सीबीआई जांच की सिफारिश मंजूर कर ली तो उद्धव ठाकरे सरकार के सभी लोगों को बहुत बुरा लगा था. जैसे ही टीआरपी को लेकर यही तरीका यूपी के रास्ते अख्तियार किया गया, महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई जांच के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी कर दी.

केंद्र की मोदी सरकार पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए उद्धव ठाकरे कहते हैं, 'सीबीआई का दुरुपयोग होने लगे तब ऐसी नकेल लगानी ही पड़ती है... हम नाम देते हैं... हमारे पास नाम हैं... माल-मसाला तैयार है... पूरी तरह से तैयार है लेकिन बदले की भावना रखनी है क्या? फिर जनता हमसे क्या अपेक्षा रखेगी - बदले की भावना से ही काम करना है तो तुम एक बदला लो हम दस लेंगे.'

संजय राउत के सवालों के जवाब में उद्धव ठाकरे कहते हैं, 'मैं उनकी तरफ करुणा भरी नजर से देखता हूं - क्योंकि जिन्हें लाश पर रखे मक्खन बेचने की जरूरत पड़ती है, वे राजनीति करने के लायक नहीं हैं.'

उद्धव ठाकरे नाम तो नहीं लेते, लेकिन निशाना नहीं चूकते, कहते हैं - 'जिसे हम मर्द कहते हैं वो मर्द की तरह लड़ता है... दुर्भाग्य से एक जान चली गई, उस गई हुई जान पर आप राजनीति करते हो? उस पर अलाव जलाकर आप अपनी रोटियां सेंकते हो - ये आपकी औकात है!'

"मी नामर्द नाही"

उद्धव ठाकरे ने सामना से बातचीत में मराठी में कहा है, 'मी शांत आहे, संयमी आहे. पण याचा अर्थ मी काही नामर्द नाही.' मतलब, उद्धव ठाकरे ने कहा है, 'मैं शांत हूं, संयमी हूं लेकिन इसका मतलब मैं नामर्द नहीं हूं - और इस प्रकार से हमारे लोगों के परिवार वालों पर हमले शुरू हैं... ये तरीका महाराष्ट्र का नहीं है... बिल्कुल नहीं है...'

उद्धव ठाकरे की ये गुमनाम धमकी काफी खतरनाक लगती है, 'हम पर हमला करनेवाले जिस-जिस का परिवार और बच्चे हैं उन्हें मैं कहना चाहता हूं कि आप का भी परिवार है और बच्चे हैं... आप दूध के धुले नहीं हो - आपकी खिचड़ी कैसे बनानी है ये हम बनाएंगे.'

तो क्या समझा जाये अर्नब गोस्वामी जैसे पुलिस एक्शन और भी होंगे? NCB के एक्शन के बदले मिलते जुलते और भी एक्शन होंगे?

क्या अब कंगना रनौत को भी अर्नब गोस्वामी जैसे एक्शन के लिए तैयार रहना चाहिये?

अब तक जो राजनीति सुशांत सिंह राजपूत को लेकर चल हो रही थी - क्या अब ठीक वैसी ही राजनीति रिया चक्रवर्ती को लेकर भी शुरू हो सकती है?

क्या मान कर चला जाये कि सुशांत सिंह राजपूत तो बिहार चुनाव में मुद्दा नहीं बने, लेकिन रिया चक्रवर्ती अगले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मुद्दा बन सकती हैं?

ये तो उद्धव ठाकरे का ही सवाल था कि पहले तय हो कि मिल कर लड़ना है या अलग अलग धक्के खाने हैं? ममता बनर्जी और सोनिया गांधी ने उद्धव ठाकरे की इस पहल को एनडोर्स भी किया था और इसका नमूना हाथरस गैंग रेप को लेकर हुए राजनीतिक बवाल में देखने को भी मिला था.

क्या उद्धव ठाकरे के ये तेवर पश्चिम बंगाल चुनाव का मौका देख कर और ममता बनर्जी के सपोर्ट में दिखायी दे रहा है - और आगे चल कर ये और भी विस्फोटक रूप ले सकता है?

बिहार में तो हल्का-फुल्का ही रहा, लेकिन पश्चिम बंगाल में तो साफ साफ दिखायी देता है कि राष्ट्रवाद के साथ बीजेपी हिंदुत्व का मुद्दा भी जोर शोर से उठाएगी. लव जिहाद को लेकर हालिया बेचैनी और बीजेपी शासित राज्यों में एक्शन भी यही इशारा कर रहा है.

उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू भी भला हिंदुत्व पर सवाल जवाब के पूरा कैसे माना जा सकता है! महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने लव जिहाद पर शिवसेना के रुख में बदलाव पर हैरानी जतायी है. दरअसल, शिवसेना की तरफ से संजय राउत ने कहा है कि पहले बाकी राज्य सरकारें कानून बनायें, फिर उनका अध्ययन करने के बाद महाराष्ट्र में विचार किया जाएगा. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री असलम शेख ने तो यहां तक कह दिया है कि सरकार अच्छे से काम कर रही है, इसलिए हमें इस तरह की स्कीमें लाने की जरूरत नहीं है.

अब जरा उद्धव ठाकरे के विचार भी जान लेते हैं. उद्धव ठाकरे पूछ रहे हैं कि राजनीति में भी लव जिहाद का कॉन्सेप्ट लागू क्यों नहीं होना चाहिए?

बीजेपी नेतृत्व को निशाना बनाते हुए उद्धव ठाकरे कहते हैं, 'वे हिंदू लड़की से मुस्लिम लड़के की शादी का विरोध करते हैं... तो आपने महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन क्यों किया? नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और ऐसी अलग अलग राजनीतिक विचारधारा वाली पार्टियों के साथ आपने गठबंधन किया है - क्या यह लव जिहाद नहीं है?'

हिंदुत्व को लेकर शिवसेना के स्टैंड में बदलाव के आरोपों पर भी उद्धव ठाकरे ने खुल कर बोला है - 'हिंदुत्व कोई धोती नहीं जो बदल ली जाये. ये हमारे खून और नसों में है... मैं अपने पिता और दादा के हिंदुत्व में यकीन रखता हूं. बाल ठाकरे कहते थे कि मुझे मंदिर में घंटा बजानेवाला हिंदू नहीं चाहिये… मुझे आतंकियों को खदेड़नेवाला हिंदू चाहिये. हिंदुत्व मतलब सिर्फ पूजा-अर्चना करना और घंटा बजाना है क्या - इससे कोरोना नहीं जाता और ये सिद्ध हो गया है.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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