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उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने आदित्य ठाकरे की बात को बचकाना बना दिया

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 12 सितम्बर, 2020 07:25 PM
  • 12 सितम्बर, 2020 07:25 PM
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की शिवसेना (Shiv Sena) या तो पूरी तरह कन्फ्यूज है या फिर शराफत का चोला ओढ़े हुए है. कंगना रनौत (Kangana Ranaut) और एक पूर्व नौसैनिक अधिकारी के साथ हुई घटनाओं में शिवसेना के दो चेहरे देखने को मिले हैं - असली कौन है और नकली कौन?

कंगना रनौत (Kangana Ranaut) के मामले में तो उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की शिवसेना (Shiv Sena) को लेकर आदित्य ठाकरे का दावा काफी हद तक सही लग रहा था, लेकिन पूर्व नौसेना अफसर मदन शर्मा पर हमले के बाद तो सीधे सीधे सवाल खड़े हो जाते हैं. आदित्य ठाकरे का कहना रहा है कि आज की शिवसेना में हिंसा की कोई जगह नहीं है. मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की हरकतों को देख कर तो यही लगता रहा कि बाल ठाकरे की शिवसेना के हमलावर तेवर की विरासत राज ठाकरे को मिली हुई है - और नरम दल के रूप में उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को अलग पहचान दिलायी है. हाल की घटनाओं से ये परदा भी धीरे धीरे हटता जा रहा है.

सुशांत सिंह राजपूत केस में बीजेपी के राजनीतिक दांवपेच में उलझी शिवसेना का नेतृत्व उबरने की कोशिश में सियासत के मुन्नाभाई जैसी तरकीबें अपनाने लगा है. ऐसा लगता है जैसे उद्धव ठाकरे की शिवसेना मुन्नाभाई वाले अंदाज में ही 'विनम्र' बनने की कोशिश कर रही है - जो कुछ और नहीं बल्कि एक मुखौटा भर है. शिवसेना सुविधा के अनुसार 'विनम्र' बनने की कोशिश करती है, लेकिन राजनीतिक मजबूरी न होने पर अपने पुराने रंग में सड़क पर निकल पड़ती है - पूर्व नौसेना अधिकारी मदन शर्मा पर हुआ हमला इसका जीता जागता उदाहरण है.

उद्धव बनाम बाल ठाकरे की शिवसेना

एक हफ्ते के भीतर ही शिवसेना को दो अलग अलग चेहरे देखने को मिले हैं. शिवसेना का एक चेहरा वो है जो उद्धव ठाकरे पर कंगना रनौत के आक्रामक हमले को भी इग्नोर कर रहा है - और दूसरा चेहरा वो है जो रिटायर्ड नेवी अफसर मदन शर्मा पर एक कार्टून शेयर कर देने के लिए धावा बोल देता है.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्विटर पर घायल अफसर की तस्वीर शेयर की है. देवेंद्र फडणवीस विधानसभा चुनाव को लेकर बिहार दौरे पर हैं. देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से इस गुंडाराज को रोकने की अपील की है.

कंगना रनौत (Kangana Ranaut) के मामले में तो उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की शिवसेना (Shiv Sena) को लेकर आदित्य ठाकरे का दावा काफी हद तक सही लग रहा था, लेकिन पूर्व नौसेना अफसर मदन शर्मा पर हमले के बाद तो सीधे सीधे सवाल खड़े हो जाते हैं. आदित्य ठाकरे का कहना रहा है कि आज की शिवसेना में हिंसा की कोई जगह नहीं है. मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की हरकतों को देख कर तो यही लगता रहा कि बाल ठाकरे की शिवसेना के हमलावर तेवर की विरासत राज ठाकरे को मिली हुई है - और नरम दल के रूप में उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को अलग पहचान दिलायी है. हाल की घटनाओं से ये परदा भी धीरे धीरे हटता जा रहा है.

सुशांत सिंह राजपूत केस में बीजेपी के राजनीतिक दांवपेच में उलझी शिवसेना का नेतृत्व उबरने की कोशिश में सियासत के मुन्नाभाई जैसी तरकीबें अपनाने लगा है. ऐसा लगता है जैसे उद्धव ठाकरे की शिवसेना मुन्नाभाई वाले अंदाज में ही 'विनम्र' बनने की कोशिश कर रही है - जो कुछ और नहीं बल्कि एक मुखौटा भर है. शिवसेना सुविधा के अनुसार 'विनम्र' बनने की कोशिश करती है, लेकिन राजनीतिक मजबूरी न होने पर अपने पुराने रंग में सड़क पर निकल पड़ती है - पूर्व नौसेना अधिकारी मदन शर्मा पर हुआ हमला इसका जीता जागता उदाहरण है.

उद्धव बनाम बाल ठाकरे की शिवसेना

एक हफ्ते के भीतर ही शिवसेना को दो अलग अलग चेहरे देखने को मिले हैं. शिवसेना का एक चेहरा वो है जो उद्धव ठाकरे पर कंगना रनौत के आक्रामक हमले को भी इग्नोर कर रहा है - और दूसरा चेहरा वो है जो रिटायर्ड नेवी अफसर मदन शर्मा पर एक कार्टून शेयर कर देने के लिए धावा बोल देता है.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्विटर पर घायल अफसर की तस्वीर शेयर की है. देवेंद्र फडणवीस विधानसभा चुनाव को लेकर बिहार दौरे पर हैं. देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से इस गुंडाराज को रोकने की अपील की है.

हमले को लेकर मुंबई पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार भी किया था, लेकिन सभी को जमानत भी मिल गयी. बताते हैं कि कोरोना महामारी की गाइडलाइन को देखते हुए जमानत दी गयी है. ये जमानत 5 हजार रुपये के निजी मुचलके पर मिली है, ये न तो बीजेपी और न ही अफसर के घरवालों को मंजूर है.

उद्धव ठाकरे की शिवसेना कन्फ्यूज क्यों लग रही है?

मुंबई में एडिशनल सीपीस के दफ्तर के बाहर बीजेपी कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे हैं और उसमें शिवसैनिकों के हमले में घायल अफसर की बेटी भी शामिल हैं. ये लोग अफसर पर हमले के सभी आरोपियों को फिर से गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं.

पुरानी आदतें बड़ी मुश्किल से जाती हैं. शिवसेना की तरफ से कंगना रनौत के मामले में विनम्र बनने की जो कोशिश की जा रही है और वो महज दिखावा ही लगता है. एक बार ये सीन ध्यान से देखिये. आसानी से समझ में आ जाएगा कि कैसे शिवसैनिक एक ही वक्त दो मामलों में अलग अलग व्यहवार कितनी आसानी से कर लेते हैं. शर्त सिर्फ मकसद का है, जो अलग होना चाहिये.

अब तो कंगना रनौत के मामले में भी लगता है शिवसेना ने विनम्रता का मुखौटा लगा रखा है. भले ही शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत कह रहे हों कि शिवसेना के लिए कंगना रनौत एपिसोड खत्म हो चुका है, लेकिन पार्टी मुखपत्र सामना का संपादकीय तो कुछ और ही संकेत दे रहा है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट से भी मालूम होता है कि अभी तो कंगना रनौत के दफ्तर में सिर्फ तोड़ फोड़ हुई है, आने वाले दिनों में बीएमसी के जरिये पूरा घर ही गिराने के उपाय खोजे जा रहे हैं. हालांकि, 22 सितंबर को केस की बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद ही कुछ ऐसा वैसा हो सकता है क्योंकि तब तक तो स्टे ऑर्डर है.

दिलचस्प बात तो ये है कि कंगना रनौत भी बाला साहेब ठाकरे को ही अपना आदर्श बता रही हैं, जाहिर है बाल ठाकरे वाली शिवसेना भी उनकी पसंदीदा रही होगी. फिर तो बाबरी वो शायद बीएमसी के लिए कही होंगी. शरद पवार ने भी यही कहा है कि कंगना रनौत के दफ्तर पर हुई कार्रवाई का महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार से कोई वास्ता नहीं है, वो तो सिर्फ कॉर्पोरेशन यानी बीएमसी का मामला है. संजय राउत भी कह चुके हैं कि अदालत में भी बीएमसी ही अपना केस लड़ेगी और जवाब देगी कि कंगना रनौत के दफ्तर पर किस वजह से एक्शन लिया गया.

कंगना को भी शिवसेना की धमकी मिल चुकी है

कंगना रनौत को लेकर संजय राउत के बयान और सामना के संपादकीय में काफी विरोधाभास नजर आता है. सामना के संपादकीय से तो ऐसा लगता है जैसे शिवसेना बीएमसी के एक्शन को लेकर चौतरफा घिर जाने के कारण खामोशी अख्तियार कर ली हो और सही मौके का इंतजार हो रहा हो. संपादकीय से तो ऐसा लग रहा है कि कंगना रनौत को साफ साफ धमकी भी दी जा रही है.

सामना के जरिये शिवसेना की तरह से कंगना रनौत को नसीहत देने की कोशिश की जा रही है कि जल में रह कर मगरमच्छ से बैर नहीं रखते. मतलब, तो यही हुआ कि कंगना रनौत मुंबई में शिवसेना से दुश्मनी मोल कर चैन से नहीं रह सकतीं. यानी कंगना रनौत को समझ लेना चाहिये कि जो कुछ भी कंगना रनौत ने बोला है या अब भी बोल रही हैं शिवसेना हर बात का पूरा हिसाब रख रही है और भविष्य में ये सब कंगना रनौत के लिए ये सब मुश्किलें भी खड़ी कर सकती हैं.

कंगना रनौत ने बाला साहेब ठाकरे का एक वीडियो भी शेयर किया था और समझाने की कोशिश की थी कि वो कितनी बड़ी उनकी फैन रही हैं. कंगना रनौत ने ये भी बताने की कोशिश की थी कि कैसे उनके परिवार के नाकाबिल लोग ही उनकी विरासत को मटियामेट कर रहे हैं. कंगना चाहे जो भी समझाने की कोशिश कर रही हों, लेकिन ये तो लगता है जैसे गलती का एहसास उनको भी हो रहा है. उद्धव ठाकरे के खिलाफ अपने वीडियो मैसेज के बाद बाल ठाकरे का वीडियो शेयर कर कंगना रनौत ने चीजों को बैलेंस करने की कोशिश की है.

सामना में बाल ठाकरे के सहारे ही कंगना रनौत को संदेश देने की भी कोशिश की गयी है, 'स्वाभिमान और त्याग मुंबई के तेजस्वी अलंकार हैं. औरंगजेब की कब्र संभाजीनगर में और प्रतापगढ़ में अफजल खान की क्रब सम्मानपूर्वक बनाने वाला ये विशाल ह्रदय वाला महाराष्ट्र है... महाराष्ट्र के हाथ में छत्रपति शिवाजी महाराज ने भवानी तलवार दी... बालासाहेब ठाकरे ने दूसरे हाथ में स्वाभिमान की चिंगारी रखी - अगर किसी को ऐसा लग रहा हो कि उस चिंगारी पर राख जम गई है तो एक बार फूंक मार कर देख ले!'

सामना के संपादकीय में लेख का शीर्षक है - 'विवाद माफियाओं का पेटदर्द'. लेख में किसी का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन इशारों इशारों में ही कंगना रनौत के साथ साथ आरपीआई नेता रामदास अठावले को टारगेट किया गया है.

सामना में लिखा है - मुंबई PoK नहीं है और ये विवाद जिसने पैदा किया उन्हें ही मुबारक हो. मुंबई के हिस्से में अक्सर ऐसे विवाद आते हैं और विवाद माफिया की फिक्र किये बगैर मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित है - सवाल सिर्फ ये भर है कि कौरव जब द्रौपदी का चीरहरण कर रहे थे, उस वक्त पांडव अपना सिर झुकाये बैठे थे. एक बार फिर वैसा ही सीन देखने को मिला जब मुंबई का चीरहरण हो रहा था.

साथ ही, कंगना के लिए साफ तौर पर धमकी भी मिल चुकी है - 'पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता या खुद कांच के घर में रहकर दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंके जाते. ऐसा करने वालों को मुंबई और महाराष्ट्र का श्राप लगा... मुंबई को कम करके आंकने का मतलब खुद के लिए गड्ढा खोदने जैसा है.'

कंगना के साथ साथ निशाने पर रामदास अठावले भी लगते हैं - जिनका डॉक्टर अंबेडकर के विचारों से कौड़ी भर का भी लेना-देना नहीं है, ऐसे दिखावटी अंबेडकरवादी एयरपोर्ट पर महाराष्ट्र विरोधियों का स्वागत करने के लिए नीले रंग का झंडा लेकर हंगामा करते हैं. ये तो अंबेडकर का सबसे बड़ा अपमान है.

रामदास अठावले बीएमसी के एक्शन के बाद कंगना रनौत से भी मिलने गये थे और उसके बाद शिकायत लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास भी - मुआवजा दिलाने के लिए. कंगना रनौत कह चुकी हैं कि दफ्तर की फिर से मरम्मत के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं.

ये भी ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात है कि कंगना रनौत से मुंबई में मिलने बीजेपी का कोई नेता नहीं गया है. ये जिम्मा रामदास अठावले ने खुद उठाया है या एनडीए में बीजेपी का सहयोगी होने के नाते सौंपा गया है.

इन्हें भी पढ़ें :

कंगना रनौत प्रकरण बाल ठाकरे के विष बीज का ही तो फल है!

शाबाश शिवसेना, तुमने साबित कर दिया कि कंगना रनौत सही है!

उद्धव ठाकरे के सामने कंगना रनौत से विवाद न टाल पाने की क्या मजबूरी थी?



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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