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शिवसेना को दोबारा गरम दल बनाना उद्धव ठाकरे की मजबूरी है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 05 सितम्बर, 2020 05:03 PM
  • 05 सितम्बर, 2020 05:02 PM
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शिवसेना (Shiv Sena) को उपद्रवी छवि से निकालकर उदार बनाने का क्रेडिट उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को हासिल है. लेकिन, कंगना रनौत (Kangana Ranaut) और संजय राउत की बहस का मराठी मानुष तक धमकी भरे लहजे में पहुंचना, कहीं शिवसेना के पुराने तेवर में लौटने का संकेत तो नहीं?

महाराष्ट्र की राजनीति में पहला बदलाव तो उसी दिन दर्ज हो गया जिस दिन उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. बीजेपी के साथ शिवसेना (Shiv Sena) का गठबंधन तोड़ने के बाद उद्धव ठाकरे का एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर महाविकास आघाड़ी की राह पकड़ना आसान नहीं था, लेकिन ये एक जिद थी और वो उस पर कायम रहे.

बदलाव का दूसरा दौर सुशांत सिंह राजपूत केस के राजनीतिक रंग लेने के साथ शुरू हुआ जिसे लेकर बॉलीवुड एक्टर कंगना रनौत ने जोर शोर से सवाल उठाया - और बहस बढ़ती हुई बिहार तक जा पहुंची और चुनावी माहौल के बीच से होते हुए सीबीआई जांच तक मामला पहुंच गया, जिसे सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी भी मिल गयी. सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी ही महाराष्ट्र सरकार और पुलिस के लिए शिकस्त के तौर पर देखी गयी.

तभी कंगना रनौत (Kangana Ranaut) ने ऐसा ट्वीट कर दिया जैसे धधकती आग में घी डाल दिया हो - 'माफियाओं से ज्यादा मुंबई पुलिस से डर लगता है.'

कंगना रनौत की टिप्पणी पर शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के रिएक्शन के बाद मामला बढ़ता गया और बहस मराठी मानुष तक जा पहुंची है. मराठी मानुष को लेकर संजय राउत ने ऐसे रिएक्ट किया है जैसे लग रहा हो उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपनी नरम और उदार छवि से यू-टर्न लेने लगी है - क्या महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नाजुक मोड़ आ चुका है?

शिवसेना यू-टर्न लेनेवाली है क्या?

2019 के आम चुनाव के वक्त आदित्य ठाकरे अजमेर शरीफ दरगाह गये थे. शिवसेना सेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के पोते आदित्य ठाकरे ने ऐसा इसलिए किया था ताकि शिवसेना को उनके भी वोट मिल सकें जो उसकी कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीतिक छवि के चलते वोट देने से परहेज करते रहे. आदित्य ठाकरे उद्धव ठाकरे के साथ अयोध्या भी गये और चुनाव के बाद सांसदों को लेकर भी. बीजेपी से अलग होने के बाद शिवसेना कट्टर हिंदुत्व छवि और सेक्युलर मिजाज के बीच जूझती देखी जा सकती है.

एक इंटरव्यू में भी आदित्य ठाकरे ने कहा था कि आज की शिवसेना में हिंसा की कोई जगह नहीं है. ये...

महाराष्ट्र की राजनीति में पहला बदलाव तो उसी दिन दर्ज हो गया जिस दिन उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. बीजेपी के साथ शिवसेना (Shiv Sena) का गठबंधन तोड़ने के बाद उद्धव ठाकरे का एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर महाविकास आघाड़ी की राह पकड़ना आसान नहीं था, लेकिन ये एक जिद थी और वो उस पर कायम रहे.

बदलाव का दूसरा दौर सुशांत सिंह राजपूत केस के राजनीतिक रंग लेने के साथ शुरू हुआ जिसे लेकर बॉलीवुड एक्टर कंगना रनौत ने जोर शोर से सवाल उठाया - और बहस बढ़ती हुई बिहार तक जा पहुंची और चुनावी माहौल के बीच से होते हुए सीबीआई जांच तक मामला पहुंच गया, जिसे सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी भी मिल गयी. सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी ही महाराष्ट्र सरकार और पुलिस के लिए शिकस्त के तौर पर देखी गयी.

तभी कंगना रनौत (Kangana Ranaut) ने ऐसा ट्वीट कर दिया जैसे धधकती आग में घी डाल दिया हो - 'माफियाओं से ज्यादा मुंबई पुलिस से डर लगता है.'

कंगना रनौत की टिप्पणी पर शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के रिएक्शन के बाद मामला बढ़ता गया और बहस मराठी मानुष तक जा पहुंची है. मराठी मानुष को लेकर संजय राउत ने ऐसे रिएक्ट किया है जैसे लग रहा हो उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपनी नरम और उदार छवि से यू-टर्न लेने लगी है - क्या महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नाजुक मोड़ आ चुका है?

शिवसेना यू-टर्न लेनेवाली है क्या?

2019 के आम चुनाव के वक्त आदित्य ठाकरे अजमेर शरीफ दरगाह गये थे. शिवसेना सेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के पोते आदित्य ठाकरे ने ऐसा इसलिए किया था ताकि शिवसेना को उनके भी वोट मिल सकें जो उसकी कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीतिक छवि के चलते वोट देने से परहेज करते रहे. आदित्य ठाकरे उद्धव ठाकरे के साथ अयोध्या भी गये और चुनाव के बाद सांसदों को लेकर भी. बीजेपी से अलग होने के बाद शिवसेना कट्टर हिंदुत्व छवि और सेक्युलर मिजाज के बीच जूझती देखी जा सकती है.

एक इंटरव्यू में भी आदित्य ठाकरे ने कहा था कि आज की शिवसेना में हिंसा की कोई जगह नहीं है. ये देखने को भी मिला है कि उद्धव ठाकरे के कामकाज संभालने के बाद से शिवसेना के हिंसग प्रदर्शनों में काफी कमी आती गयी. वरना, क्रिकेट मैदान की पिच खोदने से लेकर विरोध करते करते मुंह पर कालिख पोतने तक शिवसैनिकों के ऐतिहासिक कारनामे तो जगजाहिर रहे हैं. लोक सभा के स्पीकर रहे शिवसेना नेता मनोहर जोशी ने एक बार उद्धव ठाकरे के बारे में कहा था - ये उदार तानाशाह की शैली है... यही बालासाहब का अंदाज था और उद्धव ने भी वैसी ही शैली को अपनाया है. बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने की तनातनी के दौर में उद्धव ठाकरे ने ही कहा था कि शिवसेना किसी के खिलाफ प्रतिशोध नहीं रखती, लेकिन ये चेतावनी भी दे डाली थी कि अगर कोई उनके रास्ते में आता है तो वे उसे हटा देंगे.

ध्यान देने वाली बात ये है कि उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को उदार बनाने की कोशिश की और काफी हद तक सफल भी रहे, लेकिन लगता है वो जड़ों की ओर लौटने लगी है - शायद ये अब उनकी राजनीतिक मजबूरी बनती जा रही है. बीजेपी नेताओं का सुशांत सिंह राजपूत केस में आक्रामक होना, नितेश राणे का आदित्य ठाकरे को लगातार निशाना बनाना - धीरे धीरे उद्धव ठाकरे के लिए सिरदर्द बढ़ाता जा रहा है.

कंगना रनौत और संजय राउत की बहस उद्धव ठाकरे की शिवसेना के यू-टर्न लेने का संकेत है

राजनीति में कमजोर पड़ने पर साथियों का सपोर्ट भी डगमगाने लगता है. सीबीआई जांच के मामले में एनसीपी नेता शरद पवार जरूर उद्धव ठाकरे के साथ देखे गये हैं, लेकिन उनके वर्क फ्रॉम होम पर टिप्पणी जरूर करते हैं - और फील्ड में भी काफी एक्टिव नजर आने लगे हैं. जाहिर है ये सब उद्धव ठाकरे को कचोटता ही होगा.

महाराष्ट्र में मराठी बनाम बाहरी विवाद के शुरू होने को इसी राजनीतिक उठापटक के नतीजे के तौर पर देखा जा सकता है. बीजेपी से भिड़ने में उद्धव ठाकरे के लिए मराठी अस्मिता ही सबसे कारगर हथियार साबित हो सकता है - क्योंकि ये ऐसा मुद्दा है जिस पर एनसीपी ही नहीं, महाराष्ट्र कांग्रेस को भी साथ खड़े रहना पड़ेगा.

कंगना रनौत के हमलों के पलटवार स्वरूप संजय राउत का मराठी मानुष के बाप की याद दिलाना संकेत तो यही दे रहा है कि शिवसेना धीरे धीरे गुजरे जमाने की तरह हिंसक शक्ल अख्तियार करने जा रही है.

किसके बाप की मुंबई?

कंगना रनौत की मुंबई पुलिस को लेकर डर की बात करने पर संजय राउत ने ट्विटर पर लिखा दिया कि अगर उनको मुंबई में डर लगता है तो वापस नहीं आना चाहिये. संजय राउत की इस टिप्पणी पर कंगना रनौत भड़क गयीं और कहने लगीं - शिवसेना नेता संजय राउत ने मुझे खुली धमकी दी है और कहा है कि मैं मुंबई वापस ना आऊं. पहले मुंबई की सड़कों में आजादी के नारे लगे और अब खुली धमकी मिल रही है. ये मुंबई PoK की तरह क्यों लग रही है?

फिर संजय राउत ने बोल दिया, 'वो जिस थाली में खा रही हैं, उसी में थूक रही हैं. कुछ राजनीतिक दल उनका समर्थन कर रहे हैं. अगर वो PoK जाना चाहती हैं तो दो दिन के लिए चली जायें. हम ही पैसा दे देंगे... एक बार देख लें PoK क्या है? वहां कैसा है?'

मुंबई पुलिस पर कंगना रनौत कि टिप्पणी एनसीपी नेता अनिल देशमुख को भी बुरी लगी. महाराष्ट्र सरकार में गृह मंत्री अनिल देशमुख बोले कि मुंबई पुलिस की तुलना स्कॉटलैंड यार्ड से की जाती है... कंगना को मुंबई और महाराष्ट्र में रहने का कोई अधिकार नहीं है - कंगना के खिलाफ कठोर एक्शन लिया जाएगा.

कंगना रनौत का रिएक्शन भी फौरन हाजिर था. अनिल देशमुख को जवाब देते हुए कंगना रनौत ने ट्वीट किया - 'वो मेरे लोकतांत्रिक अधिकारों पर खुद फैसले ले रहे हैं. अब आप एक दिन में PoK से तालिबान हो गये.'

कंगना रनौत उतने पर ही नहीं रुकीं और ट्विटर पर ही नयी जंग का ऐलान कर दिया - मैं देख रही हूं कई लोग मुझे मुंबई वापस न आने की धमकी दे रहे हैं, इसलिए मैंने तय किया है कि 9 सितंबर को मुंबई आऊंगी. मैं मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचकर टाइम पोस्ट करूंगी, किसी के बाप में हिम्मत है तो रोक ले.

कंगना रनौत के इस बयान पर संजय राउत आपे से बाहर हो गये और काफी सख्त लहजे में ट्वीट किया - "मुंबई मराठी मानुष के बाप की है. जिनको ये मंजूर नहीं, वो अपना बाप दिखायें. शिवसेना महाराष्ट्र के दुश्मनों का श्राद्ध किए बगैर नहीं रहेगी. प्रॉमिस."

ट्वीट के अंत में संजय राउत के प्रॉमिस लिखने के बाद कंगना रनौत का भी रिएक्शन आ गया है - और लगता है ये सिलसिला अभी थमने वाला नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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