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Uddhav Thackeray को नीतीश कुमार बनाने की कवायद BJP में शुरू

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 06 मार्च, 2020 05:12 PM
  • 06 मार्च, 2020 05:12 PM
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की घर वापसी की तैयारी बीजेपी में शुरू हो चुकी है. बीजेपी नेता उद्धव ठाकरे पर भी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जैसा चारा फेंक रहे हैं - लेकिन क्या मोदी-शाह (Narendra Modi and Amit Shah) को उद्धव ठाकरे की शर्तें मंजूर होंगी?

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की अगुवाई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार अपने 100 दिन पूरे करने जा रही है. 7 मार्च को सरकार के 100 दिन का जश्न अयोध्या में मनाया जाना है - और तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए शिवसेना सांसद संजय राउत निकल पड़े हैं. संजय राउत ने तैयारियों की बाबत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में मुलाकात भी की है.

उद्धव ठाकरे का ऐसा अयोध्या दौरा पहली बार तो नहीं हो रहा है, लेकिन कांग्रेस और NCP के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद इसकी अहमियत काफी बढ़ जाती है. सरकार बनाने से पहले जब महाविकास आघाड़ी के लिए नियम और शर्तें तैयार हो रही थीं तो पाया गया कि उद्धव ठाकरे को कई तरह के समझौते करने पड़े थे - और उसके बाद से वो हमेशा इस बात के लिए सजग रहते हैं कि कहीं उन पर हिंदुत्व की राजनीति से पीछे हटने की तोहमत न लग जाये. ऐसे में उद्धव ठाकरे को कदम कदम पर गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ रिश्ता बनाये रखने के लिए जूझना भी पड़ता रहा है.

उद्धव ठाकरे के लिए चैलेंज ये है कि खुद का अस्तित्व बचाये रखने के लिए तलवार की धार पर भी चलना पड़ता है. होता ये है कि सहयोगियों को खुश रखने के लिए बीजेपी नेतृत्व (Narendra Modi and Amit Shah) पर तीखे हमले करने पड़ते हैं - और बीच बीच में ये भी कोशिश करनी होती है कि बीजेपी के साथ रिश्ता इतना भी खराब न हो जाये कि मुसीबत के वक्त मदद भी न मिले.

उद्धव ठाकरे सरकार के सौ दिन का जश्न तो बाद में बनाएंगे, BJP में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की तरह शिवसेना की घर वापसी की कोशिशें पहले से ही शुरू हो चुकी हैं - बस सही मौके का इंतजार है.

उद्धव की घर वापसी चाहती है बीजेपी

उद्धव ठाकरे को बीजेपी फिलहाल उसी नजर से देख रही है, जैसे नीतीश कुमार महागठबंधन के बैनर तले चुनाव जीत कर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. दोनों के लिए हालात भी मिलते ही जुलते नजर आ रहे हैं. बरसों बीजेपी के साथ NDA में रहने के बाद नीतीश कुमार अपने जानी सियासी दुश्मन लालू प्रसाद से हाथ मिला लिये थे, लेकिन फिर...

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) की अगुवाई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार अपने 100 दिन पूरे करने जा रही है. 7 मार्च को सरकार के 100 दिन का जश्न अयोध्या में मनाया जाना है - और तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए शिवसेना सांसद संजय राउत निकल पड़े हैं. संजय राउत ने तैयारियों की बाबत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में मुलाकात भी की है.

उद्धव ठाकरे का ऐसा अयोध्या दौरा पहली बार तो नहीं हो रहा है, लेकिन कांग्रेस और NCP के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद इसकी अहमियत काफी बढ़ जाती है. सरकार बनाने से पहले जब महाविकास आघाड़ी के लिए नियम और शर्तें तैयार हो रही थीं तो पाया गया कि उद्धव ठाकरे को कई तरह के समझौते करने पड़े थे - और उसके बाद से वो हमेशा इस बात के लिए सजग रहते हैं कि कहीं उन पर हिंदुत्व की राजनीति से पीछे हटने की तोहमत न लग जाये. ऐसे में उद्धव ठाकरे को कदम कदम पर गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ रिश्ता बनाये रखने के लिए जूझना भी पड़ता रहा है.

उद्धव ठाकरे के लिए चैलेंज ये है कि खुद का अस्तित्व बचाये रखने के लिए तलवार की धार पर भी चलना पड़ता है. होता ये है कि सहयोगियों को खुश रखने के लिए बीजेपी नेतृत्व (Narendra Modi and Amit Shah) पर तीखे हमले करने पड़ते हैं - और बीच बीच में ये भी कोशिश करनी होती है कि बीजेपी के साथ रिश्ता इतना भी खराब न हो जाये कि मुसीबत के वक्त मदद भी न मिले.

उद्धव ठाकरे सरकार के सौ दिन का जश्न तो बाद में बनाएंगे, BJP में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की तरह शिवसेना की घर वापसी की कोशिशें पहले से ही शुरू हो चुकी हैं - बस सही मौके का इंतजार है.

उद्धव की घर वापसी चाहती है बीजेपी

उद्धव ठाकरे को बीजेपी फिलहाल उसी नजर से देख रही है, जैसे नीतीश कुमार महागठबंधन के बैनर तले चुनाव जीत कर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. दोनों के लिए हालात भी मिलते ही जुलते नजर आ रहे हैं. बरसों बीजेपी के साथ NDA में रहने के बाद नीतीश कुमार अपने जानी सियासी दुश्मन लालू प्रसाद से हाथ मिला लिये थे, लेकिन फिर हालात ऐसे पैदा हो गये कि वो खुशी खुशी घर वापसी कर लिये.

उद्धव ठाकरे तो बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने के बाद मुख्यमंत्री बनने के लिए उन लोगों से जा मिले जिनसे विचारधारा के मामले में हमेशा से छत्तीस का आंकड़ा रहा है - और यही बात उद्धव ठाकरे के लिए सरकार चलाने में भी कदम कदम पर चुनौती बनी हुई है.

बीजेपी तो शुरू से ही कहती आ रही है कि सत्ता की लालच में महाराष्ट्र में बना गठबंधन बेमेल है और ज्यादा नहीं चलने वाला. बीजेपी सिर्फ इतना बोल कर चुप नहीं बैठी है, धीरे धीरे मौका देख कर वो उद्धव ठाकरे पर डोरे डालना शुरू कर चुकी है. महीने भर के अंतर पर महाराष्ट्र बीजेपी के नेता सुधीर मुनगंटीवार दो बार उद्धव ठाकरे को महाविकास आघाड़ी छोड़ने पर सपोर्ट देने की बात कह चुके हैं.

महाविकास आघाड़ी के जब नियम बनाये जा रहे थे तभी मुस्लिम आरक्षण पर भी बात हुई थी - और मजबूरी में ही सही उद्धव ठाकरे ने भी सहमति जतायी थी. शिक्षा में मुस्लिमों को आरक्षण देने को लेकर विवाद होने की स्थिति में खुद उद्धव ठाकरे को आगे बढ़ कर बयान देना पड़ा है. बीजेपी को उद्धव ठाकरे को रिझाने के लिए ये बेहतरीन मौका लगा और उसने अपनी चाल चल दी.

बीजेपी के सीनियर नेता सुधीर मुनगंटीवार ने साफ साफ कह दिया कि अगर मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर शिवसेना महाराष्ट्र विकास आघाड़ी से अलग होने का फैसला करती है, तो भाजपा साथ देने को तैयार है. जनवरी के आखिर में भी सुधीर मुनगंटीवार ने ही कहा था कि उद्धव ठाकरे और बीजेपी वैचारिक रूप से एक जैसे हैं और अगर शिवसेना की तरफ से कोई प्रस्ताव आता है तो वो बीजेपी सरकार बनाने को तैयार है.

बीजेपी के ऑफर में उद्धव ठाकरे की शर्तों की कितनी गुंजाइश होगी?

दरअसल, विधान परिषद में अल्पसंख्यक विभाग के मंत्री नवाब मलिक ने शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय को 5 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की - और मौजूदा शैक्षणिक वर्ष से ही उसे लागू करने का वादा भी कर दिया. नवाब मलिक NCP कोटे से उद्धव सरकार में मंत्री हैं. नवाब मलिक के इस ऐलान से शिवसेना के सामने नयी मुश्किल खड़ी हो गयी.

मामला ज्याद तूल न पकड़े इसलिए शिवसेना कोटे के मंत्री एकनाथ शिंदे ने नवाब मलिक के बयान को काउंटर करते हुए कहा कि महाविकास आघाड़ी की बैठक में ऐसा कोई फैसला हुआ ही नहीं है. मामले की गंभीरता को ऐसे समझा जा सकता है कि स्थिति को संभालने के लिए खुद उद्धव ठाकरे को आगे आना पड़ा और कहना पड़ा कि अब तक ऐसा कोई फैसला लिया ही नहीं गया है. बात कहीं बिगड़ न जाये, ये ख्याल रखते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर सरकार के सामने ऐसा कोई प्रस्ताव आता भी है तो पहले सभी कानूनी पहलुओं की जांच-परख होगी, फिर कोई फैसला हो सकेगा - लेकिन अभी कोई निर्णय नहीं किया गया है.

उद्धव ठाकरे के बयान के बाद भी बात खत्म हो जाये, ऐसा नहीं हुआ. नवाब मलिक के सपोर्ट में कांग्रेस के कोटे के लोक निर्माण मंत्री अशोक चव्हाण आ गये और बोले कि मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा कांग्रेस-NCP के घोषणा पत्र में शामिल है और ये लागू होकर रहेगा. बहरहाल, हालात को संभालने के लिए महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष बाला साहेब थोराट आगे आये और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बयान को सही बताते हुए दोहराया कि अब तक मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई है.

जब गठबंधन सहयोगी सड़क पर आकर कर इस कदर लड़ रहे हों तो भला बीजेपी चुपचाप क्यों बैठे. सुधीर मुनगंटीवार ने बोल दिया कि मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस और NCP ने मिलकर शिवसेना का मजाक बना दिया है - बीजेपी नेता ने उद्धव ठाकरे की भूमिका को उचित ठहराते हुए कहा - संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था नहीं है. अगर मुस्लिमों को धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है, तो सिखों एवं ईसाइयों ने क्या गुनाह किया है?

सुधीर मुनगंटीवार ने सलाह दी कि केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का इंतजाम पहले से ही कर रखा है और मुस्लिम भी उसमें शामिल हो सकते हैं.

ये तो सच है कि उद्धव ठाकरे की भी हालत वैसी ही है जैसी महागठबंधन में रहते नीतीश कुमार की रही, लेकिन NDA में दोबारा आने के बाद नीतीश कुमार की स्थिति पहले से भी बुरी हो चुकी है. नीतीश कुमार की स्थिति ये हो चली है कि वो बीजेपी के साथ निभाने के लिए अपने सभी सिद्धांतों को एक एक कर बलि चढ़ाते जा रहे हैं - और वे सारे काम करने लगे हैं जिनसे कभी जेडीयू नेता को परहेज हुआ करता रहा.

बड़ा सवाल ये है कि अगर उद्धव ठाकरे बीजेपी की बातों में आकर नीतीश कुमार के रास्ते चलते का फैसला भी करते हैं तो क्या उनकी शर्तें मानी जाएंगी?

क्या बीजेपी उद्धव की शर्तें मानने को तैयार है?

उद्धव ठाकरे आम चुनाव से पहले भी अयोध्या गये थे और चुनाव जीतने के बाद नये सांसदों के साथ पहुंच कर भी रामलला का दर्शन किया. पहले उद्धव ठाकरे की कोशिश रही कि अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर पूरा राजनीतिक मैदान बीजेपी अकेले न लूट ले - अब जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर निर्माण शुरू होने वाला है तो कोशिश यही है कि सारा श्रेय बीजेपी के हिस्से में ही न चला जाये. साथ ही साथ, शिवसेना को हिंदुत्व की राजनीति से जोड़े रखने का ये बहुत बड़ा मौका भी है.

धारा 370 और नागरिकता कानून (CAA) पर मोदी सरकार के सपोर्ट को लेकर उद्धव ठाकरे को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की नाराजगी भी झेलनी पड़ी है. नाराजगी तो भीमा कोरेगांव केस की जांच को लेकर शरद पवार ने भी दिखा दी थी, लेकिन फिर उद्धव ठाकरे ने स्थिति संभाल ली. हाल ही में बेटे और कैबिनेट साथी आदित्य ठाकरे के साथ दिल्ली आकर उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी. कांग्रेस नेतृत्व की नाराजगी अपनी जगह लेकिन जब राहुल गांधी ने वीर सावरकर को लेकर रामलीला मैदान की रैली में बयान देकर विवाद पैदा कर दिया तो शिवसेना की तरफ से भी संजीदगी के साथ नाराजगी जतायी गयी थी.

सुधीर मुनगंटीवार बीजेपी के सीनियर नेता हैं और उनकी बातों को यूं ही खारिज भी नहीं किया जा सकता. महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद की राजनीतिक गतिविधियों को लेकर उनके बयानों को काफी गंभीरता से लिया जाता रहा. यही वजह है कि शिवसेना में भी बीजेपी की तरफ से ऐसे ऑफर को यूं ही ठुकरा दिये जाने का फैसला नहीं होगा - लेकिन सवाल है कि क्या बीजेपी नेतृत्व अपने स्टैंड में बदलाव भी करेगा या नहीं?

शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन इसीलिए टूटा क्योंकि मुख्यमंत्री पद को लेकर मोदी और शाह एक कदम भी पीछे हटने को तैयार न थे. बीजेपी नेतृत्व इस बात पर अडिग था कि मुख्यमंत्री तो देवेंद्र फडणवीस ही बनेंगे. शरद पवार और मोदी की मुलाकात से भी एक बात निकल कर आयी थी कि एनसीपी नेता तब बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाने को तैयार थे, बशर्ते देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाया जाये - और बात वहीं खत्म हो गयी.

बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में शिवसेना अपने हिस्से में मुख्यमंत्री पद आधे कार्यकाल के लिए ही मांग रही थी, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ज्यादा से ज्यादा डिप्टी सीएम की पोस्ट देने को ही तैयार हो रहा था. दूसरी तरफ नये गठबंधन महाविकास आघाड़ी में जैसे ही उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने को तैयार हुए, कांग्रेस और एनसीपी ने बीजेपी जैसी कोई शर्त ही नहीं रखी. हालांकि, उनकी शर्तें इससे भी कहीं ज्यादा मुश्किल हैं.

बीजेपी का ऑफर उद्धव ठाकरे को तभी लुभा सकता है जब उसमें शिवसेना के कोटे में मुख्यमंत्री पद पर को लेकर मोदी-शाह तैयार हों, वरना बात बिगड़ने की हालत में तो वो महाविकास आघाड़ी में ही जैसे तैसे दिन गुजार ही लेंगे. कम से कम तब तक जब तक ऑपरेशन लोटस कोरोना वायरस की तरह महाराष्ट्र की राजनीति को अपने चपेट में न ले ले.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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