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Uddhav Thackeray के लिए सरकार बनाने से मुश्किल विभागों का बंटवारा क्यों?

    • आईचौक
    • Updated: 04 जनवरी, 2020 06:39 PM
  • 04 जनवरी, 2020 06:39 PM
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उद्धव ठाकरे की कैबिनेट (Uddhav Thackeray Cabinet) का हाल ये है कि शिवसेना नेता (Abdul Sattar of Shiv Sena) ने इस्तीफा दे दिया है - अशोक चव्हाण और अजित पवार (Ashok Chavhan and Ajit Pawar) मीटिंग छोड़ कर चले जा रहे हैं और विभागों का बंटवारा लटका पड़ा है.

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray Cabinet) के सामने 2020 में चुनौतियां कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं. ऊपर से तो सब ठीक ठाक है, लेकिन मंत्रियों में विभागों को लेकर झगड़ा होने लगा है. सीनियर मंत्री (Ashok Chavhan and Ajit Pawar) गर्मागर्म बहस के बाद मीटिंग छोड़ कर चले जा रहे हैं - और तो और शिवसेना कोटे से मंत्री बने एक नेता अब्दुल सत्तार (Abdul Sattar of Shiv Sena) ने तो इस्तीफा ही दे डाला है.

उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार ने मंत्रियों के लिए बंगलों का बंटवारा तो खुशी खुशी कर लिया, लेकिन विभागों पर फंसा पेंच सुलझने का नाम ही नहीं ले रहा है. जो मंत्री मनपंसद बंगले पाकर कर खुश हैं, वही मंत्रालयों के लिए जिद पर अड़े हुए हैं.

गठबंधन की सरकार चलाना तो वैसे भी सत्ता की राजनीति के सबसे कठिन कामों में से एक है, लेकिन उद्धव ठाकरे के मामले में तो लगता है जैसे सरकार चलाने के लिए बना कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और सलाहकार कमेटी का भी असर नहीं हो रहा है.

उद्धव सरकार में मतभेदों के रुझान आने लगे हैं

उद्धव ठाकरे जब अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे थे तो हर निगाह एक ही चेहरे को तलाश रही थी - लेकिन संजय राउत नजर नहीं आये. सरकार बनने से पहले और उसके बाद भी काफी देर तक संजय राउत, उद्धव ठाकरे की आंख और कान के साथ साथ जबान भी बने रहे. अब वो बात नहीं रही, ऐसा लगने लगा है.

मंत्रिमंडल विस्तार के वक्त गैरमौजूदगी अगर संजय राउत की नाराजगी की पहली झलक रही तो दूसरी झलक एक फेसबुक पोस्ट में देखी गयी. वैसे वो पोस्ट थोड़ी देर झलक दिखाने के बाद गायब भी हो गयी.

संजय राउत ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था - 'हमेशा ऐसे व्यक्ति को संभाल कर रखिये जिसने आप को तीन भेंट दी हो - साथ, समय और समर्पण...'

किसी के लिए भी समझना आसान था. खबर आई थी कि संजय राउत अपने भाई सुनील राउत को मंत्री न बनाये जाने से काफी नाराज हैं - अब एक नयी नाराजगी भी ब्रेकिंग न्यूज बन कर सामने आ चुकी है.

उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर...

उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray Cabinet) के सामने 2020 में चुनौतियां कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं. ऊपर से तो सब ठीक ठाक है, लेकिन मंत्रियों में विभागों को लेकर झगड़ा होने लगा है. सीनियर मंत्री (Ashok Chavhan and Ajit Pawar) गर्मागर्म बहस के बाद मीटिंग छोड़ कर चले जा रहे हैं - और तो और शिवसेना कोटे से मंत्री बने एक नेता अब्दुल सत्तार (Abdul Sattar of Shiv Sena) ने तो इस्तीफा ही दे डाला है.

उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार ने मंत्रियों के लिए बंगलों का बंटवारा तो खुशी खुशी कर लिया, लेकिन विभागों पर फंसा पेंच सुलझने का नाम ही नहीं ले रहा है. जो मंत्री मनपंसद बंगले पाकर कर खुश हैं, वही मंत्रालयों के लिए जिद पर अड़े हुए हैं.

गठबंधन की सरकार चलाना तो वैसे भी सत्ता की राजनीति के सबसे कठिन कामों में से एक है, लेकिन उद्धव ठाकरे के मामले में तो लगता है जैसे सरकार चलाने के लिए बना कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और सलाहकार कमेटी का भी असर नहीं हो रहा है.

उद्धव सरकार में मतभेदों के रुझान आने लगे हैं

उद्धव ठाकरे जब अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे थे तो हर निगाह एक ही चेहरे को तलाश रही थी - लेकिन संजय राउत नजर नहीं आये. सरकार बनने से पहले और उसके बाद भी काफी देर तक संजय राउत, उद्धव ठाकरे की आंख और कान के साथ साथ जबान भी बने रहे. अब वो बात नहीं रही, ऐसा लगने लगा है.

मंत्रिमंडल विस्तार के वक्त गैरमौजूदगी अगर संजय राउत की नाराजगी की पहली झलक रही तो दूसरी झलक एक फेसबुक पोस्ट में देखी गयी. वैसे वो पोस्ट थोड़ी देर झलक दिखाने के बाद गायब भी हो गयी.

संजय राउत ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था - 'हमेशा ऐसे व्यक्ति को संभाल कर रखिये जिसने आप को तीन भेंट दी हो - साथ, समय और समर्पण...'

किसी के लिए भी समझना आसान था. खबर आई थी कि संजय राउत अपने भाई सुनील राउत को मंत्री न बनाये जाने से काफी नाराज हैं - अब एक नयी नाराजगी भी ब्रेकिंग न्यूज बन कर सामने आ चुकी है.

उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे महीने भर हुए हैं और मंत्रिमंडल विस्तार किये महज पांच दिन. महाविकास अघाड़ी सरकार को शिवसेना विधायक ने ही जोर का झटका दिया है. शिवसेना कोटे से अब्दुल सत्तार को राज्य मंत्री के तौर पर सरकार में शामिल किया गया था - लेकिन वो कैबिनेट रैंक चाहते थे. अब्दुल सत्तार का इस्तीफा अभी मंजूर नहीं किया गया है और माना जा रहा है कि उद्धव ठाकरे की तरफ से शिवसेना नेता को मनाने के प्रयास किये जाएंगे.

शिवसेना नेता अब्दुल सत्तार ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर उद्धव ठाकरे के सामने नयी मुश्किल खड़ी कर दी है

सबसे बड़ा मतभेद तो शिवसेना नेता सुभाष देसाई के घर पर गठबंधन के नेताओं की बैठक में देखी गयी. बातों बातों में ही विवाद इस कदर बढ़ गया कि एनसीपी और कांग्रेस दोनों दलों के नेता बीच में ही बैठक छोड़ कर चले गये.

सब ठीक ठाक ही लग रहा था कि तभी अशोक चव्हाण ने ग्रामीण विकास, सहकारिता और कृषि विभाग में से कोई एक कांग्रेस के हिस्से में दिये जाने की मांग रख दी. अजित पवार ने पिछली बैठक का हवाला देते हुए कहा कि तब पृथ्वीराज चव्हाण ने तो कुछ भी नहीं कहा और अब वो नयी मांग पेश कर रहे हैं. अजित पवार यहां तक बोल गये कि कांग्रेस में किससे बात करें - कोई नेता ही नहीं है. ये सुनते ही अशोक चव्हाण भड़क गये, बोले - वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं, फिर उनकी बात को कैसे नकारा जा सकता है. पृथ्वीराज चव्हाण भी कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

अजित पवार लहजा तो आक्रामक हो ही गया था, तैश में उठे और मीटिंग छोड़ कर चल दिये. फिर पीछे पीछे एनसीपी के नेता भी चल दिये. अशोक चव्हाण ने भी ऐसा ही किया - लेकिन मामला जब तूल पकड़ने लगा तो अजित पवार ने सफाई में कहा कि अशोक चव्हाण से उनका कोई मतभेद न हुआ है न ही है.

किसानों का हमदर्द बनने की होड़

अशोक चव्हाण ने मीटिंग में जो मांग रखी थी उसके पीछे कांग्रेस की दलील है कि उसके ज्यादातर विधायक ग्रामीण इलाकों से ही चुन कर आये हैं, इसलिए

ग्रामीण विकास, सहकारिता और कृषि विभाग मिलने पर वे अपने क्षेत्र में काम कर सकेंगे. अभी की स्थिति ये है कि ग्रामीण विकास और सहकारिता विभाग पर एनसीपी के पास है और कृषि शिवसेना के पास. साथ ही, कांग्रेस चाहती है कि जहां पर कांग्रेस का जनाधार मजबूत है उन जिलों के प्रभारी उसके ही कोटे से बने मंत्री ही बनें. गठबंधन साथियों के बीच असहमति का ये एक और बड़ा मुद्दा है.

देखा जाये तो किसानों के नाम पर ही महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर मुलाकातें होती रहीं. तब तो गवर्नर से भी मिलने देवेंद्र फडणवीस और आदित्य ठाकरे किसानों के नाम पर ही मिलने गये थे - और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एनसपीपी नेता शरद पवार ने भी किसानों की समस्याओं के नाम पर ही मुलाकात की थी. बाद में पता चला मोदी और पवार की मुलाकात के दौरान भी कृषि मंत्रालय का जिक्र आया था. सुना गया कि पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए केंद्र में कृषि मंत्रालय की मांग की थी. दरअसल, शरद पवार भी पहले कृषि मंत्री रह चुके हैं और महाराष्ट्र में किसानों की राजनीति के लिए विभाग की बड़ी अहमियत है.

मगर, अफसोस की बात ये ही कि किसानों के नाम पर महज राजनीति होती आ रही है - किसानों की आत्महत्या के मामले नहीं रुक रहे हैं. यहां तक कि जब किसानों के नाम पर महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिविधियां चरम पर थीं, किसानों की आत्महत्या नहीं थमी.

रिपोर्ट आयी है कि महाराष्ट्र में नवंबर महीने में 300 किसानों ने खुदकुशी की है - और पिछले चार साल में किसानों की आत्महत्या का ये सबसे बड़ा आंकड़ा है. 2015 में ये जरूर नोटिस किया गया था कि ऐसे कई मौके आये थे जब महीने भर में आत्महत्या करने वाले किसानों की तादाद 300 पार कर जाती रही. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में अक्‍टूबर के महीने में जो बेमौसम भारी बारिश हुई उसके बाद खुदकुशी की घटनाओं में काफी तेजी आ गयी थी क्योंकि इससे करीब 70 फीसदी फसल बर्बाद हो गयी.

2019 में स्टेशन से निकल चुकी उद्धव ठाकरे सरकार की गाड़ी लगता है 2020 में आउटर सिग्नल पर जाकर रुक गयी है. आगे तो तभी बढ़ेगी जब सिग्नल लाल से हरे रंग का हो जाये - और जब झंडी दिखाने वाले गार्ड की भूमिका निभा रहे किरदार एक से ज्यादा हों तो हाल क्या होगा - सब सामने ही है!

इन्हें भी पढ़ें :

उद्धव ठाकरे सरकार के सामने 7 चुनौतियां - कुछ विवाद और कुछ सवाल

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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