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उद्धव ठाकरे के लिए ज्यादा मुश्किल क्या है - सरकार बना लेना या चलाना?

    • आईचौक
    • Updated: 30 नवम्बर, 2019 07:49 PM
  • 30 नवम्बर, 2019 06:31 PM
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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को बहुमत परीक्षण (Floor Test) के दौरान ही आने वाले दिनों की झलक मिल गयी. देवेंद्र फडणवीस ने वंदे मातरम् को मुद्दा बनाकर साफ कर है कि सेक्युलर सरकार (Secular Government) चलाना शिवसेना नेता के लिए कितना चुनौतीपूर्ण है?

उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट (ddhav Thackeray Floor Test) में भी पास हो गये हैं और इस तरह चुनौतियों की फेहरिस्त में एक मुश्किल और कम हो गयी है. उद्धव ठाकरे के लिए एक खास संदेश ये भी है कि उनके चचरे भाई राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने फ्लोर टेस्ट में तटस्थ रूख अपनाया है.

उद्धव ठाकरे के हिसाब से देखें तो ढाई साल का वक्त भी पांच वर्ष के बराबर है. बीजेपी के साथ शिवसेना की इसी बात पर ठनी थी और रिश्ते पर बन आयी. सुनने में तो ये भी आया था कि NCP की तरफ से भी ढाई साल की डिमांड रखी गयी थी - हां, कांग्रेस की मांग डिप्टी सीएम से ज्यादा कभी नहीं रही. जब तक फाइनल नहीं होता, कांग्रेस की ये मांग भी बरकरार रहेगी. वैसे स्पीकर कांग्रेस का होने वाला है, जिसे लेकर NCP का भी नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट मिल चुका है - कांग्रेस के सीनियर विधायक नाना पटोले का स्पीकर बनना तय है. हालांकि, बीजेपी इतनी आसानी से नहीं मानने वाली है. बीजेपी किशन कठोरे को स्पीकर पद के लिए मुकाबले में उतारने वाली है.

वैसे तो उद्धव ठाकरे पूरे पांच साल के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, बशर्ते सरकार की भी उम्र बराबर हो. आज कल महाराष्ट्र सरकार की तुलना अक्सर कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार से होती है और उस हिसाब से अगर 'ऑपरेशन लोटस' भी चला तो सवा साल तो लग ही जाएंगे, ऐसा समझा जा सकता है. शिवाजी पार्क के शपथग्रहण समारोह से पहले तो किसी शिवसैनिक का सीएम बनना नामुमकिन सा ही लग रहा था, खासकर एक रात अचानक हुए फैसले के बाद जब सुबह सुबह देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेने के बाद.

अंत भला तो सब भला. अब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन चुके हैं और आगे चुनौती सरकार चलाने की है - ऐसे में समझना जरूरी है कि उद्धव ठाकरे के लिए सरकार बनाने के मुकाबले एक सेक्युलर शिवसेना सरकार को चलाना कितना मुश्किलभरा होगा?

सरकार चलाने में आने वाली मुश्किलें

उद्धव ठाकरे के लिए विधानसभा में शुरुआत शुभ रही है. अच्छी बात ये है कि उद्धव ठाकरे को विश्वास मत में 169 वोट...

उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट (ddhav Thackeray Floor Test) में भी पास हो गये हैं और इस तरह चुनौतियों की फेहरिस्त में एक मुश्किल और कम हो गयी है. उद्धव ठाकरे के लिए एक खास संदेश ये भी है कि उनके चचरे भाई राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने फ्लोर टेस्ट में तटस्थ रूख अपनाया है.

उद्धव ठाकरे के हिसाब से देखें तो ढाई साल का वक्त भी पांच वर्ष के बराबर है. बीजेपी के साथ शिवसेना की इसी बात पर ठनी थी और रिश्ते पर बन आयी. सुनने में तो ये भी आया था कि NCP की तरफ से भी ढाई साल की डिमांड रखी गयी थी - हां, कांग्रेस की मांग डिप्टी सीएम से ज्यादा कभी नहीं रही. जब तक फाइनल नहीं होता, कांग्रेस की ये मांग भी बरकरार रहेगी. वैसे स्पीकर कांग्रेस का होने वाला है, जिसे लेकर NCP का भी नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट मिल चुका है - कांग्रेस के सीनियर विधायक नाना पटोले का स्पीकर बनना तय है. हालांकि, बीजेपी इतनी आसानी से नहीं मानने वाली है. बीजेपी किशन कठोरे को स्पीकर पद के लिए मुकाबले में उतारने वाली है.

वैसे तो उद्धव ठाकरे पूरे पांच साल के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, बशर्ते सरकार की भी उम्र बराबर हो. आज कल महाराष्ट्र सरकार की तुलना अक्सर कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार से होती है और उस हिसाब से अगर 'ऑपरेशन लोटस' भी चला तो सवा साल तो लग ही जाएंगे, ऐसा समझा जा सकता है. शिवाजी पार्क के शपथग्रहण समारोह से पहले तो किसी शिवसैनिक का सीएम बनना नामुमकिन सा ही लग रहा था, खासकर एक रात अचानक हुए फैसले के बाद जब सुबह सुबह देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेने के बाद.

अंत भला तो सब भला. अब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन चुके हैं और आगे चुनौती सरकार चलाने की है - ऐसे में समझना जरूरी है कि उद्धव ठाकरे के लिए सरकार बनाने के मुकाबले एक सेक्युलर शिवसेना सरकार को चलाना कितना मुश्किलभरा होगा?

सरकार चलाने में आने वाली मुश्किलें

उद्धव ठाकरे के लिए विधानसभा में शुरुआत शुभ रही है. अच्छी बात ये है कि उद्धव ठाकरे को विश्वास मत में 169 वोट मिले जो होटल वाले नंबर 'आम्ही 162' से सात ज्यादा रहे. हालांकि, शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने ट्विटर पर 170+ का दावा किया था.

विश्वासमत के दौरान कई चीजें और भी देखने को मिलीं. मसलन, विधानसभा में मौजूद 4 विधायकों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और वे तटस्थ रहे. तटस्थ रहने वालों में एक विधायक MNS का भी रहा.

देवेंद्र फडणवीस ने दोबारा शपथ लेने से पहले बीजेपी को 119 विधायकों के सपोर्ट का दावा किया था. ये अजित पवार के समर्थन देकर तीन दिन के लिए डिप्टी सीएम बनने से पहले की बात है.

अगर विधानसभा में 169 और 4 विधायक मौजूद रहे तो देवेंद्र फडणवीस के साथ विधानसभा से वॉकआउट करने वाले विधायकों की संख्या 115 हुई. इससे ये समझ आ रहा है कि जो 4 विधायक सदन में तटस्थ बन कर बैठे रहे वे भी पहले देवेंद्र फडणवीस के साथ रहे होंगे.

देवेंद्र फडणवीस के दावे पर यकीन करें तो ऐसा लगता है जैसे एमएनएस विधायक का भी समर्थन बीजेपी को हासिल रहा. MNS विधायक ने वोटिंग में हिस्सा न लेकर साफ कर दिया है कि वो महा विकास अघाड़ी सरकार के पक्ष में तो नहीं ही है.

ये तो रहा विधानसभा में उद्धव ठाकरे के सपोर्ट और विरोध का सूरत-ए-हाल, पता ये भी चला है कि उद्धव ठाकरे ने अपने मुख्यमंत्री आवास वर्षा न जाकर अपने घर 'मातोश्री' में ही रहने का फैसला किया है. कहा ये जरूर है कि जरूरी बैठकों के लिए वो वर्षा जाया करेंगे. रणनीतिक तौर पर ये फैसला भी शिवसेना के हिसाब से ठीक लग रहा है. वैसे भी जब शरद पवार के घर 'सिल्वर ओक' के दबदबे को लेकर आशंका जतायी जा रही है, फिर तो मातोश्री से हट जाने पर बरसों से चले आ रहे शक्ति केंद्र का क्या हाल होगा?

स्पीकर का मामला भी फ्लोर टेस्ट जैसा ही रस्म निभाने भर लग रहा है, लेकिन डिप्टी CM पर तस्वीर अब भी धुंधली लग रही है. स्पीकर के साथ ही कांग्रेस के एक बार फिर डिप्टी सीएम की कुर्सी पर भी दावेदारी जताने की बात सामने आ रही है. एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा है कि डिप्टी सीएम पर फैसला 22 दिसंबर तक हो सकेगा.

उद्धव ठाकरे के लिए ये सरकार तो एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई जैसी ही लगती होगी. गठबंधन के साथियों से तो लगातार जूझना ही है, सामने से बीजेपी के साथ भी बात बात पर दो-दो हाथ होना भी तय ही है. वैसे देवेंद्र फडणवीस ने भी उद्धव ठाकरे को जरा भी निराश नहीं किया है. सत्र के पहले ही दिन विपक्ष के तेवर दिखा दिये हैं.

सदन के बहिष्कार का पहले से फैसला कर विधानसभा पहुंचे देवेंद्र फडणवीस और उनके साथियों को तो वैसे भी बहुमत परीक्षण तक नहीं रुकना था, लिहाजा हंगामा और नारेबाजी में किसी ने भी कोई कोताही नहीं बरती. बीजेपी नेता ने शुरू में ही दो-दो खामियां गिना दीं.

उद्धव ठाकरे वैसे तो देवेंद्र फडणवीस के सदन में आते ही गले मिले, लेकिन फिर 'प्रथम ग्रासे...' वाले अंदाज में ही सरकार पर नियमों के उल्लंघन का इल्जाम लगा दिया गया. देवेंद्र फडणवीस ने स्पीकर के चुनाव से पहले बहुमत परीक्षण पर भी सवाल उठाये. जब प्रोटेम स्पीकर ने सदस्यों को शांत करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक कार्यवाही की तरफ ध्यान दिलाया तो, फडणवीस प्रोटेम स्पीकर बदले जाने पर ही बरस पड़े.

देवेंद्र फडणवीस ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति जतायी कि सत्र की शुरुआत 'वंदे मातरम्' के बिना ही हो गयी. दरअसल, देवेंद्र फडणवीस जानते थे कि ये मुद्दा उद्धव ठाकरे के लिए कमजोर कड़ी होगा - क्योंकि सेक्युलर सरकार में उद्धव ठाकरे ऐसी हिमाकत तो करने से रहे. जब तक सरकार है तब तक तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कल तक उद्धव ठाकरे इसके हिमायती हुआ करते रहे.

उद्धव और फडणवीस में कितना फर्क

बिलकुल ऐसा तो नहीं है कि उद्धव ठाकरे को लेकर ही लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं, जब देवेंद्र फडणवीस पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे तब भी लोगों के मन में वही सवाल था - मुख्यमंत्री बन तो गये पांच साल सरकार चलाएंगे कैसे?

उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस दोनों ही नेताओं ने कट्टर हिंदुत्ववाली महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी काफी उदार छवि गढ़ी है. बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री होते हुए भी देवेंद्र फडणवीस ने खुद को मुंबई के प्रभावी तबके से जोड़ा जो गैर-कांग्रेस शासन में थोड़ा संकोच महसूस करता रहा. ये उद्धव ठाकरे ही हैं जिन्होंने शिवसेना को उसकी उपद्रवी छवि से बाहर लाकर नये कलेवर में पेश किया है.

देवेंद्र फडणवीस ने बड़ी ही चतुराई से हंसते मुस्कुराते अपने विरोधियों से भी अच्छे संबंध बना लिये और अपने प्रति एक सकारात्मक सोच विकसित की. शिवसेना का असली तेवर तो राज ठाकरे की स्टाइल में ही नजर आता है, उद्धव ठाकरे ने उसे बदलते हुए उदार स्वरूप में पेश किया है.

हालांकि, उद्व ठाकरे ये जरूर चाहते हैं कि लोगों के मन से शिवसेना का खौफ जरा भी कम न हो. उद्धव ठाकरे कहते हैं कि शिवसेना किसी के प्रति भी प्रतिशोध की भावना नहीं रखती - लेकिन किसी ने आंख दिखाने की कोशिश की तो उसे नहीं बख्शा जाएगा. उद्धव ठाकरे ये बात बार बार कहते रहे हैं और बहुमत परीक्षण के दौरान दोहराया भी कि वो अपने किसी भी प्रतिद्वंद्वी के प्रति प्रतिशोध की भावना नहीं रखते.

देवेंद्र फडणवीस से मिलती जुलती उद्धव ठाकरे की ये खासियतें ही इशारा करती हैं कि उनके शासन को सिर्फ सशंकित निगाहों से ही नहीं देखा जा सकता - मुमकिन हैं उद्धव ठाकरे दूसरे देवेंद्र फडणवीस साबित हों!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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