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Udaipur Murder Case: कब रुकेगी ये हिंसा, कब थमेगा जिहादी आतंकवाद?

    • डॉ. ऋषि अग्रवाल सागर
    • Updated: 30 जून, 2022 12:53 PM
  • 30 जून, 2022 12:53 PM
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कल एक कन्हैयालाल नहीं बल्कि हर एक वो हिन्दू मरा है जो भाईचारे की सोच रख उन मुसलमानों को गले लगा बैठा, जिनके चेहरे पर मुस्कान, हाथ में ख़ंजर और जुबां पर अल्लाह का नाम है. आज इनकी इस घटिया मानसिक विकृत सोच से हर वो मुसलमान परेशान है, जिनकी सोच में शहीद अब्दुल हमीद व अब्दुल कलाम है.

उदयपुर, राजस्थान जिसे झीलों की नगरी कहा जाता है बीते दिन उसी झीलों की नगरी में मौत का खौफनाक तांडव उफान मारने लगा. अचानक पूरे शहर में सन्नाटा पसर गया. धारा 144 लगा दी गई, शान्ति अमन की जगह पूरा शहर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. जो नरसंहार सुनने व देखने को मिला, वो आत्मा तक को झंकझोर कर रख देने वाला था. बीते दिन सिर्फ कन्हैयालाल नहीं बल्कि हर वो हिन्दू मरा है जो भाईचारे की सोच रख उन मुसलमानों को गले लगा बैठा, जिनके चेहरे पर मुस्कान, हाथ में ख़ंजर और जुबां पर अल्लाह का नाम है. आज इनकी इस घटिया मानसिक विकृत सोच से हर वो मुसलमान परेशान है, जिनकी सोच में शहीद अब्दुल हमीद व अब्दुल कलाम है. इनके अन्दर ये जाहिलपन आता कहां से हैं? ना कुरआन उन्हें ये गुनाह का रास्ता दिखाती है ना ही हदीस, फिर ये किस जिहाद और आतंकवाद के सहारे नबी (मोहम्मद) का नाम लेकर गुनाह को अंजाम देते हैं. इनकी इन्हीं करतूतों के कारण हर वो मुसलमान विकृत नजरों से देखा जाता है जो भाईचारे के साथ रहकर जीवनयापन कर रहा है. जिसकी सोच बस एकता और अपनेपन तक सिमित है.

अब कोई भी ईशनिंदा की बात नहीं करेगा, क्योंकि मरने वाला हिन्दू और मारने वाले शांतिप्रिय समुदाय से हैं और ये सब तो आम बात है. क्या हो गया अगर हिन्दू मर गया? भारत में हिन्दुओं को मार देना, एक प्रचलन बन चुका है, जिसके मरने पर कुछ भाण्ड मीडिया, वामपंथी, लिब्रांडू, विपक्ष में बैठे नेता इस पर चुप्पी साध, सारा दोष देश के प्रधानमंत्री पर डाल रहे हैं. कुछ दिन हवा जख्मों से भरी रहेगी और फिर सब अपने-अपने काम में लगकर, फिर से उन्हीं लोगों के साथ भाईचारे का पेड़ उगाने लग जायेंगे.

उदयपुर में कन्हैयालाल की मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा हत्या के बाद रोते बिलखते परिजन

ऐसा नहीं है कि भाईचारा का पेड़ लगाना गुनाह है. पेड़ अवश्य...

उदयपुर, राजस्थान जिसे झीलों की नगरी कहा जाता है बीते दिन उसी झीलों की नगरी में मौत का खौफनाक तांडव उफान मारने लगा. अचानक पूरे शहर में सन्नाटा पसर गया. धारा 144 लगा दी गई, शान्ति अमन की जगह पूरा शहर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. जो नरसंहार सुनने व देखने को मिला, वो आत्मा तक को झंकझोर कर रख देने वाला था. बीते दिन सिर्फ कन्हैयालाल नहीं बल्कि हर वो हिन्दू मरा है जो भाईचारे की सोच रख उन मुसलमानों को गले लगा बैठा, जिनके चेहरे पर मुस्कान, हाथ में ख़ंजर और जुबां पर अल्लाह का नाम है. आज इनकी इस घटिया मानसिक विकृत सोच से हर वो मुसलमान परेशान है, जिनकी सोच में शहीद अब्दुल हमीद व अब्दुल कलाम है. इनके अन्दर ये जाहिलपन आता कहां से हैं? ना कुरआन उन्हें ये गुनाह का रास्ता दिखाती है ना ही हदीस, फिर ये किस जिहाद और आतंकवाद के सहारे नबी (मोहम्मद) का नाम लेकर गुनाह को अंजाम देते हैं. इनकी इन्हीं करतूतों के कारण हर वो मुसलमान विकृत नजरों से देखा जाता है जो भाईचारे के साथ रहकर जीवनयापन कर रहा है. जिसकी सोच बस एकता और अपनेपन तक सिमित है.

अब कोई भी ईशनिंदा की बात नहीं करेगा, क्योंकि मरने वाला हिन्दू और मारने वाले शांतिप्रिय समुदाय से हैं और ये सब तो आम बात है. क्या हो गया अगर हिन्दू मर गया? भारत में हिन्दुओं को मार देना, एक प्रचलन बन चुका है, जिसके मरने पर कुछ भाण्ड मीडिया, वामपंथी, लिब्रांडू, विपक्ष में बैठे नेता इस पर चुप्पी साध, सारा दोष देश के प्रधानमंत्री पर डाल रहे हैं. कुछ दिन हवा जख्मों से भरी रहेगी और फिर सब अपने-अपने काम में लगकर, फिर से उन्हीं लोगों के साथ भाईचारे का पेड़ उगाने लग जायेंगे.

उदयपुर में कन्हैयालाल की मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा हत्या के बाद रोते बिलखते परिजन

ऐसा नहीं है कि भाईचारा का पेड़ लगाना गुनाह है. पेड़ अवश्य लगाये, पर ऐसा ना हो कि पेड़ भी आपका, पानी भी आप ही दें और जब फल खाने की बारी आये तो भाईचारे में शामिल दूसरा शख्स उस पेड़ को ही उखाड़ दे या फिर सारे फल स्वयं खाने की जिद्द में आपका जीना मुश्किल कर दे. मेरी ये बातें कुछ मुस्लिम भाइयों को पसंद नहीं आयेगी, शायद सभी को, पर सत्य परेशान कर सकता है पर छुप नहीं सकता.

एक तरफ कहते हैं आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और दूसरी तरफ हर आतंकवादी सिर्फ एक ही समुदाय से क्यों? अब कोई ये मत कहना कि मारने वाले दो भटके हुए युवक थे, उनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं. ये नौटंकी तो हम बहुत बार देख व सुन चुके हैं. हकीकत पर पर्दा डालना अब बंद कर दो तो बेहतर होगा. नरभक्षी आतंकवादी मोहम्मद रियाज़ अंसारी व गौस मोहम्मद की सोच ISIS जैसी ही थी, जब इन्होंने निहत्थे कन्हैयालाल का सिर काटा.

इनकी हिम्मत पर ध्यान दें तो इन दोनों नरभक्षियों ने उस नृसंहार का वीडियो बनाया और उसके बाद देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का व नूपुर शर्मा का सिर काटने की धमकी दी. इनकी मानसिकता इतनी विकृत हो चुकी है कि जैसे इनके मन के अंदर हिन्दुओं के प्रति ज़हर के बीज़ बो दिये गए हों. यहां तक कन्हैयालाल को मारने से दस दिन पहले भी मोहम्मद रियाज अंसारी ने एक वीडियो बना, कन्हैयालाल को धमकी दी थी, जिसकी शिकायत उसने पुलिस को भी की थी.

कन्हैयालाल की मौत का जिम्मेदार कौन? क्या ये किसी ने सोचने का प्रयत्न किया? कल एक कन्हैयालाल मारा गया है आज या आने वाले कल में ना जाने कितने कन्हैयालाल होंगे. ऐसा नहीं है कि सिर्फ कन्हैयालाल ही मरेगा, हो सकता अब्दुल भी भेंट चढ़ जाये. इनकी नज़र में हर वो इन्सान काफ़िर है जो हिन्दू है या फिर हिन्दू धर्म से मुहब्बत करता है. अगर किसी मुस्लिम ने हिन्दू देवी-देवताओं को महत्त्व दिया या फिर हिन्दुओं के त्योहार का हिस्सा बनता है तो ये लोग बेझिझक उसे काफ़िर घोषित कर देते हैं और उसे या उसकी सोच को मारने की पूरी कोशिश करते हैं.

इनको ना कुरआन से मतलब ना ही हदीस से. बस इनका दिमाग और सोच पूरी तरह से एक अलग ही कुरआन और हदीस के साथ जुड़ जाती है जिसमें हिंसा और सिर्फ हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है. केंद्र सरकार को अब कड़ा एक्शन और कुछ कठोर निर्णय लेने ही होंगे, अन्यथा कल कन्हैयालाल तो परसों मैं या आप या कोई और भी हो सकता है. मोमबत्ती जलाने से, घरना देने से, सोशल मीडिया पर चिल्लाने से ये सब नहीं रुकेंगे, बल्कि तेजी से बढ़ेंगे.

अब वो समय आ गया है जब इन दो नरभक्षियों को तत्काल प्रभाव से फांसी पर चढ़ा देना चाहिए या फिर गोली मारकर देश में कानून की ढीली पड़ी डोर को मजबूती से कस दिया जाए. साथ ही अब वो वक़्त भी है जब हमें अपने आप को एक दूसरे पर टिका-टिपण्णी से रोकना होगा. पुलिस को भी अब सख्त रवैया अपनाना होगा और न्यूज चैनलों पर होने वाले वाद-विवाद पर कुछ हद तक लगाम लगानी होगी. अन्यथा करेगा कोई और कन्हैयालाल की तरह भरेगा कोई.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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