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सट्टा बाजार की तरह वोटरों को 'आर्थिक मदद' के तीन वादे

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 29 मार्च, 2019 01:55 PM
  • 29 मार्च, 2019 01:54 PM
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सट्टा बाजार का एक ट्रेंड होता है कि जो पार्टी जितनी कमजोर होती है या जिसके जीतने की संभावनाएं जितनी कम होती हैं, उसका भाव उतना ही अधिक होता है. कुछ ऐसा ही इन दिनों भारत की राजनीति में भी देखने को मिल रहा है.

चुनावों के मौसम में सट्टा बाजार में हलचल बढ़ने की खबरें तो आपने खूब सुनी होंगी, लेकिन कभी राजनीतिक पार्टियों का सट्टा बाजार नहीं देखा होगा. लोकसभा चुनाव से पहले देश की कई राजनीतिक पार्टियों के वादों ने देश में सट्टा बाजार जैसी स्थिति ही बना दी है. इस सट्टा बाजार में फिलहाल भाजपा, कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) ने अपने भाव जारी किए हैं. अब बारी है जनता की ओर से बोलियां लगने यानी वोट देने की.

सट्टा बाजार का एक ट्रेंड होता है कि जो पार्टी जितनी कमजोर होती है या जिसके जीतने की संभावनाएं जितनी कम होती हैं, उसका भाव उतना ही अधिक होता है. कुछ ऐसा ही इन दिनों भी देखने को मिल रहा है. भाजपा सबसे मजबूत है तो उसका भाव सबसे कम है यानी उसका ऑफर सबसे कम है. जबकि सीपीआईएम के जीतने की संभावनाएं लगभग ना के बराबर हैं तो उसका भाव सबसे अधिक है. अब अगर इस रेस में कोई चौथी पार्टी भी कूद पड़ती है तो यकीनन उसका ऑफर और भी बड़ा होगा.

लोकसभा चुनाव से पहले देश की कई राजनीतिक पार्टियों के वादों ने देश में सट्टा बाजार जैसी स्थिति बना दी है.

1- भाजपा ने किसानों को 6000 रुपए देने से की शुरुआत

इस सट्टा बाजार में भाव लगाने की शुरुआत देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा ने की. उसने लोकसभा चुनावों से काफी पहले, बजट पेश करने के साथ ही अपने ऑफर की घोषणा कर दी थी. भाजपा ने ये ऑफर किसानों के लिए दिया, जिसमें किसानों को 2-2 हजार रुपए की तीन किश्तों में साल भर में 6000 रुपए देने की पेशकश की. भले ही ये घोषणा बजट में की गई, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि चुनावों से पहले के अंतरिम बजट में ऐसी घोषणा चुनावों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक फायदा उठाने के लिए ही की गई थी.

2- कांग्रेस ने 12000 रुपए महीने का धमाका कर...

चुनावों के मौसम में सट्टा बाजार में हलचल बढ़ने की खबरें तो आपने खूब सुनी होंगी, लेकिन कभी राजनीतिक पार्टियों का सट्टा बाजार नहीं देखा होगा. लोकसभा चुनाव से पहले देश की कई राजनीतिक पार्टियों के वादों ने देश में सट्टा बाजार जैसी स्थिति ही बना दी है. इस सट्टा बाजार में फिलहाल भाजपा, कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) ने अपने भाव जारी किए हैं. अब बारी है जनता की ओर से बोलियां लगने यानी वोट देने की.

सट्टा बाजार का एक ट्रेंड होता है कि जो पार्टी जितनी कमजोर होती है या जिसके जीतने की संभावनाएं जितनी कम होती हैं, उसका भाव उतना ही अधिक होता है. कुछ ऐसा ही इन दिनों भी देखने को मिल रहा है. भाजपा सबसे मजबूत है तो उसका भाव सबसे कम है यानी उसका ऑफर सबसे कम है. जबकि सीपीआईएम के जीतने की संभावनाएं लगभग ना के बराबर हैं तो उसका भाव सबसे अधिक है. अब अगर इस रेस में कोई चौथी पार्टी भी कूद पड़ती है तो यकीनन उसका ऑफर और भी बड़ा होगा.

लोकसभा चुनाव से पहले देश की कई राजनीतिक पार्टियों के वादों ने देश में सट्टा बाजार जैसी स्थिति बना दी है.

1- भाजपा ने किसानों को 6000 रुपए देने से की शुरुआत

इस सट्टा बाजार में भाव लगाने की शुरुआत देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा ने की. उसने लोकसभा चुनावों से काफी पहले, बजट पेश करने के साथ ही अपने ऑफर की घोषणा कर दी थी. भाजपा ने ये ऑफर किसानों के लिए दिया, जिसमें किसानों को 2-2 हजार रुपए की तीन किश्तों में साल भर में 6000 रुपए देने की पेशकश की. भले ही ये घोषणा बजट में की गई, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि चुनावों से पहले के अंतरिम बजट में ऐसी घोषणा चुनावों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक फायदा उठाने के लिए ही की गई थी.

2- कांग्रेस ने 12000 रुपए महीने का धमाका कर दिया

भाजपा की घोषणा तो सिर्फ किसानों के लिए थी और 6000 रुपए सालाना की थी. कांग्रेस ने तो न्यूनतम स्कीम गारंटी योजना का ऑफर रख दिया, जिसके तहत सत्ता में आने पर 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों को सालाना 72000 रुपए देने की पेशकश की. साथ ही इन 20 फीसदी परिवारों का न्यूनतम वेतन 12000 रुपए तक कर देने का भी ऑफर दिया गया. भाजपा के जीतने की संभावनाएं अधिक हैं तो उसने सिर्फ 6000 का दाव खेल, जबकि कांग्रेस की संभावनाएं कम हैं तो उसने 72000 का ऑफर दे डाला.

3- सीपीआईएम का वादा 18000 रु. का!

गुरुवार को घोषणा पत्र जारी करने वाली राजनीतिक पार्टी सीपीआईएम ने तो सारी हदें ही पार कर दी हैं. पार्टी का ऑफर है कि अगर वह सत्ता में आए तो न्यूनतम वेतन 18,000 रुपए प्रति माह कर देंगे. इसके लिए वह अमीरों पर लगाया जाने वाला टैक्स बढ़ाएंगे और उसका फायदा गरीबों को देंगे.

जिस तरह सट्टा बाजार में बोलियां लगती हैं अब जल्द ही माहौल कुछ वैसा ही होने वाला है. यानी अब चुनावों में वोटर्स अपने वोट देंगे. खैर, सट्टा बाजार में तो सिर्फ भाव देखकर बोली लगती है, लेकिन राजनीति के सट्टा बाजार में भाव के साथ-साथ कई तरह के फैक्टर्स काम करते हैं. इसमें बयानबाजी से लेकर जुमलेबाजी तक शामिल है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी का ऑफर लोगों को पसंद आता है. अभी तो इस सट्टा बाजार में 3 पार्टियां हैं, लेकिन अगर कोई चौथी पार्टी इनसे भी बड़ा ऑफर लेकर आ जाए तो हैरानी नहीं होगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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