• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

MCD नतीजों के बाद कैसा होगा केजरीवाल के लिए आगे का सफर

    • आईचौक
    • Updated: 26 अप्रिल, 2017 02:03 PM
  • 26 अप्रिल, 2017 02:03 PM
offline
अरविंद केजरीवाल के लाख मना करने के बावजूद लोगों ने बीजेपी को वोट दे ही दिया, इसलिए अगर अब दिल्ली में किसी को डेंगू होता है तो उसके लिए केजरीवाल को कोई जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता.

एमसीडी चुनाव के नतीजे आने के बाद अरविंद केजरीवाल को शायद मेडिटेशन के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत न पड़े. असल में वो पहले से ही तनाव मुक्ति का उपाय खोज चुके हैं.

केजरीवाल के लाख मना करने के बावजूद लोगों ने बीजेपी को वोट दे ही दिया, इसलिए अगर अब दिल्ली में किसी को डेंगू होता है तो उसके लिए केजरीवाल को कोई जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता.

लोग भले ही उन्हें इस तरीके से बख्श दें, लेकिन क्या आम आदमी पार्टी के लोगों का भी बर्ताव वैसा ही होगा? क्या विरोधियों के खिलाफ केजरीवाल पुराना आक्रामक तेवर बरकरार रख पाएंगे - और फिर 2019 में? अब तो ऐसे सवालों की झड़ी लग जाएगी - और केजरीवाल को हर सवाल का जवाब देना ही होगा.

पार्टी के भीतर क्या होगा

आप के अंदर से केजरीवाल के खिलाफ बड़ी टिप्पणी पंजाब से आयी है. आप नेता भगवंत मान ने एक इंटरव्यू में दो टूक कह दिया है, "EVM में खामी खोजने से कोई फायदा नहीं होने वाला. पार्टी नेतृत्व ने चुनावों को लेकर बनाई गई रणनीति में ऐतिहासिक गलती की है. पहले पार्टी को अपने भीतर झांकना चाहिए ताकि उन कारणों का पता चल सके जिसने आप को सत्ता के रास्ते में रोक दिया."

मान ने केजरीवाल के खिलाफ जम कर भड़ास निकाली है और पंजाब चुनाव में मोहल्ले की क्रिकेट टीम की तरह चुनाव लड़ने की बात कही है. मान की नजर में हाल ये रहा जैसे मोहल्ला क्रिकेट टीम में हर प्लेयर खुद तय करता है कि उसे कहां फील्डिंग करनी है, किस नंबर पर बैटिंग करने के लिए उतरना है और कब बॉलिंग करनी है?

क्या मान को भी नतीजों का इंतराज था....

मान ने भी पार्टी नेतृत्व पर वैसे ही उंगली उठायी है जैसे कभी योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने उठायी थी, लेकिन तब की बात और थी. अभी तो हालत ये है कि पार्टी नहीं बल्कि मान तय करेंगे कि...

एमसीडी चुनाव के नतीजे आने के बाद अरविंद केजरीवाल को शायद मेडिटेशन के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत न पड़े. असल में वो पहले से ही तनाव मुक्ति का उपाय खोज चुके हैं.

केजरीवाल के लाख मना करने के बावजूद लोगों ने बीजेपी को वोट दे ही दिया, इसलिए अगर अब दिल्ली में किसी को डेंगू होता है तो उसके लिए केजरीवाल को कोई जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता.

लोग भले ही उन्हें इस तरीके से बख्श दें, लेकिन क्या आम आदमी पार्टी के लोगों का भी बर्ताव वैसा ही होगा? क्या विरोधियों के खिलाफ केजरीवाल पुराना आक्रामक तेवर बरकरार रख पाएंगे - और फिर 2019 में? अब तो ऐसे सवालों की झड़ी लग जाएगी - और केजरीवाल को हर सवाल का जवाब देना ही होगा.

पार्टी के भीतर क्या होगा

आप के अंदर से केजरीवाल के खिलाफ बड़ी टिप्पणी पंजाब से आयी है. आप नेता भगवंत मान ने एक इंटरव्यू में दो टूक कह दिया है, "EVM में खामी खोजने से कोई फायदा नहीं होने वाला. पार्टी नेतृत्व ने चुनावों को लेकर बनाई गई रणनीति में ऐतिहासिक गलती की है. पहले पार्टी को अपने भीतर झांकना चाहिए ताकि उन कारणों का पता चल सके जिसने आप को सत्ता के रास्ते में रोक दिया."

मान ने केजरीवाल के खिलाफ जम कर भड़ास निकाली है और पंजाब चुनाव में मोहल्ले की क्रिकेट टीम की तरह चुनाव लड़ने की बात कही है. मान की नजर में हाल ये रहा जैसे मोहल्ला क्रिकेट टीम में हर प्लेयर खुद तय करता है कि उसे कहां फील्डिंग करनी है, किस नंबर पर बैटिंग करने के लिए उतरना है और कब बॉलिंग करनी है?

क्या मान को भी नतीजों का इंतराज था....

मान ने भी पार्टी नेतृत्व पर वैसे ही उंगली उठायी है जैसे कभी योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने उठायी थी, लेकिन तब की बात और थी. अभी तो हालत ये है कि पार्टी नहीं बल्कि मान तय करेंगे कि उन्हें क्या करना है. वैसे भी मान के लोक सभा चुनाव जीतने में आप से ज्यादा खुद उनकी भूमिका रही.

जीत के बाद कोई सवाल नहीं पूछता लेकिन हार के बाद तो सवालों की बौछार स्वाभाविक होती है. अनर्विरोध का ये सिलसिला अब सिर्फ मान तक ही सीमित नहीं रहेगा. अगर किसी को पार्टी में बने रह कर अपनी कोई और दुकान चलानी है फिर तो कोई बात नहीं, वरना कोई भी महत्वाकांक्षी नेता खामोश नहीं रहने वाला.

फिर क्या हो सकता है?

जैसी भगदड़ फिलहाल कांग्रेस में मची हुई है, आप को भी वैसी ही स्थिति से जूझना पड़ सकता है. वैसे भी बीजेपी के मुक्ति अभियान में हर किसी के पास खुला ऑप्शन है. संभव है कुछ लोग आप का चोला उतारकर बीजेपी का दामन थाम लें.

हाल फिलहाल केजरीवाल का कहना था कि मतभेदों के कारण पार्टी छोड़ कर चले गये लोग वापस आ सकते हैं. नतीजे के बाद तो ये नामुमकिन लगता है. हां, अगर केजरीवाल खुद मनाने जायें और यकीन दिलायें कि साथ मिल कर काम करेंगे तो सिर्फ मुश्किल ही कहा जा सकता है क्योंकि इस चुनाव में मिला तो उन्हें भी कुछ नहीं है.

शूंगलू कमेटी रिपोर्ट की गाज

जब दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग थे तभी पूर्व CAG वीके शूंगलू के नेतृत्व में तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी. शुंगलू कमेटी का गठन ये पता लगाने के लिए हुआ था कि केजरीवाल सरकार की ओर से किए गए फैसले नियमों के अनुसार हैं कि नहीं. जब तक शूंगली कमेटी 404 फाइलों की जांच के बाद 101 पन्नों की रिपोर्ट तैयार करती, नजीब जंग की जगह अनिल बैजल दिल्ली के उपराज्यपाल बन चुके थे.

शूंगलू कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार की नियुक्तियों और आबंटन को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. पहले तो आप नेताओं ने शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट को काउंटर करने के लिए इसके सार्वजनिक करने के समय पर सवाल उठाया. जब उन्हें पता चला कि ये रिपोर्ट उपराज्यपाल या बीजेपी की ओर से नहीं, बल्कि दिल्ली कांग्रेस चीफ अजय माकन की आरटीआई से सामने आई तो वे बगलें झांकने लगे.

शूंगलू कमेटी ने पाया कि फरवरी 2015 से सितंबर 2016 के बीच दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने तीन सौ से ज्यादा फैसले लिए और उपराज्यपाल को कैबिनेट के एजेंडे के बारे में पहले से सूचना नहीं मिले ये सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने नियमों को तोड़-मरोड़ कर 150 से ज्यादा फैसले लिए. शूंगलू कमेटी की रिपोर्ट सामने आई तो उपराज्यपाल अनिल बैजल ने सबसे पहले आप के दफ्तर का आबंटन रद्द कर दिया.

आप की मुसीबतें बढ़ाने वाला उपराज्यपाल का एक और फैसला भी रहा जिसमें विज्ञापन पर खर्च हुए 97 करोड़ रुपये महीने भर के भीतर वसूलने का आदेश जारी किया गया है. फिलहाल केजरीवाल उसे अदालत में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं.

दिल्ली सरकार के एक अधिकारी के हवाले से आई मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि जिस तरह की अनियमितता की बात शूंगलू कमेटी ने बतायी है उससे तो केजरीवाल सरकार को बर्खास्त करने से लेकर उन पर और गलत तरीके से फायदा लेने वालों पर मुकदमा भी चल सकता है. हालांकि, ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि राजनीति इस मामले में कौन सा करवट लेती है.

आम आदमी पार्टी की मुसीबतों का पहाड़ तो 21 विधायकों के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्ति का केस भी है जो चुनाव आयोग में चल रहा है.

राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी दलों के बीच स्थिति

आप में मान और कांग्रेस में वीरप्पा मोइली की राय अपनी जगह है, लेकिन हकीकत ये भी है कि EVM के नाम पर विपक्ष एकजुट हो रहा है. EVM टेंपरिंग ऐसा मुद्दा है जिसके खिलाफ मायावती भी समाजवादी पार्टी के साथ आने को तैयार हो गयी हैं - और अपनी सरकार में खुद EVM लाने वाली कांग्रेस भी विरोध का झंडा लेकर कभी चुनाव आयोग के दफ्तर तो कभी राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने में कोई कोताही नहीं बरत रही है.

पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव से पहले आप नेता सातवें आसमान से नीचे उतरने को तैयार नहीं थे. यही बड़ी वजह रही कि महागठबंधन की कोशिशों में नीतीश और ममता को केजरीवाल का साथ हमेशा आधे अधूरे मन से ही मिल पाया. अब हार दर हार से आम आदमी पार्टी के तेवर जरूर कम पड़ेंगे और वो बीजेपी विरोध के नाम पर अकेले चलने की जगह बाकियों के साथ चलने पर तैयार हो सकती है. वैसे केजरीवाल के आंदोलनकारी अंदाज को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि ये सब कुछ यूं ही हो जाएगा.

मान की बात में दम है या नहीं?

ये तो सच है कि महागठबंधन में शामिल होकर भी केजरीवाल जब तक कोई कमाल नहीं दिखा पाते भीड़ का हिस्सा ही बने रहेंगे. ऐसे में अगर उन्हें लगता है कि अलग रह कर भी वो शोर मचाकर राजनीतिक विमर्श को आगे बढ़ा सकते हैं तो कहना मुश्किल है कि किसी महागठबंधन का हिस्सा वो आसानी से बन पाएंगे.

संभव ये भी है कि बीजेपी के खिलाफ केजरीवाल और आक्रामक हो जायें. आखिरे आप ने गुजरात की सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ने का वादा भी तो कर रखा है. गुजरात में नीतीश ने भी दिलचस्पी दिखायी है. अगर महागठबंधन की स्थिति बन पायी तो नीतीश गुजरात में विरोध की आवाज हार्दिक पटेल का साथ लेते हुए केजरीवाल और कांग्रेस को साथ आने के लिए भी समझा सकते हैं.

2019 के लिए आप की क्या भूमिका होगी

2019 के लिए केजरीवाल भी नीतीश कुमार और ममता बनर्जी की तरह बराबर के दावेदार हैं. नीतीश ने बिहार और ममता पश्चिम बंगाल चुनाव जीत कर खुद को साबित कर चुके हैं लेकिन केजरीवाल दिल्ली के अलावा हार का ही रिकॉर्ड बनाते जा रहे हैं. मौजूदा स्थिति तो ऐसी लग रही है कि 2019 की रेस में केजरीवाल नीतीश और ममता से पिछड़ चुके हैं.

2019 से पहले दर्जन भर विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, लेकिन केजरीवाल का जोर अभी तक गुजरात पर ही सामने आया है. अभी तो यही लगता है कि एमसीडी के नतीजे आप के लिए गुजरात के एग्जिट पोल जैसे नजर आ रहे हैं - आगे का रास्ता तो उसके बाद ही नजर आएगा.

इन्हें भी पढ़ें :

देखिए, दिल्ली के MCD चुनाव में EVM ने कैसे केजरीवाल को हराया...

दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा की जीत के 6 कारण

एमसीडी चुनाव के नतीजे बीजेपी और आप के लिए ये बदलाव लाएंगे

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲