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अमित शाह: गृह-राज्‍य से बेदखल विधायक का सबसे कामयाब चुनावी मशीन बन जाना

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 22 अक्टूबर, 2018 09:28 PM
  • 22 अक्टूबर, 2018 09:24 PM
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2010 में अमित शाह की कुर्सी चली गई, रुतबा छिन गया, अपनी मेहनत से जो जमीन तैयार की थी, वो पैरों तले खिसक गई. लेकिन बावजूद इन सबके उनके साथ था नरेंद्र मोदी का भरोसा, जिसके दम पर उन्होंने पार्टी को एक नई बुलंदी पर पहुंचा दिया.

अमित शाह आज भारतीय जनता पार्टी का वो चेहरा हैं, जिसने पार्टी को बुलंदी तक ले जाने में अहम भूमिका अदा की है. लेकिन कभी अमित शाह की हालत ऐसी हो गई थी, जिसमें अक्सर लोग टूट जाया करते हैं. आज से 8 साल पहले अमित शाह को गुजरात से लंबे समय के लिए तड़ीपार कर दिया गया. जो अब तक गुजरात के गृहमंत्री थे, अब वह गुजरात में कदम भी नहीं रख सकते थे. कुर्सी चली गई, रुतबा छिन गया, अपनी मेहनत से जो जमीन तैयार की थी, वो पैरों तले खिसक गई. लेकिन बावजूद इन सबके उनके साथ था नरेंद्र मोदी का भरोसा. इन 8 सालों में अमित शाह ने न सिर्फ अपने लिए जमीन तैयार की, बल्कि ऐसा काम किया कि पूरी पार्टी के लिए जमीन तैयार कर दी. जो शख्स कभी महज एक 'सूबाबदर' विधायक बनकर रह गया था, आज उस शख्स की हैसियत इतनी हो गई है कि कार्यकाल खत्म होने के बावजूद पार्टी उसे अध्यक्ष पद से हटने नहीं देना चाहती है.

अमित शाह की जिंदगी से हर कोई प्रेरणा ले सकता है.

कभी स्टॉकब्रोकर हुआ था करते थे अमित शाह

बायोकैमिस्ट्री में ग्रेजुएशन करने के बाद अमित शाह ने अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटाया, जो PVC पाइप का बिजनेस करते थे. इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक स्टॉकब्रोकर का काम भी किया. अपने इस एक्सपीरियंस के दम पर उन्होंने कई को-ऑपरेटिव बैंकों में भी काम किया. अमित शाह बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हुए थे और ग्रेजुएशन के बाद आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए. आरएसएस की शाखा में ही उनकी मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई थी, जिसके बाद धीरे-धीरे वह नरेंद्र मोदी के बेहद खास और भरोसे के इंसान बन गए.

1986 में वह भाजपा में शामिल हुए और उसके बाद से ही वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्ण कालिक कार्यकर्ता बन गए. एक स्टॉक ब्रोकर का काम संभावनाओं को पहले से पहचानना और उसी के हिसाब से रणनीति...

अमित शाह आज भारतीय जनता पार्टी का वो चेहरा हैं, जिसने पार्टी को बुलंदी तक ले जाने में अहम भूमिका अदा की है. लेकिन कभी अमित शाह की हालत ऐसी हो गई थी, जिसमें अक्सर लोग टूट जाया करते हैं. आज से 8 साल पहले अमित शाह को गुजरात से लंबे समय के लिए तड़ीपार कर दिया गया. जो अब तक गुजरात के गृहमंत्री थे, अब वह गुजरात में कदम भी नहीं रख सकते थे. कुर्सी चली गई, रुतबा छिन गया, अपनी मेहनत से जो जमीन तैयार की थी, वो पैरों तले खिसक गई. लेकिन बावजूद इन सबके उनके साथ था नरेंद्र मोदी का भरोसा. इन 8 सालों में अमित शाह ने न सिर्फ अपने लिए जमीन तैयार की, बल्कि ऐसा काम किया कि पूरी पार्टी के लिए जमीन तैयार कर दी. जो शख्स कभी महज एक 'सूबाबदर' विधायक बनकर रह गया था, आज उस शख्स की हैसियत इतनी हो गई है कि कार्यकाल खत्म होने के बावजूद पार्टी उसे अध्यक्ष पद से हटने नहीं देना चाहती है.

अमित शाह की जिंदगी से हर कोई प्रेरणा ले सकता है.

कभी स्टॉकब्रोकर हुआ था करते थे अमित शाह

बायोकैमिस्ट्री में ग्रेजुएशन करने के बाद अमित शाह ने अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटाया, जो PVC पाइप का बिजनेस करते थे. इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक स्टॉकब्रोकर का काम भी किया. अपने इस एक्सपीरियंस के दम पर उन्होंने कई को-ऑपरेटिव बैंकों में भी काम किया. अमित शाह बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हुए थे और ग्रेजुएशन के बाद आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए. आरएसएस की शाखा में ही उनकी मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई थी, जिसके बाद धीरे-धीरे वह नरेंद्र मोदी के बेहद खास और भरोसे के इंसान बन गए.

1986 में वह भाजपा में शामिल हुए और उसके बाद से ही वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्ण कालिक कार्यकर्ता बन गए. एक स्टॉक ब्रोकर का काम संभावनाओं को पहले से पहचानना और उसी के हिसाब से रणनीति बनाना होता है. अमित शाह इसमें कितने माहिर थे, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पार्टी में शामिल होने के महज कुछ सालों के बाद ही 1991 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने गांधी नगर में लाल कृष्ण आडवाणी के लिए कैंपेन किया. इसके बाद उन्होंने 1996 में भी आडवाणी के लिए कैंपेन किया. इन सबने अमित शाह को एक बेहतर रणनीतिकार और चुनाव मैनेजर बना दिया. जब 2002 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो अमित शाह को गृह मंत्रालय, संसदीय मामलों का मंत्रालय और कानून और व्यवस्था का जिम्मा सौंप दिया गया, जिसे वह बखूबी निभाते रहे. लेकिन 2010 उनके जीवन में सबसे बड़ा झटका बनकर आया.

अमित शाह को दे दिया गया था राज्‍य-निकाला

गुजरात का गृहमंत्री रहने के दौरान सीबीआई ने 2010 में हत्या के तीन मामलों में अमित शाह को आरोपी बनाया. सीबीआई ने उन पर गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख के साथ एक फिरौती रैकेट में शामिल होने का आरोप लगाया था. साथ ही यह भी आरोप था कि 2004 के जिस फर्जी एनकाउंटर में इशरत जहां और तीन अन्य लोगों की हत्या हुई थी, उसमें भी अमित शाह के शामिल होने का आरोप था. इसके अलावा एक महिला आर्किटेक्ट की गुजरात पुलिस के कथित रूप से अवैध जासूसी का मामला भी उन पर चलाया गया. इन सब मामलों में फंसने के बाद वह 2010 में गिरफ्तार हुए. सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए उनके गुजरात में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया. सितंबर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गुजरात में वापस आने की इजाजत दे दी.

गुजरात से बाहर रहते हुए यूपी को किला बना दिया

उत्तर प्रदेश की सत्ता से भाजपा लंबे समय तक दूर रही थी. गुजरात से तड़ीपार होने के बाद अमित शाह ने यूपी को अपना नया ठिकाना बनाया. यूपी में अमित शाह सिर्फ दिन गुजारने या जिंदगी काटने के लिए नहीं रहे, बल्कि जितने समय रहे, उतने समय में उन्होंने यूपी में भाजपा के लिए जमीन तैयार की. शुरुआती दो सालों में तो वह कुछ खास नहीं कर सके और यूपी की सत्ता समाजवादी पार्टी के पास चली गई, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव आने तक उन्होंने इतनी तगड़ी तैयारी कर दी थी कि 17 साल बाद यूपी में भाजपा की वापसी हो गई. वापसी भी ऐसी-वैसी नहीं, बल्कि प्रचंड बहुमत के साथ. यूपी की - सपा और बसपा - दोनों बड़ी पार्टियों को भाजपा के सामने घुटने टेकने पड़े. यूपी में जो तैयारी अमित शाह ने की थी, उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि उन्होंने बुवाई-जुताई कर के फसल तैयार कर दी थी, 2017 में तो बस उसे काटने की देर थी. ये कहना गलत नहीं होगा कि जिस अमित शाह पर पीएम मोदी ने इतना भरोसा किया, उन्होंने यूपी की सत्ता थाली में सजाकर उनके सामने रख दी.

यूपी में रहकर अमित शाह ने पार्टी के लिए राजनीति की जमीन तैयार की.

भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद चुनाव मशीन बन गए

बात भले ही गोवा चुनाव की हो, मणिपुर की हो या फिर बिहार की क्यों ना हो. हर जगह आज भाजपा का ही कब्जा है. देश के कुल 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भाजपा की सरकार है. गोवा, मणिपुर और मेघालय के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बावजूद उसके भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ऐसी रणनीति बनाई कि तीनों जगहों पर भाजपा की ही सरकार बन गई. बिहार में भाजपा को करारी हार मिली थी और महागठबंधन जीत गया था. लेकिन महागठबंधन कुछ ही समय बाद टूटा और नीतीश कुमार दोबारा से भाजपा के पाले में आ गए.

इस बात की भले ही किसी को उम्मीद ना हो कि त्रिपुरा में भाजपा जीत सकती है, लेकिन अमित शाह का भरोसा नहीं डगमगाया. उन्होंने मोबाइल फोन को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. उन्होंने वोटर्स की प्रोफाइलिंग की और उन्हें टारगेटेड मैसेज भेजे. लोगों की प्रोफाइलिंग के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया गया. मेहनत रंग लाई और त्रिपुरा चुनावों में सत्ता भाजपा के हाथ आ गई. नॉर्थ-ईस्ट के जिस राज्य में भाजपा को लोग ठीक से जानते भी नहीं थे, वहां भी जीत का परचम लहराकर पीएम अमित शाह ने एक रिकॉर्ड ही बना दिया.

भले ही 2014 के लोकसभा चुनावों में अमित शाह की बड़ी भूमिका रही हो या नहीं, भले ही 2014 की जीत का क्रेडिट प्रशांत किशोर को मिला हो, लेकिन पार्टी ये अच्छे से जानती है कि अमित शाह की इस समय क्या अहमियत है. यही वजह है कि हाल ही में हुई कार्यकारिणी की बैठक में ये फैसला किया गया है कि 2019 लोकसभा चुनावों तक अमित शाह अपने पद पर बने रहेंगे. आपको बता दें कि अमित शाह का पार्टी अध्यक्ष के तौर पर दूसरा 3 साल का कार्यकाल जनवरी 2019 में ही समाप्त हो रहा है. अमित शाह सिर्फ राजनीति में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत नहीं हैं, बल्कि वो लोग भी उनसे प्रेरणा ले सकते हैं जो मुसीबत की घड़ी में टूट जाते हैं. जब सारे रास्ते बंद लगने लगें, उस समय भी कैसे आगे बढ़ना है और एक नया मुकाम बनाना है, ये भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बहुत अच्छे से समझते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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