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थैंक यू कन्हैया, 'देश' में 'भक्ति' जगाने के लिए!

    • आईचौक
    • Updated: 19 फरवरी, 2016 04:07 PM
  • 19 फरवरी, 2016 04:07 PM
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आपको उन्हें सबक सिखानी है जिन्हें भूख से आजादी चाहिए, जिन्हें जातिवाद से आजादी चाहिए, जिन्हें संघवाद से आजादी चाहिए, जिन्हें...

कन्हैया का शुक्रिया तो कहना ही चाहिए. आखिर कन्हैया की ही बदौलत तो 'देश' और 'भक्ति' पर तस्वीर साफ हुई है. कन्हैया ने वो पर्दा भी हटा दिया जिसके साये में राष्ट्रवादी भक्ति और मैन्युफैक्चर्ड देशभक्ति आमने सामने खड़ी हो गई है.

भक्ति और आस्था

ये दुनिया का सबसे पुराना नहीं सबसे बड़ा लोकतंत्र है. ये अमेरिका नहीं कि पैदा हुए और पैट्रियट हो गये, यहां सिर्फ पैदा होने या कानून का पालन करने या फिर अपने मुल्क से बेहनाह मोहब्बत से काम नहीं चलने वाला.

अपनी देशभक्ति दिखाने के लिए आपको सड़क पर उतरना होगा. हो सके तो घर से मन ऐसा बना कर निकलें कि कानून हाथ में भी लेना पड़े तो बचपन में मिला कोई मोरल एजुकेशन आड़े न आए.

आपको उन्हें सबक सिखानी है जिन्हें भूख से आजादी चाहिए, जिन्हें जातिवाद से आजादी चाहिए, जिन्हें संघवाद से आजादी चाहिए, जिन्हें सांप्रदायिकता और किसी खास विचारधारा से आजादी चाहिए?

"आइए हम आपको आजादी दिलाते हैं. शुक्र मनाइए उस वक्त हमारे हाथ में बंदूक न हो. शुक्र मनाइए उस वक्त आस पास खड़े हमारे खाकी गणवेशधारियों के हाथ में बंदूक न हो. वरना, हम उनसे बंदूक और कानून दोनों हाथ में ले लेंगे और..."

"...और आजादी तो हम आपको इस दुनिया से ही दिला देंगे. आपको आजादी चाहिए? बस देखते रहिये." शुक्रिया कन्हैया सबको ये अहसास दिलाने के लिए. अगर कन्हैया जेल न जाते तो शायद ये किसी को पता भी न चलता.

तिरंगा तले...

आप खाली हाथ चले आए ये कैसी देशभक्ति. आपने चप्पल पहनी कंधे पर झोला लटकाए और पॉकेट में एक पेन रख ली ये कैसी देशभक्ति भई? देशभक्ति तो तब समझ में आएगी जब आपके एक हाथ में तिरंगा हो और दूसरे हाथ में पत्थर. दिमाग में कोई फितूर और सड़क पर कुछ कर गुजरने का माद्दा हो.

अगर आपको लगे कि कोई देशद्रोही है तो उसे वहीं ठिकाने लगाने के बारे में सोचिये. आपमें चेहरा पढ़ने की काबिलियत होनी चाहिए. इसके लिए कुछ दिन शाखाओं में पहुंचना होगा. बाकी सब वहीं आपको बता दिया...

कन्हैया का शुक्रिया तो कहना ही चाहिए. आखिर कन्हैया की ही बदौलत तो 'देश' और 'भक्ति' पर तस्वीर साफ हुई है. कन्हैया ने वो पर्दा भी हटा दिया जिसके साये में राष्ट्रवादी भक्ति और मैन्युफैक्चर्ड देशभक्ति आमने सामने खड़ी हो गई है.

भक्ति और आस्था

ये दुनिया का सबसे पुराना नहीं सबसे बड़ा लोकतंत्र है. ये अमेरिका नहीं कि पैदा हुए और पैट्रियट हो गये, यहां सिर्फ पैदा होने या कानून का पालन करने या फिर अपने मुल्क से बेहनाह मोहब्बत से काम नहीं चलने वाला.

अपनी देशभक्ति दिखाने के लिए आपको सड़क पर उतरना होगा. हो सके तो घर से मन ऐसा बना कर निकलें कि कानून हाथ में भी लेना पड़े तो बचपन में मिला कोई मोरल एजुकेशन आड़े न आए.

आपको उन्हें सबक सिखानी है जिन्हें भूख से आजादी चाहिए, जिन्हें जातिवाद से आजादी चाहिए, जिन्हें संघवाद से आजादी चाहिए, जिन्हें सांप्रदायिकता और किसी खास विचारधारा से आजादी चाहिए?

"आइए हम आपको आजादी दिलाते हैं. शुक्र मनाइए उस वक्त हमारे हाथ में बंदूक न हो. शुक्र मनाइए उस वक्त आस पास खड़े हमारे खाकी गणवेशधारियों के हाथ में बंदूक न हो. वरना, हम उनसे बंदूक और कानून दोनों हाथ में ले लेंगे और..."

"...और आजादी तो हम आपको इस दुनिया से ही दिला देंगे. आपको आजादी चाहिए? बस देखते रहिये." शुक्रिया कन्हैया सबको ये अहसास दिलाने के लिए. अगर कन्हैया जेल न जाते तो शायद ये किसी को पता भी न चलता.

तिरंगा तले...

आप खाली हाथ चले आए ये कैसी देशभक्ति. आपने चप्पल पहनी कंधे पर झोला लटकाए और पॉकेट में एक पेन रख ली ये कैसी देशभक्ति भई? देशभक्ति तो तब समझ में आएगी जब आपके एक हाथ में तिरंगा हो और दूसरे हाथ में पत्थर. दिमाग में कोई फितूर और सड़क पर कुछ कर गुजरने का माद्दा हो.

अगर आपको लगे कि कोई देशद्रोही है तो उसे वहीं ठिकाने लगाने के बारे में सोचिये. आपमें चेहरा पढ़ने की काबिलियत होनी चाहिए. इसके लिए कुछ दिन शाखाओं में पहुंचना होगा. बाकी सब वहीं आपको बता दिया जाएगा.

फिर आप चाहे जिस वेश में रहें. चाहे काला कोट पहनें या फिर खाकी पैंट. माना गणवेश ही जाएगा. बस आप उस विचार को ही सर्वोच्च मानते हों. बस उस विचार को आप संविधान या सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानते हों. हां, एक बाद ध्यान रखिए - सिर्फ मानने या सोचने से काम नहीं चलने वाला वो विचार आपके एक्शन में नजर आना चाहिए.

आपको मालूम हैं ना, जिसकी लाठी उसकी भैंस. आपको जो लाठी मिली है उसका हमेशा मान रखना. आक्रामक होना सबसे बड़ी रक्षात्मक नीति है. आप बस अपना भक्ति-प्रदर्शन कीजिए. बाकी सब हम देख लेंगे.

शुक्रिया कन्हैया, आपकी बदौलत ही पता चला कि ये सब नैसर्गिक है, मैन्युफैक्चर्ड नहीं.

शुक्रिया कन्हैया, आपने बहुतों की आंखें खोल दीं. बहुत से चेहरों से नकाब उतार दिया.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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