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कश्मीर की आग से अपने घर की रोटियां सेंक रहे हैं गिलानी!

    • माजिद हैदरी
    • Updated: 06 जून, 2017 01:28 PM
  • 06 जून, 2017 01:28 PM
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अब इसे आप भाई-भतीजावाद कहें या फिर संयोग, लेकिन कश्मीर में फैली हिंसा और अशांति का फायदा गिलानी के परिवार को मिला है. गिलानी के पोते को चोर दरवाजे से कश्मीर सरकार ने सरकारी नौकरी दिला दी.

इंडिया टुडे के एक स्टिंग ऑपरेशन ने कश्मीर में अलगाववादियों के लिए पाकिस्तान द्वारा की जा रही फंडिंग का पर्दाफाश किया था. इसके बाद पाकिस्तान समर्थक सईद अली गिलानी ने अपने सहयोगी नईम खान को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस-जी की सदस्यता से निलंबित कर दिया.

स्टिंग ऑपरेशन से पता चलता है कि नईम खान नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष भी हैं. खान घाटी में हिंसा की आग को सुलगाए रखने के लिए पाकिस्तान से पैसे पाने की बात को स्वीकार करते हैं. हालांकि अलगाववादी नेता ने वीडियो फुटेज को झूठा और मनगढंत बताते हुए इसकी प्रामाणिकता को चुनौती दी है.

दिलचस्प बात यह है कि इंडिया टुडे की तरह, गिलानी भी वीडियो फुटेज झूठे होने के खान के दावों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. 20 मई को खान के इंडिया टुडे के स्टिंग के खिलाफ मीडिया को सफाई देने के कुछ घंटों के भीतर ही नेशनल फ्रंट और उसके अध्यक्ष को कश्मीर और 'आजाद कश्मीर' दोनों ही जगहों से तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था.

लेकिन फिर खान को निलंबित करने के लिए गिलानी ने जो भी तर्क दिया है वो बेवकूफी भरे नहीं हैं तो कम से कम विरोधाभासी तो हैं ही.

एक बयान में, गिलानी ने कहा कि भारतीय मीडिया 'पक्षपाती और अविश्वसनीय' है और ये 'आधारहीन' स्टिंग ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने और पाकिस्तान को अपने 'तुच्छ खेल' में शामिल करने की साजिश का हिस्सा है. अगर रिपोर्ट 'निराधार' और 'भ्रामक' है, तो फिर आखिर गीलानी साहब को खान का भरोसा करने से किसने रोका है?

आजादी किसकी?

इसका एक सीधा से जवाब है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कथित रूप से पाकिस्तान की तरफ से फंडिंग की जांच शुरू कर दी है, और इसलिए ही गिलानी ने एनआईए को अपने से दूर रखने के लिए खान से दूरी बनाने में ही भलाई समझी ताकि ऐसा न हो कि हुर्रियत-जी के...

इंडिया टुडे के एक स्टिंग ऑपरेशन ने कश्मीर में अलगाववादियों के लिए पाकिस्तान द्वारा की जा रही फंडिंग का पर्दाफाश किया था. इसके बाद पाकिस्तान समर्थक सईद अली गिलानी ने अपने सहयोगी नईम खान को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस-जी की सदस्यता से निलंबित कर दिया.

स्टिंग ऑपरेशन से पता चलता है कि नईम खान नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष भी हैं. खान घाटी में हिंसा की आग को सुलगाए रखने के लिए पाकिस्तान से पैसे पाने की बात को स्वीकार करते हैं. हालांकि अलगाववादी नेता ने वीडियो फुटेज को झूठा और मनगढंत बताते हुए इसकी प्रामाणिकता को चुनौती दी है.

दिलचस्प बात यह है कि इंडिया टुडे की तरह, गिलानी भी वीडियो फुटेज झूठे होने के खान के दावों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. 20 मई को खान के इंडिया टुडे के स्टिंग के खिलाफ मीडिया को सफाई देने के कुछ घंटों के भीतर ही नेशनल फ्रंट और उसके अध्यक्ष को कश्मीर और 'आजाद कश्मीर' दोनों ही जगहों से तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था.

लेकिन फिर खान को निलंबित करने के लिए गिलानी ने जो भी तर्क दिया है वो बेवकूफी भरे नहीं हैं तो कम से कम विरोधाभासी तो हैं ही.

एक बयान में, गिलानी ने कहा कि भारतीय मीडिया 'पक्षपाती और अविश्वसनीय' है और ये 'आधारहीन' स्टिंग ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने और पाकिस्तान को अपने 'तुच्छ खेल' में शामिल करने की साजिश का हिस्सा है. अगर रिपोर्ट 'निराधार' और 'भ्रामक' है, तो फिर आखिर गीलानी साहब को खान का भरोसा करने से किसने रोका है?

आजादी किसकी?

इसका एक सीधा से जवाब है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कथित रूप से पाकिस्तान की तरफ से फंडिंग की जांच शुरू कर दी है, और इसलिए ही गिलानी ने एनआईए को अपने से दूर रखने के लिए खान से दूरी बनाने में ही भलाई समझी ताकि ऐसा न हो कि हुर्रियत-जी के सुप्रीमो और उनके परिवार को एनआईए के चंगुल से बचाया जाए. जी हैं गिलानी परिवार को बचाने के लिए.

अब इसे आप भाई-भतीजावाद कहें या फिर संयोग, लेकिन कश्मीर में फैली हिंसा और अशांति का फायदा गिलानी के परिवार को मिला है. 2010 के जन आंदोलन में जब घाटी में 120 नागरिक मारे गए थे तब गिलानी का बेटा नईम गिलानी, पाकिस्तान में 12 साल बिताने के बाद स्थायी रूप से भारत वापस लौट आया था.

और इससे भी बड़ा एक 'संयोग' है. 2016 का विद्रोह जब अपने चरम पर था तब गिलानी ने कश्मीरी युवाओं से जामिया मस्जिद चलो विरोध को सफल करने की अपील की थी. गिलानी के दामाद और हुर्रियत के कार्यकारी सदस्य अलताफ फंटूस का बेटा अनीस उल इस्लाम ने सरकारी नौकरी के लिए एक इंटरव्यू में हिस्सा लिया. ये इंटरव्यू अनीस के लिए प्लेट पर सजा कर रखी गई थी. जिसे सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अगुवाई वाली सरकार ने तैयार किया था.

दिसंबर 2016 में, अनीस ने चुपचाप शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कंवेक्शन कॉम्प्लेक्स (एसकेआईसीसी) में 12 लाख रुपये सालाना से अधिक के वेतन पर एक रिसर्च ऑफिसर के रूप में ज्वाइन कर लिया. अनीस की भर्ती एक राज की तरह ही छुपी-दबी रह जाती लेकिन मार्च 2017 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसका खुलासा कर दिया. गिलानी के पोते की भर्ती के नियमों को ताक पर रखने की खबरें जंगल में आग की तरह फैल गई.

अनीस की ये भर्ती लगभग गुप्त भर्ती थी. हालांकि, गिलानी को बचाने के लिए सरकार ने यह बयान जारी किया कि एसकेआईसीसी ने उस पोस्ट के लिए 196 आवेदन प्राप्त किए थे, जिसमें से 35 उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया था. जिन लोगों का फाइनल सेलेक्शन हुआ न तो कभी उनकी कोई लिस्ट ही निकली और न ही कभी उन लोगों के नाम को सार्वजनिक किया गया.

इस तरह के भाई-भतीजेवाद की खबरों के बाद पता चला कि सरकार ने अनीस की पहचान एसआईकेआईसीसी के पास भी इस हद तक गोपनीय रखे कि उसे कश्मीर के दिवंगत मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के रिश्तेदार के रूप में पेश किया गया था.

चौंकाने वाली इन रहस्योद्घाटनों के बीच, कई लोग ने बात पूछना शुरू कर दिया कि आखिर क्यों गिलानी पिछली सर्दियों के बाद से बदले-बदले अंदाज में नजर आ रहा था. और इसे साबित करने के लिए बहुत सारे परिस्थितिजन्य सबूत भी थे.

6 दिसंबर, 2016 को, जब संयुक्त हुर्रियत विरोध का अपना पूरा ब्योरा जारी कर रहा था, तब उसने कश्मीर में पर्यटकों को आमंत्रित करने वाले विशेष हैंडआउट भी जारी किए थे. विरोध प्रदर्शन के बीच पर्यटन?

गिलानी के दामाद, अल्ताफ फन्टूस प्रमुख व्यापारी मुश्ताक छाया और सचिव पर्यटन फारूक अहमद शाह जैसे कुछ मध्यस्थों के माध्यम से कथित तौर पर सरकार के करीबी थे. और ये बात एक खुले रहस्य जैसी थी जिसे हर कोई जानता था लेकिन बात नहीं करता था. फारूक अहमद शाह ने ही इंटरव्यू बोर्ड की अध्यक्षता की थी.

एक ओर छाया का गिलानी के घर आना-जाना बढ़ा तो दूसरी तरफ हुर्रियत ने घाटी में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपने विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रमों को कम करना शुरू कर दिया था. इसलिए अगर गिलानी के दामाद फंटूस पर सरकार से अनुचित तरीके से सहायता लेने के आरोप लगे थे तो गिलानी ने उनके खिलाफ जांच करने की जहमत क्यों नहीं उठाई?

यदि नईम खान को सिर्फ आरोपों के आधार पर निलंबित कर दिया गया है, तो गिलानी के पोते को नियमों में बदलाव करके नौकरी दिलाना एक कटु सत्य है.

क्या नेताओं का मानना ​​है कि कश्मीर मुद्दे के नाम पर भारत सरकार से अनुचित लाभ की मांग करना बिल्कुल नॉर्मल है? भारत और पाकिस्तान दोनों की तरफ से फंडिंग के आरोप लगाना कश्मीर की राजनीति के लिए कोई नया नहीं है. यहां तक ​​कि एएस दुलट ने भी अपनी पुस्तक- कश्मीर: वाजपेयी ईयर्स में इसका समर्थन किया है.

गिलानी को अपनी चुप्पी को तोड़ने की जरूरत है, क्योंकि एक चिंतित पिता, एक देखभाल करने वाला दादा और दयालु ससुर होने के अलावा, वह निश्चित तौर पर कश्मीर के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं.

( DailyO से साभार )

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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