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Gandhi family पर बहस होना मौका है और Sonia Gandhi पर खत्म होना दस्तूर

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 25 अगस्त, 2020 08:51 PM
  • 25 अगस्त, 2020 08:51 PM
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कांग्रेस कार्यकारिणी (CWC Meet) की बैठक में उठापटक तो खूब हुई लेकिन अंतिम फैसला यही हुआ कि कमान सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के हाथ में ही रहेगी - और कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से अध्यक्ष पद संभालने की मांग कर आगे का इरादा भी जता दिया है.

कांग्रेस पार्टी में सब ठीक ठाक है - ये मैसेज भी है और सबूत है CWC में सोनिया गांधी को एक साल के लिए अंतरिम अध्यक्ष बनाये रखने का आम राय से हुआ फैसला. आम राय इसलिए भी कि एक खास लोकतांत्रिक परिवेश में विरोध की कोई अहमियत नहीं होती, हालांकि, कीमत चुकानी पड़ती है. अब अगर सोनिया गांधी की दस्तखत से आगे कोई बड़ी फेरबदल होती है तो ऐसा देखने को मिल सकता है.

आप भले ही कांग्रेस की इस व्यवस्था को 'ऑल इज वेल' की तरह न लें - लेकिन ये तो समझ ही सकते हैं कि ये कांग्रेस का 'न्यू नॉर्मल' स्वरूप है - और इस तरह CWC में जो कुछ हुआ वो कांग्रेस के लिए एक बेहतरीन मौका रहा - और यथास्थिति बनाये रखने को लेकर जो आखिरी फैसला हुआ वो कुछ और नहीं बल्कि कांग्रेस में चलता आ रहा दस्तूर है.कांग्रेस की अंतरिम कमान 23 सीनियर नेताओं की चिट्ठी पर मचे बवाल को लेकर बुलायी गयी कार्यकारिणी में तय हुआ कि अगले इंतजाम तक सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के हाथों में ही बनी रहेगी - और 4-5 महीने में कांग्रेस का अधिवेशन बुलाने और संगठन का चुनाव कराने कोशिश की जाएगी.

लब्बोलुआब ये है कि जैसे सब चलता रहा वैसे ही चलता रहेगा. कार्यकारिणी (CWC Meet) में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने जो गुस्सा दिखाया महज एक कार्यकारिणी सदस्य या एक मामूली सांसद के बूते की बात नहीं थी, लेकिन इशारा यही है कि अगले इंतजाम तक वो यूं ही 'अघोषित अध्यक्ष' के तौर पर काम करते रहेंगे.

खूब हुआ इमोशनल अत्याचार

नेहरू-गांधी परिवार के त्याग, तपस्या और बलिदान के किस्से तो तभी शुरू हो गये थे जब एक किताब को दिये प्रियंका गांधी वाड्रा के इंटरव्यू की बातें सामने आयीं और सुर्खियां बनीं. इंटरव्यू में प्रियंका गांधी वाड्रा ने राहुल गांधी के गैर-गांधी परिवार के कांग्रेस अध्यक्ष के विचार का सपोर्ट किया है - लेकिन फिर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का बयान आया कि वे साल भर पुरानी बातें हैं और अब उनका कोई मतलब नहीं है.

लगे हाथ रणदीप सुरजेवाला ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने और राहुल गांधी...

कांग्रेस पार्टी में सब ठीक ठाक है - ये मैसेज भी है और सबूत है CWC में सोनिया गांधी को एक साल के लिए अंतरिम अध्यक्ष बनाये रखने का आम राय से हुआ फैसला. आम राय इसलिए भी कि एक खास लोकतांत्रिक परिवेश में विरोध की कोई अहमियत नहीं होती, हालांकि, कीमत चुकानी पड़ती है. अब अगर सोनिया गांधी की दस्तखत से आगे कोई बड़ी फेरबदल होती है तो ऐसा देखने को मिल सकता है.

आप भले ही कांग्रेस की इस व्यवस्था को 'ऑल इज वेल' की तरह न लें - लेकिन ये तो समझ ही सकते हैं कि ये कांग्रेस का 'न्यू नॉर्मल' स्वरूप है - और इस तरह CWC में जो कुछ हुआ वो कांग्रेस के लिए एक बेहतरीन मौका रहा - और यथास्थिति बनाये रखने को लेकर जो आखिरी फैसला हुआ वो कुछ और नहीं बल्कि कांग्रेस में चलता आ रहा दस्तूर है.कांग्रेस की अंतरिम कमान 23 सीनियर नेताओं की चिट्ठी पर मचे बवाल को लेकर बुलायी गयी कार्यकारिणी में तय हुआ कि अगले इंतजाम तक सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के हाथों में ही बनी रहेगी - और 4-5 महीने में कांग्रेस का अधिवेशन बुलाने और संगठन का चुनाव कराने कोशिश की जाएगी.

लब्बोलुआब ये है कि जैसे सब चलता रहा वैसे ही चलता रहेगा. कार्यकारिणी (CWC Meet) में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने जो गुस्सा दिखाया महज एक कार्यकारिणी सदस्य या एक मामूली सांसद के बूते की बात नहीं थी, लेकिन इशारा यही है कि अगले इंतजाम तक वो यूं ही 'अघोषित अध्यक्ष' के तौर पर काम करते रहेंगे.

खूब हुआ इमोशनल अत्याचार

नेहरू-गांधी परिवार के त्याग, तपस्या और बलिदान के किस्से तो तभी शुरू हो गये थे जब एक किताब को दिये प्रियंका गांधी वाड्रा के इंटरव्यू की बातें सामने आयीं और सुर्खियां बनीं. इंटरव्यू में प्रियंका गांधी वाड्रा ने राहुल गांधी के गैर-गांधी परिवार के कांग्रेस अध्यक्ष के विचार का सपोर्ट किया है - लेकिन फिर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का बयान आया कि वे साल भर पुरानी बातें हैं और अब उनका कोई मतलब नहीं है.

लगे हाथ रणदीप सुरजेवाला ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने और राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे को एक जैसा पेश किया - और फिर संजय झा के जरिये कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी की जानकारी सामने आयी तो कांग्रेस प्रवक्ता ने खारिज कर दिया. तभी इंडियन एक्सप्रेस ने न सिर्फ चिट्ठी की बातें बल्कि उस पर दस्तखत करने वाले नेताओं के नाम भी प्रकाशित कर दिये.

CWC की बैठक में राहुल गांधी को गुस्सा इस बात को लेकर था कि ये चिट्ठी तब क्यों लिखी गयी जब सोनिया गांधी अस्पताल में थीं. राहुल गांधी ने चिट्ठी लीक किये जाने की टाइमिंग पर भी कांग्रेस नेताओं को फटकार लगायी.

CWC में तय हुआ है कि अगले इंतजाम तक यथास्थिति बनी रहेगी

सोनिया गांधी के इस्तीफे की पेशकश पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और एके एंटनी सहित कुछ वरिष्ठ नेताओं ने ऐसा न करने की गुजारिश और धीरे धीरे माहौल ऐसा हो गया कि चिट्ठी पर दस्तखत करने वाले मुकुल वासनिक भावुक हो उठे - और अपने किये को लेकर माफी मांगने लगे. मुकुल वासनिक के ऐसा करने पर चिट्ठी वाले बाकी नेताओं की क्या हालत हुई होगी आसानी से समझा जा सकता है.

फिर निष्ठा की होड़ मची और कई नेता राहुल गांधी से अध्यक्ष पद स्वीकार कर लेने की अपील करने लगे. ऐसी सलाह भरी अपील करने वालों में अहमद पटेल आगे आगे चल रहे थे. अहमद पटेल ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीनियर कांग्रेस नेता आनंद पटेल पर पत्र लिखने का आरोप लगाया और खेद जताये कि उस पर गुलाम नबी आजाद और मुकुल वासनिक जैसे नेता दस्तखत करने वालों में शामिल हो गये.

अंबिका सोनी तो दो कदम आगे बढ़ी हुई ही नजर आयीं. अंबिका सोनी ने ऐसे नेताओं के खिलाफ एक्शन की मांग कर डालीं. अंबिका सोनी का कहना रहा कि जिस किसी ने भी अनुशासनहीनता बरती है, उस पर कांग्रेस के संविधान के अनुसार निर्णय लिया जाना चाहिये. अब तो खबर ये भी आ रही है कि जल्दी ही कुछ नेताओं पर गाज गिर सकती है.

कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी की प्रतिक्रिया में सोनिया गांधी इस्तीफे की पेशकश के बाद राहुल गांधी कार्यकारिणी में शामिल नेताओं पर खूब बरसे और प्रियंका गांधी ने उनकी हर बात पर समर्थन जताया. धीरे धीरे गैर-गांधी परिवार के कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी में आमूल चूल बदलाव को लेकर कांग्रेस नेताओं की कवायद सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक सिमट गयी - और आखिरकार इमोशनल अत्याचार बन कर रह गयी.

बीजेपी के नाम पर चिट्ठी वालों पर निशाना

कार्यकारिणी की बैठक से बवाल की एक और भी खबर आयी और उसके बाद फिर डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी अजीब तरीके से हुई. कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी लिखने को लेकर बीजेपी के बहाने सीनियर नेताओं को टारगेट करने की भी कोशिश हुई - राहुल गांधी को लेकर हुई बातों को तो झुठला देने के कोशिश हुई, लेकिन हरियाणा की पीसीसी अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने चिट्ठी लिखने वालों बीजेपी एजेंट ही बता डाला.

बीजेपी के बहाने जिन नेताओं को टारगेट किये जाने की चर्चा रही, वे खुद ही ऐसे सफाई पेश करने लगे कि उस पर यकीन कम और शक ज्यादा हुआ - कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे सीनियर नेता सार्वजनिक तौर पर रिएक्ट करें और फिर कोई तार्किक दलील न पेश कर पायें तो पूरी तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट में नजर आने लगती है.

कपिल सिब्बल ने ट्विटर पर कांग्रेस के प्रति निष्ठा की ताजा सूची पेश की और गुलाम नबी आजाद कहने लगे कि अगर बीजेपी से उनकी मिलीभगत साबित हुई तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे. बाद में कपिल सिब्बल के साथ साथ गुलाम नबी आजाद ने भी यू-टर्न ले लिया.

कपिल सिब्बल ने ट्विटर पर 30 की कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा का हवाल दिया और ये भी बताया कि कैसे राजस्थान के मामले में वो कोर्ट में कांग्रेस के लिए लड़े - और मणिपुर के मामले में भी. बाद में कपिल सिब्बल ने ये कहते हुए अपना ट्वीट डिलीट कर दिया कि राहुल गांधी का उनके पास फोन आया था कि वो बीजेपी का नाम लेकर उनके बारे में कार्यकारिणी में कुछ नहीं बोले थे.

क्या कपिल सिब्बल जैसे सीनियर, अनुभवी और जाने माने कानून के जानकार से ऐसी गलती हो सकती है कि किसी फेक न्यूज के लिए वो ट्विटर पर अपनी बात कहें - और वो भी जो राहुल गांधी से जुड़ी हो?

CWC मीटिंग को लेकर कांग्रेस की तरफ से हद से ज्यादा एहतियात बरती गयी थी, लेकिन कुछ भी काम न आया. अब तक ऐसी बैठकें जूम प्लेटफॉर्म पर हुआ करती रहीं, लेकिन इस बार वेबएक्स के इस्तेमाल का फैसला हुआ था - क्योंकि मीटिंग में शामिल व्यक्ति अपनी बातचीत को रिकॉर्ड कर सकता है लेकिन जूम की तरह पूरी मीटिंग को नहीं.

फिर भी होनी को कौन टाल सकता है, ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस पर गांधी परिवार के प्रभाव को कौन खत्म कर सकता है - जब तक कांग्रेस का अस्तित्व है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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