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राहुल गांधी को मुफ्त की 11 सलाहें... ये मजाक नहीं, सीरियसली

    • अभिरंजन कुमार
    • Updated: 27 जुलाई, 2017 05:10 PM
  • 27 जुलाई, 2017 05:10 PM
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नीतीश कुमार ने राहुल गांधी को धोखा नहीं दिया है, बल्कि सीख दी है कि अब तो बड़े बन जाओ राहुल बाबा कब तक पॉलीटिक्स में पप्पू कहलाते रहोगे?

मोदी और अमित शाह के डेडली कॉम्बिनेशन के सामने राहुल गांधी कितने कच्चे और बच्चे हैं, बिहार के एपिसोड से भी इसका सबूत मिल गया. सोनिया गांधी हमेशा से लालू यादव पर ही भरोसा करती रहीं, लेकिन राहुल गांधी नीतीश कुमार को अधिक तरजीह देते थे. आज उन्हीं राहुल गांधी को कहना पड़ा है कि नीतीश जी ने उन्हें धोखा दिया है. लेकिन मुझे लगता है कि नीतीश कुमार ने राहुल गांधी को धोखा नहीं दिया है, बल्कि सीख दी है कि अब तो बड़े बन जाओ राहुल बाबा ?

राहुल गांधी जैसे पॉलीटिक्स करते हैं, उससे न उनका भला होगा, न पार्टी का और न विपक्ष का. अगर मेरी मुफ्त की सलाह मानने को वे तैयार हों, तो उन्हें कुछ सलाहें दे रहा हूं...

1. सोनिया गांधी को यूपीए का चेयरपर्सन रहने दें और पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में भेजें.

2. स्वयं पार्टी अध्यक्ष बनें, आगे बढ़कर ज़िम्मेदारी लें.

3. दलित किसान पृष्ठभूमि के किसी फायरब्रांड, साफ़-सुथरी छवि और अच्छी वक्तृत्व कला वाले नेता की तलाश कर उसे प्रधानमंत्री पद के लिए आगे करें.

4. उप-प्रधानमंत्री पद के लिए भी दो नेताओं को आगे करें. एक - किसी प्रभावशाली अगड़े नेता को और दूसरा किसी प्रभावशाली पिछड़े नेता को.

5. जेएनयू जैसी बेवकूफ़ी न करें, वरना राष्ट्रवाद की राजनीति में उनका अता-पता भी नहीं रहेगा.

6. मुस्लिम तुष्टीकरण के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि बीजेपी ने इस तुष्टीकरण की वह काट ढूंढ़ ली है, जिसे हिन्दू जागरण कह सकते हैं और अभी अगले कुछ साल तो यह दौर चलने ही वाला है. इसलिए उनके मुस्लिम मतदाता भी उनकी इस मजबूरी को समझेंगे और उनका सहयोग करेंगे.

7. आम आदमी के बुनियादी मुद्दों तक सीमित रहें और गाय इत्यादि की राजनीति में न फंसें, वरना सियासत के बैल बनकर रह जाएंगे.

8. आतंकवाद एक बहुत बड़ा मुद्दा है और आजकल...

मोदी और अमित शाह के डेडली कॉम्बिनेशन के सामने राहुल गांधी कितने कच्चे और बच्चे हैं, बिहार के एपिसोड से भी इसका सबूत मिल गया. सोनिया गांधी हमेशा से लालू यादव पर ही भरोसा करती रहीं, लेकिन राहुल गांधी नीतीश कुमार को अधिक तरजीह देते थे. आज उन्हीं राहुल गांधी को कहना पड़ा है कि नीतीश जी ने उन्हें धोखा दिया है. लेकिन मुझे लगता है कि नीतीश कुमार ने राहुल गांधी को धोखा नहीं दिया है, बल्कि सीख दी है कि अब तो बड़े बन जाओ राहुल बाबा ?

राहुल गांधी जैसे पॉलीटिक्स करते हैं, उससे न उनका भला होगा, न पार्टी का और न विपक्ष का. अगर मेरी मुफ्त की सलाह मानने को वे तैयार हों, तो उन्हें कुछ सलाहें दे रहा हूं...

1. सोनिया गांधी को यूपीए का चेयरपर्सन रहने दें और पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में भेजें.

2. स्वयं पार्टी अध्यक्ष बनें, आगे बढ़कर ज़िम्मेदारी लें.

3. दलित किसान पृष्ठभूमि के किसी फायरब्रांड, साफ़-सुथरी छवि और अच्छी वक्तृत्व कला वाले नेता की तलाश कर उसे प्रधानमंत्री पद के लिए आगे करें.

4. उप-प्रधानमंत्री पद के लिए भी दो नेताओं को आगे करें. एक - किसी प्रभावशाली अगड़े नेता को और दूसरा किसी प्रभावशाली पिछड़े नेता को.

5. जेएनयू जैसी बेवकूफ़ी न करें, वरना राष्ट्रवाद की राजनीति में उनका अता-पता भी नहीं रहेगा.

6. मुस्लिम तुष्टीकरण के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि बीजेपी ने इस तुष्टीकरण की वह काट ढूंढ़ ली है, जिसे हिन्दू जागरण कह सकते हैं और अभी अगले कुछ साल तो यह दौर चलने ही वाला है. इसलिए उनके मुस्लिम मतदाता भी उनकी इस मजबूरी को समझेंगे और उनका सहयोग करेंगे.

7. आम आदमी के बुनियादी मुद्दों तक सीमित रहें और गाय इत्यादि की राजनीति में न फंसें, वरना सियासत के बैल बनकर रह जाएंगे.

8. आतंकवाद एक बहुत बड़ा मुद्दा है और आजकल ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा वाहक भी यही है, इसलिए इस मुद्दे पर उस सेंटिमेंट के साथ जाएं, जो देश के बहुतायत लोगों का है. अगर मेरे वामपंथी भाइयों-बहनों के सेंटिमेंट के हिसाब से ड्राइव होंगे, तो उनका हश्र भी वही होने वाला है, जो हमारे वामपंथी भाइयों-बहनों का हुआ है.

9. सरकार की विफलताओं पर ध्यान केंद्रित रखें और हर तीन महीने पर तथ्यात्मक चार्जशीट जारी करें. इस चार्जशीट में अपनी तरफ़ से अधिक नमक-मिर्च न लगाएं. सब कुछ जनता के विवेक पर छोड़ दें.

10. छुट्टियां ज़रा कम मनाया करें और ख़ासकर ऐन मौके पर विदेश भाग जाना बंद करें. संसद में अधिक समय दें और दिग्विजय सिंह के चक्कर में न पड़ें.

और

11. राजनीति में कभी हार नहीं माननी चाहिए. भले 2019 हार जाएं, लेकिन लड़ाई पूरी ताकत से लड़नी चाहिए. सियासत अगर युद्ध है, तो इसमें वही जीतेगा, जो योद्धा होगा.

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तेजस्वी के मुद्दे पर राहुल गांधी अपनी बात मनवाएंगे या नीतीश की मान लेंगे?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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