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'महिला मेड' मनरेगा के मद्देनजर स्मृति ईरानी ने वो कर दिया जो राहुल सोच ही नहीं पाए!

    • प्रतिमा सिन्हा
    • Updated: 19 जुलाई, 2021 08:34 PM
  • 19 जुलाई, 2021 08:34 PM
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स्मृति ईरानी चर्चा में हैं. अमेठी में उन्होंने मनरेगा से जुड़ी महिलाओं के साथ वो कर दिखाया जिसके बारे में राहुल गांधी कभी सोच ही नहीं सकते थे. बाकी अगर ‘महिला प्रधान’ की तरह ‘महिला मेड’ भी सिर्फ़ ‘स्टेम्प’ बन कर न रह जाये तो स्मृति ईरानी की ये पहल काम की है.

दुनिया और समाज चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले आज तक तो यह सूरत नहीं बदल सकी है कि पुरुष किसी महिला के अधीन यानी उसके नीचे काम करें और उन्हें इगो प्रॉब्लम ना हो. क्षेत्र कोई भी हो. राजनीति, शासन, प्रशासन, व्यापार या मजदूरी, नियंत्रण पुरुष के ही हाथ में रहे, आज भी यह हर स्थिति में सुनिश्चित किया जाता है और इन हालात में महिला सशक्तिकरण का विचार कई बार, कहीं चुपचाप बिना शोर-शराबे के दम तोड़ता रहता है. ऐसे में अमेठी से आ रही एक ख़बर थोड़ी उम्मीद जगाती है. ख़बर ज़मीनी है, बेहद ज़मीनी. अशिक्षित, बेरोज़गार, अतिनिम्नवर्गीय मजदूरों के लिए चलने वाली मनरेगा योजना में पहली बार 250 महिलाओं को मेड नियुक्त किया गया है. ख़बर के अनुसार मनरेगा के तहत यह पहली बार हुआ है कि यहां की 682 ग्राम पंचायतों में ढाई सौ महिलाएं मेड तैनात की गई हैं. यह उल्लेखनीय इसलिए है क्योंकि इस पद पर अब तक अमूमन पुरुष ही काम करते हैं.

अमेठी में जो स्मृति ईरानी ने किया वो महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम है

दरअसल शासन स्तर पर ऐसा प्रावधान है कि हर 15 से 20 मजदूरों के ऊपर एक मेड होता है. जो अपने अधीनस्थ मजदूरों के काम पर नज़र रखता है. प्रतिदिन की मजदूरी इनकी ही देखरेख में करवाई जाती है. तो एक हिसाब से ये अपने अधिनस्थों का सुपरवाईजर या मैनेजर जैसा होता है. यानी मेड के पास अपने स्तर पर कुछ पावर होती है. ज़ाहिर है पॉवर के सही इस्तेमाल के लिए समझदारी का होना बेहद ज़रूरी है.

पंचायत चुनाव के बाद अधिकतर गांव तेज़ गति से विकास-कार्यों में लग गए हैं. चयनित प्रतिनिधि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत अपने-अपने क्षेत्रों में सड़क, तालाब, नाली, खड़ंजा आदि का निर्माण करवा रहे हैं. गाँव के मजदूरों को गांव में ही रोज़गार मिले यह कोशिश है.

मनरेगा...

दुनिया और समाज चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले आज तक तो यह सूरत नहीं बदल सकी है कि पुरुष किसी महिला के अधीन यानी उसके नीचे काम करें और उन्हें इगो प्रॉब्लम ना हो. क्षेत्र कोई भी हो. राजनीति, शासन, प्रशासन, व्यापार या मजदूरी, नियंत्रण पुरुष के ही हाथ में रहे, आज भी यह हर स्थिति में सुनिश्चित किया जाता है और इन हालात में महिला सशक्तिकरण का विचार कई बार, कहीं चुपचाप बिना शोर-शराबे के दम तोड़ता रहता है. ऐसे में अमेठी से आ रही एक ख़बर थोड़ी उम्मीद जगाती है. ख़बर ज़मीनी है, बेहद ज़मीनी. अशिक्षित, बेरोज़गार, अतिनिम्नवर्गीय मजदूरों के लिए चलने वाली मनरेगा योजना में पहली बार 250 महिलाओं को मेड नियुक्त किया गया है. ख़बर के अनुसार मनरेगा के तहत यह पहली बार हुआ है कि यहां की 682 ग्राम पंचायतों में ढाई सौ महिलाएं मेड तैनात की गई हैं. यह उल्लेखनीय इसलिए है क्योंकि इस पद पर अब तक अमूमन पुरुष ही काम करते हैं.

अमेठी में जो स्मृति ईरानी ने किया वो महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम है

दरअसल शासन स्तर पर ऐसा प्रावधान है कि हर 15 से 20 मजदूरों के ऊपर एक मेड होता है. जो अपने अधीनस्थ मजदूरों के काम पर नज़र रखता है. प्रतिदिन की मजदूरी इनकी ही देखरेख में करवाई जाती है. तो एक हिसाब से ये अपने अधिनस्थों का सुपरवाईजर या मैनेजर जैसा होता है. यानी मेड के पास अपने स्तर पर कुछ पावर होती है. ज़ाहिर है पॉवर के सही इस्तेमाल के लिए समझदारी का होना बेहद ज़रूरी है.

पंचायत चुनाव के बाद अधिकतर गांव तेज़ गति से विकास-कार्यों में लग गए हैं. चयनित प्रतिनिधि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत अपने-अपने क्षेत्रों में सड़क, तालाब, नाली, खड़ंजा आदि का निर्माण करवा रहे हैं. गाँव के मजदूरों को गांव में ही रोज़गार मिले यह कोशिश है.

मनरेगा मजदूरों में 35% महिला मज़दूर होती हैं जो अक्सर अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित रह जाती हैं तथा झिझक अथवा संकोच के चलते उपलब्ध रोज़गार प्राप्त नहीं कर पातीं. हालांकि इसके पीछे बहुत से कारण होते हैं लेकिन पुरुष मेड का होना भी एक कारण हो सकता है. ऐसे में एक महिला मेड का होना इन महिला मज़दूरों के लिए एक ऐसा अनुकूल वातावरण बना सकता है जिसमें ये अपना संकोच और झिझक छोड़ कर आगे आयें.

काम करने के लिए इच्छुक हों. कहने की जरूरत नहीं कि पंचायत, जो कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे निचली और ज़मीनी इकाई है, अगर वहां कोई व्यवस्था सुचारू रूप से आरंभ और संपन्न करवाई जा सके तो वो एक मॉडल के तौर पर बाक़ी इकाइयों पर भी लागू हो सकेगी.

भारत आज भी तकरीबन गांव में ही बसता है. वहां की महिलाएं ज़्यादा से ज़्यादा शिक्षित हों. मज़दूरी ही नहीं बल्कि रोज़गार पाने के सारे उपायों और साधनों पर उनका अधिकार हो. इस आदर्श स्थिति का आना तो अभी भी बहुत दूर दिखता है, लेकिन फिलहाल केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाये गये इस आवश्यक कदम का स्वागत इस उम्मीद के साथ किया जा सकता है कि नवनियुक्त महिला मेड अपनी समझदारी का समुचित प्रयोग करेगीं.

‘महिला प्रधान’ की तरह किसी और का स्टैंप न बन कर अपने निर्णय ले सकेंगी तथा अपने अधीन काम करने वाली महिलाओं का हित देख सकेंगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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