• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

चुनाव हारने वालों के लिए मिसाल हैं स्मृति ईरानी

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 26 मई, 2019 06:58 PM
  • 26 मई, 2019 06:58 PM
offline
इस समय स्मृति ईरानी वो नेता बन चुकी हैं, जिससे हर किसी को सीख लेनी चाहिए. जीतने वाले नेताओं के उदाहरण तो हर कोई देता है, स्मृति ईरानी वो नेता है, जिनकी हार के उदाहरण दिए जाने चाहिए.

लोकसभा चुनाव के नतीजे भले ही अभी ना आए हों, लेकिन रुझान ने सब कुछ साफ कर दिया है. इसी के साथ ये भी साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट कौन जीत रहा है. तभी तो, खुद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के स्मृति ईरानी को बधाई तक दे दी है. वह मान चुके हैं कि उनकी हार हो गई है. ये बात बहुत से लोगों को हैरान भी कर सकती है कि आखिर गांधी परिवार के गढ़ में स्मृति ईरानी जैसी एक बाहरी नेता ने कब्जा कैसे कर लिया?

स्मृति ईरानी रहती मुंबई में हैं, लेकिन अमेठी से चुनाव लड़ रही हैं. पिछले साल भी लड़ी थीं और हार गई थीं. वह हारी जरूर थीं, लेकिन उन्होंने हार मानी नहीं थी. डटी रहीं. बिना रुके, लगातार. महीने - दो महीने या साल भर नहीं, बल्कि 5 साल तक. पूरे समय वह अमेठी की जनता से जुड़ी रहीं और आज जीत उनके कदम चूम रही है. इस समय स्मृति ईरानी वो नेता बन चुकी हैं, जिससे हर किसी को सीख लेनी चाहिए. जीतने वाले नेताओं के उदाहरण तो हर कोई देता है, स्मृति ईरानी वो नेता है, जिनकी हार के उदाहरण दिए जाने चाहिए. क्योंकि ये उनकी 2014 की हार ही है, जिसने अब 2019 में उनके गले में जीत का हार पहना दिया है.

इस समय स्मृति ईरानी वो नेता बन चुकी हैं, जिससे हर किसी को सीख लेनी चाहिए.

स्मृति ईरानी प्रेरणा का स्रोत हैं

2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के अमेठी से सिर्फ स्मृति ईरानी ही नहीं हारी थीं, बल्कि आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कुमार विश्वास भी हारे थे. एक हार क्या हुई, उन्होंने तो लोगों का ही विश्वास तोड़ दिया. पहले कहा था कि उन्होंने अमेठी में ही घर ले लिया है और वहीं रहेंगे, लेकिन हारते ही दुम दबाकर भाग गए. लेकिन स्मृति ईरानी भागने वालों में से नहीं थीं. उन्होंने हारने के बावजूद मैदान नहीं छोड़ा. डटी रहीं.

मुंबई में रहने...

लोकसभा चुनाव के नतीजे भले ही अभी ना आए हों, लेकिन रुझान ने सब कुछ साफ कर दिया है. इसी के साथ ये भी साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट कौन जीत रहा है. तभी तो, खुद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के स्मृति ईरानी को बधाई तक दे दी है. वह मान चुके हैं कि उनकी हार हो गई है. ये बात बहुत से लोगों को हैरान भी कर सकती है कि आखिर गांधी परिवार के गढ़ में स्मृति ईरानी जैसी एक बाहरी नेता ने कब्जा कैसे कर लिया?

स्मृति ईरानी रहती मुंबई में हैं, लेकिन अमेठी से चुनाव लड़ रही हैं. पिछले साल भी लड़ी थीं और हार गई थीं. वह हारी जरूर थीं, लेकिन उन्होंने हार मानी नहीं थी. डटी रहीं. बिना रुके, लगातार. महीने - दो महीने या साल भर नहीं, बल्कि 5 साल तक. पूरे समय वह अमेठी की जनता से जुड़ी रहीं और आज जीत उनके कदम चूम रही है. इस समय स्मृति ईरानी वो नेता बन चुकी हैं, जिससे हर किसी को सीख लेनी चाहिए. जीतने वाले नेताओं के उदाहरण तो हर कोई देता है, स्मृति ईरानी वो नेता है, जिनकी हार के उदाहरण दिए जाने चाहिए. क्योंकि ये उनकी 2014 की हार ही है, जिसने अब 2019 में उनके गले में जीत का हार पहना दिया है.

इस समय स्मृति ईरानी वो नेता बन चुकी हैं, जिससे हर किसी को सीख लेनी चाहिए.

स्मृति ईरानी प्रेरणा का स्रोत हैं

2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के अमेठी से सिर्फ स्मृति ईरानी ही नहीं हारी थीं, बल्कि आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कुमार विश्वास भी हारे थे. एक हार क्या हुई, उन्होंने तो लोगों का ही विश्वास तोड़ दिया. पहले कहा था कि उन्होंने अमेठी में ही घर ले लिया है और वहीं रहेंगे, लेकिन हारते ही दुम दबाकर भाग गए. लेकिन स्मृति ईरानी भागने वालों में से नहीं थीं. उन्होंने हारने के बावजूद मैदान नहीं छोड़ा. डटी रहीं.

मुंबई में रहने के बावजूद वह बीच-बीच में समय निकालकर अमेठी जाती रहती थीं और लोगों से मिलती थीं. वापस मुंबई लौटने के बावजूद वह इलाके के पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपडेट लेती रहती थीं. किसी के घर में जन्मदिन हो तो मिठाई भिजवा देती थीं, किसी के घर में कोई मर जाए तो उसे सांत्वना दे देती थीं. वह लोगों की मदद किस लेवल पर जाकर करती थीं, इसका एक जीता-जागता उदाहरण भी है, जो आपको जानना चाहिए.

खुद आग बुझाने लगी थीं ईरानी

ये बात 28 अप्रैल की है, जब अमेठी के एक गांव में खेत में अचानक आग लग गई. उस समय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी वहीं थीं, जो आग बुझाने में गांव वालों की मदद करने लगीं. फायर ब्रिगेड आने में देर हुई तो आग बुझा रहे गांव वालों के लिए उन्होंने नल चलाकर पानी भी भरा. इतना ही नहीं, उन्होंने अफसरों की डांट भी लगाई. स्मृति ईरानी का आग बुझाने में गांव वालों की मदद करने का वीडियो खूब वायरल हुआ था और उसकी वजह से उन्हें लोगों की वाहवाही भी खूब मिली. जनता ने उन्हें कितना पसंद किया, इसका अंदाजा तो आप अमेठी में उनकी जीत से ही लगा सकते हैं.

आत्मविश्वास से लबरेज हैं स्मृति ईरानी

स्मृति ईरानी में कितना आत्मविश्वास है, इसका अंदाजा तो आपको उनका ट्वीट देखकर ही पता चल जाएगा. स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद एक ट्वीट किया, जिसमें लिखा- 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता...' दरअसल, ये दुष्यंत कुमार की एक गजल की एक लाइन है, जिसका एक हिस्सा स्मृति ईरानी ने ट्वीट किया है. ये पूरी लाइन है- 'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.'

हारने वालों को स्मृति ईरानी से सीख लेनी चाहिए

अक्सर ही हारने वाले नेता हार मान लेते हैं. ऐसे नेताओं को स्मृति ईरानी से कुछ बातें सीखनी चाहिए. नेताओं को अपने क्षेत्र में बीच-बीच में जाते रहना. क्योंकि अगर जाएंगे नहीं तो फिर लोगों का सुख-दुख कैसे बांटेंगे. और जरा सोचिए, कहीं आग लग गई तो बुझाएंगे कैसे? नल चलाने का मौका कैसे मिलेगा? लोगों की नजरों में अच्छे कैसे बनेंगे? एक नेता होने के नाते जो दबदबा होता है, उसका इस्तेमाल करना चाहिए और लोगों के काम करवाने चाहिए. ध्यान रहे, एक नेता जनता के साथ जितना ज्यादा जुड़ेगा, जनता भी उससे उतना ही जुड़ेगी. और जब जनता प्यार देती है जो सिर आंखों पर बिठा लेती है. स्मृति ईरानी इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं.

राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के हार स्वीकार कर ली है. उन्होंने ये भी कहा कि जितने प्यार से अमेठी की जनता ने उन्हें अपनाया है, उन्हें उम्मीद है कि ईरानी जनता को उतने ही प्यार से रखेंगी. खैर, राहुल गांधी को ये बातें कभी नहीं कहनी पड़तीं, अगर वह खुद जनता का ध्यान प्यार से रख पाते. उन्होंने ये भी कहा कि प्यार कभी मरता नहीं, वह हमेशा प्यार से जवाब देंगे. लेकिन उनकी कथनी और करनी में कुछ अंतर सा लगता है. प्यार अमेठी की जनता से था, बल्कि यूं कहें कि खास लगाव था, यूं ही अमेठी ने बार-बार गांधी परिवार को नहीं चुना, लेकिन राहुल गांधी के प्यार में कोई तो कमी रह गई होगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता.

ये भी पढ़ें-

EVM and Exit Poll FAQ: चुनाव नतीजों से पहले EVM और exit poll से जुड़े बड़े सवालों के जवाब

Elections 2019 मतगणना: जानिए कैसे होगी EVM और VVPAT की गणना? कब तक आएगा पूरा रिजल्ट

क्‍या होता है EVM Strong Room में? सभी पार्टियां जिसकी चौकीदारी में लगी हैं


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲