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पुतिन के राज में रूस की हालत हो गई है सोवियत संघ जैसी !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 26 मार्च, 2018 01:40 PM
  • 26 मार्च, 2018 01:40 PM
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भले ही अब रूस साम्यवादी नहीं रहा, लेकिन इसमें अभी भी बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो सोवियत संघ और चीन से मिलती जुलती हैं. चलिए जानते हैं रूस की सोवियत संघ और चीन से समानताओं और असमानताओं के बारे में.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को कौन नहीं जानता. रविवार को हुए राष्ट्रपति चुनावों में एक बार फिर से पुतिन ने जीत हासिल की है. उन्हें करीह 76 फीसदी वोट मिले हैं, जो पिछली बार से 6 फीसदी अधिक हैं. पुतिन वो शख्स हैं जो रूस की सत्ता पर पिछले 18 सालों से काबिज हैं. पहले 2000 में राष्ट्रपति चुने गए, फिर 2004 में दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. रूस में दो बार राष्ट्रपति बनने के बाद चुनाव नहीं लड़ा जा सकता था तो 2008 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ा. राष्ट्रपति से जुड़े कानून में बदलाव करते हुए दो बार से अधिक राष्ट्रपति चुनाव न लड़ने की बाध्यता को खत्म किया और कार्यकाल को भी 4 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया गया. इसके बाद 2012 में भी वह राष्ट्रपति बने और अब 2018 में भी उन्होंने बंपर जीत हासिल की है.

भले ही अब रूस साम्यवादी (communist) नहीं रहा, लेकिन इसमें अभी भी बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो सोवियत संघ यानी SSR (nion of Soviet Socialist Republics) और चीन से मिलती जुलती हैं. रूसी सरकार लगातार देश की कंपनियों में और मुख्य सेक्टर्स में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ा रही है और निजी सेक्टर की जीडीपी में भागीदारी को तेजी से घटा रही है. जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो लगा कि नया रूस उससे अलग होगा, लेकिन पुतिन के शासन अभी के रूस की हालत भी सोवियत संघ जैसी ही दिख रही है. तो चलिए पहले जान लेते हैं रूस की सोवियत संघ और चीन से समानताओं के बारे में.

ये हैं समानताएं

- देश में एकतंत्र का शासन

- सामान्य चीजों की भी स्वतंत्रता नहीं

- सेंसरशिप की अधिकता

- मॉस्को अभी भी राजधानी है

- क्रेमलिन ताकत का प्रतीक है

- माज के उत्कृष्ट वर्ग के लोग रूसी हैं

- लोगों का सम्मान न करना

- विपक्ष को चुनाव का अधिकार नहीं

-...

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को कौन नहीं जानता. रविवार को हुए राष्ट्रपति चुनावों में एक बार फिर से पुतिन ने जीत हासिल की है. उन्हें करीह 76 फीसदी वोट मिले हैं, जो पिछली बार से 6 फीसदी अधिक हैं. पुतिन वो शख्स हैं जो रूस की सत्ता पर पिछले 18 सालों से काबिज हैं. पहले 2000 में राष्ट्रपति चुने गए, फिर 2004 में दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. रूस में दो बार राष्ट्रपति बनने के बाद चुनाव नहीं लड़ा जा सकता था तो 2008 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद का चुनाव लड़ा. राष्ट्रपति से जुड़े कानून में बदलाव करते हुए दो बार से अधिक राष्ट्रपति चुनाव न लड़ने की बाध्यता को खत्म किया और कार्यकाल को भी 4 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया गया. इसके बाद 2012 में भी वह राष्ट्रपति बने और अब 2018 में भी उन्होंने बंपर जीत हासिल की है.

भले ही अब रूस साम्यवादी (communist) नहीं रहा, लेकिन इसमें अभी भी बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो सोवियत संघ यानी SSR (nion of Soviet Socialist Republics) और चीन से मिलती जुलती हैं. रूसी सरकार लगातार देश की कंपनियों में और मुख्य सेक्टर्स में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ा रही है और निजी सेक्टर की जीडीपी में भागीदारी को तेजी से घटा रही है. जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो लगा कि नया रूस उससे अलग होगा, लेकिन पुतिन के शासन अभी के रूस की हालत भी सोवियत संघ जैसी ही दिख रही है. तो चलिए पहले जान लेते हैं रूस की सोवियत संघ और चीन से समानताओं के बारे में.

ये हैं समानताएं

- देश में एकतंत्र का शासन

- सामान्य चीजों की भी स्वतंत्रता नहीं

- सेंसरशिप की अधिकता

- मॉस्को अभी भी राजधानी है

- क्रेमलिन ताकत का प्रतीक है

- माज के उत्कृष्ट वर्ग के लोग रूसी हैं

- लोगों का सम्मान न करना

- विपक्ष को चुनाव का अधिकार नहीं

- मीडिया पर सरकार का नियंत्रण

- विदेशी दोस्त (सीरिया) को राजनीतिक और सैनिक समर्थन

आइए अब इनमें असमानताओं पर भी एक नजर डाल लें.

- रूसी राष्ट्रवाद द्वारा साम्यवादी विचारधारा को रूढ़िवाद के साथ बदल दिया गया

- निजी संपत्ति की इजाजत

- अभी भी अर्थव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण भाग पर सरकार का ही कब्जा है, हालांकि, यह सोवियत संघ के समय से कम है.

- विदेशी साम्यवादी देशों को आर्थिक तौर पर समर्थन न देकर नैतिक रूप से समर्थन देना

- सोवियत संघ में सरकार का जो प्रोपेगेंडा सिर्फ देश के अंदर होता था, अब उसे देश के बाहर भी किया जाता है.

- पुतिन के पास इतनी ताकत है, जितनी सोवियत संघ के किसी जनरल सेक्रेटरी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा.

- अब रूसी लोग देश से बाहर जा सकते हैं और जिनके पास पैसे हैं वह देश से बाहर जा भी रहे हैं.

- सीक्रेट सर्विस वाले लोग कम्युनिस्ट लोगों की तुलना में अधिक मजबूत हैं.

चीन में भी हुआ ऐसा ही

जिस तरह रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कानून में बदलाव करके सिर्फ दो बार राष्ट्रपति चुने जाने की बाध्यता को खत्म कर दिया, उसी तरह से चीन में शी जिनपिंग ने भी हाल ही में किया है. जिनपिंग द्वारा कानून में बदलाव करने के बाद चीन की सत्ता पर मरते दम तक काबिज रहने का उनका रास्ता साफ हो गया है. उन्होंने 1990 में शुरू हुई परंपरा को खत्म कर दिया और किसी के सिर्फ 10 साल तक सत्ता में रहने की बाध्यता को असीमित काल के लिए बढ़ा दिया. यानी जिनपिंग को सम्राट जिनपिंग कहना अधिक सही होगा.

उत्तर कोरिया को तो सब जानते ही हैं

साम्यवादी शासन की बात हो और उत्तर कोरिया का जिक्र ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. दूसरे विश्व युद्ध में कोरिया पर जापान ने कब्जा कर लिया था. युद्ध के बाद कोरिया दो हिस्सों में बंट गया, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया. उत्तर कोरिया पर रूस का प्रभाव था, जबकि दक्षिण कोरिया पर अमेरिका का. कुछ समय बाद 1948 में दक्षिण कोरिया ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और उसके तुरंत बाद उत्तर कोरिया पर कम्युनिस्ट लीडर किम-II-सुंग का शासन शुरू हो गया. तब से लेकर अब तक उत्तर कोरिया में तानाशाही का शासन है और मौजूदा तानाशाह शासक किम जोंग उन है.

क्यूबा

कम्युनिस्ट शासन की बात करें तो क्यूबा को भी भूला नहीं जा सकता है. 1959 में फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा की सरकार पर अपना कब्जा कर लिया. 1961 तक क्यूबा पूरी तरह से साम्यवादी देश बन चुका था और उसने सोवियंत संघ से व्यापार के लिए रिश्ते बनाए. जब 1991 में सोवियंत संघ का विघटन हुआ तो फिर क्यूबा ने चीन, बोलिविया और वेनेजुऐला से व्यापार के लिए रिश्ते बनाए. 2008 में फिदेल कास्त्रो सत्ता से हट गया और उसके भाई राउल कास्त्रो ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने क्यूबा के साथ रिश्तों में थोड़ी नरमी दिखाई और आने-जाने का प्रतिबंध हटा दिया, लेकिन जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए तो उन्होंने दोबारा से क्यूबा पर प्रतिबंध लगा दिए.

वियतनाम

1954 में वियतनाम दो हिस्सों में बंटा. इस बंटवारे को अस्थायी माना गया था. उत्तरी वियतनाम कम्युनिस्ट हो गया और सोवियत संघ से उसे समर्थन मिल गया, जबकि दक्षिणी वियतनाम डेमोक्रेटिक यानी लोकतांत्रिक है, जिसे अमेरिका ने समर्थन दिया है. करीब दो दशकों के बाद 1976 में दोनों वियतनाम फिर से एक हो गए और पूरा वियतनाम एक कम्युनिस्ट यानी साम्यवादी देश बन गया.

लाओस (Laos)

इन देशों के अलावा लाओस भी एक साम्यवादी देश है. लाओ पीपल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक एक क्रांति के बाद 1975 में वियतनाम और सोवियत संघ के समर्थन से एक साम्यवादी देश बना. यहां की सरकार मिलिट्री जनरल चलाते हैं, जो एक पार्टी होने के सिस्टम का समर्थन करते हैं, जो कि साम्यवाद का एक आदर्श है. 1988 में देश ने कुछ निजी हिस्सेदारी को अनुमति देना शुरू किया और 2013 में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन का हिस्सा भी बन गया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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