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बीजेपी से लड़ाई में राहुल और प्रियंका के पॉलिटिकल प्रोटोटाइप बन गये हैं सिद्धू!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 23 जुलाई, 2021 07:11 PM
  • 23 जुलाई, 2021 07:11 PM
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बीजेपी (BJP) के राष्ट्रवाद के एजेंडे के मुकाबले नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को आगे कर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक तरीके से खुद को ही आजमाते हुए लगते हैं - एक्सपेरिमेंट चल गया तो पंजाब के आगे भी बल्ले बल्ले, नहीं चला तो जैसे चल रहा है चलता रहेगा.

पंजाब में कांग्रेस का 'कैप्टन' तो बदल ही गया है, लगता है सिद्धू की ताजपोशी के साथ ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी हथियार ही डाल दिये हैं - और कोई चारा भी तो नहीं बचा था.

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव से लेकर ड्रेस तक सभी अलग अलग लहजे में नुमाइंदगी कर रहे हैं - सिद्धू के लाल ड्रेस के मुकाबले सफेद लिबास में पहुंचे कैप्टन अमरिंदर सिंह भी एक लंबी जंग के बाद शांति के संदेश देने की कोशिश कर रहे थे.

सिद्धू के सुर्ख लाल रंग वाली पोशाक में राहुल गांधी के गुस्से को भी देखा जा सकता है - कैप्टन के दौर से कांग्रेस को आगे बढ़ाने जा रहे सिद्धू खुद को राहुल गांधी के निडर कांग्रेसी होने के पैमाने पर भी खरा उतरने की कोशिश कर रहे थे.

पंजाब कांग्रेस के नये नवेले अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की है - आज कांग्रेस का हर कार्यकर्ता प्रधान हो गया. पंजाब में प्रधान होने का मतलब मुखिया, चीफ या बॉस होने से है - नवजोत सिंह सिद्धू अब पंजाब में कांग्रेस के प्रधान बन चुके हैं. सिद्धू के समर्थक उनको बब्बर शेर बता रहे हैं और वो बगैर बल्ले के ही हाथ से हवा में बैटिंग करने लगे हैं - और दावा कर रहे हैं कि विरोधियों का 'बिस्तर गोल कर दूंगा'.

सिद्धू के मुंह से जो राहुल गांधी सुनना चाहते हैं, सुना भी वो वही रहे हैं, '... दिल्ली मॉडल को फेल कर देंगे!'

दरअसल, बीजेपी (BJP) से लड़ाई में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सॉफ्ट हिंदुत्व और जनेऊधारी शिवभक्त जैसी राजनीतिक हदों से लौटने की कोशिश करते दिखाई पड़ते हैं - और घूम कर जो अपने पास है उसी के बूते पलटवार करने की कोशिश में लगते हैं. जैसा कि भरी संसद में बोल दिया था, 'आप मुझे पप्पू समझते हो... मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...'

असल बात तो ये है कि सिद्धू को राहुल गांधी ने बीजेपी से जंग में एक पॉलिटिकल प्रोटोटाइप के तौर पर पेश किया है. अब राहुल गांधी का ध्यान इस बात पर होगा कि बीजेपी सिद्धू को चुनावों...

पंजाब में कांग्रेस का 'कैप्टन' तो बदल ही गया है, लगता है सिद्धू की ताजपोशी के साथ ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी हथियार ही डाल दिये हैं - और कोई चारा भी तो नहीं बचा था.

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव से लेकर ड्रेस तक सभी अलग अलग लहजे में नुमाइंदगी कर रहे हैं - सिद्धू के लाल ड्रेस के मुकाबले सफेद लिबास में पहुंचे कैप्टन अमरिंदर सिंह भी एक लंबी जंग के बाद शांति के संदेश देने की कोशिश कर रहे थे.

सिद्धू के सुर्ख लाल रंग वाली पोशाक में राहुल गांधी के गुस्से को भी देखा जा सकता है - कैप्टन के दौर से कांग्रेस को आगे बढ़ाने जा रहे सिद्धू खुद को राहुल गांधी के निडर कांग्रेसी होने के पैमाने पर भी खरा उतरने की कोशिश कर रहे थे.

पंजाब कांग्रेस के नये नवेले अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की है - आज कांग्रेस का हर कार्यकर्ता प्रधान हो गया. पंजाब में प्रधान होने का मतलब मुखिया, चीफ या बॉस होने से है - नवजोत सिंह सिद्धू अब पंजाब में कांग्रेस के प्रधान बन चुके हैं. सिद्धू के समर्थक उनको बब्बर शेर बता रहे हैं और वो बगैर बल्ले के ही हाथ से हवा में बैटिंग करने लगे हैं - और दावा कर रहे हैं कि विरोधियों का 'बिस्तर गोल कर दूंगा'.

सिद्धू के मुंह से जो राहुल गांधी सुनना चाहते हैं, सुना भी वो वही रहे हैं, '... दिल्ली मॉडल को फेल कर देंगे!'

दरअसल, बीजेपी (BJP) से लड़ाई में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सॉफ्ट हिंदुत्व और जनेऊधारी शिवभक्त जैसी राजनीतिक हदों से लौटने की कोशिश करते दिखाई पड़ते हैं - और घूम कर जो अपने पास है उसी के बूते पलटवार करने की कोशिश में लगते हैं. जैसा कि भरी संसद में बोल दिया था, 'आप मुझे पप्पू समझते हो... मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...'

असल बात तो ये है कि सिद्धू को राहुल गांधी ने बीजेपी से जंग में एक पॉलिटिकल प्रोटोटाइप के तौर पर पेश किया है. अब राहुल गांधी का ध्यान इस बात पर होगा कि बीजेपी सिद्धू को चुनावों में कैसे घेरने की कोशिश करती है - और ऐसा होने पर सिद्धू खुद कैसे निकल पाते हैं या निकाला जा सकता है?

दिल्ली मॉडल को टक्कर देने का ऐलान

पंजाब में बयार बदल चुकी है और सिद्धू से अपने पुराने कनेक्शन को समझाते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह के शब्द सबूत पेश कर रहे हैं. कहने की बात कौन कहे, डॉक्टर मनमोहन सिंह ने तो प्रधानमंत्री रहते कभी सोचने का साहस भी नही जुटा पाया होगा, जो बात कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी को पत्र में लिख डाली थी - 'आप पंजाब सरकार और सूबे में संगठन के मामलों में दखल दे रही हैं.'

अब वही कैप्टन अमरिंदर सिंह सिद्धू के बचपन और अपनी फौजी जिंदगी के किस्से सुनाने लगे हैं. कहते हैं, 'जब सिद्धु पैदा हुए थे, तब मेरा कमीशन हुआ था.'

कैप्टन अमरिंदर सिंह कहते हैं, '1970 में जब मैंने फोज छोड़ी थी तब मेरी माता जी ने मुझे राजनीति में आने की सलाह दी थी. नवजोत सिंह सिद्धू के पिता जी से मेरा तब का रिश्ता है. ये हम दोनों के परिवार की बैकग्राउंड हैं.'

पंजाब के मुख्यमंत्री ने बताया, 'सिद्धू के पिता पटियाला कांग्रेस के प्रधान रहे और वही मुझे राजनीति में लेकर आये थे... सोनिया जी ने मुझसे कहा कि अब नवजोत पंजाब के अध्यक्ष होंगे और आप दोनों को मिलकर काम करना होगा तो मैंने कह दिया था कि आपका जो भी फैसला होगा, वो हमें मंजूर होगा.'

2017 में बीजेपी छोड़ने के बाद सिद्धू के कांग्रेस ज्वाइन करते वक्त भी ये जिक्र हुआ था लेकिन अलग अंदाज में, लेकिन ये लफ्ज भी सिद्धू का मिजाज नहीं बदल पाये.

कांग्रेस के नये नेतृत्व के तौर पर गांधी परिवार की भाई-बहन की जोड़ी को देखा जाने लगा है - और नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस की नयी प्रयोगशाला के पहले प्रोजेक्ट हैं.

अपनी ताजपोशी के मौके पर भाषण देने के लिए उठते ही सिद्धू ऊपरवाले को याद करते हैं - और एक्शन में आकर क्रिकेट के शॉट खेलते हैं. शायद ये कैप्टन अमरिंदर के फौजी किस्सों का जबाव है - 22 साल पहले मैं भी ऐसे ही शॉट खेला करता था.

मंच पर सिद्धू के ठीक बगल में कैप्टन अमरिंदर सिंह भी बैठे होते हैं, लेकिन वो उनको नजरअंदाज करते हुए डायस तक पहुंचने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल और लाल सिंह के पैर छूते हैं और फिर माइक संभालते ही शुरू हो जाते हैं - 'मेरा दिल चिड़े के दिल जैसा नहीं है... जो मेरा विरोध करेंगे, वो मुझे और मजबूत बनाएंगे... मेरी चमड़ी मोटी है... मुझे किसी के कहने-सुनने से कोई फर्क नहीं पड़ता.'

फिर एक शेर भी जड़ देते हैं, "परखने से कोई अपना नहीं रहता, किसी भी आइने में ज्यादा देर चेहरा नहीं रहता."

शायद ये एक सख्त मैसेज देने की कोशिश होती है. सब लोग अब कैप्टन अमरिंदर सिंह को भूल जायें. कहते हैं, 'आज पूरे पंजाब के कांग्रेस कार्यकर्ता प्रधान बन गये हैं - क्योंकि कार्यकर्ताओं के सहयोग के बिना कोई पार्टी राजनीति में टिक नहीं सकती.'

और फिर एक ऐलान भी, '15 अगस्त से सिद्धू का बिस्तरा कांग्रेस भवन में लगेगा.'

संदेश ये है कि कांग्रेस भवन में अब तिरंगा वही फहराएंगे, लगे हाथ मंत्रियों से अपील भी करते हैं, 'वे मुझसे मिलने आयें... पंजाब मॉडल को आगे ले जाकर दिल्ली मॉडल को फेल करना है.'

पंजाब कांग्रेस के नये प्रधान बताते हैं कि फिलहाल सबसे बड़ा मसला ये है कि हमारे किसान दिल्ली में बैठे हैं, कहते हैं, 'पंजाब का किसान दिल्ली में बैठा है... जिन किसानों की वजह से सरकारें बनती हैं वो दिल्ली में बैठा है,' और ये भी जाहिर करते हैं, 'मैं किसानों से मिलना चाहता हूं.'

सिद्धू ने किसानों की बात कर, उनकी अहमियत का जिक्र किया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के एजेंडे के साथ आगे बढ़ने का संकल्प दोहरा दिया है. पंजाब चुनाव में किसानों का मुद्दा बहुत मायने रखता है. ये तो सबको मालूम ही है कि पंचायत चुनाव में अमरिंदर किसानों का सपोर्ट हासिल करने में सफल रहे हैं.

अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने किसान आंदोलन के दौरान राहुल गांधी को एक्टिव देख कर कहा था कि सिखों को मालूम है कि गांधी परिवार उनके बारे में क्या सोचता है.

ऐसे देखें तो नवजोत सिंह सिद्धू एक तरीके से हरसिमरत कौर बादल को भी राहुल गांधी का जवाब ही हैं. किसानों के मामले में हरसिमरत कौर ने इंदिरा गांधी का भी नाम लिया था - और सिखों को ऑपरेशन ब्लू स्टार से लेकर चौरासी के सिख दंगों तक की याद दिलाने के कोशिश की थी.

सिद्धू का आरोप रहा है कि अमरिंदर सिंह का रुख बादल परिवार के प्रति काफी नरम रहा है, लेकिन अब वो जताने लगे हैं कि आगे से ऐसा नहीं होगा - क्योंकि राहुल गांधी को भी यही सब पसंद है.

सिद्धू में अपना अक्स देखते हैं राहुल गांधी!

हथियार तो नहीं कह सकते हैं, लेकिन सिद्धू को बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में एक औजार जरूर मान सकते हैं. सिद्धू को बीजेपी के खिलाफ मोर्चे पर तैनात कर राहुल गांधी कांग्रेस के ओरिजिनल फॉर्म की तरफ लौटने की कोशिश करते लगते हैं.

बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के पुराने स्टैंड को मोर्चे पर तैनात कर राहुल गांधी ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हिंदुत्व की राजनीति और बीजेपी के राष्ट्रवाद के एजेंडे के दबदबे के बीच कांग्रेस का सेक्युलर फॉर्म अब भी कुछ बचा हुआ है या उसमें जंग लग गयी है.

ये कुछ कुछ वैसे ही जैसे फिल्म शोले में ठाकुर बलदेव सिंह ने अपने आदमियों से भरे कमरे में जय और वीरू को बंद कर दिया था. जय और वीरू ने तो ठाकुर के आदमियों को फिल्मी पर्दे पर धूल चटा दिया था, लेकिन पंजाब के मैदान में सिद्धू की शेरो-शायरी क्या असर डालती है, देखना बाकी है.

अमरिंदर सिंह से छीन लेने के बाद सिद्धू को कमान सौंप कर राहुल गांधी ने उनकी पाकिस्तान परस्त राजनीति को एनडोर्स किया है. राहुल गांधी ने सिद्धू के पाकिस्तानी इमरान खान को सबसे खास यार बताने के मामले में मुहर लगा दी है - और ये भी जता दिया है कि सिद्धू के पाक आर्मी चीफ जनरल कमर बाजवा से गले मिलने को वो बिलकुल भी गलत नहीं मानते.

सिद्धू को आगे करने के साथ ही राहुल गांधी ने ये भी जताने की कोशिश की है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर कांग्रेस के स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आया है. अगर दिग्विजय सिंह कहते हैं कि कांग्रेस के सत्ता में लौटने पर जम्मू-कश्मीर में पुरानी स्थिति बहाल हो जाएगी, तो सिद्धू के माध्यम से राहुल गांधी ये भी आजमाना चाहते हैं कि कांग्रेस के स्टैंड को अब कितने तो सही मानते हैं?

जैसे गुजरात चुनाव और उसके बाद के चुनावों में राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व के कुछ प्रयोग किये थे. कुछ हद तक तो राहुल गांधी सफल भी रहे, लेकिन वो स्टैंड टिकाऊ नहीं लगा - अब अगर सिद्धू का प्रदर्शन ठीक रहता है तो नये प्रयोग को सफल समझा जाएगा.

सही बात तो ये है कि राहुल गांधी, दरअसल, सिद्धू में अपना ही अक्स देखते हैं - क्योंकि जिन चीजों को लेकर बीजेपी नेतृत्व राहुल गांधी को टारगेट करता है सिद्धू उसी खांचे में घोषित तौर पर पूरी तरह फिट हो जाते हैं.

बीजेपी के राष्ट्रवाद के राजनीतिक पैमाने पर सिद्धू देशद्रोही होने के सिंबल हैं. वैसे भी जो शख्स दुश्मन देश के प्राइम मिनिस्टर को अपना सबसे बड़ा यार बताता हो. जो शख्स दुश्मन देश के आर्मी चीफ से जाकर गले मिल आता हो और उसे लेकर भी उसमें शर्म नाम की कोई चीज न हो, उसे सरेआम सपोर्ट करना बहुत बड़ा जोखिम का काम है - लेकिन नये मिजाज वाले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की भाई-बहन की जोड़ी ने ये जोखिम भी लगता है सोच समझ कर उठाया है.

लेकिन एक ऐसे नेता के मुकाबले जो हमेशा ही पाकिस्तान के खिलाफ स्टैंड लिया हो, देश को हमेशा आगे रखा हो. पाकिस्तान को हमेशा ही दो टूक जवाब दिया हो, ऐसे नेता को दरकिनार कर राहुल गांधी ने सिद्धू को आगे करने का फैसला किया है - चाहें तो नवजोत सिंह सिद्धू को सोनिया गांधी की तर्ज पर राहुल गांधी का 'मनमोहन सिंह' भी समझ सकते हैं!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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