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शिवपाल यादव का प्लान-बी यानी महागठबंधन कामयाब हो पाएगा

    • कुमार अभिषेक
    • Updated: 28 अक्टूबर, 2016 05:12 PM
  • 28 अक्टूबर, 2016 05:12 PM
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समाजवादी पार्टी के कुनबाई कलह में फिलहाल मात खाने के बाद शिवपाल यादव ने चली दूसरी चाल, बिहार की तर्ज पर यूपी में 'महागठबंधन'

इससे पहले कि ये चर्चा चल पड़े कि चाचा-भतीजे की लड़ाई में चचा शिवपाल मात खा गए, और भतीजे अखिलेश ने राजनीति के अखाड़े में पटखनी दे दी, राजनीति के मंजे खिलाड़ी की तरह शिवपाल यादव ने पूरी बहस को ही दूसरी ओर मोड़ दिया और एक नई बहस को यूपी से निकालकर दिल्ली तक पहुंचा दिया. ये नई बहस है 'यूपी का महागठबंधन'.

शिवपाल यादव ने सिर्फ मुद्दा ही नहीं उछाला बल्कि खुद भी उड़कर दिल्ली पहुंच गए और महागठबंधन की गोटियां भी फिट करने लगे.

राज्य में सांप्रदायिक सरकार को रोकने के लिए किसी भी कुर्बानी को तैयार हैं शिवपाल

शिवपाल यादव के लिए इससे बेहतर मौका भी नहीं था कि वो अब इस महागठबंधन के अपने फॉर्मूले को न सिर्फ चर्चा में लाऐं बल्कि अमली जामा पहनाते भी खुद भी उस रोल में दिखें जो उन्हे एक क्षेत्रिय सियासतदां की बजाए एक राष्ट्रीय नेता की तरह पेश कर सकता है. ये वक्त शिवपाल यादव के लिए इसलिए भी मुफीद है क्योंकि रामगोपाल यादव पार्टी से बाहर किए जा चुके हैं. अमर सिंह के साथ फिलहाल कोई पार्टी खड़ी होते दिखना नहीं चाहेगी ऐसे में शिवपाल यादव खुद को न सिर्फ बहस के केन्द्र में रखना चाहते हैं बल्कि यूपी महागठबंधन की एक धुरी की तरह भी सामने आना चाहते हैं ताकि उनका कद भी किसी सूरत में अखिलेश यादव से कम न दिखे.

ये भी पढ़ें- यूपी में भी ‘बिहार फॉर्मूला’ कांग्रेस की मजबूरी

बहरहाल जानकार इस...

इससे पहले कि ये चर्चा चल पड़े कि चाचा-भतीजे की लड़ाई में चचा शिवपाल मात खा गए, और भतीजे अखिलेश ने राजनीति के अखाड़े में पटखनी दे दी, राजनीति के मंजे खिलाड़ी की तरह शिवपाल यादव ने पूरी बहस को ही दूसरी ओर मोड़ दिया और एक नई बहस को यूपी से निकालकर दिल्ली तक पहुंचा दिया. ये नई बहस है 'यूपी का महागठबंधन'.

शिवपाल यादव ने सिर्फ मुद्दा ही नहीं उछाला बल्कि खुद भी उड़कर दिल्ली पहुंच गए और महागठबंधन की गोटियां भी फिट करने लगे.

राज्य में सांप्रदायिक सरकार को रोकने के लिए किसी भी कुर्बानी को तैयार हैं शिवपाल

शिवपाल यादव के लिए इससे बेहतर मौका भी नहीं था कि वो अब इस महागठबंधन के अपने फॉर्मूले को न सिर्फ चर्चा में लाऐं बल्कि अमली जामा पहनाते भी खुद भी उस रोल में दिखें जो उन्हे एक क्षेत्रिय सियासतदां की बजाए एक राष्ट्रीय नेता की तरह पेश कर सकता है. ये वक्त शिवपाल यादव के लिए इसलिए भी मुफीद है क्योंकि रामगोपाल यादव पार्टी से बाहर किए जा चुके हैं. अमर सिंह के साथ फिलहाल कोई पार्टी खड़ी होते दिखना नहीं चाहेगी ऐसे में शिवपाल यादव खुद को न सिर्फ बहस के केन्द्र में रखना चाहते हैं बल्कि यूपी महागठबंधन की एक धुरी की तरह भी सामने आना चाहते हैं ताकि उनका कद भी किसी सूरत में अखिलेश यादव से कम न दिखे.

ये भी पढ़ें- यूपी में भी ‘बिहार फॉर्मूला’ कांग्रेस की मजबूरी

बहरहाल जानकार इस महागठबंध के फॉर्मूले को फॉर्मूला के बजाए फिलहाल एक शगूफा मान रहे हैं क्योंकि जिस महागठबंधन का जिक्र हो रहा है उसे जमीन पर उतरने में कई पेंच सामने आऐंगे, बावजूद इसके एक चर्चा जरूर है. इसी बहाने शिवपाल यहां भी अपनी वो पुरानी कसक मिटाने में लगे हैं जो बिहार चुनाव के समय मिला था, जब शिवपाल ने इस गठबंधन को हरी झंडी देकर बिहार तक पहुंच गए थे जबकि अखिलेश और रामगोपाल यादव ने शिवपाल के उस मंसूबे को भी पलीता लगा दिया था. बहरहाल ये देखना दिलचस्प जरूर है कि शिवपाल यादव का ये प्रयास जमीन पर कितना उतरता है और कैसे उसे अमली जामा पहनाया जाता है.

बुधवार को पवन पांड़े के पार्टी से निकालने और मुख्यमंत्री को उन्हे मंत्रिमंडल से हटाने की चिठ्ठी का भी जब कोई असर मुख्यमंत्री पर नहीं हुआ तो कुछ घंटे बाद शिवपाल यादव ने पार्टी दफ्तर में ये बयान दिया कि राज्य में सांप्रदायिक सरकार को रोकने के लिए वो कोई भी कुर्बानी को तैयार है और साथ ही बीजेपी को रोकने के लिए अब गांधीवादी, लोहियावादी और चरणसिंहवादी को एक साथ आना होगा और उसके कुछ ही घंटों बाद दिल्ली के लिए उड़ गए.

शिवपाल का प्लान बी..

मुलायम के अखिलेश के साथ खड़े होने के साथ ही शिवपाल अब अपने प्लान बी के साथ राजनीति की नई पारी के लिए तैयार थे...ये प्लान बी है पार्टी के लिए महागठबंधन और खुद के लिए राष्ट्रीय नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाना. शिवपाल का ये प्लान बी मुलायम सिंह को भी सूट करता है क्योंकि बिहार चुनाव में अपने पैर खींचने के बाद से मुलायम खुद को प्रोजेक्ट करने को लेकर असहज थे तो शिवपाल अपनी पुरानी रिश्तों की दुहाई देकर मुलायम सिंह के लिए नए तारणहार बनने की भूमिका में दिखना चाहेंगे.

 प्लान बी है महागठबंधन 

इसी प्लान बी के तरह शिवपाल यादव ने पहले अजित सिंह को साधा जो इन दिनों नीतीश कुमार से ज्यादा करीब है और फिर लालू और अजित के सहारे नीतीश कुमार को भी मनाने में जुटे हैं,हालांकि जेड़ी-यू को बिहार चुनाव की कसक याद है इसीलिए जेड़ी-यू यूपी में होते महागठबंधन के किसी भी प्रयास में ये जताना नहीं भूलती कि बिहार चुनाव में मुलायम सिंह नें आखिरी वक्त में क्या किया. जेड़ी-यू महासचिव के सी त्यागी ने यूपी के महागठबंधन का स्वागत किया लेकिन साथ में ये लगाना नहीं भूले कि बिना मायावती के बीजेपी के खिलाफ कोई सशक्त गठबंधन नहीं बन सकता.

बहरहाल एक बार फिर से यूपी के लिए महागठबंधन की चर्चा फिर चल निकली है, शिवपाल यादव नें शरद यादव से मुलाकात की है, अजित सिंह से मिले हैं. बताया जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद ने भी सोनिया का संदेश लेकर शरद यादव से मुलाकात की है और राहुल गांधी ने भी यूपी चुनाव में गठबंधन को लेकर अपने करीबी लोगो से भी चर्चा की है. ये तमाम चर्चाएं फिलहाल इस ओर इशारा जरूर कर रही हैं कि यूपी में एक गठबंधन की जरूरत सभी महसूस कर रहे हैं लेकिन ये गठबंधन कब जमीं पर उतरता है ये तो वक्त बताएगा लेकिन इसकी चर्चा जरूर हो रही है.

ये भी पढ़ें- मुलायम का नया पैंतरा- अबकी बार अखिलेश नहीं, शिवपाल गठबंधन की सरकार?

कांग्रेस के अंदर खाने की बात करें तो राहुल गांधी ने बुधवार को यूपी के नेताओं से अलग-अलग मुलाकात की है और सबों से राज्य में गठबंधन को लेकर उनकी राय पूछी है और चर्चा इस बात की है कि अगर कोई गठबंधन बनता है और कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें मिलती है तो ये हो सकता है लेकिन कांग्रेस किसी भी सूरत में शिवपाल की समाजवादी के बजाए अखिलेश के चेहरे के साथ दिखना चाहती है.

समाजवादी पार्टी को लगता है कि अगर ये गठबंधन बन गया तो जो चर्चा मुसलमान वोटों को लेकर चल रही है वो गठबंधन बनने के बाद न सिर्फ खत्म हो जाएगा बल्कि मुसलमानों के बीच पनप रहा असमंजस भी खत्म हो जाएगा.

शिवपाल यादव दिल्ली पंहुचते ही एक्शन में दिखने लगे हैं और दिखाने की पूरी कोशिश हो रही है कि जल्द ही एक महागठबंधन राज्य में आकार ले सकता है. ऐसे में इसल गठबंधन में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के अलावा अजीत सिंह की लोकदल और जेडी-यू को मिलाकर बिहार जैसा स्वरूप देने की कोशिश है लेकिन सबकी जुबां पर एक ही सवाल है कि क्या ये गठबंधन सचमुच बन पाएगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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