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महाराष्ट्र में शिवसेना कहीं भाजपा के खेमे की 'विभीषण' साबित ना हो !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 12 मार्च, 2019 01:29 PM
  • 12 मार्च, 2019 01:29 PM
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महाराष्ट्र में सत्ताधारी पार्टी की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना अपनी ही सरकार पर सवाल उठाती रही. यानी सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष की भूमिका भी शिवसेना ने निभाई. ये एटिट्यूड लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है.

करीब ढाई दशकों से महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा का गठबंधन चला आ रहा है. पिछले विधानसभा चुनावों में मनमुटाव हुआ, लेकिन सरकार बनाने के लिए आखिरकार शिवसेना और भाजपा को साथ आना ही पड़ा, लेकिन गठबंधन की सरकार होने के बावजूद दोनों में तल्खियां कम नहीं हुईं. कभी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भाजपा पर निशाना साधते तो कभी भाजपा की ओर से शिवसेना को आड़े हाथों लिया जाता. दोनों ही ओर से तलवारें खिंच चुकी थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव आते ही दोबारा दोनों भाई-भाई की तरह चुनावी मैदान में उतरे. तय हुआ है कि महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 25 पर भाजपा लड़ेगी और 23 पर शिवसेना.

अमित शाह और उद्धव ठाकरे ने सरेआम कहा कि मनमुटाव था, लेकिन अब सब कुछ सही हो गया है. दोनों की बात से लगा कि एक बार फिर से दोनों पार्टियों ने सभी गिले-शिकवे भुलाकर एक दूसरे को गले लगा लिया है. लेकिन लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के अगले ही दिन 11 मार्च को शिवसेना ने फिर से भाजपा पर निशाना साधा है. महाराष्ट्र में सत्ताधारी पार्टी की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना अपनी ही सरकार पर सवाल उठाती रही. यानी सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष की भूमिका भी शिवसेना ने निभाई. इतना सब होने के बावजूद भाजपा ने शिवसेना के साथ लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया. कहीं ऐसा ना हो कि शिवसेना विभीषण की तरह घर का भेदी साबित हो जाए और मोदी सरकार के लिए कोई बड़ी मुसीबत खड़ी कर दे.

महाराष्ट्र में सत्ताधारी पार्टी की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना अपनी ही सरकार पर सवाल उठाती रही.

मनोज तिवारी के बहाने भाजपा को बनाया 'टारगेट'

मनोज तिवारी ने एक बाइक रैली निकाली और सेना की वर्दी वाली जैकेट पहनी. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में मनोज तिवारी और भाजपा पर निशाना साधते हुए लिखा है कि सेना के जवानों को...

करीब ढाई दशकों से महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा का गठबंधन चला आ रहा है. पिछले विधानसभा चुनावों में मनमुटाव हुआ, लेकिन सरकार बनाने के लिए आखिरकार शिवसेना और भाजपा को साथ आना ही पड़ा, लेकिन गठबंधन की सरकार होने के बावजूद दोनों में तल्खियां कम नहीं हुईं. कभी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भाजपा पर निशाना साधते तो कभी भाजपा की ओर से शिवसेना को आड़े हाथों लिया जाता. दोनों ही ओर से तलवारें खिंच चुकी थीं, लेकिन लोकसभा चुनाव आते ही दोबारा दोनों भाई-भाई की तरह चुनावी मैदान में उतरे. तय हुआ है कि महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 25 पर भाजपा लड़ेगी और 23 पर शिवसेना.

अमित शाह और उद्धव ठाकरे ने सरेआम कहा कि मनमुटाव था, लेकिन अब सब कुछ सही हो गया है. दोनों की बात से लगा कि एक बार फिर से दोनों पार्टियों ने सभी गिले-शिकवे भुलाकर एक दूसरे को गले लगा लिया है. लेकिन लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के अगले ही दिन 11 मार्च को शिवसेना ने फिर से भाजपा पर निशाना साधा है. महाराष्ट्र में सत्ताधारी पार्टी की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना अपनी ही सरकार पर सवाल उठाती रही. यानी सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष की भूमिका भी शिवसेना ने निभाई. इतना सब होने के बावजूद भाजपा ने शिवसेना के साथ लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया. कहीं ऐसा ना हो कि शिवसेना विभीषण की तरह घर का भेदी साबित हो जाए और मोदी सरकार के लिए कोई बड़ी मुसीबत खड़ी कर दे.

महाराष्ट्र में सत्ताधारी पार्टी की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना अपनी ही सरकार पर सवाल उठाती रही.

मनोज तिवारी के बहाने भाजपा को बनाया 'टारगेट'

मनोज तिवारी ने एक बाइक रैली निकाली और सेना की वर्दी वाली जैकेट पहनी. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में मनोज तिवारी और भाजपा पर निशाना साधते हुए लिखा है कि सेना के जवानों को वर्दी हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और इस तरह वर्दी जैसी जैकेट पहनने सेना का अपमान है. सामना में भाजपा पर निशाना साधते हुए ये भी लिखा है कि देशभक्ति पर किसी एक पार्टी का अधिकार नहीं है. सबसे ज्यादा आक्रामक तो आर्टिकल का शीर्षक है- 'बेवजह सीना क्यों फुलाते हो? सैनिकों का मान रखो!' आर्टिकल में लिखा है- 'पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक के बाद सेना, देशभक्ति व अन्य राजनीतिक विचारों पर अपना मालिकाना हक जताने की प्रक्रिया बढ़ गई है. अभिनंदन ने पाकिस्तानियों का 'एफ-16' मार गिराया, ऐसा भाजपा के सत्ता में होने के कारण ही हुआ, ऐसा प्रचार खुलेआम जारी है. सैनिक की वेशभूषा में अभिनंदन की तस्वीर भाजपा सहित दूसरी राजनीतिक पार्टियां इस्तेमाल कर के अपनी खुद की छाती बेवजह फुला रही हैं.'

छोटे भाई का 'बड़े' से आगे निकल जाना पच नहीं रहा !

महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना के गठबंधन से पहली बार 1995 में सरकार बनी. शुरू से ही ये साफ था कि शिवसेना बड़ा भाई है और भाजपा छोटा. गठबंधन में ये भी शर्त थी कि शिवसेना को अधिक सीटें मिलेंगी और साथ ही मुख्यमंत्री भी उनका ही होगा. 2004 में जब पहली बार शिवसेना केंद्र और राज्य में सत्ता से बाहर हुई तो दोनों दलों में मतभेद शुरू हो गए. खैर, जैसे-तैसे 2014 का लोकसभा चुनाव भी गठबंधन के साथ लड़ा और जीत हासिल की. लेकिन जब बारी आई विधानसभा चुनाव की तो इस बार भाजपा ने शिवसेना को बड़ा भाई मानने से इनकार कर दिया. यानी शिवसेना की ज्यादा सीटें और अपना मुख्यमंत्री वाली शर्तों को नहीं माना और दोनों पार्टियों ने अकेले-अकेले चुनाव लड़ा. अकेले लड़कर राज्य की चौथे नंबर की पार्टी भाजपा 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. यानी छोटा भाई (भाजपा) अब बड़े भाई (शिवसेना) से आगे निकल गया. यूं लगता है कि आज तक उद्धव ठाकरे इस बात को पचा नहीं पाए हैं, तभी तो भाजपा पर आए दिन निशाना साधते रहते हैं, जबकि सरकार भाजपा-शिवसेना के गठबंधन की है.

भाजपा-शिवसेना का गठबंधन किसकी मजबूरी?

एक सवाल जो हर किसी के मन में उठ रहा है कि आखिर भाजपा और शिवसेना का गठबंधन होने के पीछे किसकी मजबूरी है? भाजपा खुद को कमजोर महसूस कर रही है या फिर शिवसेना को हारने का डर सता रहा है? सबसे बड़ा सवाल तो ये कि हर मोर्चे पर भाजपा के खिलाफ दिखने वाली शिवसेना ने गठबंधन स्वीकार कैसे कर लिया? खैर, इन सवालों का जवाब सीटों के गणित से काफी हद तक मिल सकता है. इस बार शिवसेना को आज तक के लोकसभा चुनावों से सबसे अधिक सीटें मिली हैं. पिछले लोकसभा चुनावों में शिवसेना कभी 20-22 सीटें मिलती थीं, लेकिन इस बार 23 मिली हैं. तो गठबंधन की एक वजह से यही हो सकती है कि इस बार सबसे अधिक सीटें मिली हैं.

प्रशांत किशोर तो नहीं हैं गठबंधन की वजह?

भाजपा की सहयोगी पार्टी जेडीयू के उपाध्यक्ष और जाने माने चुनाव-रणनीतिकार प्रशांत किशोर फरवरी के पहले सप्ताह में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिले थे. उस समय यही अनुमान लगाया जा रहा था कि प्रशांत किशोर की मुलाकात का मकसद भाजपा-शिवसेना में गठबंधन कराना हो सकता है. हालांकि, तब तो शिवसेना के नेता संजय राउत ने साफ कहा था कि यह कोई राजनीतिक नहीं, बल्कि एक शिष्टाचार मुलाकात थी, लेकिन अब ये लगने लगा है कि भाजपा-शिवसेना का गठबंधन उस मुलाकात का नतीजा भी हो सकता है.

यूं तो गठबंधन के बाद हुई सार्वजनिक बैठक में अमित शाह ने कहा था कि ये सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सैद्धांतिक गठबंधन भी है. लेकिन शिवसेना का विरोध देखकर तो ये साफ हो जाता है कि ये गठबंधन सैद्धांतिक तो बिल्कुल नहीं है. हां, चुनाव जीतने के लिए इसे राजनीतिक गठबंधन कहा जा सकता है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि जिस राजनीतिक के चलते आए दिन शिवसेना की ओर से भाजपा को आड़े हाथों लिया जा रहा है, उस राजनीति के लिए दोनों पार्टियों का ये गठबंधन कितना आगे जाता है. ऐसा ना हो कि शिवसेना की ऐसी हरकतों से कांग्रेस का फायदा हो जाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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