• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

दिल्ली में कांग्रेस-आप गठबंधन को लेकर शीला दीक्षित अकेली क्यों पड़ गयीं?

    • आईचौक
    • Updated: 19 मार्च, 2019 03:20 PM
  • 19 मार्च, 2019 03:20 PM
offline
दिल्ली में आखिरकार कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन तय हो चुका है और इसमें शीला दीक्षित का कोई रोल नहीं है. रोल क्या शीला दीक्षित का विरोध भी दरकिनार कर दिया गया है - क्योंकि शीला दीक्षित अकेल पड़ चुकी हैं.

दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन फाइनल स्टेज में पहुंच गया है. दिल्ली की 7 सीटों का बंटवारा 50-50 के आधार पर होगा जबकि एक सीट पर साझा उम्मीदवार हो सकता है. पहले भी सीटों के बंटवारे का यही आधार बताया गया था और साझा उम्मीदवार के तौर पर बीजेपी के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा का नाम उछला था. हालांकि, बाद में गठबंधन को दोनों पक्षों ने नकार दिया था.

पहले कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन का कट्टर विरोधी अजय माकन को माना जाता था और शीला दीक्षित के आने के बाद समझा गया कि ऐसा नहीं होगा. मगर हुआ ये कि शीला दीक्षित भी गठबंधन के खिलाफ अड़ गयीं - और अब तो नौबत ये आ चुकी है कि वो इस लड़ाई में अकेले पड़ चुकी हैं.

अकेले पड़ीं शीला दीक्षित

आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस के गठबंधन को लेकर शीला दीक्षित अकेली पड़ने लगी हैं. शीला दीक्षित का दावा रहा है कि आप के साथ गठबंधन के बगैर भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है. शीला दीक्षित की इस बात से राहुल गांधी भी सहमत हो गये थे. बाद में विपक्षी दलों के नेताओं के कहने पर राहुल गांधी ने दोबारा विचार करने की बात स्वीकार की. फिर उसी हिसाब से दिल्ली कांग्रेस से जुड़े नेताओं से विचार विमर्श किया. उसके बाद गठबंधन की कवायद दोबारा शुरू हो गयी.

गठबंधन की नया कवायद की अगुवाई दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको कर रहे हैं. कांग्रेस के शक्ति ऐप पर एक सर्वे भी कराया गया है जिसमें दिल्ली कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की राय ली गयी है. इस ओपिनियन पोल के लिए पीसी चाको ने खुद अपनी आवाज में ऑडियो रिकॉर्ड कर ऐप पर डाला था.

शीला दीक्षित से जब सर्वे के बारे में पूछा गया तो उनका कहना रहा कि उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. हैरानी तो तभी हुई थी कि जो दिल्ली कांग्रेस का नेतृत्व कर रहा है उसे ही जानकारी कैसे नहीं है?

एक इंटरव्यू में पीसी चाको ने बताया है कि गठबंधन के मुद्दे पर दिल्ली कांग्रेस में राय बंटी हुई है. हालांकि, दिल्ली प्रभारी ने बंटवारे का जो अनुपात...

दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन फाइनल स्टेज में पहुंच गया है. दिल्ली की 7 सीटों का बंटवारा 50-50 के आधार पर होगा जबकि एक सीट पर साझा उम्मीदवार हो सकता है. पहले भी सीटों के बंटवारे का यही आधार बताया गया था और साझा उम्मीदवार के तौर पर बीजेपी के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा का नाम उछला था. हालांकि, बाद में गठबंधन को दोनों पक्षों ने नकार दिया था.

पहले कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन का कट्टर विरोधी अजय माकन को माना जाता था और शीला दीक्षित के आने के बाद समझा गया कि ऐसा नहीं होगा. मगर हुआ ये कि शीला दीक्षित भी गठबंधन के खिलाफ अड़ गयीं - और अब तो नौबत ये आ चुकी है कि वो इस लड़ाई में अकेले पड़ चुकी हैं.

अकेले पड़ीं शीला दीक्षित

आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस के गठबंधन को लेकर शीला दीक्षित अकेली पड़ने लगी हैं. शीला दीक्षित का दावा रहा है कि आप के साथ गठबंधन के बगैर भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है. शीला दीक्षित की इस बात से राहुल गांधी भी सहमत हो गये थे. बाद में विपक्षी दलों के नेताओं के कहने पर राहुल गांधी ने दोबारा विचार करने की बात स्वीकार की. फिर उसी हिसाब से दिल्ली कांग्रेस से जुड़े नेताओं से विचार विमर्श किया. उसके बाद गठबंधन की कवायद दोबारा शुरू हो गयी.

गठबंधन की नया कवायद की अगुवाई दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको कर रहे हैं. कांग्रेस के शक्ति ऐप पर एक सर्वे भी कराया गया है जिसमें दिल्ली कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की राय ली गयी है. इस ओपिनियन पोल के लिए पीसी चाको ने खुद अपनी आवाज में ऑडियो रिकॉर्ड कर ऐप पर डाला था.

शीला दीक्षित से जब सर्वे के बारे में पूछा गया तो उनका कहना रहा कि उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. हैरानी तो तभी हुई थी कि जो दिल्ली कांग्रेस का नेतृत्व कर रहा है उसे ही जानकारी कैसे नहीं है?

एक इंटरव्यू में पीसी चाको ने बताया है कि गठबंधन के मुद्दे पर दिल्ली कांग्रेस में राय बंटी हुई है. हालांकि, दिल्ली प्रभारी ने बंटवारे का जो अनुपात बताया है उससे तो साफ है कि शीला दीक्षित पूरी तरह अकेले पड़ गयी हैं.

क्या शीला दीक्षित की निजी नापसंद भारी पड़ी?

पीसी चाको के मुताबिक, दिल्ली कांग्रेस में शीला दीक्षित सहित छह अध्यक्ष हैं और उनमें से पांच आप के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं. इतना ही नहीं, पीसी चाको बताते हैं, दिल्ली की 14 जिला समितियां भी अरविंद केजरीवाल की पार्टी के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं. दिल्ली प्रभारी के अनुसार सबका मानना है कि बीजेपी को अकेले बूते हराना मुश्किल है.

पीसी चाको की दलील है कि कांग्रेस अगर आरजेडी, डीएमके, एनसीपी और टीडीपी के साथ गठबंधन कर सकती है तो आप से क्या दिक्कत है?

ऐसा लगता है जैसे यही दलील शीला दीक्षित के खिलाफ चली जा रही है. वैसे शीला दीक्षित ने भी जो तर्क दिया था वो काफी दमदार रहा और उसी कारण पार्टी नेतृत्व मान भी गया था. शीला दीक्षित की ओर से आलाकमान को बताया गया था कि दिल्ली में आप के साथ चुनाव में जाने से केजरीवाल सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का नुकसान उठाना पड़ सकता है. जाहिर में शीला दीक्षित ने एमसीडी चुनावों में आम आदमी पार्टी की हार का भी हवाला दिया ही होगा.

दिलचस्प बात ये है कि पीसी चाको और आप के साथ गठबंधन के समर्थक भी एमसीडी चुनाव के नतीजों को ही आधार बना रहे हैं. गठबंधन के पक्षधर दिल्ली में भी वही फॉर्मूला मान कर चल रहे हैं जो यूपी में सपा-बसपा गठबंधन का आधार बना है.

दिल्ली में सपा-बसपा गठबंधन की छाप

2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के बाद विपक्षी खेमे में एक राय बनी कि अगर समाजवादी पार्टी और बीएसपी साथ मिल कर चुनाव लड़े होते तो बीजेपी की शिकस्त हो गयी होती. इसके लिए दोनों दलों के वोट शेयर की दलील दी गयी जो जोड़ देने पर बीजेपी के वोट शेयर से ज्यादा रही. यही दलील आगे चल कर सपा-बसपा गठबंधन में तब्दील हो गयी.

कांग्रेस के दिल्ली प्रभारी पीसी चाको कहते हैं - एमसीडी चुनाव में भी बीजेपी विरोधी वोट बंट गया था. अगर फिर से तीनों दलों के बीच आपस में लड़ाई होगी तो बीजेपी विरोधी वोट बटेंगा और कांग्रेस की उसे ही रोकने की कोशिश है.

पीसी चाको का कहना है कि दिल्ली में कांग्रेस का वोट शेयर 20-22 फीसदी है और आप का 35-40 फीसदी, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 45 फीसदी है. पीसी चाको ये भी मान कर चल रहे हैं कि पुलवामा हमले के बाद के हालात में बीजेपी को कुछ वोटों का फायदा हो सकता है - लेकिन अगर कांग्रेस और आप मिल कर लड़ें तो बीजेपी को आसानी से मात दे सकते हैं.

देखा जाये तो पीसी चाको ने गठबंधन की जमीन तैयार कर दी है. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष होने के नाते इस बारे में एक बार फिर शीला दीक्षित की राय ली जाएगी - लेकिन वो सिर्फ रस्मअदायगी ही होगी. आखिर फैसला राहुल गांधी को करना है.

अब सवाल यही बचता है कि आखिर शीला दीक्षित इतनी अकेली कैसे पड़ गयीं. ऐसा लगता है शीला दीक्षित की दलील की जगह उनकी निजी नापसंद को हवा दे दी गयी. ये बात शीला दीक्षित के खिलाफ चली गयी कि वो आप के साथ गठबंधन में अरविंद केजरीवाल को लेकर निजी नापसंद को कांग्रेस के हितों पर तरजीह दे रही हैं.

इन्हें भी पढ़ें :

केजरीवाल कांग्रेस के कंधे पर दिल्ली में बंदूक क्यों चला रहे हैं?

कांग्रेस से गठबंधन के लिए तड़प रहे केजरीवाल क्या बीजेपी से इतना डर गए हैं?

कांग्रेस को लेकर केजरीवाल ने सबसे बड़ा यू-टर्न लिया है!



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲