• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कांग्रेस का होकर रह गया शरद यादव का 'साझी विरासत बचाओ सम्मेलन'

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 17 अगस्त, 2017 09:49 PM
  • 17 अगस्त, 2017 09:49 PM
offline
शरद यादव का सम्मेलन कांग्रेस को एहसान लौटाने का बेहतरीन मौका लगा होगा. शायद इसीलिए कांग्रेस के ज्यादातर कद्दावर नेता कंस्टीट्यूशन क्लब पहुंचे. राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के अलावा विशेष उपस्थिति रही - अहमद पटेल की.

सिर्फ सोनिया गांधी मौजूद नहीं थीं - वरना, शरद यादव का 'साझी विरासत सम्मेलन' ऐसा लग रहा था जैसे कांग्रेस का ही कोई कार्यक्रम हो. खुद राहुल गांधी भी मंच से वैसे ही बोले जैसे कांग्रेस के सम्मेलन में कंफर्टेबल और कॉन्फिडेंट होकर बोलते हैं. किसी साझा मंच पर राहुल को इतना कंफर्टेबल या तो बिहार चुनाव में एक दो बार देखा गया होगा या फिर यूपी में अखिलेश यादव के साथ. कॉन्फिडेंट तो इतने दिखे कि बोले - अगर 2019 में सब साथ हो जायें तो मोदी-शाह का पता भी नहीं चलेगा.

शरद और कांग्रेस की करीबी

शरद यादव और कांग्रेस की इस करीबी की नींव पड़ी गुजरात में हुए राज्य सभा के चुनाव में. वही चुनाव जिसमें अहमद पटेल चुनाव तो अपना जीते मगर शिकस्त अमित शाह की बतायी गयी.

अहमद पटेल के चुनाव जीतने पर शरद यादव ने ट्वीट कर उन्हें बधायी दी थी. साथ में, अच्छे मूड का एक फोटो भी शेयर किया था. उससे भी बड़ी बात ये थी कि गुजरात में जेडीयू के एकमात्र विधायक ने अहमद पटेल को वोट दिया और सरेआम इस बात का ऐलान भी किया. उधर, जेडीयू की ओर से दावा किया जाता रहा कि उनके विधायक ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया है. थोड़ी ही देर में बोली बदल भी गयी और बीजेपी-जेडीयू के रिश्तों की दुहाई देने लगे.

दिल्ली में शरद यादव का शक्ति प्रदर्शन

शरद यादव का सम्मेलन कांग्रेस को एहसान लौटाने का बेहतरीन मौका लगा होगा. शायद इसीलिए कांग्रेस के ज्यादातर कद्दावर नेता कंस्टीट्यूशन क्लब पहुंचे. राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के अलावा विशेष उपस्थिति रही - अहमद पटेल की.

राहुल गरजे तो बाकी भी बरसे

सम्मेलन में शामिल तो विपक्ष के दिग्गज भी हुए लेकिन कांग्रेस लॉबी ज्यादा प्रभावी नजर आयी. कांग्रेस नेताओं की एक खासियत ये भी दिखी कि निशाने पर तो सभी के...

सिर्फ सोनिया गांधी मौजूद नहीं थीं - वरना, शरद यादव का 'साझी विरासत सम्मेलन' ऐसा लग रहा था जैसे कांग्रेस का ही कोई कार्यक्रम हो. खुद राहुल गांधी भी मंच से वैसे ही बोले जैसे कांग्रेस के सम्मेलन में कंफर्टेबल और कॉन्फिडेंट होकर बोलते हैं. किसी साझा मंच पर राहुल को इतना कंफर्टेबल या तो बिहार चुनाव में एक दो बार देखा गया होगा या फिर यूपी में अखिलेश यादव के साथ. कॉन्फिडेंट तो इतने दिखे कि बोले - अगर 2019 में सब साथ हो जायें तो मोदी-शाह का पता भी नहीं चलेगा.

शरद और कांग्रेस की करीबी

शरद यादव और कांग्रेस की इस करीबी की नींव पड़ी गुजरात में हुए राज्य सभा के चुनाव में. वही चुनाव जिसमें अहमद पटेल चुनाव तो अपना जीते मगर शिकस्त अमित शाह की बतायी गयी.

अहमद पटेल के चुनाव जीतने पर शरद यादव ने ट्वीट कर उन्हें बधायी दी थी. साथ में, अच्छे मूड का एक फोटो भी शेयर किया था. उससे भी बड़ी बात ये थी कि गुजरात में जेडीयू के एकमात्र विधायक ने अहमद पटेल को वोट दिया और सरेआम इस बात का ऐलान भी किया. उधर, जेडीयू की ओर से दावा किया जाता रहा कि उनके विधायक ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया है. थोड़ी ही देर में बोली बदल भी गयी और बीजेपी-जेडीयू के रिश्तों की दुहाई देने लगे.

दिल्ली में शरद यादव का शक्ति प्रदर्शन

शरद यादव का सम्मेलन कांग्रेस को एहसान लौटाने का बेहतरीन मौका लगा होगा. शायद इसीलिए कांग्रेस के ज्यादातर कद्दावर नेता कंस्टीट्यूशन क्लब पहुंचे. राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के अलावा विशेष उपस्थिति रही - अहमद पटेल की.

राहुल गरजे तो बाकी भी बरसे

सम्मेलन में शामिल तो विपक्ष के दिग्गज भी हुए लेकिन कांग्रेस लॉबी ज्यादा प्रभावी नजर आयी. कांग्रेस नेताओं की एक खासियत ये भी दिखी कि निशाने पर तो सभी के बीजेपी और आरएसएस ही रहे लेकिन बातें सभी ने अलग अलग तरीके से कीं. नतीजा ये हुआ कि मीडिया में भी अलग अलग नेताओं की बातों पर अलग अलग खबरें बनीं. यहीं अगर कांग्रेस का सम्मेलन होता तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी के अलावा किसी ने कुछ बोला भी या मनमोहन सहित सभी खामोश ही रहे पता भी नहीं चलता.

सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेली की तो सम्मेलन में मौजूदगी ही खास लग रही थी. बोले तो गुस्सा साफ फूट पड़ा, "आज देश को सिर्फ दो लोग चला रहे हैं. एक पीएम और डी फेक्टो पीएम. उन्होंने कहा कि कोई एजेंसी बाकी नहीं है, जिसका दुरुपयोग नहीं किया है." कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने संघ और बीजेपी पर हमेशा की तरह ही बड़ा हमला बोला. आरोप लगाते हुए राहुल ने कहा - 'इन लोगों ने तिरंगे को सलाम करना भी सत्ता में आने के बाद ही सीखा.'

राहल गांधी ने कहा, "इस देश को देखने के दो तरीके हैं, एक कहता है ये देश मेरा है, दूसरा कि मैं इस देश का हूं. यही फर्क है आरएसएस और हममें. आरएसएस कहती है ये देश हमारा है तुम इसके नहीं हो. गुजरात में दलितों की पिटाई की और कहा कि ये देश हमारा है, तुम इसके नहीं हो." इसके साथ ही राहुल ने पूरे विपक्ष से एकजुट होने की अपील की और समझाया कि अगर सब मिल कर लड़े तो बीजेपी और संघ कहीं दिखाई भी नहीं पड़ेंगे.

राहुल गांधी ने संघ के एक नेता के ब्रिटिश सरकार को चिट्ठी लिख कर जेल से छूटने की बात कही तो गुलाम नबी आजाद ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आज अंग्रेज नहीं हैं, लेकिन उनके समर्थक बने हुए हैं. आजाद का कहना था कि ये जो दौर है वो इमरजेंसी का बाप है - लोग सड़क पर भी बात करने से डर रहे हैं. टॉयलेट में भी जासूसी के लिए इन्होंने माइक्रोफोन लगाया हुआ है.

जो बात अब तक शरद यादव समझाते रहे कि असली जेडीयू उनके पास है और सरकारी वाला नीतीश कुमार के पास, गुलाम नबी आजाद ने भी उसे अपने तरीके से एनडोर्स करने की कोशिश की. आजाद बोले, "शरद यादव के नेतृत्व वाली जेडीयू ही असली जेडीयू है, नीतीश वाली तो बीजेपी की जेडीयू है." जेडीयू पर नीतीश के दावे को खारिज करते हुए आजाद ने शरद यादव की इस बात के लिए तारीफ की कि उन्होंने मोदी सरकार में मंत्री पद ठुकरा दिया. खुद शरद यादव ने भी मंत्री पद ऑफर किये जाने की बात कबूली, बोले, "लोगों को चिंता थी कि कहीं मैं खिसक न जाऊं, मंत्री से संत्री न बन जाऊं."

फिर राहुल गांधी की बात को अपने अंदाज में पेश किया - "विश्व की जनता जब खड़ी होती है तो कोई हिटलर भी उससे जीत नहीं सकता."

सम्मेलन में हिस्सा लेने वालों की फेहरिस्त देखें तो सबके सब बड़े नाम हैं, लेकिन राजनीतिक जमीन के हिसाब से देखें तो फुंके हुए कारतूस ही हैं. शरद यादव के बिहार दौरे में जो भीड़ दिखी उसके पीछे आरजेडी का मजबूत सपोर्ट था. यूपी चुनाव से पहले नीतीश कुमार भी नेताओं को जुटा कर फोरम खड़ा करने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन नाकाम रहे. एक बात सही जरूर है कि तब नीतीश को न तो आरजेडी की ओर से कभी सपोर्ट मिला न कभी कांग्रेस के नेता इस कदर डटे दिखे. सुना है साझी विरासत बचाओ के बाद शरद यादव पटना में 19 तारीख को जन अदालत सम्मेलन करने वाले हैं. उसी दिन जेडीयू की कार्यकारिणी है भी है - जाहिर है जो भी होगा बड़ा ही होगा.

इन्हें भी पढ़ें :

नीतीश ने शरद पर एक्शन नहीं लिया तो जेडीयू कार्यकारिणी में ये सब होना ही है

शरद यादव को बागी समझिए या जेडीयू में टूट, अब जनता दल 'यूनाइटेड' तो नहीं लगता

लालू प्रसाद चाहते हैं कि लड़ाई की कमान शरद यादव संभाले, लेकिन बदले में देंगे क्या?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲