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शरद पवार ने महाराष्ट्र की राजनीति में पेंच फंसाया और खुद भी फंस गये!

    • आईचौक
    • Updated: 29 सितम्बर, 2019 02:07 PM
  • 29 सितम्बर, 2019 02:07 PM
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शरद पवार ने ये तो जता दिया कि NCP चाहे कितनी भी कमजोर क्यों न पड़ गयी हो, महाराष्ट्र की राजनीति में वो अब भी बूढ़े शेर ही हैं - लेकिन सारी कवायद हवा तब हो जाती है जब अपने ही दगाबाजी पर उतर आयें.

महाराष्ट्र में मतदान ही नहीं, एक महीने के भीतर ही नतीजे भी आ जाएंगे. वोटिंग 21 अक्टूबर को होनी है और नतीजे 24 को आने हैं.

चुनाव प्रचार के बीचों-बीच शरद पवार अचानक मजबूती से खड़े हो गये हैं. ED के FIR दर्ज करने के बाद शरद पवार ने ऐसी राजनीतिक चाल चली है कि विरोधियों को बैकफुट पर आना पड़ा है - लेकिन इससे उनके सामने खड़ी चुनौतियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.

शरद पवार के सामने जितनी चुनौतियां बाहर नहीं हैं उससे ज्यादा घरेलू मैदान पर टूट पड़ी हैं. राजनीति में जब परिवार शुमार होता है तो ऐसा ही होता है - परिवार के झगड़े पार्टी को ले डूबते हैं और पार्टी के झगड़े परिवार को. हाल फिलहाल ऐसी एक मिसाल तो उत्तर प्रदेश से ही है - समाजवादी पार्टी.

बीजेपी नेतृत्व ने घेरा तो शरद पवार को बिलकुल वैसे ही था जैसे कांग्रेस नेता फंसते गये, लेकिन एक्शन गलत वक्त पर हो गया या तरीका सही और सटीक नहीं रहा. जैसे ही शरद पवार ने ED के सामने पेश होने की घोषणा की और कार्यक्रम बना लिया, हमले का तरीका प्रत्यक्ष से परोक्ष पर शिफ्ट हो गया है.

जहां कहीं भी ऐसे राजनीतिक लड़ाई होती है कोई न कोई सूत्रधार होता है - और इस केस में भी बीजेपी के एक नेता बताये जाते हैं. शरद पवार की मुश्किल ये है कि घर का भेदी ही लंका ढाये जा रहा है, वरना बाकियों को तो वो अब तक चलते फिरते निपटा दिये होते.

शरद पवार न तो चिदंबरम हैं और न डीके!

जनाधार का फर्क क्या होता है - ये शरद पवार ने दिखा दिया है. लिहाजा बीजेपी ने लड़ाई का तरीका बदल लिया है. अब सीधे सीधे शरद पवार पर हाथ डालने की जगह दूसरी रणनीति पर काम चल रहा है. नयी रणनीति प्लान बी का हिस्सा हो सकता है.

शरद पवार भी जांच एजेंसियों के दायरे में वैसे ही आये हैं जैसे अभी तक पी. चिदंबरम और कर्नाटक के डीके शिवकुमार फंसे हैं. संभव है आगे चल कर रॉबर्ट वाड्रा के सामने भी ऐसी मुश्किलें आयें. ED की तरफ से तो अदालत से वाड्रा की कस्टडी मांगी ही जा रही है.

चिदंबरम के लिए कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता...

महाराष्ट्र में मतदान ही नहीं, एक महीने के भीतर ही नतीजे भी आ जाएंगे. वोटिंग 21 अक्टूबर को होनी है और नतीजे 24 को आने हैं.

चुनाव प्रचार के बीचों-बीच शरद पवार अचानक मजबूती से खड़े हो गये हैं. ED के FIR दर्ज करने के बाद शरद पवार ने ऐसी राजनीतिक चाल चली है कि विरोधियों को बैकफुट पर आना पड़ा है - लेकिन इससे उनके सामने खड़ी चुनौतियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.

शरद पवार के सामने जितनी चुनौतियां बाहर नहीं हैं उससे ज्यादा घरेलू मैदान पर टूट पड़ी हैं. राजनीति में जब परिवार शुमार होता है तो ऐसा ही होता है - परिवार के झगड़े पार्टी को ले डूबते हैं और पार्टी के झगड़े परिवार को. हाल फिलहाल ऐसी एक मिसाल तो उत्तर प्रदेश से ही है - समाजवादी पार्टी.

बीजेपी नेतृत्व ने घेरा तो शरद पवार को बिलकुल वैसे ही था जैसे कांग्रेस नेता फंसते गये, लेकिन एक्शन गलत वक्त पर हो गया या तरीका सही और सटीक नहीं रहा. जैसे ही शरद पवार ने ED के सामने पेश होने की घोषणा की और कार्यक्रम बना लिया, हमले का तरीका प्रत्यक्ष से परोक्ष पर शिफ्ट हो गया है.

जहां कहीं भी ऐसे राजनीतिक लड़ाई होती है कोई न कोई सूत्रधार होता है - और इस केस में भी बीजेपी के एक नेता बताये जाते हैं. शरद पवार की मुश्किल ये है कि घर का भेदी ही लंका ढाये जा रहा है, वरना बाकियों को तो वो अब तक चलते फिरते निपटा दिये होते.

शरद पवार न तो चिदंबरम हैं और न डीके!

जनाधार का फर्क क्या होता है - ये शरद पवार ने दिखा दिया है. लिहाजा बीजेपी ने लड़ाई का तरीका बदल लिया है. अब सीधे सीधे शरद पवार पर हाथ डालने की जगह दूसरी रणनीति पर काम चल रहा है. नयी रणनीति प्लान बी का हिस्सा हो सकता है.

शरद पवार भी जांच एजेंसियों के दायरे में वैसे ही आये हैं जैसे अभी तक पी. चिदंबरम और कर्नाटक के डीके शिवकुमार फंसे हैं. संभव है आगे चल कर रॉबर्ट वाड्रा के सामने भी ऐसी मुश्किलें आयें. ED की तरफ से तो अदालत से वाड्रा की कस्टडी मांगी ही जा रही है.

चिदंबरम के लिए कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता खड़ा जरूर किये गये थे, लेकिन वो भी वैसे ही नारेबाजी कर रहे थे जैसे किराये पर बुलाये गये हों. डीके शिवकुमार को लेकर कर्नाटक में हंगामा थोड़ा हुआ जरूर - लेकिन शरद पवार का केस बिलकुल अलग रहा.

जैसे ही शरद पवार ने ED दफ्तर जाकर पेश होने की घोषणा की, NCP कार्यकर्ता हरकत में आ गये. शरद पवार ने भी FIR को राजनीतिक बदले की भावना से किया गया एक्शन करार दिया - और अपने तरीके से लोगों को समझाना भी शुरू कर दिया. 50 साल की राजनीति पर उंगली उठाये जाने की बात समझाने लगे - और लोगों में ये भावना भी प्रवाहित होने लगी.

NCP में P के समाजवादी पार्टी जैसा हाल

प्रशासन के जरिये हालात पर नजर रख रहे लोगों को पल पल की जानकारियां अपडेट की जा रही थीं. फिर प्रवर्तन निदेशालय की ओर से शरद पवार को ईमेल के जरिये बताया गया कि अभी उन्हें पेश होने की जरूरत नहीं है. मुंबई पुलिस ने एहतियाती उपाय करते हुए कई इलाकों में धारा 144 लागू करने के साथ साथ उसे प्रचारित करना भी शुरू कर दिया. आखिरकार मुंबई के पुलिस कमिश्नर को कानून व्यवस्था की दुहाई देते हुए अपील करनी पड़ी और तब कहीं जाकर शरद पवार ने अपना इरादा बदला.

कहते हैं इस बीच शरद पवार की राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे दोनों से फोन पर बात हुई - और दोनों नेताओं शरद पवार का सपोर्ट किया. राहुल गांधी ने तो ट्वीट कर शरद पवार के खिलाफ एफआईआर पर आश्चर्य भी जताया. शिवसेना की तरफ से संजय राउत ने जांच एजेंसी के एक्शन को गलत बताया. शिवसेना का शरद पवार को सपोर्ट खास मायने रखता है. शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन मिलकर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ रहा है.

कहने को तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जब इंडिया टुडे के कार्यक्रम में कह रहे थे कि शरद पवार की राजनीति खत्म हो चुकी है तो सामने बैठे आदित्य ठाकरे भी सुनते हुए मुस्कुरा ही रहे थे - लेकिन राजनीतिक विरोध और किसी मराठी मानुष को निशाना बनाये जाने की बात पर चुप रहना मुश्किल है. लिहाजा उद्धव ठाकरे को आगे आना पड़ा.

79 साल के हो चुके शरद पवार पचास साल की राजनीति में एक भी चुनाव नहीं हारे हैं और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र सरकार में भी मजबूत मंत्री रहे हैं. इस उम्र में भी वो लगातार इलाके में दौरा कर रहे हैं. शरद पवार ने अपने तरीके से समझा दिया है कि उन्हें लपेटने की कोई भी कोशिश हुई तो मराठी अस्मिता का मुद्दा बनेगा जो विरोधियों पर भारी पड़ेगा.

सबसे बड़ी बात तो ये है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के नेता रहे अन्ना हजारे ने भी शरद पवार के खिलाफ केस दर्ज होने पर अचरज जताया है. अन्ना हजारे का कहना है कि मामला जो भी हो सच्चाई सामने आनी चाहिये.

अजित पवार ने फंसाया पेंच

मुश्किलें बाहर हों तो आसान होती हैं - लेकिन घर का झगड़ा हर किसी को बहुत भारी पड़ता है - कोई कैसा भी शख्स हो या कोई बड़ी शख्सियत ही क्यों न हो!

मीडिया में आई खबरों से लगता है कि शरद पवार की जगह बीजेपी नेतृत्व अब अजित पवार को टारगेट कर रहा है. अजित पवार एनसीपी में नंबर दो की हैसियत रखते हैं लेकिन शरद पवार के मुकाबले बेहद आसान शिकार हैं. अजित पवार ने भी लंबी राजनीति की है, लेकिन ये सब तभी मुमकिन हुआ जब शरद पवार की छत्रछाया बनी रही. हालांकि, राजनीति विरासत की लड़ाई ने चाचा-भतीजे में गहरी खाई खींच दी है. सुना है पिछले छह महीने से दोनों में कोई बातचीत तक नहीं हुई है. अगर कभी शरद पवार एनसीपी के कोर ग्रुप के नेताओं की मीटिंग भी ले रहे होते हैं तो अगर कोई प्रमुख चेहरा नहीं नजर आता तो वो अजित पवार ही हैं.

ऊपर से ऐसा लगता है जैसे बीजेपी ने उनकी कमजोर नस पकड़ ली है. अगर एनसीपी में हर हक हासिल नहीं होता फिर तो कहीं भी राजनीति करने में क्या फर्क पड़ता है. वारिस नहीं बनाये जाने से नाराज अजित पवार ने बगावत कर रखी है. घर के झगड़े की आग का धुआं आम चुनाव के वक्त भी देखा गया था - लेकिन जैसे तैसे मिल जुल कर सबने ढकने की कोशिश की और काफी हद तक कामयाब भी रहे.

अब अजित पवार ने नयी चाल चली है. विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है और वापस लेने को राजी नहीं हैं. इस्तीफा तो दूर वो तो राजनीति से ही संन्यास लेने की बातें करने लगे हैं. कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार के आरोप लगने से काफी दुखी हैं और अब खेती की ओर लौटने का इरादा कर चुके हैं. हालांकि, ये बातें अजित पवार खुद नहीं बता रहे हैं. या तो ऐसे मैसेज अजित पवार के बेटे पार्थ पवार की तरफ से आ रहे हैं - या फिर खुद शरद पवार इस उथलपुथल के हिसाब से ऐसे बयान दे रहे हैं जिसका राजनीतिक मतलब निकाला जा सके और असर भी हो.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की भी शरद पवार से फोन पर बात हुई है - और उस दौरान अजित पवार के इस्तीफे का भी जिक्र आया है. बताया यही गया है कि अजित पवार कदम पीछे खींचने को लेकर बिलकुल भी तैयार नहीं हैं.

दूसरी तरफ चर्चा ये भी है कि अजित पवार उस बीजेपी नेता के प्रभाव में आ गये हैं जो इस पूरे खेल का सूत्रधार है - तो क्या अजित पवार पाला बदल कर बीजेपी के आशीर्वाद से आगे की मुश्किलों से निजात पाना चाहते हैं - वैसे भी उनके सारे पुराने साथी तो पहले ही भगवा धारण कर चुके हैं. यही वो बिंदु है जहां सबसे मजबूत होते हुए भी शरद पवार कमजोर पड़ जा रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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